Last Updated on April 29, 2021 by admin
आजकल हाई हील यानी ऊंची एड़ी के जूते, चप्पल सैंडिल का चलन सर्वाधिक देखने को मिलता है। केवल युवतियां ही ऊंची एड़ी की चप्पलें या सैंडिलें नहीं पहनतीं, नवयुवक भी ऊंची एड़ी के जूतों के दीवाने हैं। सभी इस भ्रम में पड़े हए है कि ऊँची एड़ी के जूते, चप्पल अथवा सैंडिल पहनने से उनके व्यक्तित्व में निखार आ जाता है, चाल बेहतर हो जाती है और फिगर में आकर्षण पैदा होता है।
विशेषज्ञ की राय :
अमेरिका के प्रसिद्ध आथोपैडिक्स डॉक्टर माइकल कॉलिन ने रिपोर्ट में बताया है कि महिलाओं के पैरों की तकलीफों में हाई हील के चप्पल, सैंडिलों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। डॉ. माइकल के मतानुसार इन्हें पहनने से पांव के अगले हिस्से, यानी पंजों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। उदाहरणार्थ 2 इंच की हील से 57 प्रतिशत, 3 इंच की हील से दबाव 76 प्रतिशत बढ़ जाता है। हड्डी रोग विशेषज्ञों का कहना है कि 3 हील की हील पहनने वालों के शरीर का 90 प्रतिशत वजन पैर के पंजों पर पड़ता हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ पंजों के तलवों में स्थित चर्बी कम होती जाती है, जिसके कारण पीठ और कूल्हों पर भी अतिरिक्त तनाव व दबाब पड़ने लगता है।
हाई हील के दुष्परिणाम :
हाई हील के जूते, चप्पल व सैंडिल पहनने से –
- कमर दर्द,
- पीठ का दर्द,
- पैरों में कार्न,
- गोखरू,
- उंगलियों का आकार जानवरों के पंजे की तरह होना,
- पैरों की नसें मोटी हो जाना,
- अंगूठे में कड़ापन,
- एड़ी के विकार जैसी तकलीफें भी हो सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि हाई हील के जूते, चप्पल व सैंडिलें पहनते रहने से पैरों की मांसपेशियों और स्नायुओं की शक्ति कम होती है और अकसर मेटाटारसल आर्च पर तनाव पड़ने के कारण दर्द, सूजन गति में अवरोध आदि अनेक तकलीफें उत्पन्न होती हैं। इन तकलीफों के अलावा हाई हील से अनेक प्रकार की असुविधाएं भी महसूस होती हैं, जैसे जल्दी-जल्दी चलना हो, दौड़ कर बस पकड़नी हो या अचानक भागने की नौबत आ पड़े, तो रास्ते में गिरते देर नहीं लगती।
सामान्य हील के जूते, चप्पल व सैंडिल पहनने पर शरीर का पूरा वजन पैरों में पूर्णतया विभाजित हो जाता है, जबकि हाई हील की वजह से शरीर के भार का गुरुत्व केन्द्र बदल जाता है और पंजे व एड़ी पर पूर्णत: विभाजित नहीं हो पाता। यह स्थिति पैरों के लिए हितकर नहीं होती।
हाई हील निर्माण के दोष :
सामान्यतया जुते, चप्पल व सैंडिल की हील आधा इंच से लेकर डेढ़ इंच तक होनी चाहिए। पहले रबड़ की एड़ी इसलिए रखते थे, ताकि पैरों को आराम मिले और जल्दी चलने या दौड़ने से उत्पन्न झटके न लगें। लेकिन आजकल लकड़ी लगाकर हील बनाने का चलन अधिक प्रचलित हो गया है, क्योंकि इससे इच्छित ऊंचाई की हील बनाने में काफी सुविधा होती है। ऐसी हीलें किसी प्रकार के झटकों से पैरों की रक्षा नहीं करतीं, वरन् चलने वाले को असुविधा ही प्रदान करती हैं। हाई हील होने के कारण पहनने वाले व्यक्ति को काफी सतर्क होकर चलना पड़ता है, जिससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
कैसे जूते, चप्पल पहनें :
यदि आपका कद सामान्य है अथवा सामान्य से कुछ ही कम है, तो उचित यहीं होगा कि आप हाई हील के जूते, चप्पल व सैंडिल न पहने, क्योंकि भविष्य में होने वाली पैरों की तकलीफों से आप लंबे समय तक परेशान हो सकते हैं। इसके विपरीत यदि आपका कद सामान्य से बहत कम है, तो आपको अपनी हीन भावना को दूर करने के लिए हाई हील के जूते, चप्पल व सैंडिल अवश्य पहनने चाहिए। लेकिन ऐसे पहने, जो सब तरफ से समान हों, अर्थात् उनका तला समान ऊंचाई का हो। इस प्रकार के जूते , चप्पल व सैडिलों से पैरों को उतना नक़सान नहीं होता, जितना कि ऊंची एड़ी के पहनने से होता है। इसके अलावा इन्हें लगातार लंबे समय तक न पहनें। बीच-बीच में उतार कर पैरों को आराम दें।
कभी-कभी पैरों पर सरसों के तेल की मालिश भी करते रहे। ऐसे उपाय करते रहने से आपको पैरों की तकलीफ नहीं के बराबर होगी। हाई हील के जूते, चप्पल व सैंडिलें खरीदते समय रबड़ की हील को ही प्राथमिकता दें। ये सही नाप के हो और अधिक ढीले या अधिक तंग न हों, इसका भी ध्यान रखें, तभी आप पैरों को पूरा आराम दे सकेंगे।