पुणे में चौदह वर्षीय किशोरी रीदा जाहांगीर अस्पताल में भर्ती की गई। चिकित्सकों को यह पता नहीं लगा कि उसे स्वाइन फ्लू है। उन्होंने उसे सामान्य फ्लू रोग समझकर चिकित्सा की गई। वास्तव में वह स्वाइन फ्लू से पीड़ित थी। अतः निदान न होने से भारत में प्रथम रोगी पुणे में रीदा जहांगीर अस्पताल में मौत के मुंह में चली गई।
सबसे पहले मैक्सिकों में अप्रैल ०९ में स्वाइन फ्लू (एच१एन१) का पता चला। इसके खतरे का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कह चुका है कि यह रुकने वाली बीमारी नहीं है। चालीस वर्ष में पहली बार किसी फ्लू को विश्व व्यापी महामारी घोषित किया गया है। इससे पहले १९६८ में हांगकांग फ्लू को विश्व व्यापी महामारी घोषित किया गया था। तब इस महामारी से १० लाख लोग मारे गये थे। स्वाइन फ्लू के लक्षण भी आम फ्लू जैसे ही मिलते हैं। अत: सावधानी तथा इससे होने वाले खतरे से हमें सचेत रहना होगा।
स्वाइन फ्लू के वायरस का नाम व प्रकार :
शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे एच१ एन१ या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं, विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणुओं में से किसी एक के द्वारा फैलाया गया संक्रमण है।
शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु (SIV-एस.आई.वी), इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओं का वह कोई भी उपभेद है, जो कि सूअरों की स्थानिकमारी के लिए उत्तरदायी है। २००९ तक ज्ञात एस.आई.वी उपभेदों में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच१ एन१ (H1N1), एच१एन२(H1N2), एच३एन१ (H3N1), एच३एन२ (H3N2) और एच२एन३ (H2N3) शामिल हैं। इस प्रकार का इन्फ्लूएंजा मनुष्यों और पक्षियों पर भी प्रभाव डालता है।
भारत में स्वाइन फ्लू टेस्ट :
बुखार, बलगम, गले और शरीर में दर्द, सर्दी, उल्टी-दस्त, और थकान जैसे लक्षण दूसरी तरह के फ्लू में भी नजर आते हैं। इसलिए प्रथम दृष्टया स्वाइन फ्लू का पता लगाना संभव नहीं है। अब सरकार ने सभी निजी अस्पतालों को एच १ एन १ टेस्ट अनिवार्य करने के निर्देश दिये हैं। सवाल यह है कि जब पूरे विश्व में स्वाइन फ्लू को लेकर दहशत फैली हुई है और विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे महामारी घोषित कर चुका है। तो ऐसे निर्देश पहले क्योंकि नहीं दिये गये। सवाल यह भी है कि क्या सभी सरकारी अस्पतालों में इस तरह के टेस्ट हो रहे हैं या नहीं ? इसकी निगरानी कौन कर रहा है? ।
असल में केन्द्र और राज्य सरकारों ने स्वाइन फ्लू से निपटने के पर्याप्त इंतजाम किये ही नहीं है। सरकार को लगता है कि जिस तरह सार्स सिर्फ चीन तक सीमित रहा और एर्वियन फ्लू भी भारत को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाया वैसे ही स्वाइन फ्लू भी भारत से दूर ही रहेगा।
लगातार स्वाइन फ्लू के मरीज देश के विभिन्न हिस्सों में मिलने के बावजूद सरकार चौकस नहीं हुई और न ही इस बीमारी से लड़ने के लिए दृढ़ राजनीति बनाई। अब पुणे में रीदा की मौत ने सरकार को जगाया और स्वाइन फ्लू से लड़ाई लम्बी चलने वाली लग रही है।
इस एक मौत ने सरकार को हिलाकर रख दिया। तथा पहले जहां बहुत कम मात्र दो तीन प्रयोगाशालएं थी, उनकी संख्या बढ़ाई गई। चिकित्सकों को संदिग्ध स्वाइन फ्लू के मरीजों की स्क्रेनिंग हेतु कहा गया। इससे हजारों मरीजों का पता लगा कि वे स्वाइन फ्लू से पीड़ित हैं। अत: उन्हें समय पर इलाज दिया गया, जिससे उनकी जान बच सकी,फिर भी देश में अब तक ३०० के लगभग लोगों की मृत्यु हो चुकी है। अभी खतरा टला नहीं है फिर भी सरकार के साथ-साथ हमें भी सावधानी तथा जागरुकता रखनी होगी।
स्वाइन फ्लू की नई किस्म :
W.H.O. के मुताबिक सूअर (स्वाइन), पक्षी (एवियन) और मनुष्य तीनों के जीन मिलने से बना एन्फ्लुएन्जा ए (एच-१, एन-१) वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू के वायरस से अलग है और वायरस की नवीनतम किस्म है। इसका पिछले वर्षों में मनुष्य में संक्रमण का कारण बने इन्फ्लुएंजा वायरस से कोई इसका जबाव पुख्ता तौर पर वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिला है। चूंकि मैक्सिको में ही इस वायरस से मनुष्य संक्रमित होने का पहला मामला सामने आया। इसलिए माना जा रहा है कि वहीं इसकी उत्पत्ति हुई। सामान्य फ्लू के मामले दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहले ही दर्ज किए जाते रहे हैं। सदी के मौसम में हर साल विशेष रूप से शीत प्रदेशों में इस संक्रमण की चपेट में आने वाले अधिकांश लोग बिना किसी इलाज के एक या दो सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। जबकि स्वाइन फ्लू इन्फ्लु एंजा ए (एच-१, एन-१) वायरस का संक्रमण किसी भी मौसम में फैल सकता है और सामान्य फ्लू की तुलना में बड़े पैमाने पर लोगों को प्रभावित करता है। सभी आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में आ सकते है।
यूं पड़ा नाम एच१ एन१ या स्वाइन फ्लू :
इन्फ्लुएन्जा ए वायरस की सतह पर दो प्रोटीन हीमोग्लूटीनिन (एच.) और न्यूरामिनिडेज (एन) पाए जाते हैं। जैनेटिक क्यूटैशिन (आनुवांशिक उत्परिवर्तन) के चलते इन प्रोटीन की संरचना में परिवर्तत होता है और वायरस की उप किस्में तैयार होती है। हर एक उप किस्म का नाम एक एच संख्या पर और एक एन संख्या के आधार पर तय किया जाता है। सभी पक्षियों में १६ एच और ९ एन उप किस्में ज्ञात हैं और मनुष्यों में एच. की १,२ व तीन और एन की १ व २ किस्में आमतौर पर पाई जाती है।
१. बर्ड (एवियन) फ्लू और मानवीय फ्लू कि विषाणों तो सुअरों में संक्रमण।
२. सुअर के राइबो न्यूलिक एसिड (आर.एन.ए.) से मिलकर नए वायरस स्वाइन फ्लू ए (एच.१, एन१) का जन्म।
३. इन्फ्लुएंजा ए (एच.एन.) वायरस की सुअर से मनुष्य में संक्रमण।
४. इन्फ्लू एंजा ए (एच.एन.) में मौजूद नए एंटीजन (प्रतिजन) मानवीय फ्लू के एंटीजन से अलग होते हैं। इन्हें मानव शरीर में मौजूद प्रतिरक्षी पहचान नहीं पाते और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। स्वाइन फ्लू के लक्षण उभरने लगते हैं।
इन्फ्लुएंजा ए (एच१ एन१) का एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में संक्रमण।
स्वाइन फ्लू कैसे फैलता है ?
समझा जाता है कि यह इन्फ्लूएंजा वायरस भी आम मौसमी फ्लू की तरह ही फैलता है। संक्रमित व्यक्ति को बात करते या खांसते-छींकते समय उसके मुंह या नाक से निकलने वाली छोटी बूंदें सांस के जरिए दूसरे व्यक्ति के भीतर पहुंचने से इसका संक्रमण हो सकता है। इस वायरस से संक्रमित कोई चीज जैसे टिश्यु पेपर या दरवाजे के हैंण्डिल के सम्पर्क में आने के बाद अपनी नाक या आंख छूने से भी संक्रमण हो जाता है।
स्वाइन फ्लू के शुरुआती लक्षण / पहचान :
स्वाइन फ्लू के लक्षण निम्नलिखित है –
१. स्वाइन फ्लू से ग्रस्त व्यक्ति में भी ठीक उसी तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। जैसे सामान्य मौसमी फ्लू से संक्रमित होने पर नजर आते हैं।
२. रोगी को बुखार चढ़ती है।
३. सारे शरीर में सुस्ती रहती है।
४. भूख बन्द हो जाती है।
५. नाक से पानी जैसा स्राव बहता है।
६. रोगी के गले में खरखरी बनी रहती है।
७. रोगी को हर दम खांसी बनी रहती है।
८. रोगी को उल्टी मितली बनी रहती है।
९. उसके दस्त लगने शुरु हो जाते हैं।
स्वाइन इन्फ्लूएंजा ए (एच १एन १) वायरस से होने वाला संक्रमण व्यक्ति के श्वसन-तंत्र को सर्वाधिक प्रभावित करता है। खांसते और छींकने से वायरस हवा के जरिए एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलता है। W.H.O. के मुतानिक चूंकि वायरस का जेनेटिक म्यूटेशन (आनुवांशिक उत्परिवर्तन) संक्रमण के दौरान जारी रहता है। इसलिए मुश्किल से और मुश्किल होता चला जाता है। चूंकि इस संक्रमण के इलाज के लिए अभी तक कोई वैक्सीन (टीका) विकसित नहीं किया जा सकता है। इसलिए बचाव के लिए सावधानियां बरतना ही श्रेयष्कर है।
स्वाइन फ्लू से बचाव के उपाय :
१. इन्फ्लूएंजा ए (एच.एन) से संक्रमित व्यक्ति जब खांसता या छींकता है तो वह अपने आस-पास की सतह पर वायरस फैला देता है। उसके द्वारा इस्तेमाल किये गए टिश्यू पेपर या बिना धुले हाथों से भी वायरस फैलते हैं। इसलिए सतह को साफ रखना जरूरी है।
२. डिटर्जेट और पानी के साथ ही किचन, प्लेटफार्म, टॉयलेट प्लश और दरवाजों के हत्थों को विषाणु नाशकों से साफ करना चाहिए।
३. दिन में नियमित अन्तराल से अपने हाथ साबुन से धोते रहें।
४. छींकने-खांसने समय मुंह और नाक को टिश्यू पेपर को कचरे की टोकरी में ही डालें।
५. दरवाजे के हत्थों जैसी कड़ी जगहों को हमेशा साफ रखें।
६. अगर आप बीमार हैं तो घर पर ही रहने की कोशिश करें।
७. अपनी नाक और आंखों को छूने से बचें। अगर पोंछना ही है, तो टिश्यू पेपर का प्रयोग अवश्य करें।
८. बचाव के लिए मास्क का प्रयोग करें। चौबीस घंटे में मास्क अवश्य बदल लें।
९. अगर बच्चे बीमार हैं, तो स्कूल न जाने दें, उसे घर में ही रखें खासतौर से तब बिल्कुल एक्सपोजर अवॉइड करें जब फ्लू या दूसरे इंफेक्शन के लक्षण दिखाई दें।अगर कोई संदेह हो तो तुरन्त पीडियाट्रीशियन को दिखाएँ।
१०. हाथों की सफाई पर खास ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि एच१ एन१ जैसे इन्फेक्शन के खतरे को कम करने का यह सबसे आसान तरीका है।
११. किसी के साथ हाथ मिलाने या गले मिलने से बचें। खुले में न थूकें। बिना डॉक्टर की सलाह के दवा न लें। भीड़भाड़ वाली जगह पर जाने से बचें। फ्लू से प्रभावित व्यक्ति से एक हाथ की दूरी बनाकर रखें। खूब पानी, पौष्टिक आहार और पर्याप्त नींद लें।
१२. सुबह और रात में साबुन से हाथ धोने, रोज नहाने, खाने से पहले साबुन से हाथ धोने जैसी बातों का ध्यान रखकर सभी को हद तक बीमारी से बचाया जा सकता है।
१३. बच्चों में खांसते या छींकते समय मुंह और नाक ढ़कने की आदत डालें। ऐसे समय में मुंह पर हाथ रखकर एक सामान्य आदत होती है, लेकिन क्सपट्र्स मानते हैं। कि इससे टिश्यू रुमाल या कुछ न हो तो शर्ट की स्टील के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल करें।
स्वाइन फ्लू में कितना कारगर है मास्क ? :
स्वास्थ्य संगठनों ने स्वाइन फ्लू मरीजों के करीबी सम्पर्क में आने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को मास्क पहनने की सलाह दी है, लेकिन आम आदमी के लिए रोजाना के कामों के दौरान मास्क पहनने की सिफारिश नहीं की गई है। आखिर क्यों ? दरअसल रोजमर्रा के कामों के दौरान फेसमास्क जैसी जरूरत नहीं है। स्वाइन फ्लू को वायरस संक्रमित सतह को छूने या फिर रोगी के खांसने छींकने के दौरान उसेक एकदम पास खड़ा रहने स फैलता है। इसलिए जब तक आफ रोगी के एकदम पास नहीं खड़े हों, मास्क पहनने या न पहनने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
आइये जाने स्वाइन फ्लू के घरेलू इलाज के बारे मे (स्वाइन फ्लू ट्रीटमेंट एट होम)।
स्वाइन फ्लू का इलाज / चिकित्सा :
फिलहाल इस मर्ज से निपटने के लिए सिर्फ “टैमीफ्लू’ नामक दवा मौजूद है। इसकी बाजार में खुली बिक्री पर सरकार ने अभी प्रतिबन्ध हटाया है। लेकिन हर जिले में इस दवा के बिक्री के लिए अधिकृत मेडिकल स्टोर सरकार द्वारा अधिकृत किए गए हैं, जिनमें चिकित्सक द्वारा लिखने पर दवा स्वीकारी खरीदी जा सकती है। हर व्यक्ति में भी स्वाइन फ्लू के प्रति जागृति आई है। फ्लू के लक्षण प्रकट होते ही व्यक्ति ‘स्वाइन-फ्लू’ की जांच करा रहा है। पॉजिटीव होने पर टैमीफ्लू लेने से इस रोग से मरने वालों की संख्या कम होती जा रही है। संसार में तभी इस रोग से मरने वाले रोगियों की सख्या ६,२५० तक ही सीमित रही है। कई देशों में इसका टीका विकसित करने पर काम चल रहा है, भारत ने भी स्वाईन फ्लू का टीका बना लिया है। चीन ने इसके टीके को विकसित करके अपने देश में वेक्सीन लगानी शुरू कर रही है।
1- तुलसी पत्र, काली मिर्च, अदरख की क्वाथ लेने से रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है। तथा स्वाइन फ्लू का खतरा नहीं रहता है रोजाना इसका सेवन जहां पर स्वाइन फ्लू का संक्रमण है अवश्य करना चाहिए।
2- गिलोय, तुलसी-पत्र, सुदर्शन समभाग में लेकर चूर्ण बना लें या क्वाथ बनाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
3- हरी गिलोय एवं तुलसी-पत्र समान भाग में लेकर क्वाथ विधि से सेवन करने पर भी स्वाइन फ्लू के खतरे से बचा जा सकता है।
4- नीम, गिलोय, कुटकी, सुदर्शन एवं चिरायता समभाग में लेकर कपड़छान करके चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की २-२ ग्राम की मात्रा सुबह-शाम उष्ण जल से देने से लाभ होता है।
क्योंकि यह अत्याधिक संक्रामक रोग है, अतः इससे बचाव के जो उपाय है, उनका पालन भी अनिवार्य ही नहीं अपितु अपरिहार्य है। वात श्लेष्मिक ज्वर चिकित्सा भी इसी चिकित्सा के रूप में प्रयुक्त की जा सकती है।
आगे पढ़ने के लिए कुछ अन्य सुझाव :
• इम्यूनिटी पावर (रोग प्रतिरोधक क्षमता) बढ़ाने के उपाय
• स्वस्थ रहने के उपाय व खानपान के जरुरी नियम
• नाभि और हमारा स्वास्थ्य