घुटने का जाम हो जाना (नी स्टिफनेस) इसके कारण, जांच और उपचार

Last Updated on November 26, 2021 by admin

नी स्टिफनेस क्या है ? (Knee Stiffness in Hindi)

घुटने के टूटने अथवा उनमें संक्रमण या तपेदिक होने पर आम तौर पर लंबे समय के लिए प्लास्टर चढ़ाने पर हड्डियाँ तो जुड़ जाती हैं, लेकिन कई मरीजों में घुटने की गतिशीलता खत्म हो जाती है। प्लास्टर उतरने के बाद पैर के व्यायाम नहीं करने पर घुटने जाम हो जाते हैं । इस स्थिति को ‘नी स्टिफनेस’ कहा जाता है। हाल में कराए गए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत की कुल आबादी का 25 फीसदी हिस्सा घुटने की तकलीफ से पीड़ित है।

नी स्टिफनेस के लक्षण (Knee Stiffness Symptoms in Hindi)

नी स्टिफनेस के क्या लक्षण होते हैं?

‘नी स्टिफनेस’ एक ऐसी स्थिति है, जिसमें घुटने बिलकुल नहीं मुड़ते हैं और पैर बिलकुल सीधे रहते हैं। कुछ मरीजों को घुटने मोड़ने की कोशिश करने और घुटने हिलाने-डुलाने पर दर्द होता है। इसके कारण रोगी न तो चल पाता है और न ही बैठ पाता है।

नी स्टिफनेस के कारण (Knee Stiffness Causes in Hindi)

घुटने जाम (नी स्टिफनेस) क्यों होते है ?

  1. घुटनों में संक्रमण – ‘नी स्टिफनेस’ आम तौर पर घुटनों में संक्रमण या घाव होने, उनमें चोट लगने या फ्रैक्चर हो जाने के कारण होता है। घुटनों में संक्रमण युवा, बुजुर्ग, बच्चे किसी को भी हो सकता है। संक्रमण के बाद घुटने में सूजन और दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। मरीज को बुखार भी रह सकता है। घुटने में संक्रमण के बाद रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। इसका इलाज यथासंभव शीघ्र करा लेना चाहिए। इलाज नहीं कराने पर घुटने में मवाद बन जाता है और मवाद घुटने के आखिरी हिस्से की हड्डी को ढकने वाली कार्टिलेज को पूरी तरह से घुला देता है। जब कार्टिलेज नष्ट हो जाती है तो हड्डी का आखिरी सिरा बाहर निकल आता है, जिससे घुटने के जोड़ के हिलने-डुलने पर घुटने में अत्यधिक दर्द होता है और मरीज को चलने में तकलीफ होती है।
  2. घुटने में चोट – कई बार घुटने में चोट लग जाने पर जोड़ अलग हो जाते हैं या हड्डियाँ टूट जाती हैं । ऐसी स्थिति में चिकित्सक तीन से छह महीने के लिए पैर में प्लास्टर या पट्टियाँ चढ़ा देते हैं। इससे मांसपेशियाँ और लिगामेंट्स संकुचित हो जाते हैं। अकसर देखा गया है कि मरीज प्लास्टर हटने के बाद घुटने की एक्सरसाइज नहीं करते हैं, क्योंकि एक्सरसाइज करने से घुटने में दर्द होता है, जबकि घुटने को स्थिर रखने से आराम मिलता है, लेकिन इससे घुटने के तंतु शिथिल पड़ जाते हैं, मज्जा तितर-बितर हो जाती है और ‘नी स्टिफनेस’ होने की आशंका हो जाती है।
  3. आर्थराइटि – ‘नी स्टिफनेस’ का एक कारण आर्थराइटिस भी है। आर्थराइटिस के मरीज अपने घुटने को आम तौर पर सीधा ही रखते हैं, क्योंकि घुटने को मोड़ने में दर्द होता है । कुछ सप्ताह या कुछ महीने के बाद उनका घुटना इसी स्थिति में फिक्स हो जाता है और मुड़ता नहीं है।

नी स्टिफनेस की जाँच (Diagnosis of Knee Stiffness in Hindi)

नी स्टिफनेस निदान का तरीके निम्नलिखित हैं –

घुटने के जोड़ में संक्रमण का सबसे सामान्य कारण तपेदिक है। इसका पता मॉन्टुक्स जाँच, छाती का एक्स-रे, ब्लड टेस्ट आदि से चलता है। मॉन्टुक्स जाँच के तहत त्वचा के अंदर एक सूई दी जाती है और 72 घंटे के बाद इसकी प्रतिक्रिया का निरीक्षण किया जाता है। यदि सूई लगाने के 20 मिलीमीटर के क्षेत्र में त्वचा के लाल होने जैसी कोई प्रतिक्रिया होती है तो समझा जाता है कि यह व्यक्ति तपेदिक से ग्रस्त है। जोड़ में संक्रमण का इलाज इसके कारण पर निर्भर करता है । इसके लिए आम तौर पर एंटीबायोटिक दवा दी जाती।

नी स्टिफनेस का उपचार (Knee Stiffness Treatment in Hindi)

नी स्टिफनेस का उपचार कैसे किया जाता हैं ?

‘नी स्टिफनेस’ के इलाज के लिए कई बार सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। यह सर्जरी रोगी की उम्र, हड्डी की स्थिति, लिगामेंट्स की मजबूती आदि पर निर्भर करती है। इसके लिए पेशियों को बदलना पड़ता है। कई बार तो घुटने के कार्टिलेज और ऊतकों को बदलना पड़ता है। यह एक कठिन सर्जरी है और इसमें देर नहीं करनी चाहिए, क्योंकि सर्जरी में देर करने पर उतने अच्छे परिणाम नहीं मिलते हैं।

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