Last Updated on July 22, 2019 by admin
दाह रोग क्या है ? इसके सामान्य लक्षण :
विविध कारणों से पित्त के कुपित होने से, हाथ-पैरों के तलवे और आँखों में अथवा सारे शरीर में दाह या जलन होती है। उस दाह या जलन को ही ‘दाह-रोग’ कहते हैं।
दाह-रोग (हाथ पैरों के तलवे या शरीर मे जलन ) के प्रकार :
दाह-रोग सात तरह का होता है-
(१) पित्त का दाह।
(२) रुधिर का दाह।
(३) प्यास रोकने का दाह।
(४) रक्तपूर्ण कोष्ठज दाह।
(५) मद्य का दाह।
(६) धातु-क्षयज दाह।
(७) मर्माभिघातज दाह।
पित्त के दाह के लक्षण–
दाह गरमी की व्याधि है। पित्त के दाह में, पित्तज्वर के-से लक्षण होते हैं; इसलिये इसकी चिकित्सा भी ‘पित्त ज्वर’ की तरह ही करनी चाहिये।
पित्त ज्वर और दाह में फ़र्क-पित्त ज्वर में, आमाशय के दूषित होने से, ज्वर और दाह दोनों होते हैं; किन्तु दाह-रोग में केवल दाह ही होता है। अथवा पित्त-ज्वर में अग्नि और आमाशय दोनों दूषित होते हैं; किन्तु पित्त के दाह में अग्नि और आमाशय दूषित नहीं होते–केवल जलन होती है; यही भेद है।
रुधिर के दाह के लक्षण-
शरीर में खून के बहुत ही ज्यादा बढ़ जाने से भी दाह होता है; यानी शरीर का खून भी कुपित हो कर दाह-रोग पैदा करता है। ऐसा होने से रोगी को सारा संसार आग से जलता हुआ-सा मालूम होता है। अथवा ऐसा जान पड़ता है, मानो आग मेरे पास रखी है और मैं उससे जला जा रहा हूँ। रोगी को प्यास बहुत लगती है। दोनों आँखें और सारा शरीर ताम्बे के रंग का हो जाता है; यानी शरीर और नेत्र लाल हो जाते हैं। शरीर और मुँह से ऐसी गन्ध निकलती है जैसी गरम लोहे पर पानी डालने से निकलती है। शरीर में मानो किसी ने आग लगा दी है, ऐसी वेदना होती है।
प्यास रोकने के दाह के लक्षण-
जो आदमी मूर्खता से प्यास को रोकता है, उसकी जल-रूप-धातु क्षीण हो जाती है और तेज या पित्त की गरमी शरीर के भीतर और बाहर दाह-जलन पैदा करती है। उस समय उस आदमी के गला, तालू और होठ सूख जाते हैं और वह जीभ को निकाल कर हाँफने लगता है।
मतलब यह है कि पानी न पीने से शरीर की पतली धातुएँ क्रमशः कम हो जाती हैं और गरमी बढ़ती है। गरमी बढ़ने से शरीर के भीतर-बाहर आग-सी लग जाती है; गला, तालू और होठ सूखने लगते हैं और रोगी कुत्ते की तरह हाँफता और जीभ को बाहर निकाल देता है।
रक्तपूर्ण कोष्ठज दाह-
तलवार, बरछी या भाले वगैरह के लगने से आदमी के शरीर में घाव हो जाते हैं। उन घावों से निकले हुए खून से जिस आदमी का कोठा भर जाता है, उसके शरीर में महा दुस्तर दाह पैदा होता है।
मतलब यह है कि तलवार आदि से ज़ख्म होने पर, खून से हृदय आदि कोठे भर जाते हैं, तब घोर दुःसह दाह पैदा होता है। इसी से युद्धक्षेत्र के घायल पानी-ही पानी की रटना लगा देते हैं। ऐसे दाह के लक्षण सद्योव्रण के समान होते हैं। अतः ऐसे दाह की चिकित्सा भी वैसी ही होनी चाहिए।
मद्य के दाह के लक्षण-
मद्यपान करने या शराब पीने से पित्त कुपित हो जाता है। उस कुपित पित्त की गरमी, पित्त-रक्त को बढ़ा कर, दाह पैदा कर देती है। इस दाह की चिकित्सा पित्त की जैसी करनी चाहिये।
धातु-क्षय का दाह-
रस-रक्त आदि धातुओं का क्षय होने से भी दाह-रोग होता है। इस दाह वाला रोगी तृषार्त्त, मूर्छित, क्षीण-स्वर और चेष्टाहीन हो जाता है; अर्थात् धातुओं का क्षय होने से जो दाह होता है, उसमें रोगी प्यास के मारे विकल हो उठता है, बेहोश हो जाता है, गला बैठ जाता है, आवाज़ नहीं निकलती और वह चेष्टा-रहित हो जाता है।
मर्माभिघातज दाह के लक्षण-
मस्तक या हृदय अथवा मूत्राशय आदि मर्मस्थानों में चोट लगने से जो दाह होता है, वह असाध्य होता है।
» नोट-पित्त से ही दाह होता है, इसलिए जिन रोगों में दाह हो, उनमें ‘पित्त की अधिकता’ समझनी चाहिये। खून के बढ़ने या कुपित होने से, प्यास के रोकने से, घाव होने से, शराब पीने से, रक्त-रस आदि धातुओं के कम होने से और हृदय आदि मर्मस्थानों में चोट लग जाने से दाह होता है। धातुक्षय का दाह ख़राब होता है। पर मर्म में चोट लगने से जो दाह होता है, वह तो असाध्य ही होता है।
» नोट-बंगसेन ने लिखा है, क्षत या घाव होने से जो दाह होता है, उसमें भूख बहुत कम हो जाती है। जिसे शोक करने से दाह होता है, उसके शरीर के भीतर बड़ी जलन होती है, तथा प्यास, मूर्च्छा और प्रलाप के लक्षण होते हैं।
दाह-चिकित्सा में याद रखने योग्य बातें :
(१) दूध और दूध वाले वृक्षों के सुशीतल चन्दन-मिले हुए काढ़े एवं अन्यान्य शीतल प्रयोगों से अन्तर्दाह या भीतर का दाह शान्त होता है।
(२) चमड़े की गरमी रुकने से शरीर का चमडा ठण्डा हो जाता है। ऐसा होने से शरीर पर ‘अगर का लेप’ करना चाहिये।
(३) पित्त और खून से बढ़ी हुई शरीर की गरमी, चमड़े में घुस कर, घोर दाह करती है। इसलिये, उस अवस्था में, पित्त के समान चिकित्सा करनी चाहिये।
(४) शरीर के खून के बढ़ने या कुपित होने से जो दाह होता है, वह घोर दाह होता है। उससे मनुष्य की आँख लाल और शरीर का चमड़ा ताम्बे के रंग का सा हो जाता है, तथा देह में आग के-से पतंगे लगते हैं। इस दाह को ‘अति दाह’ भी कहते हैं। चन्दन और उशीर को बहुत से पानी में मिला कर, रोगी को उसमें स्नान कराना चाहिये। अगर रोगी प्यास के मारे जीभ को बाहर निकाल कर हाँफता हो, गला और होंठ सूखे जाते हों, तो उसे शीतल पानी अथवा मिश्री, पानी और दूध मिला कर पिलाना चाहिये। ये उपाय इस दाह में परीक्षित हैं।
खून के कोप से हुए दाह में विधिपूर्वक लंघन करा कर, उत्तम चिकना, शीतल और हल्का भोजन देना चाहिये।
(५) प्यास से हुए दाह में, इच्छानुसार, पेट भर के जल पीना चाहिए अथवा मिश्री या पानी का शर्बत पीना चाहिये; अथवा दूध में ईख का रस मिला कर पीना चाहिये।
(६) धातु-क्षय से हुए दाह को अनेक प्रकार के इष्ट विषयों से जीतना चाहिये। चिकनी वातनाशक दवा या पथ्य देना हित है।
(७) दाह-रोग में, उप्रदवों के शान्त होने पर, शोधन करना चाहिये।
(८) प्यास और दाह की शान्ति के लिए स्नान कराने, छींटे मारने और पंखा वगैरह भिगोने में शीतल जल ही लेना चाहिए।
(९) सुश्रुत ने जो अत्यन्त सोच-फ़िक्र करने से दाह का होना लिखा है, उस दाह का इलाज रोगी को प्यारे मित्रों में बिठाना, दूध और मांस-रस पिलाना तथा अन्य शीतल उपचार हैं।
(१०) दाह-रोग में रोगी के पेट को साफ़ रखना बहुत ज़रूरी है।
दाह-नाशक नुस्खे / हाथ पैरों के तलवे या शरीर मे जलन का इलाज :
(१) दाह-रोगी के शरीर पर ‘‘सौ बार धुला हुआ घी” लगाने से दाह शान्त हो जाता है। परीक्षित है।
(२) काँजी के पानी में कपड़ा भिगो कर, उससे शरीर ढक देने से दाह शान्त हो जाता है। अगर प्यास का दाह हो, तो शीतल जल पिलाना चाहिये।
(३) जौ के सत्तू का शरीर पर लेप करने से दाह शान्त हो जाता है।
(४) बेर और आमलों को एकत्र पीस कर, शरीर पर लगाने से दाह शान्त हो जाता है।
(५) अनार और इमली को एकत्र पीस कर, शरीर पर लगाने से दाह शान्त हो जाता है।
(६) लामज्जक नाम की सुगन्ध घास अथवा चन्दन का लेप करने से दाह शान्त हो जाता है।
(७) आमले और अनार के रस में “जौ का सत्तू” मिला कर लेप करने से दाह मिट जाता है।
(८) अगर दाह बहुत जोर से हो, रोगी प्यास के मारे जीभ निकाले देता हो, कंठ और होठ सूख रहे हों, तो दूध, पानी और मिश्री मिला कर पिलाने से दाह शान्त हो जाता है।
(९) दाह वाले को हितकारी पदार्थ ये हैं : १. कमल के पत्तों का पलंग। २. केले के पत्तों का पलंग। ३. शीतल जल की बावड़ी। ४. शीतल जल से भीगे हुए पंखे की हवा। ५. चन्दन से तर हार। ६. घिसे हुए चन्दन से तर पंखा। ७. सुन्दर फव्वारे वाला घर। ८. दूध पीना। ९. कमल सहित निर्मल जल के सरोवर।
(१०) चन्दन को पानी के साथ घिस कर और ताड़ के पंखे पर लगा कर हवा करने और पलंग पर कमल के पत्ते बिछा कर दाह वाले को सुलाने से अवश्य लाभ होता है।
(११) दाह वाले के शरीर पर शीतल पानी के छींटे देना, शीतल जल में घुसा कर स्नान कराना, पानी से भीगे हुए खस के पंखे से हवा करना लाभदायक है। इनसे प्यास और दाह अवश्य शान्त होते हैं।
(१२) चन्दन को पत्थर पर घिस कर शरीर पर पतला-पतला लेप करने से दाह शान्त होता है।
(१३) सुगन्धबाला, पद्माख, कमल और चन्दन–इनको पानी में पीस कर, एक पानी भरे टब में घोल दो। फिर उसमें दाह वाले को डुबकी लगा कर स्नान कराओ; दाह अवश्य शान्त हो जाएगा।
(१४) बिजौरे नीबू का रस और शहद-दोनों को मिला कर दाह वाले के शरीर पर लेप करने से दाह शान्त होता है।
(१५) फूल-प्रियंगू, लोध, पद्माख, लामज्जक घास, सुगन्धबाला और केवटीमोथा-इनको ‘पीले चन्दन के रस में पीस कर शरीर पर लेप करने से दाह शान्त हो जाता है।
(१६) दाह वाले को कमल का जल, चीनी का शर्बत, मिश्री-मिला दूध और ईख का रस पिलाना लाभदायक है। इन चारों से पित्त शान्त होता है, अतः दाह नष्ट हो जाता है।
(१७) गाय का मक्खन, १०८ बार धो कर, दाह वाले की छाती से कंठ तक लेप कर दो और हाथ-पैरों में फूल-काँसी की कटोरियों से मालिश करो; अवश्य लाभ होगा। परीक्षित है।
(१८) सफ़ेद चन्दन को गुलाब-जल के साथ घिस कर, उसमें ज़रा-सा कपूर भी घिस लो। पीछे इसको सारे शरीर में लगा दो। इस लेप से दाह ज़रूर मिट जायगा। परीक्षित है।
» नोट-इस लेप को सिर पर लगाने से गरमी का सिर-दर्द फ़ौरन आराम हो जाता है।
(१९) नीम के पत्तों को पानी में सिल पर पीस कर, पानी में घोल दो और दही की तरह मथो। जो झाग आयें उन्हें पेट और छाती अथवा दाह की जगह, थोड़ीथोड़ी देर में कई बार लगाओ। दाह अवश्य मिट जायगा। परीक्षित है।
» नोट-इसी तरह बेर के पत्तों के झाग लगाने से भी दाह शान्त हो जाता है।
(२०) सौ बार धोये हुए घी में जौ का सत्तू मिला कर शरीर पर लगाने से दाह मिट जाता है। परीक्षित है।
(२१) दो तोले धनियाँ आध पाव पानी में रात को भिगो दो-सवेरे ही मलछान कर, उसमें एक तोले ‘मिश्री मिला कर पी लो। इस नुसखे से दाह रोग अवश्य चला जाता है। परीक्षित है।
(२२) गिलोय और पित्तपापड़े का रस पीने से, कैसा ही दाह क्यों न हो, आराम हो जाता है। परीक्षित है।
(२३) फूल-प्रियंगू, खस, पठानी लोध, सुगन्धबाला, सनाय और सोनापाठाइनके चूर्ण में ‘दारुहल्दी का रस मिला कर लेप करने से दाह अवश्य शान्त हो जाता है; पर लेप महीन और गाढ़ा होना चाहिये।
आयुर्वेदिक औषधि :
१- चन्दनादि क्वाथ –
सफ़ेद चन्दन, पित्तपापड़ा, सुगन्धबाला, खस, नागरमोथा, कमलगट्टे की गिरी, कमल की डंडी, सौंफ, धनियाँ, पद्माख और आमले–इन सबको मिला कर दो तोले ले लो और डेढ़ पाव जल में औटाओ। जब आधा रह जाय, उतार कर छान लो। फिर उसमें मिश्री और शहद मिला कर पी लो। इस काढ़े के पीने से तेज-से-तेज दाह भी शान्त हो जाता है। परीक्षित है।
» नोट-शहद तब मिलाना, जब काढ़ा शीतल हो जाय।
२-काँजिक तैल –
६४ तोले तिली का तेल और १०२४ तोले काँजी–दोनों को मन्दीमन्दी आग से औटाओ। जब तेल-मात्र रह जाय, उतार कर छान लो। इस तेल की मालिश से दाह और ज्वर का सन्ताप दूर हो जाता है।
३- दाहान्तक क्वाथ –
पित्त-पापड़ा, खस, नागरमोथा, लाल चन्दन और पद्माख–इनको तीन-तीन माशे ले कर, डेढ़ पाव जल में औटाओ। जब छटाँक भर पानी रह जाय, उतार कर छान लो । शीतल होने पर, काढ़े में १ तोला ‘शहद’ मिला कर पी लो। इस काढ़े से दाह, ज्वर, प्यास और वमन फ़ौरन शान्त हो जाता है। परीक्षित है। निस्सन्देह काम में लाइये।
४- त्रिफलादि क्वाथ –
त्रिफला और अमलताश का गूदा–कुल दो तोले ले कर डेढ़ पाव पानी में औटाओ। जब आधा पानी रह जाय, मल-छान कर पी लो। इससे दाह, रक्त-पित्त और पित्तज शूल अवश्य आराम हो जाते हैं। परीक्षित है।
» नोट-दाह-रोग में पेट साफ़ रखना बहुत ज़रूरी है।