Last Updated on November 13, 2019 by admin
जीवन में जल का महत्व : Jal Ka Mahatva in Hindi
हमारा शरीर जिन पांच महाभूतों यानी पंचतत्वों से बना है उनमें से एक तत्व जल है और शेष चार हैं- आकाश, वायु, अग्नि और पृथ्वी। विज्ञान (साइंस) के अनुसार जल में दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग आक्सीजन होता है। इस भूमण्डल में पृथ्वी का भाग 1/4 है और जल का भाग 3/4 है। मानव शरीर में भी 70% जल और 30% में शेष सब हाड़ मांस रक्त आदि हैं। इस अनुपात को देख कर ही जल की महत्ता और उपयोगिता का पता चल जाता है।
हमारे शरीर में जल तत्व का भाग शेष चार तत्वों से बहुत ज्यादा है इसलिए शरीर और स्वास्थ्य की दृष्टि से, हमें जल के विषय में विशेष रूप से सतर्क और सचेष्ट रहना होगा। यह कहने से काम नहीं चलेगा कि जल के विषय में भी कुछ कहने की ज़रूरत है क्या ? या कि इसके गुण-धर्म और सेवन पद्धति पर भी क्या सोच विचार करने की ज़रूरत हो सकती है? हम संक्षेप में जल के विषय में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाल रहे हैं।
यह तो आप जानते समझते हैं कि हमारा जीवन और जीवन का ढंग भौतिकवादी अधिक और आध्यात्मवादी कम हो गया है, कृत्रिम ज्यादा और प्राकृतिक कम हो गया है तथा सुविधा भोगी ज्यादा और नियम-संयम में कम हो गया है। ऐसी परिस्थिति में हम प्राकृतिक जीवन से दूर होते जा रहे हैं और हमारे जीवन में बनावटी और नकली चीज़ों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। क्या अन्न, क्या जल. क्या वायु और क्या आकाश- सब कुछ अप्राकृतिक और मन चाहे ढंग से प्रयोग में लिया जा रहा है और यह विचार करने की न तो किसी को फुर्सत है, न चिन्ता है और न जानकारी ही कि जो कुछ हो रहा है वह ठीक हो रहा है या ग़लत? ऐसा होना चाहिए या नहीं ? यदि ऐसा नहीं होना चाहिए तो फिर कैसा होना चाहिए? ऐसे हालात और माहोल को मद्देनज़र रख कर हमें शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से ‘जल’ के विषय में सोच विचार करना ही होगा।
पहले हम हमारे शास्त्रों के आधार पर जल की महत्ता और उपयोगिता के विषय में विचार करते हैं। भाव प्रकाश निघण्टु में लिखा है –
जीवनं जीविनां जीवो जगत्सर्वं तु तन्मयम् ।
नातोऽत्यन्त निषेधेन कदाचिद्वारि वार्य्यत ।।
अर्थात् –जल प्राणियों का जीवन है और सम्पूर्ण जगत जल से भरा हुआ है इसलिए रोगों में जल का निषेध होने पर भी जल का सर्वथा त्याग नहीं किया जा सकता है।
जल की महत्ता इसी से सिद्ध हो जाती है कि तीव्र प्यास लगने पर भी यदि जल न मिले तो प्राण व्याकुल हो जाते हैं। एक बार अन्न के बिना व्यक्ति जी भी सकता है एक दम मर नहीं जाता पर जल के बिना तो जीना मुश्किल है क्योंकि –
‘पानीयं प्राणिनां प्राणा विश्वमेव हि तन्मयम्’ (मदनपाल निघण्टु) के अनुसार पानी प्राणियों का प्राण है। “तृषितो मोहमायाति मोहा, प्राणान्विमुंचति’ (हारीत) के अनुसार तीव्र प्यास से बेहोशी हो सकती है और बेहोशी से जान जा सकती है यदि प्यास बुझाई न जाए । यही वजह है कि बेहोश आदमी के चेहरे पर, जल के सिर्फ़ छींटे मारने से ही उसकी बेहोशी दूर हो जाती है।
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जल का विभिन्न भाषाओं में नाम :
✦ संस्कृत – पानीय, सलिल, अम्बु ।
✦ हिन्दी – जल, पानी ।
✦ मराठी – पाणी।
✦ गुजराती – पाणी।
✦ तेलुगु – नील।
✦ कन्नड़ – नीरु।
✦ फारसी – आब।
✦ इंगलिश – वाटर (Water) ।
✦ लैटिन – अक्वा (Aqua) ।
जल के गुण : Jal ke Gun in Hindi
✥ जल श्रम नाशक,
✥ ग्लानि हरने वाला,
✥ बल व तप्ति दायक,
✥ हृदय को प्रिय,
✥ गुप्त रस युक्त,
✥ नित्यहितकारी,
✥ शीतल,
✥ हलका,
✥ रस का कारण रूप,
✥ स्वच्छ अमृत के समान जीवन दायक
✥ मूर्छा, प्यास, तन्द्रा, उलटी, विबन्ध नाशक
✥ निद्रा और अजीर्ण को नष्ट करने वाला है।
आयुर्वेद के अनुसार जल के प्रकार : Jal ke Prakar in Hindi
आज तो महानगर के लोगों को जल के एक ही प्रकार की जानकारी है नल के जल की लेकिन ग्राम प्रधान देश भारत के अधिकांश नागरिक आज भी कुए, बावड़ी और नदी का पानी पी रहे हैं। नल के पानी को फिल्टर सिस्टम से शुद्ध किया भी जाता है पर कुए, बावड़ी व नदी के पानी की शुद्धता की कोई विशेष व्यवस्था नहीं, कोई गारण्टी नहीं। हमारे आयुर्वेद ने जल के कई प्रकार बताये हैं जिनका विस्तृत परिचय न दे कर हम सिर्फ उन प्रकारों के नामों का ही उल्लेख कर रहे हैं ।
आयुर्वेद ने जल के विषय में, ‘वारि वर्ग’ के नाम से, पूरा एक अलग अध्याय ही प्रस्तुत किया है। पहले तो “पानीयं मुनिभिः प्रोक्तं दिव्यं भौममिति द्विधा” के अनुसार जल के दो भेद-
दिव्य जल और भौम जल । फिर इनके भी भेद बताये हैं।
(1) दिव्य जल यानी आकाश का जल
दिव्य जल चार प्रकार का होता है- (1) धाराज (2) हैम (3) करकाभव और (4) तौषार । धाराज जल दो प्रकार का होता है- (1) गांग और (2) सामुद्र।
(2) भौम यानी पृथ्वी का जल
भौम जल के तीन भेद बताये हैं- (1) जांगल (2) आनूप और (3) साधारण।
इनके अलावा जल के अन्य भेद इस प्रकार बताये हैं-
(1) नदी का जल (2) औदभिद् जल (3) झरने का जल (4) सारस जल (5) तालाब का जल (6) वाप्य जल (7) कूप जल (8) चौंज्य जल (9) पाल्वल जल (10) विकिर जल (11) केदार जल (12) वृष्टि जल।
इन भेदों के अलावा प्रत्येक ऋतु के अनुसार जल के अलग-अलग भेद बताये हैं।
और मज़े की बात देखिए कि जल के इन भेदों में से प्रत्येक भेद के गुण, दोष और उपयोग के विषय में भी विस्तार से जानकारी दी गई है। जबकि आधुनिक विज्ञान से पूछिए तो जवाब मिलेगा कि जल का विश्लेषण सिर्फ इतना ही है कि यह दो भाग हाइड्रोजन और एक भाग आक्सीजन का मिश्रण है।
बहरहाल, मुद्दे की बात यह है कि जल के कितने ही भेद हों, हमें तो जल के उस प्रकार के विषय में सोचना-समझना चाहिए जिस प्रकार के जल का हम सेवन कर रहे हैं। इसी प्रकार जो जिस प्रकार के जल का सेवन कर रहा हो उसे जल के उस प्रकार के विषय में सोचना समझना होगा, उस प्रकार के जल के गुण दोष और उपयोग के विषय में जानकारी प्राप्त करनी होगी।
ऐसा करके ही अशुद्ध और रोग कारक जल के सेवन से बचा जा सकेगा और शुद्ध तथा स्वास्थ्यप्रद जल का सेवन किया जा सकेगा ताकि हमारे शरीर और स्वास्थ्य को रोगी होने से बचाया जा सके तथा शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके। ऐसा जहां जहां हो नहीं रहा है या कि हो नहीं पा रहा है वहां वहां संक्रामक रोग फैल रहे हैं और लोग थोक बन्द बीमार हो रहे हैं।आइये जाने shudh jal kise kahate hain
पीने योग्य शुद्ध जल की पहचान : Shudh Pani ki Pahchan in Hindi
ऐसा महत्वपूर्ण है जल, जिसके विषय में हम कोई सोच विचार नहीं करते और हर कहीं का जल ले कर, बिना सांस लिये गटागट पी जाते हैं। जिस जल को हम पिएं उसके विषय में हमें यह ज़रूर जान लेना चाहिए कि वह जल कहां से लाया गया है, किस ढंग से रखा गया है और शुद्ध है या नहीं। जल की जांच करने के लिए हमें निम्नलिखित मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए।
☛ शुद्ध जल में कोई गन्ध नहीं होती, गन्ध होना नहीं चाहिए। गन्ध, हो तो जल पीने योग्य नहीं है।
☛ जल का कोई स्वाद नहीं होता, यदि किसी प्रकार का स्वाद हो तो वह जल पीने योग्य नहीं है। इसी प्रकार
☛ शुद्ध जल का कोई रंग नहीं होता, रंग हो तो पीने योग्य नहीं।
☛ साफ़ पानी पारदर्शी होता है, मिट्टी मिली हो तो धुंधला व गन्दला होता है। नदी तालाब का पानी प्रायः धुंधला या गन्दला होता है।
☛ यदि 5 लिटर पानी में 2 ग्राम मिट्टी भी हो तो वह पानी पीने योग्य नहीं होता।
☛ पानी में तलछट जमती हो तो वह पानी पीने योग्य नही।
☛ जल में सोडियम क्लोराइड के अतिरिक्त कैल्शियम, मेग्नेशियम क्लोराइड भी होते हैं। इनकी अधिक मात्रा पानी को दूषित कर देती है।
☛ जिस जल में कचरा, रेशे, धुंधलापन, पत्ते, मटमैलापन और गन्ध हो वह पानी पीने योग्य नहीं होता।
जल चिकित्सा का महत्व : Prakritik Chikitsa me Jal ka Mahatva in Hindi
चिकित्सा की दृष्टि से जल बहुत उपयोगी साबित होता है इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा के अन्तर्गत ‘जल-चिकित्सा’ का उपयोग किया जाता है। पथ्य और अपथ्य की दृष्टि से, जल का उपयोग करने या न करने से सम्बन्धित, कुछ ज़रूरी और हितकारी सूचनाएं यहां प्रस्तत कर रहे हैं –
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जल चिकित्सा के लाभ और इसके महत्वपूर्ण सिद्धांत : Jal Chikitsa ke Labh in Hindi
(1) शीतल जल पान-
मूर्छा, पित्त प्रकोप, गर्मी का प्रभाव, जलन, विष-विकार, रक्तविकार, मदात्यय, श्रम, तमक श्वास, उलटी, ऊर्ध्व रक्तपित्त आदि रोगों के रोगी को अन्न का पाचन हो जाने के बाद ठण्डा पानी पिलाना पथ्य है अतः लाभकारी है और गर्म जल पिलाना अपथ्य है अतः हानि कारक है।
(2) उष्ण जल पान-
पार्श्वशूल, प्रमेह, बवासीर, पाण्डु, जुकाम, वात रोग, अफारा, क़ब्ज़, विरेचन, नवीन ज्वर, गुल्म, मन्दाग्नि, अरुचि, नेत्र रोग, संग्रहणी, कफजन्य रोग, श्वास, खांसी, फोड़ा-फुन्सी और हिचकी- इन रोगों के रोगी को गर्म या गर्म करके ठण्डा किया हुआ पानी पिलाना पथ्य है। दिन में सुबह उबाला हुआ पानी रात तक और शाम को उबाला हुआ पानी सुबह होने तक उपयोग में लेना चाहिए।
(3) अल्प जल पान-
अरुचि, जुकाम, मन्दाग्नि, शोथ, मुंह में खट्टा पानी आना, उदर रोग, तीक्ष्ण नेत्र रोग, नया ज्वर और मधुमेह रोग- इन रोगों के रोगी को आवश्यकता होने पर, पानी थोड़ी थोड़ी मात्रा में पिलाना चाहिए।
(4) शीतल जल निषेध-
त्रिदोष (सन्निपात) से पीड़ित रोगी को ठण्डा जल पिलाना या ठण्डे पानी से स्नान कराना भयंकर रूप से हानिकारक यानी अपथ्य है।
(5) अधिक जल पान-
एक समय में एक गिलास से ज्यादा पानी पीने से आमाशय में आम की वृद्धि होती है, अपच व क़ब्ज़ होता है जिससे कई प्रकार की अन्य व्याधियां होती हैं इसलिए एक ही बार में अधिक जल पीना अपथ्य है।
(6) मधुर जल पान-
शक्कर मिला कर पानी पीने से कफ का प्रकोप होता है और वात का शमन होता है। मिश्री युक्त जल दोषनाशक और शुक्रवर्द्धक होता है। गुड़ मिला जल कफ वर्द्धक, पित्तकारक और मूत्रावरोध नाशक होता है लेकिन पुराना गुड़ मिला जल पित्तनाशक व पथ्य होता है।
(7) जलपान निषेध-
भोजन के तुरन्त बाद, शौच के तुरन्त बाद, धूप में घूम कर आने पर बिना विश्राम किये, व्यायाम या भारी परिश्रम करने से शरीर में गर्मी उत्पन्न होने पर और भोजन के पहले या प्रारम्भ में जल पीना अपथ्य है।
(8) प्रातः उषापान-
रात्रि के अन्तिम प्रहर में उठ कर शौच जाने से पहले ठण्डा पानी पीना पथ्य है पर शौच के बाद पानी पीना अपथ्य है। कफ प्रकोप के रोगी, बुखार से ग्रस्त और मन्दाग्नि से पीड़ित व्यक्ति के लिए उषापान करना अपथ्य है। आइये जाने pani kaise pina chahiye in hindi
( और पढ़े – पानी कब कैसे व कितना पियें ? जानिये यह 23 खास बातें )
पानी पीने के सही तरीके व कुछ जरुरी नियम : Pani Pine ka Sahi Tarika in Hindi
(1) शीतल जल देर से और गर्म करके ठण्डा किया हुआ पानी जल्दी पचता है। कुनकुना गर्म पानी भी जल्दी पचता है।
(2) जब प्यास लगे तब तुरन्त पानी पीना चाहिए पर एक बार में एक गिलास से ज्यादा पानी नहीं पीना चाहिए चाहे प्यास कितनी भी तेज़ हो। ‘अत्यम्बुपान्न विपच्यतेऽनं‘ के अनुसार एक ही बार में ज्यादा पानी पीने से अपच और क़ब्ज़ की शिकायत हो जाती है इसलिए ‘मुहुर्मुहुर्वारि पिबेदभूरि’ के अनुसार बार-बार करके थोड़ा-थोडा यानी 1-1 गिलास पीना चाहिए।
(3) भोजन के आरम्भ में पानी पीने से कमज़ोरी आती है और अन्त में पीने से मोटापा और पेट बढ़ता है। चाणक्य नीति में कहा है –
अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बल प्रदम् ।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ।।
अर्थात् –अपच (अजीर्ण) होने पर जल पीना औषधि के समान होता है, भोजन के पच जाने के बाद यानी भोजन करने के लगभग डेढ़ दो घण्टे बाद जल पीना बलवर्द्धक होता है, भोजन के मध्य में थोड़ा जल पीना अमृत के समान और भोजन के अन्त में जल पीना विष के समान हानिकारक होता है क्योंकि यह भोजन को पचाने वाले रसों को पतला करके, अपच की स्थिति निर्मित करता है जिससे अजीर्ण व क़ब्ज़ होता है।
(4) खाली पेट पानी पीना अपथ्य है। यदि कुछ खाये बिना ही प्यास लगे तो पानी न पी कर शर्बत पीना चाहिए, पानी में ग्लूकोज़ घोल कर पीना चाहिए या कुछ खा कर ही पानी पीना चाहिए।
(5) रात में नींद खुलने पर जागते ही पानी पीना अपथ्य है। इससे नज़ला जुकाम हो जाता है। घोर परिश्रम, देर तक तैरना या दौड़ना, व्यायाम करना, मैथुन करना, स्नान करना आदि काम करके तुरन्त पानी पीना और खरबूज, तरबूज, सीताफल, केला आदि तर फल खा कर तुरन्त पानी पीना अपथ्य है। शरीर से पसीना निकल रहा हो उस समय पानी पीना अपथ्य और पसीना सुखा कर पानी पीना पथ्य है।
(6) पानी पी कर तुरन्त दौड़ना, श्रम करना, पढ़ना, बोझ उठाना, सवारी पर बैठना और वाद विवाद करना- ये सब अपथ्य हैं।
(7) भूख, शोक, क्रोध और चिन्ता की स्थिति में पानी पीना अपथ्य तथा शान्त, प्रसन्न और सहज अवस्था में पानी पीना पथ्य है।
(8) अनजान स्थान का पानी पीना, अजनबी व्यक्ति द्वारा दिया हुआ पानी पीना, अन्धेरे स्थान में बिना देखे पानी पीना और लेट कर पानी पीना अपथ्य है।
(9) पानी पी कर नाक से सांस छोड़ना अपथ्य है। पानी पीने के पश्चात जो पहली सांस छोड़ी जाती है उसे नाक से न छोड़ कर, मुंह से ही छोड़ना चाहिए।