Last Updated on March 5, 2023 by admin
`कैसर´ एक ऐसा रोग है जिसका सिर्फ नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे लोगों के पसीने छूटने लगते हैं। कैंसर रोग को हमारे देश में मृत्यु दर बढ़ने का चौथा कारण कहा जाता है। यह रोग भारत में हर साल करीब 15 से 18 लाख लोगों को होता है तथा करीब 7-8 लाख लोग इसके कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
`कैसर´ का रोग ठीक हो सकता है लेकिन :
`कैंसर चाहे बहुत खतरनाक रोग क्यों न हो पर अगर समय पर इसकी जांच तथा चिकित्सा करा ली जाए तो इस रोग के बहुत से रोगियों को बचाया जा सकता है। लेकिन हमारे देश मे `कैसर´ सिर्फ एक डर बनकर रह गया है लोग इसके बारे मे पूरी तरह न जान पाने के इस रोग को अन्दर ही अन्दर पालकर रखते हैं तथा परेशानी ज्यादा बढ़ जाने पर चिकित्सा के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं। इसका एक कारण भी है क्योंकि कुछ तरह के `कैसर´ में उसके लक्षण और परेशानी काफी देर से सामने आते हैं। वैसे तो आज का प्रदूषित वातावरण, भोजनों मे मिलावट आदि ही `कैसर´ रोग को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है फिर भी काफी खोजबीन करने के बाद ये नतीजा पाया गया है कि जैविक, भौतिक और रासायनिक कुछ खास तरह के क्षोभक (इरिटैटस) अक्सर `कैसर´ पैदा करते हैं जैसे- पान मे चूना-तम्बाकू चबाने वालों को इनके लगातार क्षोभन से मुंह का `कैसर´ हो जाता है या ज्यादा सिगरेट पीने वालों को फेफड़ों का `कैसर´हो जाता है।
`कैसर´ से आधारित एक बात बताते हैं पहाड़ी प्रदेशों में जहां ठण्ड बहुत ज्यादा पड़ती है वहां के लोग ठण्ड से बचने के लिए अपनी रजाई या पहने हुए मोटे कपड़ों के अन्दर छोटी-छोटी सी अंगीठियां जलाकर रख लेते हैं जिससे उन्हे अपने शरीर मे गर्माहट मिलती रहती है पर इससे उनमे पेट का कैंसर ज्यादा फैल जाता है।
महिलाएं और कैंसर :
अब कुछ लोग सोचेंगे कि महिलाएं तो पुरूषों की तुलना में बहुत कम धूम्रपान या पान-तंबाकू का सेवन कम करती है तो उनमे फेफड़े और मुंह का कैंसर बहुत ही कम होना चाहिए हां ये बात ठीक भी है पुरूषों के मुकाबले स्त्रियों में इसकी दर कम होती है। पर सिगरेट पीने वाली शहर की महिलाओं की संख्या मे वृद्धि के अनुपात से उनमे `कैसर´ की दर भी कुछ मात्रा मे बढ़ी है लेकिन गांव की महिलाओं मे कुछ आदतें ज्यादा होती है जैसे पान खाना और हुक्का पीना। पर गांवों मे ज्यादा वायु प्रदूषण नहीं होता और इसी कारण से गांव की स्त्रियों मे `कैंसर´ बहुत कम पाया जाता है। इसको हम ये भी कह सकते है कि इस मामलें मे पुरूषों के मुकाबले उनमे निरोधक क्षमता ज्यादा है। लेकिन क्षमता की यह धारणा स्त्री के यौन अंगों के कैंसर पर लागू नहीं होती। उनके अन्दर बच्चेदानी का कैंसर, स्तनों का कैंसर ज्यादा पाया जाता है।
कैंसर है क्या ? :
हमारे शरीर के कोषों और ऊतकों के बढ़ने का एक अनुशासित नियम होता है। पर जिस समय शरीर के जिस हिस्से मे ये बहुत तेजी से और न रूकने वाली गति से बढ़ने लगते है तो ये बढ़ोतरी कुछ अतिरिक्त फोड़ों और लोथड़ों के रूप में शरीर के अलग-अलग भागों मे निकलकर उसके सामान्य कोषों को समाप्त करने लगती है। इसमे सबसे ज्यादा हालत तब खराब होती है जब इन फोड़ों में से कुछ कैंसर के कोष टूटकर आसपास के हिस्सों मे फैलकर वैसे ही नए फोड़े पैदा करने लगते हैं। इसी कारण से रोगी का इलाज करवाना आसान नहीं रह जाता और उसकी मौत तक हो सकती है। इसी प्रक्रिया को कैंसर का नाम दिया जा सकता है।
कैंसर की प्रवृति और प्रकार :
`कैंसर´ वैसे तो शरीर के किसी भी हिस्से मे हो सकता है पर शरीर के कुछ खास भागों मे ये ज्यादा फैलता है। शरीर के कौन से भाग मे `कैंसर´ ज्यादा फैलता है ये स्थानीय जलवायु, वातावरण तथा स्त्री और पुरुष की लिंगीय स्थिति पर भी निर्भर करता है। जैसे स्त्रियों में बच्चेदानी और स्तनों को कैंसर ज्यादा पाया जाता है और पुरुषों मे फेफड़ों का `कैंसर´ ज्यादा होता है। वैसे तो `कैंसर´ किसी भी उम्र मे हो सकता है पर बुढ़ापें मे 40 से 60 साल की उम्र के बीच इसके होने के आसार ज्यादा होते हैं। इसमे भी एक सर्वे के मुताबिक हमारे भारत में पुरुषों को 50 की उम्र के बाद और स्त्रियों के 50 साल से पहले कैंसर होने के आसार ज्यादा पाए जाते हैं। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि 50 साल की उम्र के बाद स्तन और गर्भाशय मे हार्मोन्स सक्रियता कम हो जाती है।
सबसे ज्यादा होने वाला `कैंसर´ बच्चेदानी का :
स्त्रियों मे बच्चेदानी का `कैंसर´ सबसे ज्यादा पाया जाता है। बच्चेदानी का `कैंसर´ दो तरह का होता है- बच्चेदानी के ऊपर तथा बच्चेदानी के द्वार पर। इसमे बच्चेदानी के द्वार के `कैंसर´ की संख्या सबसे ज्यादा है। 35 साल की उम्र के बाद हर स्त्री को पैंप स्मियर टैस्ट करवाना चाहिए जिससे अगर `कैंसर´ हो तो उसका शुरूआत मे ही पता लग जाए। दूसरे स्थान पर आता है स्तनों का `कैंसर´ और फिर मुंह के अन्दर होने वाले `कैंसर´ जीभ पर, गाल के अन्दर, जबड़े पर, मुंह के द्वार पर। इसके बाद सांस की नली, ग्रास नली और आवाज की नली का कैंसर और फेफड़ों का `कैंसर´ आता है। पहले फेफड़ों का `कैंसर´ पुरूषों मे ही ज्यादातर पाया जाता था पर अब यह स्त्रियों में भी धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। शायद बाहर की गतिविधियों के बढ़ने और वायु प्रदूषण के ज्यादा बढ़ने के कारण। पेट, आंतों, त्वचा, जिगर, गुदा आदि के `कैंसर´ स्त्रियों मे बहुत ही कम मामलों मे पाए जाते हैं।
सावधानी :
अक्सर लोगों मे `कैंसर´ को लेकर वहम हो जाता है वंशगत रोग होने का या फैलने वाला रोग होने का। पर इस बात को अपने दिमाग से बिल्कुल निकाल देना चाहिए कि `कैंसर´ इस तरह पुरानी पीढ़ियों से चला आ रहा या फैलने वाला रोग है।
आगे यह है कि रोग चाहे कोई सा भी हो वह मुश्किल या लाइलाज तभी होता है जब कि रोग की आखिरी स्टेज या बिगड़ी हुई स्टेज मे रोगी को डॉक्टर के पास ले जाया जाए। अक्सर `कैंसर´ मे ऐसा ही होता है। अगर किसी तरह के रोग का लक्षण नजर आए तो तुरन्त ही डॉक्टर के पास जाकर जांच करवा लेनी चाहिए खासकर 30 साल की उम्र के बाद तो बिल्कुल लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
महिलाओं में कैंसर के लक्षण (mahilaon me cancer ke lakshan)
- स्त्री का मासिकधर्म बन्द होने पर खून ज्यादा आए तथा अनियमित आए तो तुरन्त ही डॉक्टरी जांच जरूरी है। मासिकधर्म के बन्द हो जाने के 1 या 2 साल बाद अगर फिर स्राव होने के लक्षण लगे तो जांच जरूर करवाएं क्योंकि ये कैंसर का लक्षण हो सकता है। अगर कमर मे न बर्दाश्त करने वाला दर्द हो या बदबूदार पानी जाता हो तो भी।
- स्तनों मे अगर कभी भी कोई गांठ आदि लगे तो चाहे वह छोटी हो या बड़ी, उसमे दर्द हो या न हो ये कैंसर के शुरूआती लक्षण हो सकते हैं। इसके लिए तुरन्त ही डॉक्टर से जांच करवाएं। बल्कि ऐसा करना चाहिए कि कुछ-कुछ दिनों मे नहाते समय हथेलियों से स्तनों को दबादबाकर देखती रहें कि कहीं उनमें किसी तरह की गांठ तो नहीं बन रही।
- अगर 3 सप्ताह से लगातार मुंह के अन्दर, जीभ पर, मुंह के द्वार पर या जबड़े पर कोई छाला हो और वो सामान्य चिकित्सा के द्वारा भी ठीक न हो रहा हो तो उसकी जांच करवाना जरूरी है।
- अगर आपकी आवाज लगातार कई दिनों से भारी सी लग रही हो या डॉक्टर से दवा आदि लेकर भी ठीक न हो रही हो तो इसकी भी जांच करवाना जरूरी है।
- त्वचा के ऊपर कोई कील, मस्सा आदि सामान्य अवस्था से अगर बड़ा लगे, उसका रंग सा बदलने लगे या उसमे से खून निकलने लगे तो उसकी जांच करवाना बहुत जरूरी है।
- अगर काफी समय से खांसी हो और इलाज करवाने के बाद भी वह ठीक ना हो रही हो तो फेफड़ों की जांच करवाना जरूरी है कि कहीं फेफड़ों मे `कैंसर तो नहीं है।
- उम्र ज्यादा होने पर अगर काफी समय से खूनी बवासीर का रोग हो, पेशाब करते समय परेशानी हो, भोजन ठीक से न पचता हो या पेट मे बहुत तेज दर्द हो और भोजन को निगलने मे परेशानी हो रही हो तो जांच करवाना बहुत जरूरी है। जांच मे अगर गुदा, जिगर, पेट या ग्रास नली में कैंसर होगा तो उसका पता चल जाएगा।
महिलाओं में कैंसर की चिकित्सा (mahilaon me cancer ka ilaj)
- अगर कैंसर का शुरूआत मे ही जांच हो जाने पर पता चल जाए तो उसका सही तरह से इलाज सम्भव है। स्त्रियों में `कैंसर´ की स्टेज के अनुसार चिकित्सा 3 तरह की होती है- सर्जरी, रेडियोथेरेपी (रेडियम, कोबाल्ट आदि की चिकित्सा, अलग से या साथ मे) और `कैंसर´ की खास दवाईयां।
- `कैंसर´ का इलाज पहले केवल कुछ शहरों में ही हो सकता था पर अब ज्यादातर हर जगह पर इसका इलाज सम्भव हो गया है।