गर्भ संस्कार का महत्व और विज्ञान – Garbh Sanskar in Hindi

Last Updated on December 8, 2020 by admin

गर्भ संस्कार क्या है ? :

गर्भधारण के बाद स्त्री का आहार-विहार, दिनचर्या, आदतें, विचारधारा, मानसिक स्थिति इत्यादि अनेक बातों का परिणाम उसके गर्भ पर होता है । शिशु के जन्म के बाद किए जानेवाले संस्कारों की अपेक्षा गर्भ में रहते हए किए गए संस्कार अधिक प्रभावी होते हैं । गर्भ पर उत्तम संस्कार होना जरूरी है, यह सभी मानते हैं । विज्ञान ने भी अब यह सिद्ध किया है।

नई पीढ़ी वाकई चिंतनशील है। उत्कृष्ट शिशु का जन्म हो इसलिए प्रयत्नशील रहती है और उसके लिए तकलीफ उठाने के लिए भी तैयार रहती है।
गर्भसंस्कार के बारे में प्राचीन धर्मशास्त्र में भी बताया गया है। अभिमन्यु की कथा की तरफ देखने के बाद दृष्टिकोण में बदलाव लाना जरूरी है।

जैन शास्त्र में रानी मदालसा की कहानी यही बताती है कि गर्भसंस्कार बहुत शक्तिशाली होते हैं । रानी मदालसा जब गर्भवती होती थीं तब धर्म चर्चा, धार्मिक विचार किया करती थीं । गर्भ पर ध्यान देकर उसकी आत्मउन्नति के लिए उपदेश किया करती थीं, जिसके परिणामस्वरूप उसके पाँचों बेटे धार्मिक बने और संसार से विरक्त हुए।
जब रानी छठवीं बार गर्भवती हुईं तब राजा ने उनसे कहा कि इस शिशु में ऐसे गुणों का रोपण किया जाए, उसे गर्भ में ऐसे संस्कार दिए जाएँ।

जिनसे वह शूर योद्धा तथा राजा बनने योग्य हो।’ ऐसे संस्कार प्राप्त करके उनका जो छठवाँ पुत्र हुआ वह बड़ा प्रतापी सम्राट बना।

गर्भ संस्कार बहुत प्रभावी होते हैं तथा उन्हें मिटाना कठिन होता है। ऐसी अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं – जो गर्भ संस्कार की पुष्टि करती हैं जैसे शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई, राम की माता कौशल्या, येशू की माता मदर मेरी, भगवान महावीर की माता इत्यादि।

( और पढ़े – सनातन हिन्दू धर्म के पवित्र सोलह संस्कार )

गर्भसंस्कार की शुरुआत :

गर्भधारण के पहले कुछ ही महीनों के काल में ज्ञानेंद्रिय किस प्रकार विकसित होती है,कैसे ज्ञानग्रहण करते हैं, इस बारे में रोज नई बातें सामने आ रही हैं। यह अब सिद्ध हो रहा है कि गर्भ के बच्चे में भी समझ होती है।

सन 1960 में अमेरिका के मायमी युनिवर्सिटी के हेन्री टेबी नामक बालरोग तज्ञ ने, गर्भवती एवं गर्भस्थ बच्चे का अभ्यास करने के पश्चात, यह निष्कर्ष निकाला कि छः महीने का बच्चा गर्भावस्था में उत्तम तरह से सुनता है और प्रतिसाद भी देता है। विशेषतः घूमनेवाली आवाजों (रझोनंट साऊंड) को वह उत्तम प्रतिसाद देता है।

भारत में मंत्रों द्वारा यह कंपन दिया जाता है जैसे ओम, श्री इत्यादि । यहाँ पर बीजाक्षर मंत्रों की स्नान देने की भी प्रथा है। अब तो यह भी सिद्ध हुआ है कि चौथे माह से ही गर्भ सुन सकता है और आखिरी के तीन माह में गर्भस्थ बालक की श्रवण शक्ति अच्छी तरह से विकसित हो चुकी होती है।

( और पढ़े – उत्तम संतान हेतु गर्भधारण करने के नियम और सही समय )

कैसे काम करता है गर्भसंस्कार :

डेव्हिड स्पेल्ट ने एक प्रयोग किया। उन्होंने गर्भवती माताओं को एक छोटी सी कहानी दिन में पाँच बार गर्भस्थ बालक को सुनाने के लिए कहा। उसके बाद अलग-अलग जाँच के बाद यह पाया गया कि बच्चे बहुत मन लगाकर कहानी सुनते हैं एवं जन्म के बाद उस कहानी को उत्तम प्रतिसाद देते हैं।

गर्भस्थ बालक को कोई गीत या भजन बारबार सुनाया जाए तो वह बच्चा शांत हो जाता है। जन्म के बाद भी जब बच्चा बहुत रोता है, तंग करता है तब उसे यदि वह गीत या भजन सुनाया जाए तो वह तुरंत शांत हो जाता है, यह अनेक माताओं का अनुभव है। अंग्रेजी में कहावत है : Preganancy should be by choice and not by chance, should be by appointment and not by accident.’

इसका अर्थ है कि गर्भ जानकर धारण करना चाहिए। हम बाजार की चीजें कितनी सावधानी से देख-चुनकर खरीदते हैं, फिर बच्चे के लिए असावधानी किस काम की ! जो बच्चा हमारे जीवनभर का अरमान होगा उसके लिए पहले से (गर्भधारण से पहले) ही तैयारी करना समझदारी होगी।

पति व पत्नी के बीज यदि उत्कृष्ट होंगे तो आनेवाली संतान भी उत्तम होगी। इसके लिए एक थिअरी है ‘सुप्रजा थिअरी’। इसमें गर्भधारणा से पूर्व की तैयारी, गर्भावस्था के दौरान के संस्कार, प्रसूति के समय की थिअरी ऐसी सभी महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दिया जाता है ताकि जो संतान जन्म ले वह उच्च संस्कारित तथा सर्वोत्तम हो।

हर स्त्री की गर्भावस्था भिन्न होती है। उसे होनेवाली तकलीफ, आनेवाला अनुभव यह उसके एवं उसके बच्चे की प्रकृति पर निर्भर होता है। माँ क्या बोलती है, क्या सुनती है, क्या खाती-पीती है इन सभी बातों का परिणाम गर्भ पर होता है। फिर स्वयं संचित, माता-पिता के गुणदोष और गर्भावस्था के उपचार इन सभी बातों के एकत्रित परिणाम से शिशु जन्म लेता है।

गर्भवती स्त्री जिस प्रकार की कथा या बातें सुनती है जैसे गीत-संगीत सुनती है, उसी प्रकार से उसका मन संस्कारित होता है। गर्भवती एकचित्त होकर जो सुनती है वे सभी बातें गर्भ में शिशु के मन पर संस्कार करती हैं।

( और पढ़े – हिंदू धर्म में संस्कारों का महत्त्व क्यों ? )

गर्भावस्था में इन बातों का रखे ध्यान :

गर्भावस्था के लिए नीचे दी गई कुछ बातों का ध्यान जरूर रखें –

1). गर्भधान के समय की ऋतु स्थिति पर, बच्चे की प्रकृति का बनना निर्भर होता है इसलिए शिशिर, हेमंत (सर्दी का मौसम) ये सर्वोत्तम शक्तिशील ऋतु, गर्भधान के लिए उत्तम होते हैं।

2). गर्भधान के समय स्त्री-पुरुष का मन जिस प्रकार की भावनाओं से युक्त होता है, उसका प्रभाव भी गर्भ की मानसिक स्थिति बनने पर होता है। इसलिए सदैव घर के वातावरण को आनंदित रखने का प्रयत्न करना चाहिए।

3). गर्भसंस्कार से अनुवंशिक रोगों का प्रतिबंध करना भी मुमकिन होता है। माँबाप के परिवार में दमा, त्वचारोग, प्रमेह, मानसिक विकार इत्यादि हों तो ऐसी तकलीफों को बच्चे तक पहुँचने में नाकामयाब करने हेतु गर्भसंस्कार उत्तम होता है। गर्भधारणा से पहले ऐसी बातों की सावधानी बरतना जरूरी है। गर्भधारणा के बाद भी माँ को बच्चे के जन्म तक उपचार लेना चाहिए, जिसका उपयोग बच्चे को आगे जीवनभर होता है।

4). गर्भावस्था में पेट में गैस नहीं बननी चाहिए इससे गर्भाशय पर दबाव पड़ता है।

5). गर्भावस्था के दौरान स्त्री के अंदर जो इच्छाएँ होती हैं वे सिर्फ उस स्त्री की नहीं बल्कि उसके बालक की भी होती हैं। माँ केवल इच्छा जाहिर करती है, माँगनेवाला तो बालक होता है । यह इच्छा गर्भस्थ शिशु की भी होती है इसलिए भारतीय संस्कृति ने योग्य संवेदनशीलता और सुसंस्कारी दृष्टि बताई है।

स्त्री की गर्भावस्था की इच्छा यह कुछ अंशों में जन्म लेनेवाले बच्चे का स्वभाव, व्यक्तित्व, जीवन हेतु
और जीवन कार्य सूचित करती है। एक तरह से यह बालक का प्रोग्राम सूचित करता है।
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखने से आपका गर्भ सुसंस्कारों से समृद्ध हो सकता है।

गर्भावस्था के दौरान फिटनेस :

गर्भावस्था एक नैसर्गिक क्रिया है जिसमें डरकर व्यायाम बंद करना या सिर्फ
आराम करना नुकसानदेह हो सकता है, सिजेरियन इसी वजह से करने पड़ते हैं।
शस्त्रक्रिया न करनी पड़े इसलिए गर्भावस्था के दौरान कुछ व्यायाम अवश्य करें।

गर्भावस्था में कौन से व्यायाम करें ? पहले की तरह ही व्यायाम करें या उनमें बदलाव लाएँ या बंद करें ? इन शंकाओं का दूर होना आवश्यक है।

1). सबसे पहले जान लें कि गर्भावस्था में व्यायाम करना बंद न करें और यदि आप व्यायाम नहीं करती हैं तो व्यायाम करना शुरू कर दें।

2). जॉगिंग, साइकिलिंग, फ्लोर एक्सरसाईज़ या थकानेवाले व्यायाम न करें। एरोबिक्स भी डॉक्टर की सलाह लेकर 7 माह तक ही करें। नए व्यायाम शुरू करनेवालों को एरोबिक्स नहीं करना चाहिए।

3). सरल योगासन, प्राणायाम, ध्यान-धारणा, योगनिद्रा तथा चलने का व्यायाम, ये पंचसूत्र किए जा सकते हैं। इनसे तनाव कम होता है, मन शांत रहता है, गर्भाशय की तरफ जानेवाली नसें प्रसरण होती है और रक्तप्रवाह में वृद्धि होती है।

व्यायामों के कुछ प्रकार :

  1. आँखें बंद करके सीधे खड़े रहें, दोनों पैर पास ले आएँ, हाथ शरीर से सटा लें और अपना संतुलन सँभालें।
  2. अब दोनों पैरों में 6 से 12 इंच का अंतर रखें, हाथों और शरीर को बिलकुल ढीला छोड़ दें।
  3. अब वापस पहली स्थिति में आएँ। दोनों हाथों को सिर के ऊपर तानें और पैरों की अंगुलियों पर खड़े रहकर शरीर में खिंचाव लाएँ। कुछ समय इसी अवस्था में खड़े रहें। फिर पूर्वअवस्था में आएँ।
  4. सीधे खड़े रहकर, हाथों को शरीर से सटाकर रखें। कंधों को ऊपर-नीचे और गोल घुमाएँ । यह क्रिया पाँच बार करें।
  5. हाथ सीधे आगे करें और कलाइयों को गोलाकार घुमाएँ । उसी तरह मुट्ठी बंद करें और खोलें।
  6. बैठ जाएँ और पैरों को आगे की तरफ फैलाएँ। दोनों हाथ जमीन पर, शरीर के पास रखें, तलुओं को जमीन पर रखें। गरदन तथा पीठ सीधी तानकर रखें, आँखें बंद करें।
  7. दोनों पैरों में अंतर रखें, थोड़ा सा पीछे झुककर हाथों को पीछे की तरफ रखें, सिर एक तरफ झुकाएँ और आँखें बंद करें।
  8. सुखासन में बैठे। दोनों हाथों को घुटनों पर रखें। गरदन को नीचे-ऊपर, दाएँ-बाएँ घुमाएँ। प्रत्येक अवस्था में 1 मिनट तक रहें।
  9. बच्चों की तरह दोनों हाथ और पैरों पर, रेंगने की अवस्था में, चलने की स्थिति अपनाएँ। पूरा भार हाथ और पैरों पर डालें। सिर को नीचे झुकाकर पीठ में बाँक निकालें । अब सिर को ऊपर उठाकर, पीठ को कमान की तरह तानें । जिस तरह बिल्ली अपना आलस तोड़ती है, उसी तरह यह आसन करें । ऐसा 4-5 बार करें।
  10. पीठ के बल लेटें । दोनों पैरों को पास लेकर धीरे-धीरे ऊपर सिर की तरफ ले जाएँ, फिर से पूर्वावस्था में आएँ । शरीर को तनाव दें। 1 से 2 मिनट तक इसी स्थिति में रहें।
  11. लेटकर दोनों हाथों को आकाश की तरफ उठाएँ और शरीर को तनाव दें। यह क्रिया 1 से 2 मिनट तक करें।
  12. बद्धकोनासन करें। सीधे पालथी डालकर बैठे। दोनों घुटने मोड़कर, बाजू में लेकर पैरों के तलवों को मिलायें। उन्हें हाथों से सहारा दें। इस व्यायाम से प्रसूति सुलभ होती है।
  13. शवासन करें।
  14. सुखासन में बैठकर 3 बार ॐ कार का जाप करें। बाद में ध्यान-धारणा करें। आँखें बंद करके मन में विचारों को कम करें, पूरा ध्यान श्वास पर केंद्रित करें।
  15. सोते समय योगनिद्रा लें । आज-कल योगनिद्रा की कैसेट उपलब्ध है। उसे सुनकर उसमें दी हुई सूचना के अनुसार यह आसन करें।
  16. रोज 30 मिनट चलें । यह उत्तम व्यायाम है । इससे पूर्ण शरीर के स्नायुओं की हलचल होती है। गैस और कब्ज की तकलीफ कम होती है।

गर्भावस्था के दौरान 12 किलो वजन बढ़ना जरूरी है इसलिए आहार को बढ़ाएँ। यह बढ़ा हुआ वजन शिशु के 1 साल का होने तक कम होना चाहिए। इस प्रकार गर्भावस्था को सुलभ करें ताकि भविष्य में कोई भी शारीरिक समस्या का सामना न करना पड़े।

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