Last Updated on May 21, 2024 by admin
लीची का सामान्य परिचय : Litchi in Hindi
लीची का मूल उत्पत्ति स्थान चीन माना गया है। चीन से यह फल हिन्द चीन तथा कालान्तर में यह भारत आया। सूत्रों से ऐसा पता चलता है कि भारत में सर्व-प्रथम इसका उत्पादन बिहार के पटना और मुजफ्फरपुर जिलों में हुआ। यहां के अलावा यह असम, बंगाल और आंध्र प्रदेश में भी होता है। वैसे तो यह सर्वत्र उपलब्ध है और बहुतायत से समस्त भारत में पाया जाता है। यह रस भरा फल है, जिसे लोग बहुत चाव खाते हैं।
भारतवर्ष में मुजफ्फरपुर की लीची केवल यहीं नहीं, बल्कि समस्त विश्व में अपने गुणों के कारण प्रसिद्ध है। इसका उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसे बाग-बगीचों में बहुतायत से बोय जाता है। इसका व्यावसायिक रुप में भी प्रयोग हो रहा है। इसको सुखाकर डिब्बों में बंद करके इसकी बिक्री की जाती है। वैसे तो इसकी कई जातियां पाई जाती है, लेकिन मोटे तौर पर इसके दो भेद क्रमशः कठिया और लोगिया पाये जाते है। इसमें यह अंतर होता है कि कठिया के बीज पड़े होते हैं तथा इसके फल में मूदा कम होता है, वहीं पर लोंगिया लीची के बीज छोटे होते हैं तथा इसके फलों में गूदा अधिक होता है। संस्कृत में इसे एलची, हिन्दी तथा अंग्रेजी में इसको लीची के ही नाम से पुकारा जाता है।
लीची का पेड़ कैसा होता है ? :
यह वृक्ष आम और जामुन की ही तरह वर्ष भर हरा-भरा रहने वाला छोटी जाति का वृक्ष है। इसकी ऊंचाई 30 से 40 फीट होती है। इसके पत्ते पक्षवत् 2-1 पत्रक युक्त होते हैं। इसके फूल छोटे होते हैं, किन्तु हरिताभ या पीताभ अन्त्य मंजरियों में पाये जाते हैं। इसके फल गुच्छों में गोलाकार/अंडाकार होते हैं, जिन पर रक्ताभ ग्रन्थिल भंगुर छिलका होता है। इसके पतले छिलके को उतारने पर भीतर से नीली झांई लिए हुए सफेद फल गूदा निकलता है, जो कि स्वाद में बहुत मीठा एवं स्वादिष्ट होता है।
लीची में आर्द्रता 84 प्रतिशत होती है। इसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, लौह, एसकोर्बिक एसिड आदि पाये जाते हैं। इसमें विटामिन ‘बी’ कम्पलेक्स भी पाया जाता है।
लीची के औषधीय गुण : Litchi ke Gun in Hindi
लीची केवल स्वाद के लिए ही खाये जाने वाला फल नहीं है, बल्कि इसमें कई तरह के औषधिय गुण विद्यमान होते हैं
- नीची का फल की तासीर गरम होती है।
- यह खाने में मधुर तथा दस्तावर होती है।
- लीची में यह विशेषता होती है कि यह भारी होता है, अतः देर से पचता है।
- अरुचि वाले रोगियों के लिए यह वरदान का काम करता है, इसके खाने से यह भोजन में रुचि उत्पन्न करता है। इसका ज्यादा प्रयोग कफ एवं पित्त दोनों को बढ़ाता है। जिन लोगों को बार-बार प्यास लगती है, ऐसे लोगों को लीची का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
- जो व्यक्ति शारीरिक रुप से कमजोर होते हैं, उन्हें भी लीची का प्रयोग करना श्रेष्ठ रहता है, क्योंकि यह फल पौष्टिक होता है। इसमें सभी तरह के विटामिन्स एवं खनिज लवण पाये जाते हैं। यह फल यकृत के लिए लाभदायक है, इसके नियमित सेवन से यकृत की। प्राकृतिक कार्य क्षमता बनी रहती है, यह बलवान बनता है। तथा इसके रोगों को रोकने की इसमें अद्भूत शक्ति होती है।
- यह फल मस्तिष्क एवं हृदय को बल प्रदान करता है।
- शरीर के लिए यह फल उत्तम है, स्वास्थ्यवर्धक है।
- यह पाचनतंत्र के दोषों को दूर कर उसे सक्रिय बनाता है साथ ही पाचक रसों की प्राकृतिक उत्पत्ति में भी सहायक होता है।
- इस फल के रोजाना खाने वालों को अच्छी भूख लगती है।
- इसके सेवन से सीने एवं पेट की जलन शांत होती है।
- खून को साफ करके, जिन व्यक्तियों के होम्योग्लोबिन कम होता है, उसे भी यह बढ़ाता है।
- बुखार के रोगियों को लीची खाना लाभप्रद माना गया है।
- लम्बी बीमारी से उठे व्यक्ति की शारीरिक दुर्बलता दूर करने हेतु रोगी को कई दिनों तक नियमित रुप से लीची खानी प्रारम्भ कर देनी चाहिए।
- इस फल को खाने से कब्ज़ी दूर होती है, जिससे पेट साफ हो जाता है।
- शरीर के किसी भी अंग में अगर जलन है तो वहां पर इसके बीजों की गिरी को पीस कर लेप करने से जलन शांत होती है।
- इसकी बीज की गिरी को गर्मकर लेप करने से सूजन और स्नायुगत पीड़ा शांत होती है। लीची के सामान्य एवं गुणकारी प्रयोग
लीची के अन्य फायदे और उपयोग : Litchi ke Fayde in Hindi
1. अरुचि में : जिन लोगों को खाने में रुचि नहीं होती है, उन्हें अपने भोजन में लीची को शामिल कर लेना चाहिए। 5 से 8 तक लीची रोजाना खाने से अरुचि रोग शांत होता है। ( और पढ़े – अरुचि दूर कर भूख बढ़ाने के 32 अचूक उपाय)
2. हृदय की तेज धड़कन में : अगर हृदय की तेज धड़कन रहती है, तो इसके रस को निकालकर 100 मि.ली. रोजाना लेना श्रेयस्कर रहता है।
3. जलोदर रोग में : जलोदर रोग में लीची खाने से पेशाब खुलकर आता है, जिससे इस रोग में लाभ होता है। इसके लिए फल तथा इसके रस का इच्छानुसार प्रयोग किया जा सकता है।
4. यकृत और प्लीहा रोग में : यकृत और प्लीहा संबंधी सामान्य रोगों में इसका प्रयोग इस प्रकार करावे
लीची का रस 50 मि.ली. ,आलू-बुखारा का रस 50 मि.ली.एक मात्रा ।
दोनों के रस को मिलाकर एक कर लें। बताई गई मात्रा अनुसार सुबह-शाम इसके रसों का सेवन करायें। रोजाना यह प्रयोग करने से यकृत, प्लीहा के तो रोग ठीक होगे ही, बल्कि रोगी में खून भी बढ़ेगा।
5. स्मरण शक्ति को बढ़ाने में : जिन रोगियों के कही हुई बात याद नहीं रहती है, बार-बार भूलने की आदत हो, ऐसे व्यक्ति को लीची का रस 50 मि.ली. (एक बार में) दिन में तीन बार तक पिलाना चाहिए। ( और पढ़े – दिमाग तेज करने के 15 सबसे शक्तिशाली उपाय )
6. बार-बार प्यास लगने में : जिनको बार-बार प्यास लगती है ऐसे रोगीयों को दिन में तीन-चार बार 5 से 7 फल खाने चाहिए। ( और पढ़े – अधिक प्यास लगने के 37 घरेलु उपचार)
7. शरीर में जलन लगने पर : शरीर के किसी भी अंग में जलन को इसका रस दूर करता है। इसके रस के सेवन से हाथ-पैरों की जलन, तलवों की जलन, आंख में जलन, छाती की जलन दूर होती है।
8. कब्जी में : यह मलावरोध को दूर करता है तथा पेट को साफ करता है। अत: इसके फलों के साथ-साथ पपीता का फल भी खाना चाहिए।
9. पाचन-शक्ति बढ़ाने में : जिन रोगियों की पाचन-शक्ति कमजोर होती है, भूख नहीं लगती है, भोजन किया हुआ हजम नहीं होता है, उनको इसका प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से करना चाहिए
लीची का रस 50 मि.ली. ,खीरा का रस 50 मि.ली. ,पपीता का रस 50 मि.ली.
एक मात्रा तीनों रसों को मिलाकर एक मात्रा बना लें। ऐसी एक-एक मात्रा दिन में तीन बार प्रयुक्त करें।
10. बुखार में : बुखार की अवस्था में इसके 2-3 फलों को खाने से बुखार में लाभ होता है।
11. शारीरिक कमजोरी में : किसी भी कारण से शारीरिक कमजोरी में लीची के रस 100 मि.ली. को दो बार करके पीलावें।
12. सूजन में : शरीर के किसी अंग में अगर सूजन है तो वहां पर इसके बीजों की गिरी को पीसकर लेप करने से यह विकार दूर होते हैं।
13. रक्त-विकारों में : रक्त विकारों में भी यह अच्छा काम करती है, अत: इसके रस की 75 मि.ली. की मात्रा देना श्रेयस्कर रहता है। इसके साथ-साथ इसके फल का भी प्रयोग किया जा सकता है।
14. शरीर की पुष्टि के लिए : जिन व्यक्तियों की शरीर की पुष्टि नहीं होती है, शरीर गिरा-गिरा सा रहता है, भोजन में अरुचि हो, खाये-पीये का रस नहीं बनता हो, कृश शरीर हो उन्हें इसका प्रयोग निम्न प्रकार से करायें
लीची का रस 50 मि.ली. ,पपीता का रस 20 मि.ली., खीरा का रस 20 मि.ली. ,ग्वारपाठे का रस 20 मि.ली.एक मात्रा ।
सभी रसों को मिलाकर एक मात्रा बना ऐसी एक-एक मात्रा को दिन में तीनबार तक प्रयुक्त करें। इसमे सभी प्रकार के विटामिन तथा खनिज लवण होते हैं, जो कि शरीर की पुष्टि करते हैं।
15. यकृत रोग : लीची जल्दी पच जाता है। यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाने वाली तथा यकृत रोगों में लाभकारी है।
16. प्यास : लीची गर्मियों के तपन व प्यास को शान्त करती है।
17. पित्त बढ़ना : लीची खाने से पित्त की अधिकता कम होती है।
18. कब्ज : लीची का नियमित सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
19. बवासीर : बवासीर के रोगियों के लिए लीची का सेवन करना लाभकारी होता है।
20. हृदय की दुर्बलता :
- लीची का सेवन करने से हृदय की तेज धड़कन में लाभ होता है।
- गर्मी के मौसम में आधा कप लीची का रस रोज पीने से हृदय को काफी बल मिलता है।
21. याददास्त कमजोर होना : लीची, नारियल और पिस्ता खाने से दिमाग की कमजोरी दूर हो जाती है।
22. गले के रोग : लीची के फल को खाने से गले की जलन समाप्त होती है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।
lichi ke baare me bahoot hi achhi jaankare diya hai aapane thanks