Jalkumbhi ke Fayde | जलकुम्भी के फायदे ,गुण ,उपयोग और नुकसान

Last Updated on April 22, 2020 by admin

जलकुम्भी क्या है ? : What is Water hyacinth (Eichhornia crassipes) in Hindi

यह जलीय पौधा भारत के सरोवरों में और वर्षाकालीन जलाशयों में प्रायः सर्वत्र स्वत: उत्पन्न हो जाता है। यह बंगाल में विशेष होता है। समद्रतटों पर भी पाया जाता है। भारत के अतिरिक्त एशिया के अन्य भागों में, अफ्रीका तथा अमेरिका में भी होता है।
चरक संहिता के कषाय स्कन्ध में तथा सुश्रुत संहिता के प्रियंग्वादिगण में इसका उल्लेख मिलता है। इसका वानस्पतिक कुल सूरण कुल (एरेसी) है।

जलकुम्भी का पौधा कैसा होता है ? :

यह सिंघाड़ा (शृंगाटक) के पौधे के समान एक छोटा काण्डविहीन पौधा है, जो जल के ऊपर तैरता रहता है। इसका मूल, अनेक तन्तुओं से युक्त होता है। यह जलाशय में चारों ओर तीव्रगति से छा जाता है।

  • जलकुम्भी के पत्ते – जलकुम्भी के पत्रक 3-4 इंच लम्बे होते हैं। जिन पर 3-4 एक साथ वृन्त रहित पत्र लगे रहते हैं। ये पत्र एक से चार इंच लम्बे गोलाकृति मांसल होते हैं।
  • जलकुम्भी के पुष्प – जलकुम्भी के पुष्प बैंगनी रंग के,लम्बगोल, गुच्छों में लगते हैं।
  • जलकुम्भी के फल – फल पतली छाल या झिल्ली युक्त होते है।, जिनमें अनेक लम्बे बीज भरे होते हैं। ये फल आकृति में गोल, हरे रंग के, देखने में कुम्भ (कलश) की आकृति के प्रतीत होते हैं। तब ही इसे कुम्भिका या जलकुम्भी कहते हैं। इस पर पुष्प ग्रीष्म काल में तथा फल वर्षान्त में आते हैं।

जलकुम्भी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Water hyacinth (Eichhornia crassipes) in Different Languages

Jalkumbhi (Water hyacinth) in–

  • संस्कृत (Sanskrit) – कुम्भिका, जलकुम्भी, वारिपर्णी, वारिमूली
  • हिन्दी (Hindi) – जलकुम्भी, कुम्ही, खुंबी।
  • गुजराती (Gujarati) – जलशंखला
  • मराठी (Marathi) – प्राशनी
  • बंगाली (Bangali) – टोकापाना
  • तामिल (Tamil) – आगमातमाराई
  • तेलगु (Telugu) – आनटेरी-टामार
  • अरबी (Arbi) – फारिसुल्मा
  • अंग्रेजी (English) – ट्रापिकल डकवीड (Tropical Duck Weed) ,Water hyacinth
  • लैटिन (Latin) – पिस्टिया स्ट्रेटिओटम (Pistia Stratiotes Linn.) ,Eichhornia crassipes

जलकुम्भी का रासायनिक विश्लेषण : Water hyacinth (Eichhornia crassipes) Chemical Constituents

जलकुम्भी (Jalkumbhi) के पत्र में आर्द्रता 92 प्रतिशत होती है। प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट, वसा, कैलशियम, फास्फोरस भी होते हैं। विटामिन ए बी और सी प्रचुर होते हैं। इसके पंचांग की भस्म (Pana Salt) में पोटेशियम क्लोराइड और सल्फेट प्रचुर होते हैं।

जलकुम्भी के उपयोगी भाग : Beneficial Part of Water hyacinth in Hindi

पंचांग (विशेषतः पत्र व मूल)

सेवन की मात्रा :

स्वरस – 10 से 20 मि.लि.

जलकुम्भी के औषधीय गुण : Jalkumbhi ke Gun in Hindi

  • रस – तिक्त, मधुर,
  • गुण – लघु, रूक्ष,
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – मधुर
  • दोषकर्म – त्रिदोष शामक
  1. जलकुम्भी (Jalkumbhi) अनुलोमन, मूत्रल, ज्वरघ्न, दाह प्रशमन (जलन शांत करना), बल्य, शोणित स्थापन और कफनि:सारक है।
  2. बाह्य प्रयोग में यह कृमिघ्न, कुष्ठघ्न, रक्तस्तम्भन (खून के बहने को रोकना) तथा दाह प्रशमन है।
  3. जलकुम्भी के पत्र विशेषतःस्नेहन और दाह प्रशमन है।
  4. जलकुम्भी का मूल-अनुलोमन और रेचन कर्म करता है।
  5. यह प्राणवह स्रोतस के श्लेष्मा को शान्त करता है।
  6. यह मूत्रल भी है।
  7. जलकुम्भी का पंचांग-त्रिदोषहर (कफ-पित्त-वात को नष्ट करने वाला) होने से बल्य है।
  8. इसका स्वरस दाह तथा ज्वर का शमन करता है।
  9. यह रक्त धातु में पहुंच कर रक्त का स्तम्भन करने के कारण शोणित स्थापन है।
  10. इसकी भस्म विशेषतः शोथहर (सूजन मिटाना) है।

जलकुम्भी के फायदे और उपयोग : Benefits of Jalkumbhi in Hindi

खून का बहना रोकने में जलकुम्भी फायदेमंद

कुम्भी पत्र कल्क को तण्डुलोदक (चावल का पानी) अथवा नारिकेलोदक (नारियल का पानी) के अनुपान से देने से रक्त स्तम्भन होकर रक्त प्रवाहिका में लाभ होता है।

आमातिसार रोग में जलकुम्भी से फायदा

जलकुम्भी के स्वरस को कच्चे नारियल के दूध एवं भात में मिलाकर रोगी को खिलाते हैं।

पेशाब की रुकावट दूर करे जलकुम्भी का प्रयोग

जलकुम्भी के स्वरस में शक्कर मिलाकर पिलाने से मूत्र खुलकर आने लगता है।

चर्म रोग में जलकुम्भी के इस्तेमाल से लाभ

जलकुम्भी के स्वरस को नारियल के तेल में पकाकर लगाना चाहिए।

शरीर में होने वाली जलन मिटाए जलकुम्भी का उपयोग

जलकुम्भी पत्रकल्क का लेप करने से दाह का शमन होता है।

गले की सूजन कम करने में जलकुम्भी करता है मदद

जलकुम्भी के स्वरस में ताम्बूलस्वरस (पान के रस) मिलाकर पिलाना चाहिये।

( और पढ़े – बैठ हुये गले का घरेलू इलाज )

गलगण्ड रोग में लाभकारी जलकुम्भी (Jalkumbhi)

जलकुम्भी के पंचांग की भस्म बनाकर उसे गोमूत्र के अनुपान से देते रहने से गलगण्ड में लाभ होता है। साथ में कोदो और तक का सेवन करना चाहिये

जलकुम्भीकजं भंस्म पक्वं गोमूत्रगालितम्।
पिबेत्कोद्रवतक्राशी गलगण्डोपशान्तये।।
-वृन्द

भस्म को गोमूत्र में पकाकर फिर छानकर भी सेवन किया जा सकता है।

जलकुम्भी के प्रयोग से दूर करे दाद-खाज

जलकुम्भी की भस्म को नारियल के तैल में मिलाकर लगाने से दाद-खाज में लाभ होता है।

खटमलों के नाशार्थ जलकुम्भी के प्रयोग से लाभ

इसके पंचांग को लाकर रखने से खटमल मूर्च्छित होकर मर जाते हैं।

कान का दर्द मिटाए जलकुम्भी का उपयोग

जलकुम्भी के पंचांग का कल्क (चटनी) एक भाग, उससे चौगुना तिल तैल और तैल से चौगुना जलकुम्भी पंचांग स्वरस लेकर एकत्र मिलाकर मन्द अग्नि पर तैल सिद्ध कर लें। तैल सिद्ध हो जाने पर कपड़े से छानकर शीशी में भर लें। इस तैल को कान में डालने से कर्णशूल, चिरकालज कर्णस्राव, नाडीव्रण आदि में लाभ होता है।

अस्थमा व कफ में जलकुम्भी का उपयोग लाभदायक

कुम्भीमूल कल्क को गुलाब के शर्बत के अनुपान से देने पर पैत्तिक श्वासकास के रोगी को आराम मिलता है।

( और पढ़े – अस्थमा दमा का आयुर्वेदिक इलाज )

जलकुम्भी के दुष्प्रभाव : Jalkumbhi ke Nuksan in Hindi

जलकुम्भी के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।

(उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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