ईमानदारी हो तो ऐसी हो (लघु प्रेरक प्रसंग)

सन् १९७८ की बात है, मोदीनगर वस्त्रोद्योग के वीविंग विभाग के फिटर- श्रीकुमुद कुमार बनर्जी ने सहजरूप में अचानक प्राप्त पौने तीन लाख रुपयों को उनके वास्तविक मालिक को सौंपकर असाधारण ईमानदारी का परिचय दिया। हुआ यह कि रक्षाबन्धन पर दिल्ली के एक कपड़ा व्यापारी का मुनीम मालिकके व्यावसायिक कार्यवश तथा अपनी बहनसे राखी बंधवाने के लिये मोदीनगर गया हुआ था। जब वह अपनी बहनसे राखी बँधवाकर अपने मालिक के पास दिल्ली वापस लौटा तो वह पौने तीन लाख रुपयों की थैली जो उसके पास थी, अपने साथ में न पाकर स्तब्ध रह गया।

मालिक को जब थैली गायब होने की बात बतायी गयी तो उसे थैली खोने का तनिक भी विश्वास न हुआ। मालिकने इसे मुनीम की धोखेबाजी से पौने तीन लाख रुपये हजम कर जाने की बात समझी। व्यापारी और मुनीम जब दोनों रुपयों की खोज में दौड़े हुए मोदीनगर आये तो श्रीकुमुदकुमार बनर्जीने खोये हुए नोटों के सही नम्बर बताने पर और यह विश्वास हो जानेपर कि वास्तवमें पौने तीन लाख रुपये इन्हींके हैं, रुपयों की वह बृहद्राशि उन्हें ज्यों-की-त्यों लौटा दी।
बनर्जी महाशय को उक्त धनराशि उनके मिल-एरिया में ही किसी एक स्थानपर चमड़े के एक बैगमें पड़ी हुई मिली थी।

ज्ञात हुआ है कि दिल्लीके उक्त व्यापारीने श्रीबनर्जीकी इस ईमानदारीसे प्रसन्न और प्रभावित होकर उन्हें दस हजार रुपये पुरस्कारस्वरूप देने की पेशकश की तो उन्होंने यह कहा कि-
‘जो प्रसन्नता और आनन्द मुझे दस हजार रुपयेका पुरस्कार लेकर प्राप्त न होगा, वह मुझे इस समय आपके रुपये ज्यों-के त्यों मिल जाने पर हो रहा है। आप मुझे उस दुर्लभ आनन्द तथा संतोष से क्यों विरत करना चाहते हैं ? मैं आपके इस सद्भाव के लिये आभारी हूँ। मुझे क्षमा करें।’

ईमानदारी की इस सत्य घटना से जनसाधारण को शिक्षा लेनी चाहिये। इस बहुमूल्य मानव-जीवन को बेईमानी से बचाकर ईमानदार बनाना चाहिये। हमें यह न भूलना चाहिये कि चाहे कोई कितना ही भजन-पूजन, योग-यज्ञ, जप-तप करे और चाहे जितना पुण्यदान, तीर्थाटन आदि करे, किंतु जबतक हम अपना जीवन ईमानदारी का नहीं बनायेंगे तबतक हमारा कल्याण तीनों काल में भी नहीं हो सकता।

पूज्यपाद गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी महाराज की यह चौपाई तथा दोहा आत्मसुधार के लिये मननीय एवं सदा स्मरण रखनेयोग्य है कि-

जननी सम जानहिं परनारी।
धनु पराव बिष ते बिष भारी॥

दोहा-
परधन को मिट्टी गिने पर त्रिय मातु समान।
इतने में हरि ना मिलें तुलसीदास जमान॥

वस्तुतः प्रात:स्मरणीय संत की इस लोककल्याणकारी वाणी को ईमानदारीके साथ जीवनमें उतार लेनेमें ही हमारा तथा सम्पूर्ण देश का भी कल्याण है।

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