हुलहुल (हुरहुर) के फायदे, गुण, उपयोग और दुष्प्रभाव – Hulhul ke Fayde aur Nuksan

Last Updated on April 12, 2023 by admin

हुलहुल (हुरहुर) क्या है ? : Hulhul in Hindi

हुलहुल खुली जगह खेतों, जंगली क्षेत्रों और मेड़ों पर अपने आप पैदा होने वाला बहुत ही गुणकारी औषधि पौधा है । श्वेत हुरहुर के उग्र गन्ध तथा कुछ दुर्गन्ध युक्त पौधे एक से तीन फुट ऊंचे होते हैं।

हुलहुल (हुरहुर) के पत्ते – हाथ की पांचों अंगुलियों की तरह दीर्घवृन्त युक्त होते हैं।
हुलहुल के फूल (पुष्प) – मंजरियों में सफेद रंग के छोटे पुष्प लगते हैं। जिनमें बैंगनी रंग के पराग होते हैं। वर्षा की समाप्ति पर इसमें लम्बगोल पतली 1 से डेढ़ इंच लम्बी फलियां लगती हैं। फलियों में सरसों के बराबर काले रंग के तथा रूपरेखा में कुछ कुछ वृक्काकार बीज होते हैं। इन बीजों को चबाने से कुछ सरसों जैसा स्वाद आता है। पत्र मसल कर सूंघने पर उग्र दुर्गन्ध आती है। तथा स्वाद में ये तीक्ष्ण होते हैं। कहीं कहीं आदि वासी लोग इन पत्रों का साग बनाकर सेवन करते हैं। पुष्प वर्षा ऋतु में लगते हैं।

पीले हुलहुल के उक्त सफेद हुलहुल के समान ही होते हैं। किन्तु पौधे के ऊपर के भाग में तीन खण्डों वाले और नीचे के भाग में पांच खण्डों वाले विविधाकृति के पत्र लगते हैं। यह हुलहुल बढ़कर लता के समान भी हो जाती है। इस पर पीले रंग के पुष्प आते हैं इसके बीज सफेद हुलहुल की तरह किन्तु गाढ़े भूरे रंग के होते हैं।

हुलहुल (हुरहुर) का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Hulhul in Different Languages

Hulhul in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – तिलपर्णी, उग्रगन्धा, पूतिगन्धा, बर्बरक,
  • हिन्दी (Hindi) – हुलहुल, हुरहुर
  • गुजराती (Gujarati) – तलवणी
  • मराठी (Marathi) – तिलवण
  • बंगाली (Bangali) – हुडहुडिया
  • पंजाबी (Punjabi) – बोगरा
  • राजस्थानी (Rajasthani) – बगरो, कुकर भांगरो
  • तेलगु (Telugu) – कुक्कवामिन्त
  • इंगलिश (English) – डाग मस्टर्ड (Dog Mustard)
  • लैटिन (Latin) –
  1. सफेद पुष्प वाली – गाइनेण्ड्रोप्सिस गाइनैण्ड्रा (Gynandropsis gynandra Linn.)
  2. पीले पुष्प वाली – क्लिओम आइकोसैण्ड्रा Cleome icosandra Linn)
  3. बैंगनी पुष्प वाली – क्लिओम मोनोफिल्ला (C. Monophylla)

हुलहुल (हुरहुर) के प्रकार :

हुलहुल के दो प्रकार पाये जाते हैं एक श्वेत पुष्प वाली और दूसरी पीत पुष्प वाली। दोनों के पौधे भारत के उष्ण प्रदेशों में पाये जाते हैं। वर्षा ऋतु में ये पौधे घास की तरह उगते हैं। गांवों के आस पास परित्यक्तभूमि में, बाग-बगीचों में, जोते हुये खेतों में तथा सड़कों के किनारे इसके पौधे मिलते हैं।

श्री रामसुशील जी ने बैंगनी पुष्प की हुलहुल का भी उल्लेख किया है। यह बिहार, ओडिसा, गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में पायी जाती है। गुण कर्म की दृष्टि से तीनों ही प्रकार के हुलहुल प्रायः मिलते-जुलते हैं तथा एक दूसरे के प्रतिनिधि के रूप से ग्राह्य हैं।

हुलहुल का रासायनिक विश्लेषण : Hulhul Chemical Constituents

श्वेतपुष्पा के बीजों में हल्के रंग का सरसों की गन्ध के समान स्थिर तैल 22 प्रतिशत होता है। इसमें विलयोगिन नामक एक तत्व भी होता है, जिसके कारण इसके औषधीय कर्म होते हैं। पीतपुष्पा के बीजों में स्थिर तैल 36 प्रतिशत तथा विस्कोसिन नामक तत्व पाया जाता है।

हुलहुल (हुरहुर) के औषधीय गुण : Hulhul ke Gun in Hindi

कुल – वरुण कुल (कैपरिडेसी Capparidaceae)
रस – कटु
वीर्य – उष्ण
गुण – तीक्ष्ण
विपाक – कटु
दोषकर्म – कफवात शामक
अन्य कर्म – इसका बाह्य प्रयोग विदाही, वेदनास्थापन, पूतिहर (घाव की सड़ांध, मवाद दूर करने वाला) , उतेजक तथा रक्तिमाजनक है।
आभ्यन्तर प्रयोग – दीपन पाचन अनुलोमन, शूलहर, कृमिघ्न, स्वेदजनन (पसीना लाने वाला) और आक्षेप शामक (दोष दूर करने वाला) है।
श्वेतपुष्पा हुलहुल का पंचांग के अल्कोहल सत्व में कैंसर विरोधी क्रिया पाई गई है।

हुलहुल (हुरहुर) का उपयोगी भाग : Useful Parts of Hulhul in Hindi

बीज, पत्र, मूल

सेवन की मात्रा :

  • बीज चूर्ण – 1 से 3 ग्राम
  • पत्र स्वरस – 5 से 10 मिली
  • मूल कल्क – 1 से 3 ग्राम ।

हुलहुल (हुरहुर) के फायदे और उपयोग : Uses and Benefits of Hulhul in Hindi

1. कर्णरोग में हुलहुल के प्रयोग से लाभ : कर्णशूल एवं पूतिकर्ण (कान का एक रोग जिसमें भीतर फुंसी या घाव होने के कारण बदबूदार पीप निकलने लगती है) में पत्र कल्क एवं स्वरस सिद्ध तैल कान में डालने से आराम मिलता है। इसका केवल स्वरस डालने से भी लाभ होता है। किन्तु इससे जलन होती है। ( और पढ़े –कान की वैज्ञानिक देखभाल )

2. बवासीर (अर्श) में हुलहुल का उपयोग फायदेमंद : हुलहुल के बीजों के चूर्ण में दोगुनी शक्कर मिलाकर रख लें। प्रातः सायं 3-3 ग्राम दवा पानी के साथ सेवन करने से खूनी और बादी के बवासीर में लाभ मिलता है।

3. बुखार (ज्वर) मिटाए हुलहुल का उपयोग : 

  • हुलहुल के बीजों के चूर्ण को गिलोय स्वरस के साथ सेवन करने से वात-कफज ज्वरों का शमन होता है।
  • हुलहुल, गिलोय, पटोलपत्र और तुलसी पत्र का क्वाथ बनाकर सेवन करने से भी ज्वर में लाभ होता है। बीज के स्थान पर मूल भी ले सकते हैं।
  • हुलहुल के स्वरस में मकोय का रस मिलाकर पीने से शीतज्वर उतर जाता है।

4. कृमिरोग में हुलहुल के इस्तेमाल से फायदा : 2-3 ग्राम बीजों का चूर्ण चीनी मिलाकर दिन में दो बार दो दिनों तक देना चाहिये फिर तीसरे दिन एरण्ड तैल का विरेचन देना चाहिये। इससे मुख्यतया गण्डूपद कृमि (केंचुए) निकल जाते है। ( और पढ़े – पेट में कीड़ों का आयुर्वेदिक इलाज )

5. अग्निमांद्य (भूख न लगना) में लाभकारी है हुलहुल का सेवन : पोदीना और अदरक की चटनी में मिलाकर बीज चूर्ण सेवन करने से अग्निदीपित होती है।

6. सन्धिवात में लाभकारी है हुलहुल का प्रयोग :  पत्र या बीज अथवा दोनों को पीसकर लेप करने से पीड़ा कम होती है। ( और पढ़े – वात पित्त कफ दोष के कारण लक्षण और इलाज )

7. हुलहुल के इस्तेमाल से विद्रधि(फोड़ा) में लाभ : पत्र लेप से विद्रधि पककर फूट जाती है। किन्तु जलन अधिक होती है।

8. घाव (व्रण) ठीक करने में हुलहुल के इस्तेमाल से फायदा : बीजों के क्वाथ से व्रणों का प्रक्षालन करने से जीर्ण ब्रणों में उत्पन्न कृमि मर जाते हैं और व्रण ठीक हो जाते हैं।

9. हाथी पांव (श्लीपद) में हुलहुल का उपयोग लाभदायक : जीर्ण श्लीपद पर पत्र प्रलेप से फोड़ा बन कर फूटता है। पानी निकल जाने से शोथ कम हो जाता है।

10. बिच्छू काटने (वृश्चिक दंश) पर हुलहुल के इस्तेमाल से लाभ : दंश स्थान पर पत्र प्रलेप से वेदना कम हो जाती है। साथ में बीज चूर्ण खिलाना भी चाहिये । स्वरस का नस्य भी देते हैं।

11. प्लेग में फायदेमंद हुलहुल के औषधीय गुण : प्लेग की ग्रन्थि पर इसके पतों की टिकिया बनाकर बांधने से गांठ बैठ जाती हैं और विष बाहर निकल जाता है।

12. श्वेत कुष्ठ मिटाए हुलहुल का उपयोग : श्वेतकुष्ठ के दागों पर हुलहुल के पतों की पुल्टिस बांधने से या लेप करने से वहां की खाल उतरकर श्वेत के स्थान पर काली और लाल हो जाती है।

13. विष चिकित्सा में लाभकारी है हुलहुल का प्रयोग : 

  • इसके बीज चबाने से सब प्रकार का विष उतर जाता है।
  • पत्रों पर घृत चुपड़कर सेवन करने से अफीम का विष उतर जाता है।
  • बीजचूर्ण के साथ कालीमिर्च चूर्ण का सेवन अधिक लाभदायक है।

14. पेट दर्द (उदरशूल) मिटाता है हुलहुल :  बीजचूर्ण को गरम जल के साथ सेवन कराने से उदरशूल, आध्मान आदि मिटते है।

15. श्वास रोग में आराम दिलाए हुलहुल का सेवन : त्रिकटु चूर्ण को पत्र स्वरस के साथ सेवन कराना लाभदायक है।

16. सूजन (शोथ) में हुलहुल के इस्तेमाल से लाभ : पत्रशाक पथ्य के रूप में सेवन कराना चाहिये।

17. दन्तशूल ठीक करे हुलहुल का प्रयोग :  दांत में कीड़ा लग गया हो तो पतों को चबाकर दांत के नीचे रखने से कीड़ा मर जाता है और दर्द शांत हो जाता है।

20. बहुमूत्र में हुलहुल का उपयोग फायदेमंद : हुलहुल के बीज, अजवायन के समभाग चूर्ण 2-2 ग्राम में गुड़ मिलाकर सेवन करना चाहिये।

21. सिर की पीड़ा (शिरःशूल) मिटाए हुलहुल का उपयोग : हुलहुल के पत्तों के रस में हुलहुल के बीजों को खरल कर लला. पर लेप करने से मुख्यतः आधाशीशी का दर्द दूर हो जाता है।

22. दाद खाज में हुलहुल के इस्तेमाल से लाभ : हुलहुल के बीजों को नींबू के रस या सिरके में पीसकर लेप करने से दाद का रोग (दद्रु), खाज-खुजली (कण्डू) , एंग्जिमाखाज (पामा) आदि रोग दूर होते हैं।

23. फेफड़ों में जलन: पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों को पीसकर सीने पर लेप करने से फेफड़ों की जलन में लाभ मिलता है।

24. कमजोरी: हुलहुल की जड़ के रस को 5 से 10 ग्राम सुबह और शाम पिलाने से बुखार में आई कमजोरी या सुस्ती में लाभ होता है।

25. बहरापन: पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों के रस को तेल में मिलाकर कानों में डालने से बहरापन दूर हो जाता है।

26. कान का बहना: कान को अच्छी तरह से साफ करके उसके अन्दर सफेद हुलहुल के पत्तों का रस डालने से कान से मवाद बहना ठीक हो जाता है। कभी-कभी इसको कान में डालने से जलन भी होती है।

27. कान के कीड़े: हुलहुल के रस को कान में डालने से कान के कीड़े खत्म हो जाते हैं।

28. कान की नयी सूजन: पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों को पीसकर कान की सूजन पर बांधने से सूजन जल्दी ठीक हो जाती है।

29. घाव: मवाद से भरे घाव में पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों को पीसकर रस में तेल मिलाकर लगाने से लाभ होता है।

30 आमाशय में जलन: पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों का पेट पर लेप करने से आमाशय में प्रदाह (जलन) और सूजन को कम हो जाती है।

31. नाक के रोग: नाक में सूजन आने पर पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों को पीसकर नाक पर लेप करने से आराम आता है।

32. हृदय की आंतरिक सूजन: पीले फूलों वाली हुलहुल को पीसकर हृदय के स्थान पर ऊपर से लेप करें तो आंतरिक हृदय की सूजन में लाभ होता है।

33. मस्तिष्कावरण शोथ: पीले फूलों वाली हुलहुल के पत्तों को पीसकर सिर पर लेप करने से मस्तिष्कावरण शोथ दूर हो जाता है।

34. कंठमाला की सूजन: पीले फूलों वाली हुलहुल के सिर्फ पत्तों को पीसकर गले पर लेप करने से गले को पूरा आराम आता है।

विशेष – यह ध्यान रहे कि त्वचा पर इसका लेप करने से जलन होती है और विस्फोट (फाला) हो जाता है अतः सुकुमार प्रकृति वालों के लिये इसे प्रयोग में लाए। त्वचा पर पहले या बाद में थोड़ा घी चुपड़ देना ठीक है। ये सब प्रयोग चिकित्सक की देखरेख में होने चाहिये पीतपुष्पा हुलहुल अधिक उग्र है।

पारद के मारकगण (र.तर.7) में और अभ्रक के मारकगण (र.तर.10) में इस हुलहुल को भी गिना गया है। इनकी भस्मों के अतिरिक्त रजतभस्म, बंग भस्म, ताम्रभस्म बनाने में भी इसे उपयोग में लाया जाता है। संदिग्ध निर्णय वनौषधि शास्त्र में भी भागीरथ जी स्वामी ने तथा गांवों में औषध रत्न में श्री कृष्णानन्द जी महाराज ने हुलहुल के प्रसंग में यह चर्चा भी की है।

हुलहुल (हुरहुर) के दुष्प्रभाव : Hulhul ke Nuksan in Hindi

  • हुलहुल के सभी प्रयोग केवल चिकित्सक की देखरेख में ही करें ।
  • हुलहुल के अतिसेवन से पित्त प्रकुपित होता है और फिर कई उपद्रव उत्पन्न होते हैं।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिये पित्तशामक उपचार करना चाहिये। इसके लिये घृत, दुग्ध, चन्दन पानक आदि अयोग में लाये जा सकते हैं।

(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)

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