Last Updated on January 14, 2020 by admin
गर्भ में भ्रूण का विकास क्रम : Fetal Development Month by Month in Hindi
3 से 4 सप्ताह का गर्भ (what happens during week 3 to 4 of pregnancy)
इसकी लम्बाई 1/3 इंच और वजन सवा से डेढ़ ग्राम तक होता है । परिमाण चींटी के सामन होता है । मुख के स्थान पर एक दरार और नेत्रों के स्थान पर काले तिल होते हैं।
6 से 7 सप्ताह का गर्भ (what happens during week 6 to 7 of pregnancy)
इसकी लम्बाई आधा इंच से 1 इंच तक और वजन 3 से 5 ग्राम तक होता है। सिर और छाती अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। चेहरा भी साफ दीखता है। आँख, नाक, कान और मुँह के छेद बन जाते हैं तथा हाथों में उँगलियाँ निकल आती हैं । कमल बनना भी आरम्भ हो जाता है।
दो महीने का गर्भ (pregnancy ka 2nd month in hindi)
इसकी लम्बाई लगभग 2 इंच और वजन 8 से 20 ग्राम तक होता है । नाक, होंठ और आँखें दीखती हैं, परन्तु भ्रूण लड़का है अथवा लड़की यह पता नहीं चलता । मल द्वार, फुफ्फुस और प्लीहा आदि अंग दिखाई देते हैं।
तीन महीने का गर्भ (pregnancy ka 3rd month in hindi)
इसकी लम्बाई टाँगों को छोड़कर लगभग 3 इंच और वजन 145 ग्राम के लगभग होता है । सिर बहुत बड़ा होता है । अँगुलियाँ अलग-अलग दिखाई देती हैं । भगनासा या शिश्न भी दीखते हैं।
चार महीने का गर्भ (pregnancy ka 4th month in hindi)
इसकी लम्बाई साढ़े तीन या चार इंच के लगभग और टाँगों को मिलाकर 6 इंच के लगभग होती है। सिर की लम्बाई कुल शरीर की लम्बाई से चौथाई होती है । गर्भ का लिंग साफ दीखता है । नाखून बनने लगते हैं । कहीं-कहीं रोएँ भी दिखाई देने लगते हैं और भ्रूण के हाथ-पैर कुछ हरकत करने लगते हैं।
पाँच महीने का गर्भ (pregnancy ka 5th month in hindi)
इसकी लम्बाई सिर से पैर तक लगभग 8-10 इंच और वजन 500 ग्राम होता है । समस्त शरीर पर बारीक बाल होते हैं । यकृत अच्छी तरह बन जाता है । आँतों में कुछ मल जमा होने लगता है । गर्भ कुछ हिलता-डुलता है । माता को गर्भस्थ शिशु की हरकत करना मालूम होने लगती है । नाखून साफ दिखाई देते हैं।
गर्भावस्था के 6 महीने के परिवर्तन (pregnancy ka 6th month in hindi)
इसकी लम्बाई सिर से एड़ी तक 12 इंच और वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है । सिर के बाल शरीर के अन्य स्थानों की अपेक्षा ज्यादा लम्बे होते हैं । आँखों के ऊपर की भौंहें और बरौनियाँ भी बनने लगती हैं।
गर्भावस्था के 7 महीने के परिवर्तन (pregnancy ka 7th month in hindi)
इसकी लम्बाई लगभग 14 इंच और वजन लगभग डेढ़ किलोग्राम होता है। सिर पर लगभग एक इंच लम्बे बाल होते हैं। आँतों में मल एकत्रित हो जाता है । इस महीने में पैदा हुए बालक को यदि यत्नपूर्वक पालन-पोषण किया जाए तो जीवित रह सकता है, अन्यथा ऐसे बालक की प्रायः मृत्यु हो जाती है ।
गर्भावस्था के 8 महीने के परिवर्तन (pregnancy ka 8th month in hindi)
इसकी लम्बाई लगभग 16-17 इंच और वजन लगभग 2 किलोग्राम होता है । इस मास में पैदा हुआ बच्चा यदि सावधानीपूर्वक पाला जाय तो वह जीवित रह सकता है।
गर्भावस्था के 9 महीने के परिवर्तन (pregnancy ka 9th month in hindi)
इसकी लम्बाई 18 इंच और वजन दो सेर से लेकर अढ़ाई किलोग्राम तक होता है । इस महीने में अण्डा अण्डकोष में पहुँच जाते हैं ।
गर्भावस्था के 10 महीने के परिवर्तन (pregnancy ka 10th month in hindi)
इसकी लम्बाई 20 इंच के लगभग और वजन लगभग सवा तीन किलोग्राम से लेकर साढ़े तीन किलोग्राम तक होता है । भ्रूण का शरीर पूरा बन जाता है । हाथों की अंगुलियों के नाखून पोरूओं से अलग दीखते हैं । पैर की अंगुलियों के नाखून पोरूओं तक रहते हैं, आगे बढ़े नहीं रहते । सर के बाल 1 इंच लम्बे होते हैं । यदि बालक जीवित अवस्था में पैदा होता है तो वह जोर से चिल्लाता है और यदि उसके होठों में कोई चीज दी जाती है तो वह उसे चूसने की चेष्टा करता है।
( और पढ़े – मासानुसार गर्भवती महिला की देखभाल )
प्रसव से जुड़ी कुछ खास बातें : Important Facts About Childbirth
गर्भ के प्रथम महीने में जब भ्रूण छोटा रहता है, तब उसका सिर और धड़ नीचे रहता है किन्तु अगले कुछ महीनों में सिर नीचे हो जाते हैं । 96 प्रतिशत भ्रूण इसी तरह रहते हैं । बच्चा पैदा होते समय पहले सिर निकलता है और उसके बाद बच्चे का धड़ और पैर निकलते हैं लेकिन जब सिर ऊपर और पैर नीचे होते हैं तो बालक का जन्म पैर के बल होता है। कभी-कभी कन्धे या हाथ भी पहले योनि के बाहर निकल आते हैं । सिर के बल बालक का जन्म होना सबसे उत्तम एवं सुखप्रद है ।
बच्चा को जन्म देने वाली स्त्री को साधारण बोल-चाल में जच्चा या प्रसूता कहा जाता है । भ्रूण या बच्चे का शरीर गर्भवती स्त्री की योनि से निकलकर बाहर आना ‘प्रसव’ अथवा ‘प्रजनन’ कहलाता है ।
शिशु के जन्म के समय कम या ज्यादा पीडा प्रत्येक स्त्री को होती है किन्तु कुछ स्त्रियों को पीडा या दर्द कम होता है –
- जो स्त्रियाँ मजबूत होती हैं।
- जो शारीरिक शक्ति के अनुसार घरेलू कामकाज करती हैं।
- जो शान्त स्वभाव की होती हैं।
- जिनका बस्ति गह्वर विशाल होता है और जिनके बस्ति गह्वर की हड्डियाँ ठीक तौर से बनी होती हैं।
प्रायः देखा यह जाता है कि-ग्रामीणंचलों की हष्ट-पुष्ट स्त्रियाँ बच्चा जनने के दिन तक अपनी शारीरिक शक्ति की क्षमता के अनुसार कार्य करती रहती हैं, ऐसी स्त्रियों को बच्चा जनने में विशेष पीड़ा नहीं होती है। निम्न प्रकार की स्त्रियों को बच्चा पैदा करने में बहुत पीड़ा उठानी पड़ती है –
- जो स्त्रियाँ दुर्बल अथवा नाजुक बदन की होती हैं।
- जिनके कम आयु में ही बच्चा पैदा हो रहा होता है ।
- जो अधिक अमीर घराने की होती हैं।
- जो किसी भी प्रकार की कोई मेहनत नहीं करतीं ।
- जिनका बस्ति गह्वर विशाल न होकर-तंग होता है और जिनके बस्ति गह्वर की हड्डियाँ किसी रोग के कारण मुड़ जाती हैं।
- जो प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध कार्य करती हैं।
- जिनका स्वभाव चञ्चल होता है।
- जो बच्चें को जन्म देने से डरती हैं।
( और पढ़े – प्रसव पीड़ा को दूर करने के उपाय )
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न : FAQ (Frequently Asked Questions)
शिशु जन्म के दौरान स्त्रियों को दर्द क्यों उठते हैं ? (pregnancy me dard kyu hota hai)
बच्चा पैदा होने का समय निकट होने पर-स्त्री के गर्भाशय का माँस सिकुड़ता है । इस सिकुड़न के कारण, लहरों के साथ दर्द होता है । माँस के सिकुड़ने से गर्भाशय की भीतरी जगह कम होने लगती है। इसी जगह की कमी एवं गर्भाशय की दीवारों के दबाव से गर्भाशय के भीतर की चीजें (बच्चा और जेर, नाल बगैरह) बाहर निकलना चाहते हैं।
तंग योनि से बच्चा आसानी से बहार कैसे निकल आता है ?
जब बच्चा पैदा होने वाला होता है, तब गर्भ के पानी से भरी हुई पोटली-सी गर्भाशय के मुँह में आकर अड़ जाती है । इससे गर्भाशय का मुँह चौड़ा हो जाता है और गर्भस्थ शिशु के सिर निकलने लायक जगह हो जाती है । बच्चे का सिर गर्भाशय के मुँह में आ पड़ता है, तब उसके आगे जो पानी की पोटली होती है, वह भारी दबाब पड़ने के कारण फट जाती है और गर्भ का जल बह-बहकर योनि के बाहर आने लगता है । इस जल से भरी पोटली के फूटने के साथ जरा-सा खून भी दिखाई देता है । इस पोटली से योनि और भग खूब भीगकर तर हो जाते हैं और इसी कारण से बच्चा इतनी तंग जगह से सहज ही फिसल कर योनि के बाहर आ जाता है।
क्यों बच्चा जन्म के तुरंत बाद रोता है ?
ज्यों ही बच्चा अपनी माता की योनि से बाहर आता है तभी वह जोर से चिल्लाता है । इससे वह श्वास लेता है और हवा प्रथम बार उसके फुफ्फुसों में घुसती है । यदि बालक पैदा होते ही रोता नहीं तब उसके जीवित होने में सन्देह उत्पन्न हो जाता है । यदि पेट से मृत बाल निकलता है तो वह रोता नहीं है ।
( और पढ़े – प्रसूति (डिलीवरी) के बाद खान पान और सावधानियां )
प्रसूता स्त्रियों के पालन करने हेतु आवश्यक निर्देश :
जब बच्चा और बच्चे के बाद अपरा या जेर-नाल गर्भाशय से निकल आते हैं तब गर्भाशय अपनी पहली अवस्था में आने लगता है । बच्चा पैदा होने के तुरन्त बाद गर्भाशय नाभि के आस-पास आ जाता है फिर 14-15 दिन में वह इतना छोटा हो जाता है कि-बस्ति गह्वर या पेडू (शरीर में नाभि के नीचे तथा मूत्रेंद्रिय से ऊपर का स्थान) में घुस जाता है । जब तक गर्भाशय पेडू में न घुस जाए तब तक प्रसूता को चलने-फिरने और मेहनत करने से बचना चाहिए ।
सामान्य प्रसव के 3 दिन बाद प्रसूता को चलने-फिरने व साधारण काम-काज करने की मनाही नहीं है। यों 40-45 दिनों में गर्भाशय अपनी ठीक स्थिति में आ जाता है, तब फिर किसी बात का भय नहीं रहता ।
नोट-इन अवस्थाओं में गर्भाशय 14-15 दिनों में पेडू में नहीं जा पाता –
(1) 3-4 बच्चों के प्रसव के उपरान्त ।
(2) गर्भाशय में अधिक जल संचय रहने की दशा में ।
(3) जुड़वाँ प्रसव के बाद ।
(4) शिशु को स्तनपान न कराने की दशा में ।
(5) आँवल या झिल्ली के किसी टुकड़े अथवा रक्त के थक्के के यों ही अथवा संक्रमित होकर गर्भाशय में रुके रहने के कारण ।
बालक पैदा होने के 14 या 15 दिन तक प्रसूता की योनि से थोड़ा-थोड़ा पतला पदार्थ गिरा करता है । इसमें ज्यादा हिस्सा खून का होता है। पहले खून निकलता है, किन्तु बाद में वह कम होने लगता है । फिर 3-4 दिन के बाद भंदरा-भंदरा पानी-सा गिरता है । एक हफ्ते के बाद वह स्राव पीला-सा हो जाता है । इस स्राव में खून के अतिरिक्त और अन्य भी अनेक चीजें होती हैं। इसमें एक तरह की गन्ध भी आती है। यदि भीतर से आने वाले पदार्थ में बदबू हो अथवा उसका निकलना कम पड़ जाए अथवा स्त्राव होना कतई बन्द हो जाए तो ऐसी स्थिति में लापरवाही छोड़कर तुरन्त ही किसी सुयोग्य वैद्य से चिकित्सा करानी चाहिए । उपेक्षा करने से-प्रसूत ज्वर के अतिरिक्त और भी भयंकर व्याधियाँ जैसे- औदार्यकला प्रदाह, सप्तक ज्वर आदि होने का भय रहता है।
प्रसव के बाद 4-5 महीने के भीतर प्रसूता के स्तनों से निकलने वाले पीले रंग के तरल पदार्थ ‘नवदुग्ध’ या ‘खीस’ में-
(1) शिशु की आँतों को-संक्रमण से बचाने वाले ‘रोग-प्रतिकारक तत्व’ और
(2) शिशु के शारीरिक विकास हेतु अति आवश्यक ‘प्रोटीन तत्त्व’ पान कराना शिशु के हित में है।
नोट- आधुनिक मतानुसार-नाभि-नाल काटने के तुरन्त बाद शिशु को स्तन-पान कराने से आँवल जल्दी ही योनि के बाहर निकल आता है । इस प्रकार शीघ्र ही गर्भाशय सिकुड़ने के कारण माता को अधिक रक्तस्राव होने का खतरा भी नहीं रहता।