माला के 108 दानों के स्वास्थ्य लाभ | Mala Ke 108 Danone ke Swasthya Labh

Last Updated on July 22, 2019 by admin

आप ज़रूर सोचते होंगे कि आख़िर हिंदू धर्म में १०८ का इतना ज़्यादा माहात्म्य क्यों है? यह संख्या १०८ हर जगह क्यों मौजूद है? सनातन धर्म में १०८ का इतना ज़्यादा उपयोग क्यों होता है? आख़िर यह १०८ आया कहां से? इसका इतिहास क्या है? आइये जाने mala ke 108 danone ke karan aur swasthya labh

१०८ नंबर की ओरिजिन के बारे में रिसर्च करने पर कुल चार तरह की मान्यताओं का पता चलता है।

पहली मान्यता –
मालाओं का सूर्य से बहुत गहरा रिश्ता होता है, इसीलिए उनमें १०८ दाने होते हैं। ये मान्यताएं इस तरह माला के १०८ दानों और सूर्य की कलाओं में गहरे रिश्ते की व्याख्या करती हैं। दरअसल, साल भर में सूर्य कुल २,१६,००० कलाएं बदलता है। इस दौरान सूर्य दो बार अपनी पोज़िशन भी चेंज करता है। छह महीने सूरज उत्तरायण में होता है और बाक़ी छह महीने दक्षिणायन में, इस तरह कह सकते हैं कि सूरज छह महीने में कुल एक लाख आठ हज़ार (१०८०००) बार कलाएं बदलता है। संख्या १०८००० से अंतिम तीन शून्य
को हटा दें तो १०८ बनता है। यह भी कहा जाता है कि सृष्टि में सूर्य ही एकमात्र साक्षात् दिखनेवाले देवता हैं, इसीलिए उनकी कलाओं के आधार पर संख्या १०८ तय की गई है। किसी माला का हर दाना सूर्य की एक हज़ार कलाओं का प्रतीक है। एक बार जाप करने पर एक हज़ार गुना फल मिलता है, इसीलिए इंसान को तेजस्वी सूर्य ही बनाते हैं। सूर्य ही उसे समाज में मान-सम्मान दिलवाते हैं। हर इंसान को अच्छी सेहत भी सूर्य देते हैं, क्योंकि शरीर स्वस्थ रखने के लिए ऊर्जा यानी एनर्जी वही देते हैं।
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दूसरी मान्यता –
माला के दानों की संख्या का निर्धारण एक पूर्ण तंदुरुस्त आदमी के दिन भर में सांस लेने की संख्या के मुताबिक़ हुआ है। अमूमन, कोई व्यक्ति २४ घंटे में २१६०० बार सांस लेता है या कह सकते है कि १२ घंटे काम में वह कुल १०८०० बार सांस लेता है। शास्त्रों में कहा गया है कि १०८०० समय प्रभु को याद करना बहुत ज़रूरी है। चूंकि यह मुश्किल काम है, इसीलिए १०८०० बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जाप के लिए १०८ संख्या तय कर दी गई। इसी आधार पर माला में १०८ दाने होते हैं, जैसा कि हम जानते हैं, सांस का संबंध सीधे सेहत से है। अगर आदमी की
सांस प्रणाली दुरुस्त है तो इसका मतलब शरीर के लिए ज़रूरी ऑक्सीजन सांस के रास्ते शरीर में जा रहा है। चूंकि शरीर में ऑक्सीजन सुप्रीम मेडिसिन का काम करता है, यानी आदमी को अच्छी सेहत का स्रोत कहीं न कहीं संख्या १०८ है।
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तीसरी मान्यता-
इस मान्यता को ज्योतिष का सिद्धांत भी कह सकते हैं। ज्योतिष ब्रह्मांड को १२ राशियों में विभाजित करता है। इन १२ राशियों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ९ ग्रहों को १२ राशियों से गुणा करने पर संख्या १०८ प्राप्त होती है।
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चौथी मान्यता-
यह भी ज्योतिष से ही संबंधित है। इसके अनुसार ज्योतिष शास्त्र में कुल २७ नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के ४ चरण होते हैं और २७ नक्षत्रों के कुल चरण १०८ ही होते हैं। माला का एक-एक दाना नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है। इसीलिए लोग मंत्र जाप के लिए १०८ दानोंवाली माला का इस्तेमाल करते हैं। तीसरी और चौथी मान्यताएं ज्योतिष के सिद्धांत पर आधारित हैं और हम जानते हैं कि ज्योतिष की पूरी कवायद ही अच्छा स्वास्थ्य हासिल करना है। हम राशियों के अनुसार काम इसलिए भी करते हैं, ताकि हम तंदुरुस्त रहें और हमारा जीवन सुखमय हो। ।
बेशक अंक १०८ के रहस्य को हर दर्शन माननेवाले अपने-अपने ढंग से डिफाइन कर सकते हैं। लेकिन इसका वास्ता धार्मिक और ज्योतिष संबंधी मान्यताओं से ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक मान्यताओं से भी है। कहा जाता है कि हर मान्यता आग्रह करती है कि मंत्र जाप के लिए १०८ दानेवाली माला का ही प्रयोग करना चाहिए। इस संबंध में शास्त्रों में इस श्लोक के ज़रिए बताया गया है

षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
यानी किसी माला के दानों की संख्या १०८ संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है। चूंकि हमारा शरीर ब्रह्मांड का ही हिस्सा है, इसलिए हम जितने ही ब्रह्मांड-फ्रेंडली यानी कॉस्मोलॉजी-फ्रेंडली होंगे, हम उतने ही तंदुरुस्त रहेंगे। यही १०८ का हेल्थ बेनिफिट है।

जो व्यक्ति माला से मंत्र का जप करता है, उसे ज़्यादा लाभ होता है। मंत्र जप की माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इसे महादेव का प्रतीक माना गया है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। साथ ही, रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है। हर इंसान अपने को सबसे ज़्यादा प्यार करता है। लिहाज़ा, उसकी पहली इच्छा तंदुरुस्त रहने की होती है। इसीलिए वह उन सभी नुस्खों को आजमाता है, जिनसे वह तंदुरुस्त रह सकता है। माले का जाप १०८ बार करने के लिए सही तरीक़ा अपनाना चाहिए। हर माला में सबसे ऊपर सुमेरु होता है। जाप उसी से शुरू होता है और वहीं ख़त्म होता है। इस माला से जाप का मतलब हम ब्रह्मांड के नियमों का पालन करते हैं। इसीलिए संख्याहीन मंत्रों के जप से फल नहीं मिलता है, क्योंकि वह ब्रह्मांड-फ्रेंडली नहीं होता।

दरअसल, जब इंसान माला लेकर किसी मंत्र का १०८ बार जाप करता है, तो उसके शरीर का ब्रह्मांड से साक्षात्कार होता है, इसे कुछ लोग समझ जाते हैं, जबकि कुछ लोगों को मालूम नहीं पड़ता। जो जान जाते हैं, उनकी सेहत पर इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा पहुंचता है और जो लोग नहीं जान पाते, उन्हें थोड़ा कम, लेकिन सेहत संबंधी लाभ हर हाल में होता ही है। चूंकि १०८ की कनेक्टिविटी सीधे सूरज से है, इसलिए इससे जुड़ी हर चीज़ से सेहत को लाभ पहुंचता है।
अब इसे भी संयोग ही कहा जाएगा कि हेल्थ सेवा के लिए देशभर में हर जगह ऐंबुलेंस का नंबर भी १०८ ही है।

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