Last Updated on September 4, 2021 by admin
अकसर ‘फ्लू’ और ‘सर्दी’ को एक ही समझ लिया जाता है, परंतु इन दोनों में फर्क है। इसकी पर्याप्त जानकारी रहने पर दोनों का सटीक उपचार तुरंत किया जा सकता है।
‘फ्लू’ तथा ‘सर्दी’ में लाक्षणिक अंतर (Flu ke Symptoms in Hindi)
- फ्लू प्रायः बुखार से शुरू होता है, जिसका ताप कम-से-कम 100 डिग्री फारनेहाइट होता है। सर्दी बुखार के साथ नहीं आती। केवल बच्चों को बुखार के साथ सर्दी आती है।
- फ्लू का आरंभ अचानक और तीव्र होता है। इसके विपरीत सर्दी धीरे-धीरे जोर पकड़ती है।
- फ्लू का आक्रमण होने पर सर्दी के लक्षण जैसे नाक बंद होना, गले में खराश, मांसपेशियों का दर्द, सिरदर्द अधिक होते हैं ।
- फ्लू के नब्बे प्रतिशत मरीजों को सूखी खाँसी होती है, पर सर्दी अधिकांशतः खाँसी के साथ नहीं आती और इसकी खाँसी कम दर्दनाक होती है।
- फ्लू के साठ प्रतिशत मरीजों की शिकायत रहती है – आँखों में लाली, बहुधा जलन, आँखों से पानी बहना और प्रकाश से संवेदनशील होना।
मौसमी फ्लू (Seasonal Flu in Hindi)
जैसे ही मौसम बदलता है, फ्लू नाम का राक्षस सबको अपनी चपेट में ले लेता है। क्या औरत, क्या आदमी और क्या बच्चे, सभी इससे पीड़ित देखे जाते हैं। यह एक संक्रामक रोग है, जो एक व्यक्ति से दूसरे तक तेजी से फैलता है। कभी-कभी तो यह इतनी तेजी से फैलता है कि कुछ घंटों में हजारों लोग इसके शिकार हो जाते हैं।
फ्लू होने के कारण (Flu ke Karan in Hindi)
flu kyu hota hai
फ्लू की उत्पत्ति एक अति सूक्ष्म जीवाणु के द्वारा होती है। मनुष्य शरीर पर इसका हमला द्रुत गति से होता है। संक्रामक होने के कारण इसका प्रसार जीवाणुओं के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे को, एक रोगी के छूने या उसकी कोई चीज इस्तेमाल करने से तथा आस-पास की वायु द्वारा तीव्रगति से होता है। कमजोर व्यक्ति को यह बार-बार हो सकता है। बहुत जल्द ही यह अपनी चरम अवस्था में पहुँच जाता है।
फ्लू में सावधानी तथा बचाव (Flu se Bachne ke Upay in Hindi)
flu se kaise bache
इसमें उपचार के संबंध में लापरवाही बिलकुल न करें। रोगी की उचित देखभाल करें तथा कुछ सावधानियाँ बरतें –
1). सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात है कि रोगी का कमरा खुला एवं हवादार होना चाहिए। ऐसा प्रबंध होना चाहिए कि कमरे में ताजी हवा पहुँचती रहे और रोगी को ठंड भी न लगे।
2). रोगी को हर प्रकार की गंदगी से दूर रखना चाहिए। रोगी का बिस्तर और पोशाक प्रतिदिन बदलनी चाहिए। इन्हें दोबारा प्रयोग में लाने से पूर्व, धुलाई करते समय कुछ देर तक उबाले हुए गरम पानी में रखना चाहिए, ताकि इनके साथ लगे रोग के कीटाणु नष्ट हो जाएँ।
3). रोगी व्यक्ति के थूक, बलगम एवं कुल्ली आदि के लिए जिस चिलमची या बरतन का प्रयोग किया जाए, उसकी तह में सूखी राख या सूखी रेत जरूर डाल लेनी चाहिए। थूक, बलगम आदि को इस राख से हर बार ढाँप लेना चाहिए।
4). रोगी के मल-मूत्र आदि के लिए सबसे अलग स्थान होना चाहिए। रोगी द्वारा मल-मूत्र के लिए जिस पॉट का प्रयोग किया जाए, उसे भी कीटाणुनाशक घोल द्वारा साफ करते रहें।
5). रोगी के कमरे के फर्श को कम-से-कम दिन में दो बार पानी में फिनाइल मिलाकर धोएँ।
6). फ्लू रोग में रोगी को विश्राम की अत्यधिक आवश्यकता होती है। जब रोग का आक्रमण होता है तो तुरंत ही रोगी कमजोरी महसस करने लगता है। लापरवाही के कारण रोगी निमोनिया का शिकार भी हो जाता है।
7). रोगी को ऐसा आहार नहीं देना चाहिए, जो भारी हो तथा जिसे रोगी शीघ्र पचा न सके। रोगी को तरल, शीघ्र पचने वाला एवं पौष्टिक आहार देना चाहिए। दूध, कॉफी, फलों का रस, सब्जियों का सुप तथा मौसमी का जूस अधिक देना चाहिए।
8). रोगी की अवस्थानुसार मूंग की दाल का सूप, साबूदाना, पतली खिचड़ी आदि खाद्य एवं पेय पदार्थ दिए जा सकते हैं। उबले हुए जल का सेवन करना चाहिए।
9). रोगी को स्वस्थ होने तक आयुर्वेदिक चाय सुबह-शाम पिलाएँ। ( और पढ़े – पौष्टिक एवं स्वादिष्ट हर्बल चाय बनाने की विधि )
10). गले की खराश दूर करने के लिए नमक-पानी के गरारे करें और मिश्री के साथ छोटी इलायची चूसते रहें।