महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर आसान होमियोपैथिक उपाय

Last Updated on March 5, 2023 by admin

रक्ताल्पता (अनेमिया) :

आमतौर पर शरीर में लोह की मात्रा की कमी के कारण रक्ताल्पता के लक्षण देखे जा सकते हैं, जो कुछ इस प्रकार होते हैं। जैसे –

  • कमजोरी महसूस करना,
  • पीलापन एवं शरीर में क्षमता में कमी।
  • गर्भावस्था व माहवारी की प्रक्रिया के समय अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव हो जाता है।

ऐसा होने पर चिकित्सक लोहयुक्त गोलियों के सेवन का परामर्श देते हैं। परंतु इनसे पेट की आँतों में दिक्कत हो सकती हैं इसलिए सौम्य व हल्की पद्धतियों का उपयोग करना चाहिए। ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जिसमें लोह की प्रचुर मात्रा हो। जैविक खाद्य पदार्थों को भी अपनाकर देखना चाहिए जो कि आज कल बाजारों में आसानी से उपलब्ध हैं।

उपचार –

डॉक्टर की सलाह से ‘फेरम फॉस 6 x’ (बायोकेमिकल) होमियोपैथिक औषध का रोजाना इस्तेमाल किया जा सकता है।

( और पढ़े – रोगों के अनुसार होम्योपैथिक दवाइयों के नाम )

सिस्टाईटिस :

ज्यादातर महिलाओं में मूत्राशय के संक्रमण के कारण मूत्र त्याग करते समय जलन की अनुभूति होती है। इस स्थिति में कॅनबेरी जूस (करौंदे का जूस) एवं सोडियम बायकॉर्बनेट का सेवन उपयोगी साबित होता है।

उपचार –

होमियोपैथिक उपचार जैसे “कैन्थैरिस”’ एवं “एपिस” लाभदायक है।

मैस्टाइटिस :

दुग्धपान कराते समय जब स्तनों में जलन एवं सूजन की अनुभूति हो तो उसे मैस्टाइटिस के नाम से जाना जाता है। यह एक गंभीर रोग नहीं है परंतु इसमें अत्यंत पीड़ा का अनुभव होता है। इसलिए महिलाएं ऐसा होने पर दुग्धपान कराना बंद कर देती हैं जो कि सही नहीं है।

उपचार –

एक महिला का हार्मोनल संतुलन आसानी से असंतुलित हो जाता है। ‘फायटोलॅका’ का स्तन क्षेत्र से गहरा संबंध होता है। इन अंगों में सूजन व स्तनाग्र (निप्पल) में दरार आदि होने से यह संवेदनशील हो जाते हैं।

  • यदि स्तन लाल पड़ जाएं और उनमें अत्यधिक पीड़ा हो तो “बेलाडोना” उपयोगी साबित होगी।
  • जब भावनात्मक असंतुलन हो, अकेला एवं रूआँसा महसूस हो तब “पल्सेटीला” का उपयोग किया जाता है। परंतु मैस्टाइटिस में सबसे उपयुक्त औषधि “फायटोलॅका” ही है।

मासिक धर्म से पूर्व लक्षण (पी.एम.एस.) :

माहवारी के पूर्व आमतौर पर स्वभाव में अनेक परिवर्तन होते हैं, परंतु कुछ स्त्रियों के लिए यह समय तनाव, अत्यधिक क्रोध एवं विलाप से भरा होता है। माहवारी की शुरुआत से हफ्ता भर पहले या उससे भी पहले ही यह लक्षण शुरू हो जाते हैं। होमियोपैथिक उपचार लेने से इस स्थिति में पूरा बदलाव आता है। कुछ उपाय तो ऐसे भी हैं, जिसे आप घर पर भी कर सकते हैं।

उपचार –

  • यदि अकेलापन व रूआँसा महसूस हो तो “पल्सेटीला” का प्रयोग करें ।
  • परिवार के प्रति उदासीन लगे और क्रोध आए, थकान का अनुभव हो तो ‘सेपिया’ लें।
  • ‘लैकेसिस’ का उपयोग तब कर सकते हैं जब हिंसात्मक क्रोध, जलन एवं अविश्वास की अनुभूति हो ।

भावनात्मक अव्यवस्थाएँ जैसे – दबाव, चिड़चिड़ापन, कामोत्तेजना में कमी, अत्यधिक रोना एवं परिवार के प्रति लगाव में कमी होना, संक्रमित एवं सूजे हए स्तन, सिरदर्द, पेडू में दर्द व कमर के नीचे हिस्से में दर्द आदि भी होता है। इस समय में हावभाव में परिवर्तन आना बेहद सामान्य है और स्वभाव में आए बदलाव के अनुसार आप अपने लिए कोई भी इलाज चुन सकते है।

कष्टदायक मासिक धर्म (डिस्मेनोरिया) :

इस दौरान ज्यादातर पीड़ा पीछे व निचले उदर में उठती है और मानसिक व्यग्रता के कारण यह भयानक रूप भी ले सकता है। इस प्रकार के दर्द का कारण गर्भाशय ग्रीवा में कसाव के कारण होता है। यह तकरीबन 8 से 10 घंटे तक रहता है और यदि दर्द अत्यधिक तेज हो या बार-बार उठता है तो चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।

उपचार –

  • “मैग फॉस” का उपयोग तब करना चाहिए जब मरोड़ उठे या दर्द से शर्मिंदगी महसूस हो।
  • “वाइबिरनम ओपयूलस” एक उत्तम दर्दनाशक के रूप में कारगर है ।
  • ‘सीमीसीफ्यूगा’ आदि भी लाभदायक है।

अनियमित मासिक धर्म :

अनियमित मासिक धर्म ज्यादातर यौवनावस्था के शुरुआती दौर में, रजोनिवृत्ति के समय में व दुग्धपान के सेवन के समय होता है। यह एक सामान्य स्थिति है, जो हार्मोन्स में असंतुलन को दर्शाता है परंतु कुछ महिलाओं में यह अनियमितता जीवनभर बनी रहती है।

उपचार –

यदि ज्यादा समय तक अनियमित है तो “सेपीया”,”पल्सेटीला”, “कल्केरिया” काफी लाभदायक है।

माहवारी की अनुपस्थित या देरी :

ऐसा होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे- एमिनोरिया (माहवारी का सही समय पर न होना), हार्मोनल एवं अंतःस्रावी रासायनिक असंतुलन के कारण एवं वजन कम होना । दूसरे प्रकार का
एमिनोरिया वह होता है, जिसमें माहवारी एक बार शुरू होने के बाद कुछ समय तक न हो । इसके कारण हैं – गर्भावस्था, अत्यधिक पतला होना, तनाव, खून की कमी, गर्भनिरोधक का सेवन या थायराइड में कमी ।

यदि आप व्यायाम व खेल-कूद ज्यादा करते हैं तो आपको अपना खान-पान उसी के अनुसार रखना चाहिए और उचित मात्रा में कैल्शियम का सेवन भी करना चाहिए। यदि फिर भी इसका कारण अस्पष्ट हो तो अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। इसके भी कई कारण हो सकते हैं जैसे -फाइब्राइड गाँठ, हार्मोन असंतुलित होने पर भी होता है।

माहवारी का अधिकता में होना (मेनोरेजिया) :

माहवारी के दौरान ज्यादातर 30 ml तक खून का स्राव होता है। यह संख्या यदि 80 ml तक न पहुँचे तो घबराने की कोई बात नहीं है। यदि आपकी रोजमर्रा की जिंदगी में माहवारी से बाधा होने लगे तो चिकित्सीय परामर्श अवश्य लें।

स्तनों में गाँठ एवं सूजन :

गर्भावस्था के दौरान कभी-कभी एक या दोनों स्तनों पर हल्की गाँठ जैसे कुछ उत्पन्न हो जाती है। यह कोई घबराने वाली बात नहीं है और ऐसा हार्मोन में आए असंतुलन के कारण ही होता है।
यदि स्तन बेहद संवेदनशील हो या उन पर लालिमा छाने लगे तो समझ जाएँ कि कोई गाँठ उत्पन्न होनेवाली है। ऐसा खाासकर तब होता है जब आप शिशु को दुग्धपान कराती हैं। शरीर के इन अंगों में यदि किसी भी प्रकार की सूजन या गाँठ हो तो हमेशा चिकित्सीय परामर्श लें और तकलीफ होने पर इलाज अवश्य कराएँ।

लक्षण –

  • मैस्टाइटिस के लक्षण कुछ इस प्रकार होते हैं जैसे स्तनों पर लालिमा छा जाना,
  • धधकता हुआ सा दर्द होना एवं कड़ा हो जाना,
  • कभी-कभी सिरदर्द भी होता है एवं घाव में तेज दर्द भी होता है।

उपचार –

  • यदि ऐसे लक्षण हों तो चिकित्सकीय सलाह से “बैलिस पेरेनिस” का उपयोग करना चाहिए।
  • यदि स्तनों पर छूने से भी दर्द महसूस हो, भारीपन लगे एवं सूजन हो तो “ब्रायोनिया एल्बा” का प्रयोग करें।
  • यदि स्तनाग्र (निप्पल) में दरार पड़े तो “ग्रेफाइटिस” लें।
  • क्रोनिक मैस्टाइटिस में “सिलीशिया” लें।

जेनाइटिल हरपिस (जनेंनद्रीय संबंधी चर्म रोग) :

यह रोग एक वायरस जनित रोग है और ज्यादातर औरतों को “हायपरिकम” व “कैलेंड्युला” और पानी का सॉल्युशन लगाने से इसके लक्षणों पर बेहद आराम पहुंचा है।

स्वल्प मासिक धर्म :

यह स्थिति उस वक्त उत्पन्न होती है जब एक स्त्री गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती हैं। एक महिला की जिंदगी में कई पड़ावों पर उसे इस परेशानी का सामना करना पड़ता है।

उपचार –

  • “नेट्रम म्यूरिएटिकम” का उपयोग तब करना चाहिए जब माहवारी के समाप्त होने पर इसकी अनियमितता बनी रहे, योनिमार्ग से पानी का स्राव हो, तेज सिरदर्द हो, घबराहट एवं तनाव महसूस हो ।
  • हावभाव में बदलाव आए, ज्यादा रोना आए व घर के बाहर बेहतर महसूस हो तब “पल्सेटिला” का उपयोग करें।
  • जब लगे कि गर्भाशय या वहाँ स्थापित अंग बाहर आ जाएँगै, ठंढ महसूस हो, थकावट एवं उबाऊ सा लगे, परिवार का साथ अच्छा न ले, स्वभाव बदलने लगे व तुनकमिजाजी हो जाएँ परंतु व्यायाम आदि करने से स्फूर्ति महसूस हो तो “सेपिया” का प्रयोग करें।

योनिमार्ग से स्राव (वेजाइनल डिस्चार्ज) :

कई महिलाओं में यह स्राव एकदम साफ होता है व कष्टदाई नहीं होता लेकिन यदि यह स्राव अधिक मात्रा में हो, कभी-कभी खून के धब्बे भी आएँ, इसके निष्कासन से जलन एवं तकलीफ हो और बार-बार चिकित्सीय परामर्श लेना पड़े तो आपको अपनी व अपने साथी की जाँच करानी चाहिए क्योंकि ऐसा होने से दाम्पत्य जीवन में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है।

बैक्टीरिया द्वारा संक्रमण के अलावा अन्य संक्रमण कुछ इस प्रकार हैं –

योनि संक्रमण (थ्रश) :

योनि संक्रमण कैंडिडा एल्बिकेंस द्वारा होता है, जिसके लक्षण कुछ इस प्रकार होते हैं जैसे-

  • योनिमार्ग व योनिमुख में लालिमा छा जाती है,
  • गाढ़ा श्राव होना एवं मूत्र विसर्जन के समय जलन की अनुभूति होना।

ट्राइकोमोनल संक्रमण :

इस संक्रमण के दौरान झागदार व बदबूदार स्राव होता है, जो कष्टदायक भी होना है। जननेद्रियों में, जाँघों के ऊपरी हिस्सों में जलन व पीड़ा का अनुभव होता है। सहवास भी कष्टदायक हो जाता है और मूत्रत्याग के समय जलन व दर्द का अनुभव होता है।

उपचार –

  • कष्टदायक जलन हो, गाढ़ा, पीला रंग का स्राव जिससे टीस व जलन उत्पन्न हो एवं योनिमुख पर सूजन हो जो रात में बढ़ जाता हो तब “मर्क सॉल” उपयोगी है।
  • जलन हो, गाढ़ा स्राव आए एवं साथ-साथ कमर दर्द भी महसूस हो तो “पल्सेटीला” उपयोगी है।
  • “सेपिया” का उपयोग तब करें जब हरा-पीला रंग का स्राव हो और ऐसा महसूस हो कि गर्भाशय से सब बाहर आ जाएगा।
  • अधिक मात्रा में पनियल व उग्र, कष्टदायक व जलनयुक्त श्राव हो, जिससे पीड़ा हो, योनिमार्ग में टीस व खाज हो और माहवारी से पहले हालत और भी बदतर हो जाएँ तब “क्रियोसोटम” लें।

रजोनिवृत्ति के दौरान मुख तमतमाना :

दुर्भाग्यवश अब चिकित्सक रजोनिवृत्ति को एक बीमारी के रूप में देखते हैं। रजोनिवृत्ति के दौरान एक महिला के बच्चे पैदा करने की क्षमता खत्म हो जाती है, जिससे हार्मोन्स में भी बड़ा परिवर्तन आ जाता है। इनका इलाज होमियोपैथिक एवं प्राकृतिक तौर-तरीकों से भी किया जा सकता है और जैसा पहले भी बताया गया है कि ‘पल्सेटीला’, ‘सेपिया’ और ‘लैकेसिस’ को ही दिमागी लक्षणों व अन्य स्थितियों के अनुसार दिया जाता है।

उपचार –

रजोनिवृत्ति न ही एक बीमारी है और न ही इसे एक बीमारी के तौर पर परखा जाना चाहिए। ज्यादातर होमियोपैथ पल्साटिला का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उन्हें इससे बेहतर परिणाम मिले हैं। मुख पर लालिमा छा जाना ज्यादातर रजोनिवृत्ति के दौरान ही होता है, जिससे सिरदर्द आदि भी होता है। यदि सिरदर्द के साथ सिर गर्म हो जाए तो ‘लैकेसिस’ अपनाएँ।

प्रोलैप्स :

यदि कोई अंग का उसका कुछ हिस्सा या टिशू अपनी जगह से अलग हो जाए तो उस स्थिति को प्रोलैप्स कहते हैं।
ज्यादातर औरतों में यह स्थिति गर्भाशय को लेकर उत्पन्न होती है, जो प्रसव के समय पेडू पर खिंचाव के कारण होता है।

उपचार –

  • जब प्रौलेप्स में तीव्र नीचे की ओर आनेवाला एहसास हो तो “सेपिया” व “अगैरिकस मस्केरियस” लें।
  • प्रौलेप्स का दर्द यदि बाएँ अंडाशय एवं पीठ में हो व अधिक माहवारी हो तब ‘अरजेंटम मेटैलिकम’ लें।

योनिमार्ग में सूखापन (वेजाइनल ड्रायनस) :

रजोनिवृत्ति के दौरान योनिमार्ग में बार-बार सूखापन आने से बहुत बुरा व दुःखद महससू होता है। यह समस्या बढ़ती उम्र के साथ ही शुरू हो जाती है, जिससे योनिमार्ग की परतें ढीली हो जाती हैं और सूखने लगती है। यह हार्मोन्स में आए बदलाव के कारण भी होता है, जिससे समागम के समय पीड़ा भी ज्यादा होती है। इस वजह से संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।

उपचार –

  • इस समस्या के समाधान के लिए केमिस्टों में के. वाई, जेली नामक क्रीम उपलब्ध है।
  • यदि योनिमार्ग के सूखेपन से समागम के बाद या उससे पहले योनिमार्ग में पीड़ा हो, जलनयुक्त स्राव हो तो “लायकोपोडियम” लें।
  • सूखे योनिमार्ग से यदि गर्म व पनियल स्राव हो, मूत्र त्याग के समय दर्द हो और जोर से खाँसते हुए मूत्र निकल जाए तो “नेट्रमम्यूरियटिकम” लें।

फाइब्रॉयड्स :

इन्हें गर्भाशय तंतुपेशी अर्बुद के नाम से जाना जाता है, जो कैंसर जैसी बीमारी से युक्त तो नहीं है परंतु गर्भाशय व उसके आसपास स्थापित होते हैं । यह 35 साल की उम्र के आस-पास आमतौर पर हो जाते हैं परंतु 45 साल की उम्र तक आते-आते यह अपने आप चले जाते हैं। यदि इनका आकार छोटा है तो यह कम कष्टदायक होते हैं परंतु इनकी वजह से कभी-कभी पीड़ादायक व अधिक मात्रा में माहवारी होती है। ये इतने बड़े हो जाते हैं कि इनके कारण आम जिंदगी में भी दिक्कतें आ जाती हैं और गर्भधारण करने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। जिसका एकमात्र इलाज शल्य चिकित्सा द्वारा ही संभव है।

उपचार –

जब गर्भाशय बढ़ जाए और दर्द हो, योनिमार्ग में टीस उठेव योनिमार्ग से लगातार स्राव हो और माहवारी से पहले या अंत में कष्ट हो तो “कैल्केरिया ऑयोडेटम” लें।
कम माहवारी हो और कपड़े बिलकुल बरदाश्त न हो तब “लैकेसिस” का इस्तेमाल करें।

एक्ने रोजेशिया :

मुख में तमतमाहट अपने से उन क्षेत्रों पर एक्ने रोजेशिया की दिक्कत होती है जो कि ज्यादातर रजोनिवृत्ति के समय उत्पन्न होती है। त्वचा की सतह पर रक्त नलिकाओं के बढ़ने से चिकनाहट मुक्त रोग भी आकार में बढ़ जाते हैं। रोजेशिया में ज्यादातर फोड़ें-फुन्सी निकलते हैं।

उपचार –

ज्यादा चाय पीने से, संतरे के रस व चॉकलेट के सेवन से लाल रंग के दाने निकल आएँ तो “सोरिनम” का इस्तेमाल करें। यदि वसंत ऋतु में अधिक मात्रा में दाने हो जो नाक पर उत्पन्न हों तब “आरसेनिक ब्रोमेटम” लें।

( और पढ़े – होम्योपैथी चिकित्सा के मुख्य सिद्धान्त ,फायदे और नुकसान )

(अस्वीकरण – ऊपर बताये गए उपाय और नुस्खे आपकी जानकारी के लिए है। कोई भी उपाय और दवा प्रयोग करने से पहले आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरुर ले और उपचार का तरीका विस्तार में जाने।)

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