कान में पानी भर जाना रोग के लक्षण ,कारण और इलाज

Last Updated on November 29, 2019 by admin

कान में पानी भर जाना रोग क्या है ?

यूं तो स्नान करते समय कभी कभी कान में पानी चला जाता है पर वह मामला अलग है क्योंकि वह कोई बीमारी नहीं होती। बोलचाल की भाषा में जिस रोग को ‘ कान में पानी भर जाना ’ कहा जाता है उसे मेडिकल भाषा में ‘ओटाइटिस मीडिया विथ इफ्यू जन (Otitis media with effusion) और संक्षेप में OME कहते हैं। पर्दे के पीछे, बीच के कान में पानी जैसा या म्यूकस जैसा द्रव पदार्थ भर जाता है, इसे ही बोलचाल की भाषा में ‘कान में पानी भर जाना’ कहते हैं।

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कान में पानी भर जाना रोग के कारण क्या हैं और यह बीमारी होती कैसे है?

यह बीमारी खास करके संक्रमण (Infection) होने से, यूस्टेशियन नली, जो बीच के कान को, नाक के पीछे स्थित नेजोफेरिंक्स (Nasophyrynx) से जोड़ती है, की कार्य-प्रणाली में विसंगति पैदा होने से होती है।

बीच के कान का संक्रमण, 95% मरीजों में, श्वसन-तन्त्र के विषाणु या जीवाणु के संक्रमण के साथ-साथ या परिणाम स्वरूप होता है।

बीच के कान के संक्रमण, मुख्य रूप से नेज़ोफेरिंक्स (श्वसन-तन्त्र का हिस्सा) के संक्रमण से सम्बन्धित होते हैं। बीच के कान के एक्यूट या अचानक संक्रमण का इलाज करने के बावजूद अक्सर कुछ दिनों तक या कुछ सप्ताह तक कान में पर्दे के पीछे पानी जैसा पदार्थ भरा रहता है जो धीरे धीरे खुद ही ठीक हो जाता है।

यदि ऐसे एक्यूट संक्रमण का ठीक से इलाज न किया जाए तो यह संक्रमण बीच के कान को प्रभावित कर सकता है जिससे कान का म्यूकोसिलियरी सिस्टम गड़बड़ा सकता है। यूस्टेशियन नली के कार्य में विसंगति हो जाने से, बीच के कान का वह तरल स्राव, जो सामान्य रूप से गले में आता रहता है, ठीक से आ नहीं पाता, साथ ही दबाव की वजह से बीच के कान में स्राव अधिक हो जाता है।

उपर्युक्त सभी कारणों से, बीच के कान में पानी या म्यूकस (मवाद) जैसा तरल स्राव इकट्ठा हो जाता है। नेज़ोफेरिंक्स में स्थित एडिनाइड टांसिल्स की बीमारी से ग्रस्त बच्चों में यह बीमारी अक्सर देखी जाती है। एडिनाइड टांसिल्स के बढ़ जाने से, बीच के कान में बार-बार संक्रमण होता है जिससे यूस्टेशियन नली के कार्य में अवरोध होता है और विसंगति पैदा होती है। नाक की एलर्जी और नाक की टेढ़ी हड्डी की वजह से बार-बार सायनस में संक्रमण होने से भी यह बीमारी होती है। क्लेफ्ट पेलेट, डाउन सिण्ड्रोम एवं नाक-सायनस के सिलिया (Cilia) की बीमारी आदि कारणों से यह बीमारी होती है।

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कान में पानी भर जाना रोग प्रायः किस उम्र में होता है ?

यह बीमारी यूं तो किसी भी उम्र में हो सकती है फिर भी छोटे बच्चों को ज्यादा होती है।

कान में पानी भर जाना रोग के लक्षण क्या होते हैं ?

कान में पानी भर जाना बीमारी का मुख्य लक्षण बहरापन होना है। बच्चों में बहरापन होने का प्रमुख कारण भी यह बीमारी होना होता है। कम उम्र के बच्चों में बहरेपन से बच्चे की स्कूली तरक्की प्रभावित हो सकती है, उसका व्यवहार प्रभावित हो सकता है, बच्चा सुस्त, चिड़चिड़ा और नर्वस हो सकता है। बच्चा ध्यान कम देता है, टीवी तेज़ आवाज़ में चलाता है आदि आदि ।

यदि ज्यादा समय तक बच्चा बहरेपन से ग्रस्त रहे तो उसकी सीखने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है, उसकी वाणी यानी बोलने का ढंग प्रभावित हो सकता है। छोटे बच्चे को यदि बहरेपन की शिकायत हो तो इसका पता माता-पिता या स्कूल टीचर की शिकायतों से चलता है। स्कूल में ई.एन.टी. स्पेशलिस्ट डॉक्टर द्वारा किये गये बच्चों के ‘स्वास्थ्य परीक्षण के दौरान भी बहरापन होने की जानकारी मिल जाती है तत्पश्चात टिम्पनोमेट्री (Tympanometry) एवं आडियोग्राम परीक्षण के बाद तो इसके बारे में निश्चय ही हो जाता है।

बड़े बच्चों और अधिक उम्र वाले मरीजों में कम सुनने की शिकायत आमतौर से पाई जाती है। ऐसा लगता है जैसे कान पर ढक्कन लग गया हो, मैल भर गया हो या पानी भर गया हो। कान में भारीपन लगता है. हलका-हलका दर्द होता है या खजली जैसा लगता है। इस प्रकार की शिकायतें इस बीमारी के मरीज़ किया करते हैं। बहरेपन के कम ज्यादा होने या चक्कर आने की शिकायत भी किसी-किसी को होती है। कभी कभी कान दर्द के साथ, कान से पानी या मवाद आने की तकलीफ भी होती देखी गई है। बहरेपन के साथ, नाक से श्वास लेने में तकलीफ होना, नाक से बोलना आदि शिकायतें भी पाई जाती हैं जिसका कारण साइनस और एडिनाइड टांसिल्स का संक्रमण या नाक की एलर्जी होना होता है।

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कान में पानी भर जाना रोग की जांच कैसे की जाती है?

कान, नाक, गला विशेषज्ञ (E.N.T. Specialist) सूक्ष्मदर्शी उपकरण से पर्दे की जांच करता है, आडियोग्राम और टिम्पनोमेट्री परीक्षण किया जाता है, एडिनाइट टांसिल्स के लिए, नाक और साइनस की जांच के लिए, नेज़ोफेरिंक्स आदि का एक्सरे करके जांच की जाती है।

कान में पानी भर जाना रोग का इलाज क्या है ?

इसकी चिकित्सा ई.एन.टी. विशेषज्ञ जांच करने के बाद ही बताया जा सकता है।

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