कनेर के 27 बेमिसाल फायदे और नुकसान : Kaner ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on September 13, 2024 by admin

कनेर का सामान्य परिचय : Kaner in Hindi 

    कनेर एक पेड़ है जिसकी ऊंचाई लगभग 15 से 20 फुट होते हैं। इसके पत्ते 4 से 6 इंच लम्बे और 1 इंच चौड़े होते हैं। पत्ते सिरे से नोकदार, नीचे से खुरदरे, सफेद घाटीदार और ऊपर से चिकने होते हैं। कनेर के पेड़ जंगलों और बागों में आसानी से मिल जाते हैं। कनेर के फूल बहुत ही मशहूर हैं और इसके फूल अधिकतर गर्मियों के मौसम ही खिलते हैं। इसकी फलियां चपटी, गोलाकार एवं 5 से 6 इंच लंबी होती है। इसके फल, फूल और जड़ सभी जहरीरे होते हैं। कनेर की चार जातियां होती हैं- सफेद, लाल, गुलाबी और पीला।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

हिन्दी    कनेर।
अंग्रेजी    ओलियण्डर।
संस्कृत   करबीर, शतकुंभ, अश्वमारक।
बंगाली    करवी।
मराठी    तांवडी।
गुजराती  कनेर।
तामिल   अलारि, करवीरं।
मलयालम कनाबिर।
तैलगी    कनेर चेट्टू।
फारसी    खरजेहरा रानी कनेर।
कर्नाटकी  कणलिंगे।
अरबी    सुमुलहिमार।
लैटिन    नियम ओलियण्डर।

कनेर के प्रकार : 

       औषधि के रूप में सफेद कनेर का प्रयोग ही सबसे अधिक होता है। कनेर के पेड़ को कुरेदने या तोड़ने से एक सफेद द्रव्य निकलता है जिसका प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि कनेर के पेड़ इतने जहरीले होते हैं कि सांप भी इसके आस-पास नहीं आते।

1. सफेद कनेर: सफेद कनेर तीखा, कड़वा, फीका, तेज, गर्म और ग्राही (भारी) होता है। यह खाने में जहरीला होता है। यह प्रमेह, कीड़े, कुष्ठ, घाव, अर्श (बवासीर) और वायु (गैस) को नष्ट करता है। आंखों के रोगों को दूर करने के लिए भी इसका प्रयोग फायदेमंद है। यह खुजली, कफ व बुखार को खत्म करता है।

2. लाल कनेर : यह तीखा व कड़वा होता है। इसका लेप बनाकर कुष्ठ पर लेप करने से रोग खत्म होता है।

3. गुलाबी कनेर : यह सिर दर्द, कफ और पेट की गैस को खत्म करता है। गुलाबी और पीले कनेर के गुण सफेद कनेर के समान ही होते हैं।

आयुर्वेद के अनुसार कनेर के गुण : 

कनेर का रस कटु, तीखा, कषैला, लघु, रूखा व गर्म होता है। इसका पका फल कडुवा होता है। यह कुष्ठ, त्वचा रोग, घाव, खुजली, कीड़े, बुखार, पामा, गर्मी, वात रोग, लकवा एवं उपदंश रोग को दूर करता है। इसका प्रयोग कुत्ते के जहर को उतारने और आंखों के रोग दूर करने के लिए भी किया जाता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार :

वैज्ञानिकों के विश्लेषणों से पता चला है कि कनेर के बीज के अन्दर 57 प्रतिशत तेल होता है जिसमें एक थिवेटिन नामक ग्लुकोसाइड पाया जाता है। इसके जड़ में दिल के लिए बहुत जहर नेरिओडोन और नेरिओडोरिन ग्लुकोसाइड्स पाए जाते हैं। इसके अन्दर अल्प मात्रा में मोम, नेरिन व उड़नशील तेल भी मौजूद होते हैं।

उपयोग की मात्रा : 

वैसे तो कनेर को खाना मना है परन्तु बीमारियों में यह लगभग 1 ग्राम के चौथाई भाग से आधा ग्राम तक की मात्रा में सावधानी के साथ प्रयोग किया जा सकता है।

कनेर के फायदे और उपयोग :

1. सांप, बिच्छू का जहर: सफेद कनेर की जड़ को घिसकर डंक पर लेप करने या इसके पत्तों का रस पिलाने से सांप या बिच्छू का जहर उतर जाता है।

2. कुत्ता काट लेने पर: सफेद कनेर की जड़ की छाल का बारीक चूर्ण बनाकर 60 मिलीग्राम की मात्रा में 4 चम्मच दूध में मिलाकर दिन में 2 बार एक हफ्ते तक रोगी को पिलाएं। इससे कुत्ते का जहर उतर जाता है।

3. घाव: कनेर के सूखे हुए पत्तों का चूर्ण बनाकर घाव पर लगाने से घाव जल्द भर जाते हैं।

4. फोड़े-फुंसियां: कनेर के लाल फूलों को पीसकर लेप बना लें और यह लेप फोड़े-फुंसियों पर दिन में 2 से 3 बार लगाएं। इससे फोड़े-फुंसियां जल्दी ठीक हो जाते हैं।

5. दाद:

  • कनेर की जड़ को सिरके में पीसकर दाद पर 2 से 3 बार नियमित लगाने से दाद रोग ठीक होता है।
  • कनेर के पत्ते, आंवला का रस, गंधक, सरसों का तेल और मिट्टी के तेल को मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को दाद पर लगाने से दाद खत्म होता है।
  • लाल या सफेद फूलों वाली कनेर की जड़ को गाय के पेशाब में घिसकर लगाने से दाद ठीक होता है। इसका लेप बवासीर व कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

6. खुजली

  • कनेर के पत्ते, जड़, फूल व तना बराबर-बराबर मात्रा में लेकर 100 ग्राम की मात्रा बना लें। इस मात्रा को 500 मिलीलीटर सरसों के तेल में पकाएं। जब यह पकते-पकते आधा बच जाए तो इसे छानकर शीशी में भर लें। इसे प्रतिदिन खुजली पर लगाने से खुजली दूर होती है। इसका प्रयोग अनेक प्रकार की त्वचा रोग को दूर करने के लिए भी किया जाता है।
  • कनेर के पत्ते को सरसों तेल में भूनकर खुजली पर मलने से त्वचा की खुजली खत्म होती है।
  • कनेर के पत्ते को 250 मिलीलीटर सफेद तिल के तेल में पकाकर त्वचा पर लगाने से गीली और सूखी दोनो तरह की खुजली दूर होती है।

7. बवासीर:

  • कनेर और नीम के पत्ते को एक साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बवासीर के मस्सों पर प्रतिदिन 2 से 3 बार लगाएं। इससे बवासीर के मस्से सूखकर झड़ जाते हैं।
  • कनेर की जड़ को ठंडे पानी के साथ पीसकर दस्त के समय जो अर्श (बवासीर) बाहर निकल आते हैं उन पर लगाएं। इससे बवासीर रोग ठीक होता है।

8. नंपुसकता:

  • सफेद कनेर की 10 ग्राम जड़ को पीसकर 20 ग्राम वनस्पति घी के साथ पका लें। इस तैयार मलहम को लिंग पर सुबह-शाम लगाने से नुपंसकता दूर होती है।
  • सफेद कनेर की जड़ की छाल को बारीक पीसकर भटकटैया के रस के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को 21 दिनों के अंतर पर लिंग की सुपारी छोड़कर बांकी लिंग पर लेप करने से नपुंसकता खत्म होती है।

9. अफीम की आदत: अफीम की आदत छुड़ाने के लिए 100 मिलीग्राम कनेर की जड़ को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 2 चम्मच की मात्रा में दूध के साथ कुछ हफ्ते तक नियमित सेवन कराने से अफीम की आदत छूट जाती है।

10. जोड़ों का दर्द: लाल कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को जोड़ों पर लगाएं। इसे लेप को सुबह-शाम जोड़ों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

11. धातुरोग: सफेद कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से धातुरोग एवं गर्मी से होने वाले रोग आदि ठीक होता है।

12. अंडकोष की खुजली: सफेद या लाल फूल वाली कनेर की जड़ को तेल में पका लें और इस तेल को अंडकोष की खुजली पर लगाएं। इससे अंडकोष की खुजली दूर होती है और फोडे़-फुंसी भी मिट जाते हैं।

13. अंडकोष की सूजन: सफेद कनेर के पत्ते को कांजी के साथ पीसकर हल्का गर्म करके अंडकोष पर बांधे। इससे अंडकोष की सूजन दूर होती है।

14. दांतों का दर्द: सफेद कनेर की डाल से प्रतिदिन 2 बार दातून करने से दांत का दर्द ठीक होता है और दांत मजबूत होते हैं।

15. बालों का सफेद होना: सफेद और लाल कनेर के पत्ते को दूध में पीसकर सिर में लगाने से बालों का सफेद होना (पलित रोग) कम होता है। पीले रंग के फूल वाले कनेर का प्रयोग ज्यादा लाभकारी है।

16. बालों का गिरना: कनेर की जड़, दंती व कड़वी तोरई को एक साथ पीसकर केले के रस व तेल के साथ पका लें। इस तैयार लेप को सिर पर लगाने से बालों का गिरना बंद होता है।

17. दर्द व सूजन:

  • शरीर का कोई भी अंग सूजन जाने पर लाल या सफेद फूल वाले कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर मालिश करें। इससे सूजन में जल्दी आराम मिलता है।
  • सूजन और दर्द को दूर करने के लिए लाल या सफेद फूल वाले कनेर की जड़ को गाय के मूत्र में पीसकर लगाएं। इससे सूजन व दर्द ठीक होता है।

18. उपदंश (सिफिलिस):

  • लाल फूल वाले कनेर की जड़ को पानी में घिसकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाने से लाभ होता है। इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर घाव को धोना भी लाभकारी होता है।
  • सफेद कनेर की जड़ को पानी में पीसकर उपदंश पर लगाने से घाव, सूजन, जलन व दर्द ठीक होता है।

19. कुष्ठ रोग (सफेद दाग):

  • 200 ग्राम कनेर के पत्ते को एक बाल्टी पानी में उबाल लें और इस उबले पानी से नहाएं। इससे कुष्ठ (कोढ़) के जख्म समाप्त होते हैं।
  • सफेद या लाल फूल वाले कनेर की जड़ को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर कुष्ठ (कोढ़) पर लगाने से आराम मिलता है।
  • सफेद कनेर के 100 ग्राम पत्ते को 2 लीटर पानी में उबालें। जब यह उबलते-उबलते 1 लीटर बचा रह जाए तो इसे छानकर एक बाल्टी पानी में मिलाकर नहाएं। प्रतिदिन इस तरह पानी तैयार करके कुछ महीनों तक नहाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
  • कनेर की जड़ की छाल का रस निकालकर रोगग्रस्त स्थान पर लगाने से कोढ़ और अन्य त्वचा रोग समाप्त होते हैं।
  • कनेर की जड़ की छाल को पानी के साथ घिसकर कुष्ठ (कोढ़) के दाग पर लगाने से दाग नष्ट होते हैं।

20. नासूर (पुराना घाव): कनेर के पत्ते को छाया में सूखा लें और इसका चूर्ण बनाकर जख्म पर छिड़कें। इससे जख्म ठीक होता है।

21. फेवस और फंगस रोग: सफेद या लाल फूल वाले कनेर की जड़ को तेल में पका लें और इस तेल की मालिश रोगग्रस्त अंगों पर करने से फेवस, फंगस की शिकायत दूर होती है। इस तेल का प्रयोग जख्मों की सूजन, कुष्ठ, सूखी खुजली और पपड़ी युक्त रोग आदि में भी किया जाता है।

22. फोड़े-फुंसियां: कनेर की जड़ की छाल को पीसकर लेप बना लें और पक हुए फोड़े पर लेप करें। इससे फोड़े 3 से 4 घंटे में ही फूट जाते हैं।

23. चेहरे के दाग धब्बे और कील-मुंहासे: त्वचा के विभिन्न रोग जैसे- खाज-खुजली, काण्डु, फोड़े-फुंसियों आदि होने पर लाल या सफेद फूल वाले कनेर की जड़ को तेल में मिलाकर लगाने से त्वचा के सभी रोग दूर होते हैं। इसके पंचांग (पता, तना, फल, फूल, जड़) से बने तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा के सभी रोग ठीक होते हैं।

24. चेहरे की सुन्दरता: सफेद कनेर के फूल को पीसकर चेहरे पर लगाने से सुन्दरता बढ़ती है।

25. त्वचा रोग: त्वचा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सफेद कनेर की जड़ का काढ़ा बना लें और फिर इस काढ़ा को राई के तेल के साथ उबालकर त्वचा पर लेप करें। इससे त्वचा रोग दूर होते हैं।

26. सिर का दाद: सफेद या लाल कनेर की जड़ को तेल में पकाकर सिर के दाद पर लगाने से दाद ठीक होता है। इसका प्रयोग कुष्ठ, कण्डु व त्वचा का रूखापन आदि भी किया जाता है।

27. सिर का दर्द:

  • लगभग 10 ग्राम कनेर के पत्तों का रस निकालकर 240 मिलीग्राम मिश्री मिलाकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक होता है।
  • सफेद कनेर के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें और दो चावल के बराबर मात्रा में सूंघना चाहिए। इसे सूंघने से छींक आती है और सिर दर्द ठीक होता है। यह आधासीसी के दर्द को भी ठीक करता है।
  • सिर दर्द होने पर कनेर के पत्ते को पानी में उबालकर तिल या सरसों के तेल में मिलाकर सिर पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

कनेर के दुष्प्रभाव :

 कनेर एक प्रकार का जहर है जिसे खाने से फेफड़ों को नुकसान हो सकता है। इसके सेवन से हृदय और श्वास की गति रुक सकती है। अत: इसके प्रयोग औषधि के रूप में करते समय बेहद सावधानी रखनी चाहिए।

कनेर के विष का प्रभाव अधिक मात्रा में कनेर खाने से पेट फूलती है, आँखें उबल आती हैं, नाड़ी की गति एक दम क्षीण हो जाती है, बयिठे आते हैं और हृदय की धड़कन श्वासोच्छ्वास की क्रिया बन्द होने लगती है।

ऐसी स्थिति में एक यूनानी हकीम के मतानुसार छाछ और इसबगोल का लुआब, रोगन बादाम भीरी, कतीरे का हलुआ, इत्यादि वस्तुएँ खिलाने से तथा तरावट चीजों का इस्तेमाल करने से बड़ा लाभ होता है ।

कर्नल चोपरा लिखते हैं कि जहरीले गुण के कारण यह वस्तु चिकित्सा शास्त्र में अधिक तादाद में काम में नहीं ली जाती है। आयुर्वेद में ज्वर दूर करने के लिये इनकी छाल के टिंक्चर काम में लिये जाते हैं। इसको अन्तः प्रयोग के उपयोग में लेना बहुत खतरनाक है; क्योंकि यह वस्तु अपने जहरीले प्रभाव को दिखलाये बिना नहीं मानती । इसके बीजों में पाये जाने वाले ग्लुकोसाइड हृदय की पेशियों पर बहुत तेज असर दिखलाते हैं।

दोषों को दूर करने वाला : कनेर के दोषों को दूर करने के लिए शहद और घी को मिलाकर उपयोग करना चाहिए।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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