दिव्य वनस्पति कुलंजन के अनोखे लाभ – Kulanjan ke Fayde in Hindi

Last Updated on March 25, 2021 by admin

कुलिंजन या कुलंजन क्या है ? (What is Kulanjan in Hindi)

प्राकृतिक वर्गीकरण के अनुसार यह औषधि आर्द्रक कुल (जिंजिबरेसी) की है। भावप्रकाश निघण्टु के हरीतक्यादि वर्ग में इसका वर्णन किया गया है। आचार्य ने कण्ठ्य द्रव्यों के वर्णन में इसे प्राथमिकता दी है।

कण्ठ के स्वर के लिए हितकर द्रव्य को कण्ठ्य कहते हैं। इन्हें स्वर्य भी कहा जाता है। ये द्रव्य स्वर को सुधारते हैं। किसी रोग के कारण विकृत स्वर को भी सुधारकर स्वाभाविक अवस्था में लाने में ये समर्थ होते हैं।

चीनी लोग इसे काओन लिअंग-किअंग कहते हैं। चीन से यह यूनान और अरब देशों को गया, वहां से मुस्लिम शासकों के साथ यह भारत में आया है। इसके गुणों पर इन शब्दों में राजवैद्य भट्ट श्रीकृष्णराम जी ने प्रकाश डालकर बड़ा अनुग्रह किया है-

  • विकिरति कर्फ – मल को फेफड़ो से बाहर फैंक देता है।
  • कासह्वासं – खांसी को कम करने वाला है।
  • समारभते रुचिम् – अन्न के प्रति लुप्त हुई श्रद्धा को पुनः आरम्भ कर देता है।
  • स्फुटयतिहृदातड़्कं – हृदय में उत्पन्न होने वाले कोलेस्टरोल के कारण बने अवरोध को जो ऐंजाइना पैक्टोरिस-हृच्छूल का कारण होता है दूर कर हृद्वाहिनियों को शुद्ध कर देता है।

कुलंजन के अर्क में नीबू का रस और मधु मिला थोड़ा-सा काली मिर्च का चूर्ण डाल सेवन करने से भारी स्वर वाला व्यक्ति भी मधुरकण्ठी हो जाता है।

कुलंजन का विभिन्न भाषाओं में नाम (Name of Kulanjan in Different Languages)

Kulanjan in –

  • संस्कृत (Sanskrit) – मलयवचा (मलयेशिया में होने के कारण), स्थूल ग्रन्थि, सुगंधा, कुलंजन।
  • हिन्दी (Hindi) – कुलंजन।
  • गुजराती (Gujarati) – कुलिंजन।
  • मराठी (Marathi) – कोष्ठ कोलिंजन।
  • बंगाली (Bangali) – कुलींजन।
  • तामिल (Tamil) – गेरारात्तई।
  • तेलगु (Telugu) – पेद्ददुम्प, एण्ट्कम्।
  • अरबी (Arbi) – खुलंजान।
  • फ़ारसी (Farsi) – खुसेदारु।
  • अंग्रेजी (English) – ग्रेटर गैंलगल (Greater galangal) जावा गलंगन (Java Galangal)।
  • लैटिन (Latin) – ऐल्पिनिया गलंगा (Alpinia galanga) ।
  • राजस्थानी (Rajasthani) – कुलींजन।
  • पंजाबी (Punjabi) – कुलंजन।

कुलंजन का पौधा कहां पाया या उगाया जाता है ? :

यह वनस्पति मलयप्रदेश (मलयेशिया) एवं इण्डोनेशिया की मूल वनस्पति है। अब यह मुख्यतया पूर्वीय हिमालय में और दक्षिण-पश्चिम भारत में पाई जाती है। इसकी खेती भी की जाती है। खेती किये हुये मूल की मोटाई अधिक होती है।

कुलंजन का पौधा कैसा होता है :

  • कुलंजन का पौधा – इसका क्षुप 6-7 फुट ऊंचा होता है। ये क्षुप आम्र हरिद्रा (आमा हल्दी) के समान होते हैं। इसका काण्ड पत्रमय एवं वचा के समान होता है।
  • कुलंजन के पत्ते – पत्र 1-2 फुट लम्बे, 4-6 इंच चौड़े एवं नोंकदार होते हैं। इनके ऊपर का पृष्ठ भाग हरा तथा स्निग्ध होता है। नीचे का भाग हल्के हरे रंग का व रोमश होता है।
  • कुलंजन के फूल – पुष्पमंजरी 1/2 से 1 फुट लम्बी, सघन, रोमश, बहुविभक्त होती है। जिसमें छोटे, हरिताभ श्वेत एवं वक्र पुष्प होते हैं।
  • कुलंजन के फल – कुलंजन के फल नीबू के समान, गोलाकार, 1/2 इंच लम्बा, बीच में संकरा और रक्तवर्ण होता है। इसके फल को अंग्रेजी में गलंगा कार्डेमम (Galanga Cardamom) कहते हैं।
  • कुलंजन के बीज – कुलंजन के बीज प्रत्येक फल में 3 से 6 हलके भूरे रङ्ग के चपटे, त्रिकोणाकार और सुगन्धित होते हैं।

कुलंजन पर पुष्प ग्रीष्म ऋतु में लगते हैं। इसका मूल बहुवर्षायु, आलू के समान कन्दमय और सुगन्धित होता है। उस मूल को काटकर सुखाकर छोटे-छोटे, टुकड़े कर बाजार में बेचे जाते हैं। ये प्रायः 1-2 इंच लम्बे और अंगुष्ट के बराबर मोटे होते हैं, जो ऊपर से लालवर्ण तथा भीतर पीतवर्ण होते हैं। स्वयं जात मूल की अपेक्षा खेती किये हुये मूल की मोटाई अधिक होती है तथा ये वर्ण में बाहर से नारङ्गी वर्ण के भूरापन लिये व भीतर से पीताभ श्वेत होते हैं।

कुलंजन के प्रकार :

चीन में इसकी जाति विशेष पाई जाती है जिसे चीनी कुलंजन कहा जाता है। इसका लैटिन नाम एल्पिनिया अनेफिसिनेरम किंवा लेसर गैलंगल है। इसका चीनी नाम काओनलियन कियङ्ग है। इसके टुकड़े 3-10 से.मी. लम्बे 1-2 से.मी. चौड़े, एक तरफ मोटे दूसरी ओर कुछ पतले पाये जातें । इसे बंगला में सुगन्धबच कहते हैं।

अपमिश्रण- उक्त कुलंजन में चीनी कुलंजन के टुकड़े मिला दिये जाते हैं। इसके अतिरिक्त हीन श्रेणी की सोंठ या घुड़वच भी मिला देते हैं। अत: देखकर लेना चाहिए।

कुलंजन का उपयोगी भाग (Beneficial Part of Kulanjan Plant in Hindi)

  • प्रयोज्य अङ्ग – कन्द (भौमिक काण्ड)।
  • वीर्यकालावधि – 1-2 वर्ष तक।

कुलंजन के औषधीय गुण (Kulanjan ke Gun in Hindi)

  • रस – कटु।
  • गुण – लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष।
  • वीर्य – उष्ण।
  • विपाक – कटू
  • दोषकर्म – कफवात शामक।
  • प्रतिनिधि – इसका प्रतिनिधि वच या दाल-चीनी

सेवन की मात्रा :

1 से 3 ग्राम।

रासायनिक संघठन :

  • कुलंजन में केम्फे राइड (Campheride), गेलेंगिन (Galangin) और एलपिनिन (Alpinin) नामक तीन विभिन्न तत्व पाये जाते हैं।
  • कुलंजन के ताजे भौमिक काण्ड (तने) से एक पीताभ, सुगन्धित उड़नशील तैल 0.04 प्रतिशत प्राप्त होता है, जिसमें 48 प्रतिशत मेंथिल सिनेमेट (Methylcannamate) 20-30 प्रतिशत, सिनिओल (Cineole), कर्पूर तथा डी-पाइनिन (DPinene) पाये जाते हैं।
  • कुलंजन पत्र में भी एक उड़नशील तैल पाया जाता है।

कुलंजन का औषधीय उपयोग (Medicinal Uses of Kulanjan in Hindi)

आयुर्वेदिक मतानुसार कुलंजन के गुण और उपयोग –

  • कुलंजन सूक्ष्म श्वासनलिकाओं का प्रसरण करने वाला प्रभावी द्रव्य है। इसके कारण ये सूक्ष्म श्वासनलिकायें दीर्घकाल तक प्रसारित स्थिति में रहती हैं। साथ ही यह श्वास के आवेग को भी नियंत्रित करने की क्षमता रखता है। विशेषतः श्वास में जो एक विशिष्ट प्रकार की घुटन होती है वह भी इसके उपयोग से दूर होती है।
  • कुलंजन अपने कफशामक गुण से कास-श्वास में उपयोगी सिद्ध हुआ है। शुष्क कास (सूखी खांसी) में मणिमालाकार ने कासह्रासहर क्वाथ कहा है जिसका कुलंजन भी घटक है।
  • कुलंजन स्वरयंत्र की क्रियाशक्ति को बढ़ाने के कारण स्वर भेद, गद्गद, मिन्मिन आदि स्वर विकारों में भी यह अतीव लाभप्रद है ।
  • कुलंजन कटु रस एवं स्रोत: शोधक होने से सभी प्रकार के स्वरभेदों में लाभप्रद है।
  • कुलंजन वातकफ शामक होने से इनमें लाभप्रद है।
  • यह बाजीकरण होने से ध्वजभङ्ग में भी लाभ पहुचाता है। इसके अतिरिक्त बाह्यप्रयोग में लेखन एवं उत्तेजन का कार्य भी संपादित करता है।
  • यह संक्रमण को रोकने में भी श्रेष्ठ है। ए. के. भार्गव तथा पी.एस. चौहान ने इसके सुगन्धित तैल की जीवाणु नाशक क्रिया का सन् 1968 में अध्ययन किया।

यूनानी मतानुसार कुलंजन के गुण और उपयोग –

  • कुलंजन तीव्र गन्धयुक्त जायकेदार है।
  • यह अग्निवर्धक, कामोद्दीपक, मूत्रल, कफनि:सारक और आध्मान को दूर करता है।
  • कुलंजन सिरदर्द, कटिशूल, गले के दर्द, मूत्ररोग, सीने के रोग और क्षय रोग की ग्रन्थियों में वह अतीव लाभप्रद है।
  • हकीम लोग इसे स्नायुमण्डल की कमजोरी, मन्दाग्नि और नपुंसकता की श्रेष्ठ औषधि मानते हैं।

रोगोपचार में कुलंजन के फायदे (Benefits of Kulanjan in Hindi)

1). स्वरभेद – कुलंजन, मुलहठी, ब्राह्मी, पिप्पली, वच, अकरकरा और सेंधानमक समान भाग लेकर चूर्ण कर जिह्वा पर रगड़ें।

2). खल्ली – कुलंजन, सैन्धव को तैल में मिलाकर उष्ण कर मर्दन करें।

3). मुँहासे – कुलंजन सिद्ध तैल मुख पर लगावें। ( और पढ़े कील-मुंहासे ठीक करने के अचूक आयुर्वेदिक नुस्खे)

4). विकलांग – कुलंजन को दूध में पीसकर लगावें। इसके चूर्ण को तैल में मिलाकर भी लगा सकते हैं।

5). छीकें अधिक आना – कुलंजन को पोटली में बांधकर सूंघे।

6). दन्त शूल – कुलंजन चूर्ण का मंजन करें। ( और पढ़े दाँत दर्द के 51 चमत्कारी घरेलू उपचार )

7). शीतगात्र (शरीर ठण्डा पड़ना) – अवसाद या स्वेदाधिस्य के कारण यदि शरीर ठण्डा हो जाय तो इसके चूर्ण को त्वचा पर रगड़ें।

8). उद्धेष्टन – विसूचिका जन्य उद्वेष्टनों में कुलंजन, सोंठ, सैन्धव चूर्ण को सरसों के तेल में मिलाकर उष्ण कर मर्दन करें।

9). आमवात – कुलंजन, सोंठ, सैन्धव चूर्ण को एरण्ड तैल में मिलाकर मर्दन करें। ( और पढ़े आमवात के 15 घरेलू उपचार )

10). सरदर्द (शिरःशूल) – कुलंजन चूर्ण को नस्य रूप से उपयोग में लावें।

11). स्वर भेद –

  • कुलंजन 1 ग्राम, नौसादर 250 मि.ग्राम. लेकर नागरबेल के पान में रखकर चूसने से स्वरभंग दूर होता है।
  • कुलंजन, चिरायता, कुटकी, अकरकरा, कचूर एवं पिप्पली के क्वाथ में सरसों का तैल और बिजौरे नीबू का रस मिलाकर पीने से जिह्वा के सब दोष दूर होते है।
  • कुलंजन, हरिद्रा, पिप्पली, मुलैठी, सैन्धव को समभाग लेकर चूर्ण बनाकर यह चूर्ण 4-5 ग्राम लेकर इसमें मधु 5 ग्राम और सैन्धव 10 ग्राम मिलाकर सेवन करें।
  • कुलंजन, मरिच, मुलैठी क्रमशः 2, 1, 3, ग्राम तथा इन सबके बराबर गेहूं का चापड़ लेकर क्वाध बनाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें।
  • कुलंजन, वच, कालीमिर्च और मिश्री का समभाग चूर्ण बनाकर सेवन करें।
  • कुलंजन और मुलैठी का समभाग चूर्ण बनाकर दिन में 5-7 बार चूसें।

( और पढ़े – गले की खराश ,दर्द व सूजन दूर करने के उपाय )

12). मिन्मिनत्व (सानुनासिकवाक्यता) – कुलंजन और पुष्करमूल के चूर्ण को दशमूल कवाथ के साथ सेवन करें।

13). गद्गदत्व (अव्यक्त वाक्यता) – कुलंजन, वचा, अश्वगन्धा, पिप्पली के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।

14). कष्टवाक्यता (हकलाहट) – कुलंजन, ब्राह्मी, बचा, शुखपुष्पी, कूठ के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।

15). खांसी –

  • कुलंजन, मुलहठी, बड़ी कटहली, दालचीनी तथा अडूसे के पत्तों का क्वाथ बनाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें।
  • कुलंजन, अडूसा और जूफा का क्वाथ भी खांसी में लाभप्रद है।
  • कुलंजन चूर्ण को मधु एवं अदरख के स्वरस में मिलाकर चाटें।

( और पढ़े – खांसी दूर करने के देसी नुस्खे )

16). नपुंसकता –

  • कुलंजन के टुकड़े को मुख में रखकर चूसते रहें।
  • कुलंजन को दूध में पकाकर सेवन करें।
  • कुलंजन, शतावरी, असगन्ध, एला और वंशलोचन के चूर्ण को दूध के साथ सेवन करें।

17). मुख की दुर्गन्ध – कुलजन का टुकड़ा मुख में रखकर चूसते रहने से मुख की दुर्गन्ध मिटती है।

18). अजीर्ण – कुलंजन, सैन्धव, हींग, धनिया, जीरा और किसमिस को पीसकर नीबू स्वरस मिलाकर सेवन करें। इसके उपयोग से उदरशूल भी मिटता है।

19). उदरशूल – कुलंजन, अजवाइन, कालानमक का चूर्ण उष्ण जल से सेवन करें।

20). मन्दाग्नि – कुलंजन, सोंठ और सैन्धत चूर्ण सेवन करें।

21). आध्मान – कुलंजन चूर्ण को गुड़ के साथ पुन: – पुन: सेवन करें।

22). बहुमूत्र –

  • कुलंजन क्वाथ सेवन करें।
  • कुलंजन चूर्ण और सोंठ चूर्ण को मधु में मिलाकर सेवन करें।

23). कफ ज्वर – कुलंजन क्वाथ सेवन करें।

24). मूत्राघात – कुलंजन चूर्ण को नारियल पानी के साथ सेवन करें।

25). उल्टी (छर्दि) – कुलंजन चूर्ण को नीबू स्वरस और मिश्री के साथ सेवन करें।

कुलंजन से निर्मित आयुर्वेदिक दवा (कल्प) :

कुलंजनादि क्वाथ –

कुलंजन – 2 ग्राम, कालीमिर्च – 1 ग्राम, छोटी इलायची – 1 ग्राम, मुलहठी – 3 ग्राम, गेहूँ का चोकर 22 ग्राम को कूटकर 375 मि.ली. पानी में डालकर पकावें। जब चौथाई शेष रह जाय तब छानकर उसमें थोड़ी चीनी मिलाकर सुबह-शाम पियें।
इससे स्वरभेद में शीघ्र लाभ होता है। – चिकित्सादर्श भाग 2

कुलंजनादि वटी –

कुलंजन 60 ग्राम, कूठ, बच, अकरकरा, लौंग, सोंठ, कालीमिर्च, पीपल, छोटी इलायची के दाने, जावित्री, तेजपात, कपूर, नागरमोथा, कत्था और बहेड़ा 12-12 ग्राम, केशर 3 ग्राम और कस्तूरी 1 ग्राम लेवें।
सबको मिला कूट नागरवेल के पान के रस में 6 घण्टे खरल कर 125-125 मि.ग्रा. की गोलियां बना लेवें।

1-1 गोली मुख में रखकर या नागरबेल के पान में रखकर रस चूसते रहें। 10 गोलियों तक दिन भर चूसें।
यह वटी स्वरभेद को दूर करती है। इसके अतिरिक्त यह प्रतिश्याय, कास और श्वास में भी हितकारी है। -र. त. सा. द्वि. भाग

कुलजनादि चूर्ण –

कुलंजन, अकरकरा, बच, ब्राह्मी, मीठा कूठ तथा कालीमिर्च इन्हें समभाग लेकर पीस छान लें।
मात्रा 1-3 ग्राम तक इस चूर्ण की प्रत्येक मात्रा को प्रात: सायं शहद के साथ चाटने से स्वरभंग का शीघ्र ही शमन होता है। इस चूर्ण के उपयोग से स्मरण शक्ति भी बढ़ती है। –आयु. चि. सार

कुलंजनाद्यवलेह –

कुलंजन 1 किलो लेकर 8 किलो जल में मिलाकर अर्धावशेष क्वाथ करें।
फिर क्वाथ को छानकर पुनः चूल्हे पर चढ़ा गाढ़ा करें, उसमें 1 किलो गुड़ डालकर पाक करें। फिर कायफल, पुष्करमूल, भारंगी, सोंठ, पीपल, चव्य, चित्रकमूल, पीपलामूल,कालीमिर्च, हरड़,बहेड़ा, आंवला, बायविडङ्ग, धनियां, जीरा, कालाजीरा, कटकरंज के भुने फल का मगज, अपामार्ग के बीज, अडूसा के पान इन 19 द्रव्यों का कपड़छन चूर्ण 12-12 ग्राम और शहद 1 किलो मिलावें। सबको मिलाकर अवलेह बना लेवें। पाक शीतल होने पर शहद मिलाना चाहिए।
मात्रा – 6 ग्राम से 12 ग्राम तक दिन में 3 बार।

उपयोग – यह अवलेह सब प्रकार की कफज खांसी, स्वरभेद, हिचकी (हिक्का), कण्ठ विकार, प्रतिश्याय (सर्दी जुखाम) आदि में लाभप्रद है। विशेषत: यह आवाज सुधारने में उत्तम है। क्षयरोग में स्वरभेद पर भी दिया जाता है। इसके सेवन से जठराग्नि सुधरती है। -र.त.सा. द्वि. खं.

कुलंजन के दुष्प्रभाव (Kulanjan ke Nuksan in Hindi)

  • कुलंजन के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।
  • कुलंजन के अधिक मात्रा में सेवन से मूत्रावरोध जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है।

दोषों को दूर करने के लिए : इसके दोषों को दूर करने के लिए कतीरा गोंद, चन्दन, सौंफ या वंशलोचन का उपयोग लाभप्रद है ।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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