कत्था के 36 दिव्य फायदे और उपयोग : Kattha ke Fayde aur Nuksan in Hindi

Last Updated on September 14, 2024 by admin

कत्था क्या है ? : What is Kattha Powder

कत्था खैर नामक वृक्ष से जिसे लेटिन में एके शिया कटेचू कहते हैं से प्राप्त किया जाता है । कत्था खैर की लकड़ी से प्राप्त किया हुआ सत्त्व है ।

कत्था कैसे बनता है ? How to Make Kattha in Hindi

खैर पेड़ की छाल आधे से पौन इंच तक मोटी होती है यह बाहर से काली भूरी रंग की और अन्दर से भूरी रंग की होती है। जब खैर पेड़ का तना लगभग एक फुट मोटे हो जाते हैं तब इसे काटकर छोटे-छोटे टुकडे़ बनाकर भटि्टयों में पकाकर काढ़ा बनाया जाता है। फिर इसे चौकोर रूप दिया जाता है जिसे कत्था कहते हैं।

कत्था के प्रकार : Types of Kattha in Hindi

कत्था तीन प्रकार का होता है। एक भूरा कत्था जिसको पपड़िया कत्था कहते हैं, जो बहुत हल्का, सुखी माइल और आसानी से टूटने वाला होता है । औषधि में भी विशेष कर यही कत्था काम में आता है । दूसरा साल और तीसरा स्याह रंग का कत्था होता है । ये विशेष करके औषधि के काम में नही आते ।

कत्था के औषधीय गुण : Medicinal Properties of Kattha in Hindi

  • आयुर्वेदिक मत से कत्था कसेला, गरम, कड़वा, रुचिकारक, अग्निदीपक, दांतों को दृढ़ करने वाला, चरपरा तथा कफ, वात, व्रण, कंठरोग, सब प्रकार के प्रमेह, कृमि, मुख रोग, 18 प्रकार के कुष्ठ, शरीर की स्थूलता और बवासीर को नष्ट करता है।
  • चरक के मतानुसार कत्थे का काढ़ा कुष्ट में देने से और इसीको व्रण धोने के उपयोग से लेने से बड़ा लाभ होता है ।
  • सुश्रुत खैर के छिलके को सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों में काम में लेने की सलाह देते हैं।
  • चक्रदत्त के मतानुसार कफ के साथ खून जाने में और अन्य रक्तस्राव में इसके [ खैर के ] फलों का चूर्ण शहद के साथ देने से लाभ होता है।
  • हारित के मतानुसार मसूड़े और दांतों की पीड़ा में कत्थे का उपयोग हमेशा लाभदायक होता है ।
  • यूनानी मत से यह दूसरे दर्जे में सर्द और खुश्क है ।
  • यह कब्ज और खुश्की पैदा करने वाला होता है ।
  • इसका मंजन मसूड़ों और दांतों को मजबूत करता है ।
  • इसका चूर्ण जखम पर भुरभुराने से जखम जल्दी आराम होते हैं, इसको पानी में जीरा देकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं तथा मामूली दस्त बन्द हो जाते हैं ।
  • आंतों के घाव और मरोड़ों के लिये भी यह लाभप्रद है ।
  • कुष्ठ, सुजाक और फोड़े फंसी के लिये इसका शरबत और फायदा पहेचाता है।
  • इसको मुंह में रख कर चूसने से लटका हुआ ‘काग’ अच्छा हो जाता है और उसकी वजह से होने वाली खांसी भी मिट जाती है ।
  • इसको पानी में गलाकर उसकी पिचकारी देने से श्वेत प्रदर और सुजाक में लाभ पहुंचाता है ।

कत्था के उपयोग : Medicinal Uses of kattha in Hindi

  • कर्नल चोपरा के मतानुसार यह खैर की लकड़ी से प्राप्त किया हुआ सत्त्व है, इसके गहरे बादामी रंग के ढेर के ढेर तैयार किये जाते हैं । पांच से पन्द्रह ग्रेन (1 ग्रेन = 0.060 ग्राम) तक की मात्रा में स्वतन्त्र रूप से अथवा दालचीनी और अफीम के साथ यह अतिसार को रोकने के लिये दिया जाता है । मसूड़ों के पकने पर, गले की तकलीफ में या दांतों के दर्द में कत्था, दालचीनी और जायफल की टिकिया बनाकर मुंह में रखी जाती है । वेसलिन के साथ मिलाकर यह फोड़ों पर भी लगाया जाता है। इसमें केटेचिन ( Catechin ) और टेनिन एसिड नामक पदार्थ पाये जाते हैं।
  • के० एल० डे० के मतानुसार इसका टिंक्चर दुष्ट विद्रधि नामक फोड़े पर बड़ा उपयोगी होता है। यह संकोचक और पौष्टिक है । अतिसार में यह बहुत उपयोगी है। चाहे यह चूर्ण के रूप में लिया जाय, चाहे संकोचक पदार्थ या अफीम के साथ में लिया जाय । मसूड़े, मुंह के व्रण में भी यह बहुत उपयोगी है। स्वरभङ्ग, गले की पीड़ा और आवाज के बिगड़ जाने पर यह टिकियाओं के रूप में काम में लिया जाता है।

कत्था के फायदे और उपयोग : Kattha ke Fayde aur Upyog in Hindi

1. गले के रोग: 300 मिलीग्राम की मात्रा में कत्थे का चूर्ण मुंह में रखकर चूसने से गला बैठना, आवाज रुकना, गले की खराश, मसूढों का दर्द, छाले आदि दूर होती है। इसका प्रयोग दिन में 5 से 6 बार कुछ दिनों तक नियमित करना चाहिए।

2. खांसी:

  • कत्था, हल्दी और मिश्री 1-1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर चूसने से खांसी दूर होती है। इसका प्रयोग दिन में 3 बार कुछ दिनों तक करने से खांसी नष्ट होती है।
  • खैर (कत्था) के पेड़ की छाल चार भाग, बहेडे़ दो भाग और लौंग एक भाग लेकर पीसकर शहद के साथ सेवन करने से खांसी ठीक होती है।
  • सूखी खांसी में लगभग 360 से 720 मिलीग्राम कत्था सुबह-शाम चाटने से लाभ मिलता है। इससे सूखी खांसी भी दूर होती है। ( और पढ़े – खांसी के घरेलू उपचार )

3. पैर की उंगुलियों के बीच में घाव: पानी में काम करने से पैरों की उंगुलियों में घाव हो जाता है। ऐसे में घाव को कत्थे के पानी से धोए और इसका सूखा चूर्ण लगाएं। इससे घाव ठीक होता है।

4. कुष्ठ:

  • कत्थे के काढे़ को पानी में मिलाकर प्रतिदिन नहाने से कुष्ठ रोग ठीक होता है।
  • कत्थे के पेड़ की छाल और आंवला मिलाकर काढ़ा बना लें और इस काढ़े में बावची का चूर्ण डालकर पीने से सफेद कुष्ठ का रोग ठीक होता है।
  • खैर (कत्थ) की जड़, पत्ते, फूल, फल और छाल का काढ़ा बनाकर स्नान, पान, भोजन और लेप करना चाहिएं। इससे सब प्रकार के कुष्ठ खत्म होते हैं। ( और पढ़े – सफेद दाग का आयुर्वेदिक उपचार )

5. सांस, दमा: कत्था, हल्दी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 2 से 4 बार सेवन करने से दमा का रोग ठीक होता है।

6. घोडे़ की मिर्गी: नियमित रूप से घोड़े को 50 ग्राम कत्था खिलाने से घोड़े की मिर्गी ठीक होता है।

7. थकना: खैर की छाल के रस में हींग डालकर पीना चाहिए। इससे थकावट दूर हो जाती है।

8. मलेरिया का बुखार: मलेरिया के बुखार से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सफेद कत्था 10 ग्राम व मत्लसिंदूर 6 ग्राम को मिलाकर पीस लें और इसे नीम के रस में घोटकर उड़द के बराबर की गोलियां बना लें। इसके सेवन बुखार आने से एक घण्टे पहले रोगी को कराने से बुखार नहीं आता है। यह गोली बच्चे और गर्भवती स्त्रियों को नहीं देनी चाहिए।

9. भगन्दर: खैर की छाल और त्रिफले का काढ़ा बनाकर इसमें भैंस का घी और वायविडंग का चूर्ण मिलाकर भगन्दर से पीड़ित रोगी को लेना चाहिए।

10. दांत घिसना या किटकिटाना: कत्थे को बारीक पीसकर सरसों के तेल में मिला लें और इसे बच्चे के मसूढ़ों पर प्रतिदिन सुबह-शाम मलें। इससे बच्चा दांत घिसना बंद कर देता है।

11. प्रमेह: थोड़े से कत्था के अंकुर और थोड़ी सी जीरा पीसकर गाय के दूध में मिलाकर छान लें। इसमें चीनी मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से प्रमेह का रोग दूर होता है।

12. दांतों की बीमारी:

  • गले, मसूढे व दांतों के रोग में कत्था को गर्म पानी में घोलकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों के सभी रोग दूर होते हैं।
  • कत्थे को मंजन में मिलाकर दांतों व मसूढों पर प्रतिदिन सुबह-शाम मलने से दांत के सारे रोग दूर होते हैं।

13. दांतों में कीड़े लगना: कत्था को सरसों के तेल में घोलकर प्रतिदिन 2 से 3 बार मसूढ़ों पर मलने से दांत के कीड़े नष्ट होते हैं। इसके प्रयोग से मसूढ़ों से खून आना तथा मुंह से बदबू आना बंद होता है।

14. दांत या दाढ़ से खून आना: खैर के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांत या दाढ़ से खून आना बंद होता है। यह मुंह के छाले को भी ठीक करता है।

15. कांच निकलना (गुदाभ्रंश): कत्था को पीसकर चूर्ण बनाकर गर्म मोम व घी में मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को गुदाभ्रंश पर लगाने से कब्ज दूर होकर गुदाभ्रंश रोग ठीक होता है।

16. अम्लपित्त (खट्टी डकारें): कत्था 360 से 720 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती है।

17. मसूढ़ों से खून आना: कत्थे का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से मसूढ़ों से खून आना बंद होता है। कत्था के पेड़ की छाल या पत्तों से काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से भी मसूढ़ों के रोग दूर होते हैं।

18. मुंह के छाले:

  • कत्था मुंह में रखकर चूसने और लार बाहर टपकाने से छाले ठीके होते हैं।
  • सफेद कत्था 3 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 3 ग्राम, शीतलचीनी 3 ग्राम और नीलाथोथे का राख 1 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को मुंह के छाले पर लगाने से पुराने छाले भी ठीक होते हैं।
  • कत्था को पानी में घिसकर रुई से मुंह के छालों पर लगाने और राल बाहर टपकाने से छाले ठीक होते हैं। कत्था को दिन में 3-4 बार छालों पर लगाना चाहिए।

19. मुंह का रोग:

  • कत्था 10 ग्राम व कलमीशोरा 10 ग्राम को पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसे चूर्ण को दिन में 2 से 3 बार मुंह के घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है।
  • पपरिया कत्था, शीतलचीनी और छोटी इलायची इन सबको कूटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को होंठ व जीभ पर धीरे-धीरे मलने से जीभ के दाने ठीके होते हैं। इससे जीभ का फटना भी ठीक होता है।

20. दस्त:

  • कत्था को पकाकर प्रयोग करने से दस्त का आना बंद होता है। इसके प्रयोग से पाचनशक्ति ठीक होती है।
  • कत्था व बिल्वगिरी को समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार रोग समाप्त होता है।
  • 20 ग्राम खैर की छाल को लगभग 50 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बना लें और इसे शहद के साथ मिलाकर पीएं। इससे दस्त रोग ठीक होता है।
  • कत्था 360 से 720 मिलीग्राम की मात्रा में सेवन करने से दस्त में लाभ मिलता है।

21. मुंह में लार अधिक आना: कत्थे का फल, दाड़िमपुष्प एवं कचनार की छाल को मिलाकर काढ़ा बना लें और इस काढ़े से कुल्ला करें। इससे मुंह में लार का अधिक आना बंद होता है। इसके प्रयोग से गले का रोग भी दूर होता है।

22. बवासीर (अर्श):

  • सफेद कत्था, बड़ी सुपारी और नीलाथोथा बराबर मात्रा में लें। पहले सुपारी व नीलाथोथा को आग पर भून लें और सुपारी, नीलाथोथा व सफेद कत्था को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को मक्खन के साथ तांबे के बर्तन में मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेट को प्रतिदिन सुबह-शाम शौच के बाद 8 से 10 दिन तक मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
  • सफेद कत्था और हरताल वरकी को बारीक पीस लें और इस गाय के घी में मिलाकर मलहम बना लें। इस तैयार मलहम को प्रतिदिन शौच से आने के बाद मस्सों पर लगाने से मस्से सूखकर झड़ जाते हैं। इससे बवासीर की जलन व दर्द में आराम मिलता है।
  • खैर, मोम और अफीम को मिलाकर मस्सों पर लगाने से मस्से सूखकर गिर जाते हैं।
  • रीठा के छिलके को जलाकर प्राप्त राख को सफेद कत्थे के साथ पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में 20 ग्राम मक्खन या मलाई के साथ प्रतिदिन शाम को खाने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) में खून का गिरना रुक जाता है।

23. कान का बहना:

  • कान को अच्छी तरह से साफ कर लें और कत्थे को पानी में मिलाकर गुनगुना करके बूंद-बूंद करके कान में डालें। इससे कान से मवाद का बहना बंद होता है।
  • सफेद कत्थे का बारीक पाउडर गर्म पानी में मिलाकर और कान में पिचकारी देने से कान का बहना ठीक होता है।

24. कान का दर्द: सफेद कत्था को पीसकर गुनगुने पानी में मिलाकर कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है।

25. संग्रहणी (पेचिश): 3 से 6 ग्राम कत्था प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से पेचिश रोग ठीक होता है।

26. पित्त विकार: 10 ग्राम खैर के फूल और 3 ग्राम सोंठ को बारीक पीसकर गोली बना लें। इसमें से 1-1 गोली गाय के ताजे दूध में मिलाकर प्रतिदिन 3 बार सेवन करने से पित्त विकार दूर होता है।

27. भगन्दर: कत्थे का रस, वायविडंग, हरड़, बहेड़ा व आंवला 10-10 ग्राम तथा पीपल 20 ग्राम। इन सभी को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में शहद व मीठा तेल (धुला हुआ तिल का तेल) में मिलाकर चाटें। इससे भगन्दर रोग खत्म होता है और नाड़ी का घाव भी ठीक होता है।

28. पुराना घाव: पुराने घाव से पीड़ित रोगी को एलवा और कत्था को पानी में पीसकर घाव पर लेप करना चाहिए। इससे घाव जल्दी भरता है।

29. घाव:

  • सफेद कत्था को देशी घी में मिलाकर लगाने से घाव ठीक होता है।
  • कत्थे को पानी में मिलाकर हल्का गर्म करके घाव धोने और ऊपर से कत्थे के बारीक चूर्ण छिड़कने से घाव जल्दी ठीक होता है। इससे जख्म से खून भी निकलना बंद होता है।
  • कत्थे को पीसकर जख्म पर लगाने से भी खून का बहना बंद होता है।

30. स्तनों के जख्म या घाव: कत्थे और कपूर को मिलाकर स्तनों के घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है।

31. योनि का संकोचन: कत्था, हरड़, जायफल, नीम के पत्ते और सुपारी को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें और फिर इस चूर्ण को मूंग के रस में मिला लें। इस रस में कपड़े को भिगोकर सूखा लें और इस कपड़े को योनि में डालकर रखें। इससे योनि का पानी निकलना बंद होता है और योनि सिकुड़ जाती है।

32. योनि की जलन और खुजली: कत्था 5 ग्राम, विण्डग 5 ग्राम और हल्दी 5 ग्राम की मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर योनि पर लगाने से योनि में होने वाली खुजली व जलन शांत होती है।

33. उपदंश (सिफिलिस):

  • कत्था 5 ग्राम और 5 ग्राम घी को एक साथ मिलाकर लिंग पर मलने से उपदंश रोग ठीक होता है।
  • कत्थे की छाल 10 ग्राम और विजयसार की छाल 10 ग्राम को 500 मिलीलीटर पानी में डालकर काढ़ा बनाएं। जब काढ़ा 100 ग्राम की मात्रा में बचा रह जाए तो इसे उतार लें और इसमें 3 ग्राम त्रिफला का चूर्ण डालकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से उपदंश रोग दूर होता है।
  • कत्था, कपूर और सिन्दूर को मिलाकर मलहम बनाकर लिंग पर लगाने से उपदंश के दाने ठीक होते हैं।

34. सिर का फोड़ा:

  • सफेद कत्था, गेरू और माजूफल को पीसकर फोड़ों पर लगाने से सिर का फोड़ा ठीक होता है।
  • कत्था, सिन्दूर, कमिला और कपूर लगभग 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर घी में मिलाकर नीम की डण्डी से घोट लें और इसे फोड़े-फुन्सियां पर लगाएं। इससे फोड़े-फुन्सियां ठीक होती है।

35. बच्चों का रोग: कम सुनाई देने पर सफेद कत्था पीसकर कपड़े में छान लें और गर्म पानी में मिलाकर कान में पिचकारी दें। इसके बाद कान को धोकर साफ कर दें। इससे कम सुनाई देना ठीक होता है। अगर किसी जख्म या किसी अन्य कारणों से बहरापन हो या चेचक के कारण बहरापन हो तो इसके प्रयोग से आराम मिलता है।

36. प्रदर रोग:

  • 10 ग्राम सफेद कत्था, 10 ग्राम अनारदाना व 15 ग्राम मुलेठी को एक साथ पीस लें और यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करें। इससे प्रदर रोग ठीक होता है।
  • कत्थे के पत्ते और बांस के पत्ते को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और यह 6 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सेवन करें। इससे प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

कत्था के दुष्प्रभाव : Kattha ke Nuksan in Hindi

इसका अधिक इस्तेमाल पुरुषार्थ (पौरुष शक्ति) को नष्ट करता है ।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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