Last Updated on January 6, 2024 by admin
पाइल्स ,अर्श या बवासीर रोग (piles in hindi)
अर्श या बवासीर रोग में गुदा द्वार की त्रिवली की नसें फूलती और बड़ी हो जाती हैं। नसें मटर या मुनक्के के आकार की या उससे भी बड़े आकार की हो जाती हैं। यही बवासीर रोग है।
गुदाद्वार के अन्तर्वलन तथा बहिर्वलन (दीवारों) पर एक या एक से ज्यादा मस्से भी उत्पन्न हो जाते हैं। अन्तर्वलन की बवासीर ‘अन्तर्वलि बवासीर’ तथा बहिर्वलन की बवासीर ‘बहिर्वली बवासीर’ कहलाती है।
उपरोक्त दोनों प्रकार की बवासीर दो प्रकार की होती हैं
1. खूनी बवासीर 2. वादी बवासीर
खूनी बवासीर अन्तर्वलि में पाई जाती है। खूनी बवासीर से समय-समय पर खून गिरता रहता है जबकि वादी बवासीर में खून न गिरकर दर्द ज्यादा होता है। आइये जाने बवासीर क्यों हो जाता है ,piles kyu hota hai
बवासीर उत्पन्न होने के कारण (piles hone ke karan in hindi)
निम्न कारणों से बवासीर रोग हो जाता है –
- लगातार कब्ज़ी रहने से मल त्याग के समय जोर लगाना पड़ता है। इससे बवासीर हो जाती है।
- बार-बार जुलाब लेने से ।
- चटपटी मसालेदार चीजें ज्यादा खाने से
- मद्यपान करने से या शराब पीने से ।
- रात्रि को अधिक समय तक जागने से
- शारीरिक परिश्रम न करने से
- घी, मलाई और तेल की चीजें अधिक खाने से
- बहुत कठोर या बहुत मुलायम आसन पर बैठ लगातार काम करने से
- यकृत या लिवर की खराबी से भी बवासीर रोग हो जाता है। आइये जाने बवासीर के शुरुआती लक्षण
बवासीर के लक्षण (piles hone ke lakshan in hindi)
जब मनुष्य को बवासीर रोग होता है तो उसके निम्न लक्षण दिखाई देने लगते हैं –
- मलद्वार पर कटकर होना
- कब्जी की शिकायत रहना
- बार-बार दस्त जाने की इच्छा होना
- गुदा में जलन होना
- गुदाद्वार पर खुजली होना
- मन्दाग्नि होना ।
- कांटा चुभने जैसी पीड़ा गुदाद्वार पर होना।
खूनी बवासीर का आयुर्वेदिक उपचार और देसी नुस्खे : khuni bawasir ka ramban ilaj
बवासीर रोग से मुक्ति पाने के लिए आयुर्वेद में अनेक औषधियों का सेवन किया जाता है।
बवासीर की कुछ प्रमुख औषधियाँ तथा इन्हें बनाने के तरीके निम्नलिखित हैं
1. कांकायन गुटिका –
इस गुटिका को बनाने के लिए समुचित भाग में निम्न चीजों की जरूरत पड़ती है –
- पाँच भाग = हरीतकी के फल का छिलका
- एक भाग = काली मिर्च
- एक भाग = सफेद जीरा
- एक भाग = पिप्पली
- दो भाग = जिप्पलीमूल
- चार भाग = चित्रक
- पाँच भाग = शुष्ठी
- आठ भाग = शुद्ध भिलावे के फूल
- सोलह भाग = जमीकंद
- दो भाग = यवक्षार
भिलावा फल को छोड़कर उपरोक्त सभी चीजों को भिलावा फल तथा गुड़ में मिलावें। इस सामग्री को कूटकर कपड़े में छान लें। अब दुगनी मात्रा में गुड़ लेकर 1-1 ग्राम की गोलियाँ बना लेनी चाहिये। यही ‘कांकायन गुटिका’ है। यह अर्श या बवासीर रोग के मस्सों को दूर करती है।
( और पढ़े – बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार)
2. अर्श कुठार –
अर्शकुठार औषधि निम्न प्रकार से बनाई जाती है –
- 12 ग्राम = शुद्ध पारद
- 25 ग्राम = शुद्ध गन्धक
- 35 ग्राम = लौह भस्म
- 35 ग्राम = अभ्रक भस्म
- 50 ग्राम = बेलगिरी
- 50 ग्राम = चित्रकमूल की छाल
- 50 ग्राम = काली मिर्च
- 50 ग्राम =हरड
- 50 ग्राम = दन्तीमूल
- 50 ग्राम = फूला हुआ सोहागा
- 50 ग्राम = जनाखार
- 50 ग्राम = सेंधा नमक
- 350 ग्राम = गौमूत्र
- 350 ग्राम = थूहर का दूध
उपरोक्त सभी चीजों को एक पात्र में लेकर उसे धीमी आँच पर पकाना चाहिए। इसके बाद इन मिश्रण की मटर दाने के बराबर गोली बना लेनी चाहिए। यही “अर्शकुठार” औषधि है। बवासीर के रोग को एक या दो गोली सुबह और शाम पानी के साथ लेनी चाहिए। इससे खूनी और वादी बवासीर ठीक होती है।
( और पढ़े –खूनी बवासीर को जड़ से खत्म करेंगे यह देशी 6 उपाय)
3. अभयारिष्ट –
अभयारिष्ट औषधि बनाने के लिए निम्न चीजें ले जिसकी विधि इस प्रकार है –
- 6 किलो – उत्तम बड़ी हरड़
- 6 किलो – मुनक्का
- 600 ग्राम – वायलिंडग
- 600 ग्राम – महुआ के फूल
उपरोक्त चारों चीजों को 61 किलो जल में डालकर पकावें। जब 15 किलो पानी शेष रहे तब उसे छान लें तथा उसमें निम्न चीजें सवा सौ , सवा सौ ग्राम के अंदाज में लेकर कूटकर मिला दें-
- 125 ग्राम – गोखरू
- 125 ग्राम – निशोध 1
- 25 ग्राम – धनिया
- 125 ग्राम – धाय के फूल
- 125 ग्राम इन्द्रायण की जड़
- 125 ग्राम – चव्य
- 125 ग्राम – सॉफ
- 125 ग्राम – सौंठ
- 125 ग्राम – दन्ती मूल
- 125 ग्राम – मोचरस
- 6 किलोग्राम – गुड़
इसके पश्चात मिट्टी के बर्तन में इनको रखा रहने दें। एक महीने तक रखा रहने से अभयारिष्ट तैयार हो जाता है। इसके बाद 15 से 30 मि.ली. सम मात्रा में जल मिलाकर रोगी को पीने दें।
अभयारिष्ट सभी तरह की बवासीर को ठीक करता है, पेट का दर्द मिटाता है तथा मलमूत्र की कब्जियत को नष्ट करके अग्नि प्रदीप्त करता है।
4. सूरण मोदक- बवासीर का अचूक इलाज –
बवासीर नाशक इस मोदक को निम्न चीजें मिलाकर बनाया जाता है –
- 200 ग्राम – जमीकंद
- 100 ग्राम – चित्रक
- 50 ग्राम – सोंठ
- 25 ग्राम – काली मिर्च
- 50 ग्राम – शुद्ध घ्भुलावा
- 50 ग्राम – पीपला मूल
- 50 ग्राम – वायविडंग
- 50 ग्राम – तालीस पत्र
- 50 ग्राम – पीपल
- 150 ग्राम – चिक्रला
- 200 ग्राम – विधारा
- 100 ग्राम – काली मूसली
- 25 ग्राम – दालचीनी
- 25 ग्राम – छोटी इलायची के बीज
उपरोक्त सभी दवाओं को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है। इस चूर्ण को सवा दो किलो पुराने गुड़ में मिलाकर 12-12 ग्राम की गोलियां बना ली जाती हैं। इसे ही ‘सूरण मोदक’ औषधि कहा जाता
सूरण मोदक खूनी तथा बादी दोनों प्रकार की बवासीर को नष्ट करके भूख को बढ़ाता है।
5. बाहुशाल गुड़ औषधि –
इस औषधि को बनाने के लिए निम्न चीजों को समुचित मात्रा में लें –
- 25 ग्राम – इन्द्रायण-मूल
- 25 ग्राम – नागरमोथा
- 25 ग्राम – जमालगोटे की जड़
- 25 ग्राम – हरे
- 25 ग्राम – निशोध
- 25 ग्राम – कपूर कचरी
- 25 ग्राम – वायविडंग
- 25 ग्राम – गोखरू
- 25 ग्राम – चित्रक
- 25 ग्राम – सोंठ
- 25 ग्राम – तेजबल
- 325 ग्राम – जमीकंद या सूरण
- 200 ग्राम – विधारा
- 200 ग्राम – भिलावा
उपरोक्त सभी चीजों को कूट-पीसकर तीन किलो पानी में डालकर पकाना चाहिए। चौथाई पानी शेष रहने पर उसे छान लेना चाहिए तथा उसमें 3 किलो पुराना गुड़ डालकर लड्डुओं जैसी चाशनी बना लेनी चाहिए। इसके बाद निम्न दवाओं का महीन चूर्ण इसमें मिलावे
- 50 ग्राम – चीता की छाल
- 50 ग्राम – निशोथ
- 50 ग्राम – दन्तीमूल
- 50 ग्राम – तेजबन
- 150 ग्राम – कालीमिर्च
- 150 ग्राम – सोंठ
- 150 ग्राम – पीपल
- 150 ग्राम – छोटी इलायची
- 150 ग्राम – आमला
- 150 ग्राम – दालचीनी
जब उपरोक्त सभी दवाओं का मिश्रण ठंडा हो जावे तो उसमें 950 ग्राम शहद मिला देवें। यही ‘बाहुशाल गुड़’ औषधि है।
इस औषधि का सेवन 12 ग्राम सुबह, 12 ग्राम शाम को बकरी के दूध या जल के साथ करें।
इस औषधि से निम्न तकलीफें दूर होती हैं –
- बवासीर
- पेट की गैस
- आमवात
- जुकाम
- संग्रहणी
- वातोदर ।
- पाण्डुरोग
- प्रमेह रोग
6. अर्शोघ्नीबटी –
यह औषधि सूखी और खूनी, दोनों प्रकार की बवासीर को ठीक करती है। इसे निम्न प्रकार से बनाया जाता है
- एक भाग – नीम की निबौली की मींगी
- एक भाग – बकायन के फल की मींगी
- एक भाग – खूनखराबा या दम दमउलअखबेन करहबा समाई या तृणकान्तमणि का अर्क
- एक भाग – गुलाब या चन्दनादि अर्क में तैयार की गयी पिट्टी
- तीन भाग – शुद्ध रसौत
निबौंली और बकायन फलों की मींगी को सर्वप्रथम खूब महीन पीस लेना चाहिए। इसके बाद उसमें अन्य उपरोक्त चीजें मिलाकर जल में घोंट लेना चाहिए। 350 मि.ग्रा. की गोलियां बनाकर रख लें। 2-2 गोली दिन में 3-4 बार ठंडे पानी के साथ लेने से बवासीर में लाभ पहुँचता है।
7. नागकेशर योग-पुरानी बवासीर का इलाज –
इस औषधि को बनाने के लिए असली नागकेशर और खून खराबा या दमउलअखबेन को बराबर मात्रा में लेना चाहिए। इन दोनों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लें तथा कपड़े में छान लें। 2 ग्राम औषधि को दिन में 3-4 बार मीठे अनार के रस (अथवा दूबस्वरस या हरे धनिये की पत्ती के रस या उदुम्बसार के 3 ग्राम भाग को 60 ग्राम जल में घोलकर इसके साथ) के साथ देने से बवासीर का खून गिरना रुक जाता है।नागकेशर गट्टिफेरि वर्ग का वृक्ष है। इसे मेसुआ फेरिया कहा जाता है।
8. उपरोक्त दवाओं के अलावा आयुर्वेद में और भी कई औषधियाँ बवासीर रोग की रोकथाम के लिए तैयार की जाती हैं।
उदाहरण के तौर पर एक अचूक औषधि निम्न चीजों को मिलाकर बनाई जाती है –
- दो तोला – नीम की निबौली
- दो तोला – रसौत
- दो तोला – खूनखराबा
- दो तोला – शुद्ध गुग्गुल
- दो तोला – बड़ी हरड़ का छिलका
- दो तोला – मुनक्का
- 12 ग्राम – गुलाब के फूल और सनाय
- 15 ग्राम – पीपल
उपरोक्त सभी चीजों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें गुग्गल मिलाकर त्रिफला काढा मिलावें तथाबेर के बराबर गोलियां बना लें। प्रतिदिन सुबह शाम दो दो या 4-4 गोलियां जल के साथ खाएं।
कब्ज की दशा में गर्म पानी के साथ गोलियां खायें। बवासीर रोग में इससे फायदा पहुँचता है।
9. निम्न पाँच चीजों को समान मात्रा में लें
- नीम के फलों की गिरी (निबौली गिरी)
- खूनखराबा
- मुनक्का
- गेरू
- कहरवा
उपरोक्त दवाओं को जल में मिलाकर चने के बराबर गोलियाँ बना लें।
सुबह शाम 2-2 या 4-4 गोली खावें। इससे खूनी बवासीर ठीक होता है।
10. 1.5 ग्राम नागकेशर को 12 ग्राम ताजा घी या मक्खन के साथ खाने से खूनी बवासीर ठीक होता है।
11. 1.5 ग्राम धुले हुए काले तिल को 12 ग्राम ताजा घी या मक्खन के साथ खाने से बवासीर से खून गिरना बंद हो जाता है।
12.बवासीर का घरेलू उपाय- नीम की निबौलियों के 10-15 बीज दिन में 2-3 बार जल के साथ खाने से भी बवासीर से खून गिरना रुक जाता है।
13. रीठा के छिलके को जलाकर भस्म बना लें तथा एक ग्राम भस्म को शहद के साथ चाटने से बवासीर खून गिरना बंद होता है।
14. मोती की सीप को सर्वप्रथम कूट-पीसकर महीन चूर्ण बना लिया जाता है फिर उसमें गुलाब जल डालकर घोटा जाता है। इस औषधि की 250 मि.ग्रा. खुराक मक्खन में मिलाकर खाने से बवासीर से खून गिरना रुक जाता है।
15. निम्न पाँच चीजों को कूट-पीसकर महीन चूर्ण बनाइए12 ग्राम = काली मिर्च 25 ग्राम = पीपल 35 ग्राम = सोंठ 50 ग्राम = चित्रक 60 ग्राम = सूरण
उपरोक्त चीजों के चूर्ण को 200 ग्राम गुड़ में मिलावें तथा 12-12 ग्राम की गोलियाँ बना लें। दूध या जल के साथ लेने से बवासीर में लाभ मिलता है।
16. जमीकन्द या सुरण का घी में भुरता बना लें। इसे दही के साथ सेवन करने से बवासीर रोग में राहत मिलती है।
17. निम्न चार चीजों को बराबर-बराबर भागों में लें
भिलावा ,त्रिफला , निशोध,चीता या चित्रकमूल
इन चारों चीजों का मिश्रण बनायें तथा दुगनी मात्रा में नमक मिला दें। इस दवा को नारियल के खप्पर में भरकर कण्डों की आग में फेंकें।
इस दवा को मठा या छाछ के साथ लेने से बवासीर रोग में लाभ प्राप्त होता है।
18. पचास ग्राम गेरू को शृंगराज रस में तीन भावना देकर टिकिया
बना लेनी चाहिए। इसके बाद टिकिया को कण्डे पर रखकर फेंके। इससे भस्म बनेगी। 500 मि.ग्रा. भस्म को यदि शहद के साथ चाटा जाए तो खून का गिरना बंद हो जाता है।
19. अगर बवासीर में जलन हो, दर्द हो या खुजली हो तो भांग को जल के संग पीसना चाहिए तथा गोल टिकिया बनाकर तथा कुछ गर्म करके गुदा पर बाँधने से बवासीर में लाभ मिलता है।
20. बवासीर रोग में सुहावे के लावा को घी में मिाकर लेप करना चाहिए।
21. इस रोग में गुदा पर गेंदा के पत्तों की लुगदी बाँधना भी आरामदायक सिद्ध होता है।
22. निम्न चार चीजों का काढ़ा बनाकर पीने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है ।
लाल चन्दन ,सोंठ, चिरायता ,जवासा
क्या खायें और क्या न खायें ?
बवासीर रोग होने पर निम्न चीजों पर खास ध्यान देवें –
- खानपान का ध्यान रखें।
- बवासीर कटवाने पर भी यदि रोगी का आहार-विहार ठीक नहीं होता तो उसे फिर से यह रोग हो जाता है।
- जहाँ तक हो अपना पेट साफ रखें।
- जुलाब न लें तो अच्छा है।
- मठा या छाछ में लवणभास्कर चूर्ण मिलाकर पियें। इससे पेट की कब्ज दूर होती है।
- जमीकंद, कथुआ, चौलाई, मूली, कच्चे पपीते की सब्जी खावें।
- रात्रि को सोते समय 3 ग्राम इसबगोल की भूसी दूध के साथ लें।
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