कनेर के फायदे , गुण, उपयोग और नुकसान | Kaner ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on July 22, 2019 by admin

कनेर का सामान्य परिचय : Kaner in Hindi

यह एक बड़ा हमेशा हरा रहने वाला झाड़ीनुमा पौधा होता है । भारत वर्ष की पुष्प वाटिकाओं में अक्सर बोया जाता है । इसके पत्ते तीखी नोकवाले और लम्बे रहते हैं। इसके फूल लाल, गुलाबी और सफेद रंग के होते हैं । देव पूजा में काम आने के कारण भारत में कनेर का पुष्प बहुत प्रसिद्ध है ।

विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत-अश्वमारक, चन्दन, करवीर, हरिप्रिय, गरिपुष्प इत्यादि । हिन्दी-कनेर । बंगला–कर्वी, लाल करवी । गुजराती-कनेर । मराठी -कन्हेर पांढरी, ताम्वडी । तेलगू – गनेरु, करवीरम् । फारसी–खा जेहरा । अरबी-डिफली, सुमुल, हिमारदखली । लेटिन-Nerium Odorum( नीरीयम ओडोरम ) ।

कनेर के औषधीय गुण और प्रभाव : Kaner ke Gun in Hindi

आयुर्वेदिक मत –
•सफेद कनेर कटु, कसेली, तीक्ष्ण वीर्य, आंतों को सिकोड़ने वाली तथा प्रमेह, कृमि, कुष्ठ, घाव, बवासीर और वात रोग को नष्ट करने वाली है ।
• वह नेत्रों की हितकारी, हलकी तथा कृमि कुष्ठ और विस्फोट रोग को दूर करने वाली एवम् घोड़े के प्राणों को हरने वाली होती है । इसकी जड़ की मात्रा चौथाई रत्ती तक की है ।
•लाल कनेर शोधक, चरपरी, पचने के समय कड़वी और कुष्ट में लामदायक होती है ।
•सब प्रकार की कनेर अत्यन्त जहरीली होती है ।

यूनानी मत –
• यूनानी मत से कनेर शहरी और जंगली दो किस्म की होती है ।
• जंगली कनेर के पत्ते खुरपे की तरह और बहुत पतले होते हैं । इसकी शाखें पतली और जमीन पर बिछी हुई होती हैं । इसमें पत्तों के पास कांटे होते हैं ।
• शहरी या बस्तानी कनेर में कांटे नहीं होते ।
• एक जल कनेर होती है जो तालाबों या नदियों के आसपास होती है ।
• यूनानी मत से यह तीसरे दर्जे के आखिर में गरम और खुश्क है ।
• इसकी जड़ कड़वी, कामोद्दीपक; और पेट की पुरानी पीड़ाओं के लिये मुफीद होती है ।
• जोड़ों के दर्द में भी यह लाभदायक है ।
• यह बहुत विषैली है । सर्प विष को भी दूर करने का इसमें माद्दा है ।
• इसके फूल स्वाद में कड़वे होते हैं । ये प्रदाह, मज्जा और जोड़ों के दर्द, कटिवात, सिर दर्द और खुजली में लाभदायक होते हैं ।
• चर्म रोगों के लिये इसका तेल यूनानी हकीम बहुत लाभदायक मानते हैं। इनका कथन है कि इस का तेल खुजली को १ घण्टे के अन्दर कम कर देता है ।
• एक प्रकार की खुजली जो नाभि के नीचे से एड़ियों तक होती है और जिसमें बहुत खुजली चलती है, यहाँ तक कि खुजलाते २ चमड़ा काला हाथी के चमड़े की तरह हो जाता है । किसी दवा से इसमें लाभ नहीं पहुँचता, ऐसे वक्त में कनेर का तेल बड़ा लाभ पहुँचाता है ।

कनेर का तेल निकालने की विधि –
इस तेल को निकालने की तरकीब यह है-सफेद कनेर के तीन सेर पत्तों को लेकर छोटे -छोटे टुकड़े करके बड़े बरतन में पानी के साथ डालकर तीन पहर तक जोश दें । फिर आंच से उतार कर ऐसे बरतन में सब को डाल दें जिसमें ठंडा पानी भरा हो । जब सब पत्ते पेंदे के नीचे बैठ जाय तब पानी पर कुछ तेल सा तैरता हुआ नजर आयगा । उसको हाथ से या रूई के फाये से लेकर एक कटोरे में इकट्ठा करलें, फिर इस तेल में नीला थूथा तीन माशे, सफेदा ७ माशे, फिटकिरी तीन माशे, मुदसिंगी चार माशे और रस कपूर ९ माशे बारीक पीस कर मिला दें और फिर खुजली के ऊपर इसकी मालिश करें ।

• यूनानी हकीम इस औषधि के स्तम्भक गुण के भी बड़े कायल है । उनका कहना है कि सफेद फूलों वाली कनेर की जड़ को गाय के दूध में जोश दें । फिर उस दूध का दही जमाकर उसका मक्खन निकाल कर थोड़ी मात्रा में खाने से मनुष्य की स्तम्भनशक्ति बहुत अधिक बढ़ती है ।
• सफेद कनेर की डाली से दतून करने से हिलते हुए दांत मजबूत होते हैं और दांतों को बड़ा लाभ होता है । इसके फूलों को मलने से चेहरे की सुन्दरता बढ़ती है । शार्ङ्गधर के मत से इसकी जड़ को पानी के साथ पीस कर उपदंश के घावों पर लगाने से लाभ होता है ।

पीली कनेर के औषधीय गुण और प्रभाव :

✦हृदय के ऊपर ( Heart Disease ) इनकी क्रिया डिजीटेलिश’ नाम अंग्रेजी औषधि की तरह होती है । इसलिये इसको कभी भी भूखे पेट न लेकर कुछ भोजन किये के बाद ही लेना चाहिये ।
✦बहुत छोटी मात्रा में यह हृदय को अत्यन्त बल देनेवाली वस्तु है। मगर अधिक मात्रा में यह हृदय पर घातक असर करती है जिससे शरीर ठंडा पड़ जाता है । नाड़ी की गति एक दम कम हो जाती है, बाँयठे आने लगते हैं और हृदय तथा श्वासोच्छवास की क्रिया बन्द हो जाती है ।

रासायनिक विश्लेषण :

चोपरा और मुखर्जी ने इसके रासायनिक विश्लेषण करके जनवरी सन् १९१३ के इंडियन मेडिकल रिसर्च में निम्न लिखित तथ्य प्रकट किये :
( १ ) पीली कनेर का सबसे अधिक प्रभावशाली तत्व जो कि एक प्रकार का ग्लुकोसाइड है, थेवेटिन ( Thevetin ) कहलाता है।
( २ ) थेवेटिन मेंढ़क, चूहे, सुअर, बिल्ली और अन्य प्राणियों के लिये विषैला है । यह सब कूटेनिअस इन्जेक्शन में दिये जाने और नेत्र शुक्ल रोग के ऊपर लगाये जाने पर कोई भी प्रदाहिक असर नहीं करता है।
( ३ ) थेवेटिन का पाचन क्रिया के ऊपर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। श्वास क्रिया पर इसका कोई सीधा प्रभाव नहीं है ।
( ४ ) थेवेटिन का मूत्राशय, गर्भाशय, बृहत्तन्त्र की मज्जा और रक्तवाहिनी नलियों पर उत्तेजक असर होता है ।
( ५ ) थेवेटिन का रक्त प्रवाह क्रिया पर साफ-साफ असर होता है । इसका असर डिजीटेलिस की जाति की औषधियों ही की तरह होता है ।
( ६ ) इस क्रिया के दो कारण मालूम होते हैं। एक तो यह कि हृदय की मज्जाओं पर इसका असर होता है । दूसरा यह कि रक्त क्रिया प्रणाली पर भी इसका असर होता है । वह प्रभाव कम ज्यादा मात्रा के अनुपात से हृदय के स्नायु व पेशियों पर दृष्टिगोचर होता है ।
( ७ ) इसमें हृदय को ताकत देनेवाले गुण मौजूद हैं। साथ ही इसके जहरीले गुण भी बहुत प्रभावशाली हैं । इन दोनों का पृथक्करण करके इसका उपयोग में लिया जाना बहुत कठिन है ।

मद्रास प्रेसिडेन्सी कालेज के बी० डे० ने इसके अन्दर थेवेटिडाइन नामक एक और ग्लुकीसाइड का विश्लेषण किया ,इनके मत को कलकत्ता स्कूल आफ ट्रापिकल मेडिसिन्स’ ने भी पुष्ट किया ।

कनेर के फायदे व उपयोग :

(१) खुजली और चर्म रोग-कनेरे के पत्ते या फूल को पानी में जोश दें। फिर इस पानी से आधे वजन का जैतून का तेल लेकर उसे पानी में डाल दें और जोश में जब पानी जल करके केवल तेल मात्र रह जाय तब उसमें चौथाई वजन मोम मिला कर उतार लें। इस तेल को हर प्रकार की खुजली पर मालिश करने से लाभ होता है ।

( और पढ़ेदाद खाज खुजली का आयुर्वेदिक इलाज )

(२) टपकाया हुआ दही, पीला गन्धक, और कनेर के पत्ते समान भाग लेकर बारीक पीस कर घी में मिला कर तर खुजली पर मलने से एक हफ्ते में खुजली मिट जाती है ।
(३) इसकी जड़ को पानी में उबाल कर उसमें राई का तेल डाल कर औटावें । जब पानी जल कर तेल मात्र रह जाय तब उसको उतार कर छान लें । इस तेल को चर्म रोगों पर मलने से बड़ा लाभ होता है ।
(४) अंगूर के सिरके में इसकी जड़ को पीस कर दाद पर लगाने से दाद बहुत जल्दी आराम हो जाती है ।
(५) नेत्ररोग – हरी सौंफ और काकंज के रस के साथ इसको पीस कर आँख में लगाने से नजला, पलकों की मुटाई, जाला, फूली इत्यादि नेत्र रोग आराम होते हैं ।

( और पढ़ेआंखों की रोशनी बढ़ाने के उपाय )

कनेर के दुष्प्रभाव / नुकसान :

✥कनेर के विष का प्रभाव अधिक मात्रा में कनेर खाने से पेट फूलती है, आँखें उबल आती हैं, नाड़ी की गति एक दम क्षीण हो जाती है, बयिठे आते हैं और हृदय की धड़कन श्वासोच्छ्वास की क्रिया बन्द होने लगती है।

✥ ऐसी स्थिति में एक यूनानी हकीम के मतानुसार छाछ और इसबगोल का लुआब, रोगन बादाम भीरी, कतीरे का हलुआ, इत्यादि वस्तुएँ खिलाने से तथा तरावट चीजों का इस्तेमाल करने से बड़ा लाभ होता है ।

✥ कर्नल चोपरा लिखते हैं कि जहरीले गुण के कारण यह वस्तु चिकित्सा शास्त्र में अधिक तादाद में काम में नहीं ली जाती है। आयुर्वेद में ज्वर दूर करने के लिये इनकी छाल के टिंक्चर काम में लिये जाते हैं। इसको अन्तः प्रयोग के उपयोग में लेना बहुत खतरनाक है; क्योंकि यह वस्तु अपने जहरीले प्रभाव को दिखलाये बिना नहीं मानती । इसके बीजों में पाये जाने वाले ग्लुकोसाइड हृदय की पेशियों पर बहुत तेज असर दिखलाते हैं।

नोट :- ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।

Leave a Comment

Share to...