लशुनादि वटी क्या है ? (What is Lashunadi Vati in Hindi)
लशुनादि वटी टेबलेट के रूप में उपलब्ध एक आयुर्वेदिक दवा है। यह आयुर्वेदिक औषधि स्वभाव से गर्म तथा शरीर में पित्त को बढ़ाने वाली है। यह शरीर में वात तथा कफ को कम करने के साथ अफारे, अपच, बदहजमी और गैस के दर्द में लाभप्रद है। इस औषधि में लहसुन, जीरा, हींग आदि का योग हैं जो पाचन में सहयोगी हैं।
घटक और उनकी मात्रा :
- छिलका निकाला हुआ लहसुन,
- काला जीरा,
- श्वेत जीरा,
- शुद्ध गंधक,
- सैन्धव लवण,
- सोंठ,
- काली मिर्च,
- पीपल,
- हींग,
सभी सम भाग।
भावनार्थ : निम्बू स्वरस आवश्यकतानुसार
प्रमुख घटकों के विशेष गुण :
- लहसुन : तीक्ष्ण, सर, बल्य, बृष्य (वीर्य बल वर्धक), उदर शूल नाशक, विबन्ध नाशक, शूलघ्न, रसायन। ( और पढ़े – छोटे लहसुन के 13 बड़े फायदे )
- जीरा : रोचक, दीपन, वात कफ शामक, दुर्गन्ध नाशक, शूलन । ( और पढ़े – जीरा के 83 बेमिसाल स्वास्थ्य लाभ )
- गंधक : दीपन, पाचक, रक्तशोधक, जन्तुघ्न, लेखन।
- सैन्धव नमक : दीपन, पाचन, रोचक, मलवातानुलोमक। (और पढ़े – सेंधा नमक के उपयोग और फायदे )
- त्रिकटू : दीपन, पाचन, वातकफ शामक, उष्ण। (और पढ़े – त्रिकटु चूर्ण के फायदे )
- हिंग : दीपक, पाचक, रजःप्रर्वतक, शूलप्रशामक, अनुलोमक। (और पढ़े – हिंग के औषधीय लाभ )
- निम्बू : रोचक, पाचक दीपक, अग्निवर्धक। (और पढ़े – स्वास्थ्य के लिए वरदान है नींबू )
लशुनादि वटी बनाने की विधि :
सर्व प्रथम लहशुन की कलियों को इतना खरल करें कि वह एक समान हो जाए तत्पश्चात सभी औषधियाँ और निम्बू स्वरस मिलाकर खरल करें । वटिका बनाने योग्य हो जाने पर 250 मि.ग्रा. की वटिकाएं बनवा कर भलीभाँति सुखाकर सुरक्षित कर लें।
लशुनादि वटी की खुराक (Dosage of Lashunadi Vati)
एक से दो गोली, रोग की उग्रता के अनुसार दिन में दो बार से चार छ: बार तक।
अनुपान : गुनगुना पानी
लशुनादि वटी के फायदे और उपयोग (Benefits & Uses of Lashunadi Vati in Hindi)
लशुनादि वटी के कुछ स्वास्थ्य लाभ –
1). हैजा (विशूचिका) में लशुनादि वटी का उपयोग लाभदायक
अतिसार, वमन (छर्दि), पेट दर्द, वमन की इच्छा सामान्यत: मिथ्याहार (पर्युषित, संक्रमित, मलीन, गुरु, अभिष्यन्दि, पदार्थ) के कारण होता है और विशेषता जीवाणु संक्रमित अथवा विषाक्त भोजन के सेवन से भी उपरोक्त लक्षण होते हैं। ऐसी अवस्था में लशुनादि वटी की दो वटिकाएँ किञ्चित पीस कर गुनगुने पानी के साथ पिलाने से रोग नियंत्रित होने लगता है। रोग की उग्रता के अनुसार दो-दो वटिकाएं आधे घण्टे से छ: छः घण्टे के अन्तराल से दें।
प्याज स्वरस, आदरक स्वरस, पोदीने के पत्तों का स्वरस, और निम्बु स्वरस प्रत्येक 10 मि.लि. चीनी दो चम्मच (10 ग्राम) मिलाकर अनुपान के रूप में देने से तत्काल लाभ होता है।
दो वटिकाएं थोडे स्वरस से खिलाकर बचे हुए स्वरस को चम्मच चम्मच पिलाने से सभी लक्षण शान्त हो जाते हैं।
2). अजीर्ण (बदहज़मी) में लशुनादि वटी के इस्तेमाल से फायदा
भुक्तान्न का पाचन न होने पर कच्चे फीके उद्गार, आमाशय एवं आन्त्र में भारीपन, लालानावाधिक्य, उदर में आटोप (पेट फूलना), मलमूत्र का थोड़ा-थोड़ा आर्वतन, क्षुधाहीनता इत्यादि लक्षणों में लशुनादिवटी दो वटिकाएं चार-चार घण्टे के अन्तराल से देने से और उपवास (लंघन) करवाने से एक ही दिन में उपरोक्त लक्षण शान्त हो जाते हैं।
अग्नि दीप्त होकर शरीर में हल्कापन (लाघव) आने लगता है, क्षुधा लगने लगती है। पाँच दिन तक लघु उष्ण सुपाच्य भोजन और प्रत्येक भोजन के पूर्व दो वटिकाएँ उष्ण जल से सेवन करवाने से रोग निर्मूल हो जाता है।
3). अरुचि दूर करने में लशुनादि वटी करता है मदद
अरुचि अनेक दैहिक एवं मानसिक रोगों का लक्षण है। अतः अरुचि की चिकित्सा वास्तव में मूल रोग की चिकित्सा से ही होती है। सामान्यता भुक्तान्न का समयक् पाक न होने से, कफ दोष की वृद्धि से भी भोजन में रुचि नहीं रहती, इस अवस्था में लशुनादि वटी निम्बू पानी के साथ देने से भोजन में रुचि जागृत हो जाती है। यदि कारण अम्लपित्त हो तो निम्बू पानी में थोड़ी मिश्री मिलाकर देने से पित्त का शमन होकर रुचि जागृत हो जाती है। भोजन में रुचि हो जाने पर भी प्रत्येक भोजन के 15 मिण्ट पूर्व दो वटिकाएं निम्बू पानी के साथ देने से रोग निर्मूल हो जाता है।
4). अग्निमान्द्य में लाभकारी है लशुनादि वटी का प्रयोग
उदर गौरव, उत्कलेश, खट्टी डकार, दुर्गन्धित अपान वायु का निर्माण और निष्कासन, मल मूत्र का अल्प विसर्जन, आलस्य इत्यादि लक्षण मिलने पर लशुनादि वटी दो वटिकाएं प्रत्येक भोजन से पूर्व छाछ से देने से दो दिन में ही लाभ दृष्टिगोचर होने लगता है। पूर्ण लाभ के लिए तीन सप्ताह तक औषधि सेवन करवाएँ ।
5). अतिसार मिटाए लशुनादि वटी का उपयोग
अतिसार को यहाँ लक्षण रूप में न लेकर रोग रूप में लें क्योंकि अतिसार कई एक गम्भीर रोगों का लक्षण भी हो सकता है और उसकी वास्तविक चिकित्सा मूल रोग की चिकित्सा ही होती है। रोग रूप अतिसार का मुख्य कारण अग्निमान्द्य ही होता है और सफल चिकित्सा होती है अग्नि संदीपन और अग्नि सन्दीपन के लिए लशुनादि वटी एक प्रभावी औषधि है, इसके सेवन में अतिसार के साम निराम विचार की भी आवश्यकता नहीं होती, लशुनादि वटी की दो वटिकाएँ चार-चार घण्टे के अन्तराल से गुनगुने पानी, छाछ अथवा अधिक उग्र होने पर अदरक, पोदीना और निम्बू के स्वरसों को मिलाकर देने से एक ही दिन में बिना किसी स्तम्भन औषधि के अतिसार नियन्त्रित हो जाता है यदि रोगी को आहार न देकर केवल मांड (भात का पानी) पर ही रखा जाए तो दो-तीन दिन में अतिसार निर्मूल हो जाता है।
6). वातोदर (पेट में वायु भर जाना) में लशुनादि वटी के सेवन से लाभ
भोजन के पश्चात उदर में भारीपन अथवा वायु भर जाना, ठेपन करने पर डमडम की ध्वनि सुनाई देना ऐसी परिस्थिति में लशुनादि वटी की दो वटिकाएं गुनगुने पानी के साथ देने से वायु का निसरण होकर वातोदर में लाभ होता है। औषधि प्रत्येक भोजन के आधा घण्टा बाद दें और लाभ हो जाने पर भी कम-से कम तीन सप्ताह तक अवश्य सेवन करवाएँ।
आयुर्वेद ग्रंथ में लशुनादि वटी के बारे में उल्लेख (Lashunadi Vati in Ayurveda Book)
लशुनजीरक गन्धक सैन्धवं।
त्रिकटुरामठ चूर्णमिदं समम्॥
सपदि निम्बूरसेन विषूचिकां।
हरति भो रतिभोगविचक्षणे॥
–वैद्यजीवन (चतुर्थविलास 13 )
लशुनादि वटी के दुष्प्रभाव और सावधानीयाँ (Lashunadi Vati Side Effects in Hindi)
यद्यपि लशुनादि वटी पूर्णरूपेन निरापद (सुरक्षित) औषधि है फिर भी इसके सेवन से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरुर करें । इसके सेवन से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती। यह युवा वृद्ध सभी को सेवन करवाई जा सकती है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
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