Last Updated on March 27, 2024 by admin
महुआ का सामान्य परिचय (Mahua in Hindi)
वृक्ष बड़ा, तना मध्यम, सीधा, घनी शाखाओं वाला, चिकना, वार्षिक बढ़ोतरी का आभास नहीं होता; शाखाओं का मंडप घना, छायादार, गोल मुकुट सा बनाती हैं। यह मानसूनी वृक्ष दोमट मिट्टी में अच्छा बढ़ता है। पत्ते शाखिकाओं के सिरों पर गुच्छों में, सामान्यतः 12.5 से 20 सेमी. लंबे, दृढ़, चर्मश, दोनों किनारों पर सँकरे, नुकीले, गहरे हरे, नए पत्ते ताँबई-हरित, आंतरिक रचना गहरी, एक भाग चिकना, असम पक्षाकार, गंध रहित, स्वाद में हलके कसैले होते हैं। पत्रवृंत 2.5 से 3.6 सेमी. लंबा, आम के सदृश, गहरा हरा होता है। छाल खासी चिकनी, राख के रंग की, पतले छिलकों में उतरनेवाली, अंतःभाग हल्का ताँबई-लाल, अरुचिकर गंधवाली, स्वाद में कसैली होती है।
फूल शाखिकाओं के सिरों पर, बहुत से , छोटे, श्वेताभ, घने गुच्छों में मार्च-अप्रैल में लगते हैं। सर्वप्रथम मार्च में कुचे निकलने शुरू होते हैं। पतझड़ में जब वृक्ष पत्रविहीन होता है तो कूचे-ही-कूचे लटके दिखाई देते हैं। कूचों में ही छोटीछोटी पुष्प-कलिकाएँ निकलती हैं, जो धीरे-धीरे विकसित होकर पुष्प बन जाती हैं। विकसित कलिकाओं से ही मादक गंध निकलती है। प्रत्येक पुष्प मुख्य तने से निकलनेवाले पृथक् वृत्त पर लगा होता है, जो 8 या 10 मांसल पुष्पदलों से युक्त होता है। पूर्ण पक्व पुष्प जमीन पर टपकने लगते हैं और पेड़ के नीचे आसव-गंधी पुष्पों की चादर सी बिछ जाती है। इस दौरान वातावरण में अजीब सी मीठी, मादक गंध फैल जाती है।
पुष्पों का रंग हलका पीला, फूल आकार में छोटे-बड़े, स्वाद में बेहद मीठे, वृक्ष के आकार प्रकार के अनुसार पुष्प की मिठास कम-ज्यादा होती है। पुष्प के अंदर अत्यंत मीठा-गाढ़ा, चिपचिपा रस भरपूर होता है। मिठास के कारण मधुमक्खियाँ इसे घेरे रहती हैं। फूल की चाह में हिरण, भालू और दूसरे जानवर खूब आकृष्ट होते हैं। देहात के लोगों, ढोरों और जंगल के तृणभोजी जानवरों को फूल विशेष पसंद हैं और उनका प्रिय आहार भी। पुष्पपात मार्च के अंत से प्रारंभ होकर लगभग एक माह तक होता रहता है। यह रात्रि की अपेक्षा प्रात:काल में अधिक होता है। पुष्प के अंदर जीरेनुमा कई बीज जैसी रचना होती है, जो अनुपयोगी है। आदिवासियों का यह पोषक आहार है। स्थानीय लोग पेड़ के नीचे झाडू लगाकर भूमि साफ कर देते हैं, जिससे फूलों को बुहारकर इकट्ठा करना आसान हो जाता है।
पुष्पपात होने के बाद कूचों के अंदर फल गुच्छों में या अलग-अलग लगते हैं। फल हरिताभ, अंडाकार, गूदेदार, चमकदार, कठोर, 1.25 से 2.5 सेमी. लंबे, जून-जुलाई में पकते हैं। कच्चे फल का अंत:भाग सफेद; फल के अंदर गुठली, गुठली का रंग ताँबई, चमकदार, कठोर। कच्चे फल की सब्जी बनती है। फलवृंत अत्यंत छोटा, परंतु मजबूत। पका फल अंदर से पीला, रसदार, मीठा, मादक गंधवाला तथा सुस्वादु होता है।
महुआ का विविध भाषाओं में नाम :
- अंग्रेजी – Butter Tree, Madhua, Elloopa tree
- उडिया – महूला, मोहा
- कन्नड़ – महुइप्पे, हिप्पे
- गुजराती – महुड़ी
- तमिल – मधूकम
- तेलुगू – इप्पचेट्ट
- बँगला – महुल, मौआ
- मराठी – मोहडा, महवा
- मलयालम – पूनम, इलुपा
- संस्कृत – मधूक, गुडपुष्प, मधुस्रव
- हिंदी – महुआ, महुवा
महुआ के औषधीय गुण और प्रभाव (mahua ke gun in hindi)
- निघंटुओं में महुआ के अनेक गुण एवं उपयोग बताए गए हैं। इसके फूल मधुर, शीतल, भारी, पुष्टिकारक, बल एवं वीर्यवर्धक, पौष्टिक तथा वात-पित्तनाशक हैं।
- फल शीतल, भारी, मधुर, वीर्यवर्धक, हृदय को अप्रिय; वात-पित्तनाशक, तृषाशामक, रक्तविकार, दाह, श्वास, क्षत तथा क्षयनाशक हैं।
- वृक्ष मधुर, शीतल, कफकारक, वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक, कसैला, कड़वा, पित्त-दाहशामक, व्रणहर, कृमि दोष एवं वात का नाश करनेवाला होता है।
- पत्तों में क्षाराभ, ग्लूकोसाइड्स, सेपोनिन तथा बीजों में 50-55 प्रतिशत स्निग्ध तेल निकलता है, जो मक्खन सदृश चिकना होता है। घी में इसकी मिलावट की जाती है।
- फूलों में 60 प्रतिशत शर्करा होती है।
महुआ के सामान्य उपयोग (mahua ke upyog in hindi)
- बीजों से निकाला तेल खाना बनाने तथा साबुन बनाने में उपयोगी है।
- इसकी खली को अच्छी खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इसकी लकड़ी बहुत कठोर होती है। फर्नीचर तथा इमारती सामान बनाने में उपयोगी है।
- फल का बाहरी भाग सब्जी बनाकर खाया जाता है। अंदर के भाग को पीसकर आटा बना लिया जाता है।
- फूलों से उच्चकोटि की शराब बनाई जाती है।
- सूखे पुष्प किशमिश के समान मिठाइयों, हलवा, खीर आदि व्यंजनों में डाले जाते हैं।
- फूलों को भिगोकर तथा बारीक पीसकर आटे के साथ गूंध लिया जाता है, फिर इसकी पूड़ियाँ तली जाती हैं, जो बहुत मीठी तथा स्वादिष्ट बनती हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में इसका काफी प्रचलन है।
- महुए से सीरप तथा दूसरी औषधोपयोगी निर्मितियाँ बनाई जाती हैं।
- पौष्टिकता के लिए फूल दूध में उबालकर मुनक्का की तरह उपयोग में लाए जाते हैं।
- ताजा टपके फूल भोजन तथा नाश्ते के रूप में खाए जाते हैं।
- पत्तियाँ भेड़-बकरियों का स्वादु चारा हैं।
- देहात में इनके दोने तथा पत्तल बनाए जाते हैं ।
- तने की लकड़ी शहतीरें तथा झोंपडियों के धुंबे बनाने में उपयोगी है।
महुआ के फायदे (mahua ke fayde in hindi)
आयुर्वेदिक चिकित्सा शास्त्रों में महुआ अनेक रोगों के सफल इलाज में कारगर है। कफजन्य रोगों में यह बहुत उपयोगी है।
1. अपस्मार (मिर्गी): छोटी पीपल, बच, कालीमिर्च व महुआ और पीसे हुए सेंधानमक को पानी में मिलाकर नाक से लेने से अपस्मार (मिर्गी), उन्माद (पागलपन), सन्निपात (वात, पित्त, और कफ का एक साथ बिगड़ना) और वायु आदि रोगों में लाभ मिलता है।
2. कंठसर्प: महुआ के पेड़ के बीजों को पानी में घिसकर रोगी को पिलाने से कंठसर्प रोग में आराम मिलता है।
3. धातु-पुष्टि: 2 से 3 ग्राम महुआ की छाल का चूर्ण दिन में 2 बार गाय के घी, दूध और चीनी के साथ पीने से पुरुष के वीर्य में बढ़ोत्तरी होती है।
4. सांप के काटने पर: महुआ के बीजों को पानी में घिसकर काजल के समान आंखों में लगाने से लाभ मिलता है।
5. घुटने में दर्द: बकरी के दूध में महुआ के फूलों को पकाकर पीने से घुटने का दर्द ठीक हो जाता है।
6. फोड़े-फुंसी: महुआ के फूल को घी में पीसकर फोड़े-फुंसी पर बांधने से आराम मिलता है।
7. स्तनों में दूध की वृद्धि हेतु: स्त्री के स्तनों में दूध की कमी को दूर के लिए महुआ के फूल का रस 4 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम कुछ दिनों तक रोजाना पिलाना चाहिए।
8. मुंह, नाक से खून आना: महुआ के फूल का रस 2 चम्मच की मात्रा में सेवन करने से मुंह और नाक से खून आना बंद हो जाता है।
9. खांसी:
- महुआ के फूलों का काढ़ा सुबह-शाम 2 चम्मच की मात्रा में सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।
- 20 से 40 मिलीलीटर महुआ के फूलों का काढ़ा रोजाना 3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।
- महुआ के पत्तों का काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से खांसी दूर हो जाती है।
10. वात (गैस): महुआ के पत्तों को गर्म करके पीड़ित अंग पर बांधने से वात पीड़ा (गैस) कम होती है।
11. मासिक-धर्म के विकार: महुआ के फलों की गुठली तोड़कर गिरी निकाल लें, इसे शहद के साथ पीसकर गोल मोमबत्ती जैसा बना लें, रात में सोने से पहले, मासिक-धर्म आने के समय के पहले से इसे योनि में उंगली की सहायता से प्रवेश करके रख दें, इससे मासिक-धर्म के विकार दूर हो जाते हैं और मासिकस्राव बहना बंद हो जाता है।
12. बवासीर: महुआ के फूल छाछ में पीसकर 1 कप की मात्रा में सुबह-शाम रोजाना सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है।
13. हिचकी: महुआ के फूलों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से हिचकियां आनी बंद हो जाती हैं।
14. कमजोरी: 50 ग्राम महुआ के फूलों को 1 गिलास दूध में उबालकर खाएं और ऊपर से वही दूध रोजाना सेवन करें। इससे शारीरिक कमजोरी दूर होकर ताकत बढ़ती है।
15. अंडकोष की जलन: महुआ के फूलों से अंडकोष को सेंकने से अंडकोष की पीड़ा जलन, सूजन सभी दूर हो जाते हैं।
16. अंडकोष के एक सिरे का बढ़ना: महुआ के ताजे फूलों को लेकर पानी में डालकर उसे उबालें, जब उसमें से भाप निकलने लगे तो उसके भाप से अंडकोष को सेंके। इससे अंडकोष में होने वाले दर्द और बढ़े अंडकोष में आराम मिलता है।
17. दांत मजबूत करना: महुआ या आंवले की टहनी की दातुन करने से दांत का हिलना बंद हो जाता है। इनमें से किसी एक के दांतुन से 2 से 4 दिन दांतुन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं और मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।
18. बुखार: महुआ के फूल का काढ़ा 20 से 40 मिलीलीटर रोजाना 2 से 3 बार खुराक के रूप में लेने से बुखार दूर होकर शरीर शक्तिशाली होता है।
19. प्रदर रोग: महुआ के फूल, त्रिफला (आंवला, हरड़, बहेड़ा), मुस्तकमूल और लोध्र बराबर मात्रा में मिलाकर 1 से 3 ग्राम लेकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शुद्ध सटिका और 4-6 ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में मिट जाता है।
20. उपदंश (सिफलिस): महुआ, मुलहठी, देवदारू, अगर, रास्ना, कड़वा, कूट और पद्याख का लेप बनाकर वातज उपदंश के घावों में लेप करने और उपरोक्त औषधियां का काढ़ा बनाकर उपदंश के घावों को साफ करने से लाभ मिलता है।
21. गठिया रोग:
- 20 से 40 मिलीलीटर महुआ की छाल का काढ़ा बनाकर रोजाना 3 बार सेवन करने से गठिया रोग में लाभ मिलता है।
- गठिया के दर्द में महुआ की छाल को पीसकर गर्म करके लेप करने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।
22. चेहरे के दाग-धब्बे: 20 से 40 मिलीलीटर महुआ की छाल का काढ़ा सुबह-शाम रोगी को पिलाने से चेहरे के दाग-धब्बे दूर होते हैं। इसी काढ़े से खाज-खुजली की वजह से हुए जख्म को धोने से बहुत जल्दी आराम आ जाता है।
23. सिर का दर्द: महुआ का तेल माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
24. सर्दी-ठंडी : सर्दी की शिकायत में महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करना चाहिए या फूलों को दूध में उबालकर पीना चाहिए, साथ ही फूले हुए फूलों को अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए।
25. बवासीर : बवासीर के रोगी को इसके फूलों को देसी घी में भूनकर कुछ दिनों तक खिलाना चाहिए। ये वेदनाशामक होने के कारण इसकी पीड़ा को कम कर देते हैं तथा बवासीर में भी आराम पहुँचाते हैं। ( और पढ़े –बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )
26. जुकाम, गले में खराश : महुए के ताजा या सूखे फूल, लौंग, कालीमिर्च, अदरक या सौंठ -सबको एक जगह कुचलकर काढ़ा बनाएँ। हलका गरम काढ़ा पीकर कपड़ा ओढ़कर लेट जाएँ। इससे जुकाम-सर्दी में बड़ी राहत मिलती है। साथ ही सर्दी से होनेवाला बुखार भी उतर जाता है। यह ज्वर को शांत करता है। | दर्द, वायुदर्द शरीर के किसी भी भाग में दर्द हो, जोड़ों का, वायु का दर्द या मांसपेशियों में दर्द अथवा पसलियों में दर्द हो तो प्रभावित अंग अथवा स्थान पर महुए के तेल की मालिश कुछ दिनों तक करनी चाहिए। किसी भी तेल की मालिश करने के बाद ठंडे स्थान पर न बैठे।
27. वीर्य-वृद्धि : महुए के पुष्प तथा फल वीर्यवर्धक होते हैं; अतः इसके लिए ताजा रसदार फूलों को सुबह-सुबह खाना चाहिए। ताजा फूल उपलब्ध न हों तो सूखे फूलों को दूध में उबालकर फिर धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए तथा ऊपर से हलका गरम दूध सेवन करना चाहिए। ( और पढ़े –वीर्य को गाढ़ा व पुष्ट करने के आयुर्वेदिक उपाय)
28. मासिक गड़बड़ी : जिन माता-बहनों को मासिक समय पर न आकर आगे-पीछे आता हो, अधिक कष्टकारक हो या कम-ज्यादा मात्रा में आता हो तो इसके आने के एक सप्ताह पूर्व से महुए के फूलों का काढ़ा बनाकर नित्य प्रातः-शाम को सेवन करना चाहिए।
29. दुग्ध-वृद्धि : स्तनपान करानेवाली महिलाओं तथा नव प्रसूता स्त्रियों को पर्याप्त मात्रा में दूध न उतरता हो तो महुए के ताजा फूलों का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए। ताजा फूल उपलब्ध न रहने पर सुखाए हुए फूल किशमिश की तरह चबाकर खाने चाहिए।
30. पुरानी खाँसी, कुकुर खाँसी : पुरानी खाँसी के मरीजों को महुआ के फूल के 15-20 दाने एक गिलास दूध में खूब उबालकर रात्रि में सोने से पूर्व सेवन करने चाहिए। फूलों के बीच से जीरे जैसे दाने को निकाल देना चाहिए। दो सप्ताह के लगातार सेवन से पुरानी खाँसी भी ठीक हो जाती है। ( और पढ़े –बच्चों की सर्दी तथा खांसी को दूर करने के 12 सबसे असरकारक घरेलु उपाय)
31. बच्चों को सर्दी : छोटे-बच्चों को सर्दी की शिकायत होती रहती है। इसमें नाक बहने लगती है। तथा पसलियाँ भी चलने लगती हैं, इसके लिए प्रभावित स्थान या पूरे शरीर की महुए के तेल से मालिश करनी चाहिए। घर में महुए का तेल अवश्य रखना चाहिए।
32. विषनाश : साँप या विषैले कीड़े के काटने पर दंश स्थान पर महुआ के फूलों को कुचला के साथ बारीक पीसकर लेप कर देना चाहिए। इससे विष प्रभाव दूर हो जाता है।
33. नेत्र विकार : महुआ के फूलों का शहद (देसी) आँखों में लगाने से आँखों की सफाई हो जाती है। इससे नेत्र-ज्योति बढ़ती है। आँखों की खुजली तथा इनसे पानी आना बंद हो जाता है। यह शहद बहुत गुणकारी होता है। जिन बच्चों के दाँत निकल रहे हों, उन्हें यह रोजाना चटाना चाहिए, इससे दाँत आसानी से निकल आते हैं।
जहाँ महुआ के वृक्ष बहुतायत में हैं, वहाँ फूल पर्याप्त मात्र में चूते हैं। गरीब तथा आदिवासी लोग इनको इकट्ठा कर लेते हैं। सुखाकर भोजन में नाना रूपों में इसका इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय व्यापारी इन लोगों से सूखे फूल तथा बीज बड़े सस्ते में खरीद लेते हैं। मौसम में अकसर ये व्यापारी गाँवों में खरीद के लिए आवाज लगाते देखे जाते हैं। फूल तथा बीजों का संचय कर गरीब लोग कुछ आदमनी कर लेते हैं।
महुआ के दुष्प्रभाव :
महुआ के फूल का अधिक मात्रा में सेवन करने से सिर में दर्द शुरू हो जाता है।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)