Last Updated on July 22, 2019 by admin
आज एड्स-रोग चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रतिदिन कुछ-न-कुछ इसके बारे में सुनने और पढ़ने को मिलता है। किंतु डायरिया रोग की भयङ्करता एड्स से इस मामले में ज्यादा है कि दो दिनों में डायरिया से मरनेवालों की संख्या दो वर्षों में एड्स से मरने वालों से कहीं अधिक है। टीकाकरण आदि के द्वारा इसकी मृत्युदर को कम किया जा सकता है।
डायरिया खतरनाक क्यों है ? :
बार-बार अधिक मात्रा में पतले दस्त को डायरिया कहते हैं यह खतरनाक है; क्योंकि इसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो सकती है। बच्चों में पानी के साथ-साथ लवण की भी कमी हो जाती है, जो शरीर की कार्यप्रणाली के लिये अत्यावश्यक है। लवण की कमी विभिन्न प्रकार की समस्याएँ प्रस्तुत करती है। जैसे-ऐसिलोसिस्, एलकलोसिस्, हाइपोकैलेमिया इत्यादि। यदि डायरिया गम्भीर है तो पानी की कमी तथा मृत्यु हो सकती है, परंतु यदि डायरिया बहुत दिनों से है तो पोषक तत्त्वों की कमी से आँतों में परिवर्तन होता है, जिसके कारण भोजन सुचारु ढंग से पच नहीं पाता है। इससे ग्रस्त बच्चों में खानेकी अभिरुचि खत्म हो जाती है।
डायरिया क्यों होता है ? इसके कारण :
डायरिया के कारण दो प्रकारके होते हैं-
(क) जिस कारण की जानकारी हमें होती है और (ख) जिस कारण का हमें पता नहीं होता है।
दूसरे कारण में साठ-सत्तर डायरिया कारक तत्त्व पाये जाते हैं, जिनमें वाइरल कारण सम्मिलित हैं। पहले कारण में बैक्टीरिया से होनेवाले-जैसे सालम नेला, शिगेला, स्ट्रेप्टो, स्टाफिलोकोकल सम्मिलित हैं।
न जानकारी वाले कारक में ओटिटिसमिडिया, पालिटिस्, ओस्टेमाइलिटिस्, निमोनिया इत्यादि।
कभी-कभी एलर्जी, अपच आदि से भी डायरिया होती है। यदि बच्चों को डायरिया के समय पूर्ण पोषक तत्त्व दिया जाय तो १० से १५ प्रतिशत डायरिया से होनेवाली मृत्यु को रोका जा सकता है। अत: स्वास्थ्य से सम्बन्धित व्यक्ति अगर डायरिया से सम्बन्धित घोल (जीवन रक्षक घोल) और पोषक तत्त्वों के बारे में जानकारी प्राप्त कराये तो यह महान कार्य होगा। समाज में मुख्यतः घरकी औरतें, बच्चे तथा दूसरे व्यक्तियों को अगर जानकारी पहुँचायी जाय तो डायरिया की रोकथाम में काफी मदद मिल सकती है।
डायरिया(दस्त) में ध्यान देने योग्य बातें व रोग के लक्षण :
इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं की तरफ ध्यान देना चाहिये –
(क) डायरिया से होने वाली पानी की कमी की रोकथाम, (ख) डायरिया से होनेवाली पानी की कमी की पहचान, (ग) डायरिया एवं पानी की कमी का उपचार, (घ) कुपोषण की रोकथाम और (ङ) अन्य जानकारियाँ।
(क) पानी की कमी की रोकथाम-
जैसे ही बच्चों को डायरिया हो, उसे घर में उपलब्ध तरल पदार्थ तुरंत देना चाहिये, जैसे चावल का माँड़, शर्बत-शिकंजी (चीनी, पानी, नीबूसे बना घोल), दहीसे बनी नमक वाली लस्सी, दाल का पानी तथा नारियल पानी। माँ का दूध एवं भोजन नहीं रोकना चाहिये।
(ख) पानी की कमी की पहचान-
पानी की कमी की पहचान प्यास, पेशाब, आँसू, आँखें, मुँह, जीभ, त्वचा, नाड़ी, तालू, साँस तथा तापमान से की जा सकती है। इसकी जानकारी के लिये कुछ चीजें पूछी, कुछ देखी और कुछ महसूस की जा सकती हैं। अगर पेशाब में थोड़ी कमी हो, प्यास थोड़ी ज्यादा लगे तो मध्यम श्रेणी का डायरिया हो सकता है। परंतु प्यास अगर बहुत ज्यादा लगे, पेशाब बहुत कम लगे, तो गम्भीर श्रेणी का डायरिया है। देखने पर यदि बच्चा चिड़चिड़ा लगे, रोने पर आँसू न निकले, आँखें धंसी हों, मुँह एवं जीभ सूखे हों तो मध्यम श्रेणी की पानी की कमी है। परंतु अगर बच्चा शान्त हो, आँखें बहुत ज्यादा फँसी हों, जीभ तथा मुँह ज्यादा सूखे हों तो गम्भीर श्रेणी की पहचान है। इसी तरह अगर महसूस किया जाय कि त्वचा को खींचने पर वह धीरे-धीरे अपनी स्थिति में पुनः वापस आये, नाड़ी की चाल तेज हो, तो मध्यम श्रेणी की पानी की कमी है। यदि खींचने पर त्वचा बहुत ही धीरे से अपनी स्थिति में वापस आये, नाड़ी की चाल बहुत ही तेज हो, तो यह गम्भीर पानी की कमी के लक्षण हैं।
(ग) डायरिया एवं पानी की कमी की रोकथाम-
पूर्वोक्त संकेतों के अनुसार समाज में जीवनरक्षक घोल की उपलब्धि एवं महत्ताके बारे में बताया जा सकता है कि किस तरह और कितनी मात्रामें जीवनरक्षक घोल देकर बच्चों की जानें बचायी जा सकती हैं। | जीवनरक्षक घोल का पैकेट १ लीटर स्वच्छ पानी में घोल दिया जाता है और इसे पाँच गिलास बनाया जा सकता है। घोल तैयार होने के बाद अवस्था के अनुसार बच्चों को पिलाते रहना चाहिये। जैसे-छः महीने तक एक-दो कप (बड़ा), सात महीनेसे बारह महीने तक दो-तीन कप (बड़ा) और एक साल से पाँच साल तक तीन-चार कप (बड़ा) यह घोल दिया जा सकता है। गम्भीर रूप से पानी की कमी का उपचार नस के द्वारा पानी चढ़ाकर किया जाता है। घोल पिलाने के बाद उलटी हो जाती है और माताएँ डर जाती हैं, परंतु इस हालत में माँ को चम्मच द्वारा धीरे-धीरे घोल पिलाना चाहिये।
(घ) कुपोषण की रोकथाम–
बच्चों को डायरिया के समय उचित भोजन कराना चाहिये। डायरिया के बावजूद भोजन अच्छी तरह पच जाता है। अत: लगातार भोजन जरूरी है। कुपोषण के विकास को रोकथाम के लिये उत्तम भोजन वह है जो तुरंत पच जाय (जैसे पका चावल, दाल, बीन्स, आलू, हरा पपीता आदि) और जिसमें पोटैशियम की मात्रा हो (जैसे-नीबू, केला, अनन्नास, नारियल-पानी आदि)। बच्चे को उतना ही खिलाना चाहिये, जितना वह चाहे। भोजन दिन में पाँच-सात बार देना चाहिये।
( और पढ़े – बच्चों के पतले दस्त के घरेलू इलाज)
अन्य जानकारियाँ :
अधिकतर डायरिया के समय और गम्भीर डायरिया में भी कुपोषित बच्चों को विटामिन ‘ए’ देना चाहिये। हाल के एक अध्ययन के द्वारा ‘ए सोमर’ ने जानकारी दी है कि उन गाँवों में मृत्यु-दर ३४ प्रतिशत कम है जहाँ विटामिन ‘ए’ उपलब्ध करायी जाती है। अतः यह निश्चित है कि विटामिन ‘ए’ डायरिया की रोकथाम एवं उपचार में अहम् भूमिका निभाता है।
डायरिया से बचाव के उपाय व रोकथाम :
समाज में मीडिया, चिकित्सक, स्वास्थ्य-सेवक, स्वयंसेवी संस्थाएँ
आदि डायरिया की रोकथाम में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिये उन्हें निम्नलिखित तथ्यों की जानकारी होनी चाहिये
(क) भोजन और खान-पान, (ख) पानी, (ग) सफाई तथा (घ) टीकाकरण ।
(क) भोजन और खान-पान-
माँ का दूध छोटे बच्चों के लिये उत्तम भोजन है। यदि माँ का दूध सम्भव न हो तो दूसरा दूध देना चाहिये, लेकिन बोतल से नहीं बल्कि कटोरी एवं चम्मच से। चार महीने से ऊपर के बच्चों को अन्य भोजन भी खिलाना चाहिये। मुलायम तथा मसला हुआ भोजन उत्तम है। भोजन अच्छी प्रकार से तैयार करना चाहिये। बर्तन साफ धुले होने चाहिये।
(ख) पानी-
पीने का पानी जहाँ तक हो सके, साफ जगहों से लेना चाहिये। यह निश्चित कर लेना चाहिये कि पानी पीने के लायक है, नहीं तो उसे उबालकर ही काम में लाना चाहिये। पानी को साफ तथा ढके हुए बर्तन में रखना चाहिये।
(ग) सफाई-
यह कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है। प्रत्येक व्यक्ति को सफाई का ध्यान रखना चाहिये। बच्चों के नाखून एवं हाथों की सफाई तथा गृहिणियों को हाथों और कपड़ों की सफाई अवश्य रखनी चाहिये। खाने-पीने की चीजों को गंदगी से दूर रखना चाहिये। मक्खी सबसे गंदा कीट है। इसे कभी भी खाद्य पदार्थों पर बैठने नहीं देना चाहिये। बासी भोजन बच्चों को नहीं देना चाहिये।
(घ) टीकाकरण-
खसरा का परिणाम भयावह रूपसे डायरिया में बदल जाता है। अतः खसरे का टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है।
समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है। कि बच्चों में व्याप्त डायरिया रोग एवं डायरिया से होने वाली मृत्यु को रोकने में अपना सहयोग प्रदान करें ताकि बच्चे स्वस्थ एवं सानन्द रहे।