बृहदारण्यक उपनिषद में बताये गये मनचाही संतान प्राप्ति के उपाय :
बृहदारण्यक उपनिषद के चतुर्थ ब्राह्मण में इच्छानुसार संतान उत्पन्न करने तथा संयमित जीवन जीने के उपाय बताए गए हैं। हमारे ऋषियों ने संतान पैदा करने, परिवार नियोजन करने और संयमित जीवन जीने के सरल, सटीक और लाभकारी जो सुझाव दिये हैं, वे आज की वैज्ञानिक उपलब्धियों के मुकाबले कहीं अधिक सामयिक और लाभदायक हैं।
1- संसार के जीवों का आधार पृथ्वी है, पृथ्वी का रस जल है, जल का रस औषधियां हैं, औषधियों का सार पुष्प हैं, पुष्प का रस फल हैं, फल के रस का आधार पुरुष है। और पुरुष का रस शुक्र है। प्रजापति को इस शुक्र की प्रतिष्ठा के लिए किसी आधार की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने स्त्री की रचना की और उसके शरीर के निचले भाग के सेवन का विधान किया।
सहवास की इच्छा तो पशुओं में भी होती है, पर पुरुष में संयम व बंधन की सीमा का समावेश करके यह नियम बनाया गया कि पुरुषों की स्वेच्छाचारिता पर रोक लगे और पुरुष केवल श्रेष्ठ संतानोत्पत्ति के लिए ही स्त्री के साथ संबंध बनाए।
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2- वीर्य के सदुपयोग के लिए प्रजापति ने जननेंद्रियों को बनाया। प्रजनन अंगों से घृणा
नहीं करनी चाहिए और न ही दिन-रात भोगरत ही रहना चाहिए। पुरुषों को अपनी पत्नी के मासिक धर्म का इंतजार करना चाहिए यानि गर्भाधान के लिए उसे मासिक धर्म की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए। उतावलापन नहीं दिखाना चाहिए। इस प्रतीक्षा काल में अगर स्वप्न दोष या अति उत्तेजना के कारण शुक्र व्यर्थ में ही बह जाए या उसका स्खलन हो जाए तो उसकी फिर से प्राप्ति और वृद्धि के लिए पौष्टिक भोजन करना चाहिए, साथ ही इन मंत्रों का जाप भी करना चाहिए
‘यन्मेऽधरेतः प्रथिवीमस्कान्त सीद्य दोषधीरप्यसद्यदयः इदमहंतद्रेद आददे।‘
तथा
‘पुनरग्निर्धिष्ण्या यथास्थानं कल्यताम्।
इन दो मंत्रों का जाप करने से स्वप्नदोष आदि व्याधियों का नाश होता है। मंत्रों से मन, आत्मा, वाणी और शरीर की शुद्धि होती है। धन, धान्य, संपदा व पौरुष का विकास होता है और प्रजनन-प्रक्रिया सफल होकर उत्तम संतान का जन्म होता है।
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3- मासिक धर्म की तीन रातें बीत जाएं, पत्नी स्नान करके शुद्ध हो जाए शारीरिक रूप से, तब ‘स्त्रियों में मेरी यह पत्नी लक्ष्मी के समान है’ यह विचारकर पत्नी के पास जाकर हम दोनों संतानोत्पादन के लिए सहवास करेंगे’ कहकर पति स्त्री को आमंत्रित करे। यदि पति पत्नी की अभिलाषा पूरी करता है तो पति के ‘इंद्रियेण ते यशसा यश आदधामि’ के पाठ करने से पत्नी निश्चित रूप से ही पुत्रवती होती है और यशस्वी पुत्र की माता बनती है।
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4- तीन दिनों तक पत्नी को (तीन रातें गुजर जाने के बाद)धान आदि कूटना चाहिए। यानि घर-गृहस्थी के अन्य कार्य सामान्य रूप से करने चाहिए। आइये जाने पुत्र प्राप्ति के लिए क्या खाये
पुत्र प्राप्ति के लिए खान पान के शास्त्री नियम :
1- गोरी संतान पाने के उपाय- पुत्र गोरा-चिट्टा हो, धर्म-परायण हो और पूरे सौ साल तक जिए, इसके लिए पति पत्नी को दूध-चावल की खीर बनाकर उसमें घी डालकर खाना चाहिए।
2- सुन्दर वर्ण वाला, वेदों का पाठ करने वाला तथा पूरे सौ साल तक जीने वाले पुत्र के लिए पत्नी-पति दही में चावल पकाकर खाएं।
3- पति-पत्नी पानी में चावल पकाकर घी मिलाकर खाते हैं तो श्याम वर्ण सदाचारी और पूरी आयु जीने वाला पुत्र प्राप्त करते हैं।
4- पति-पत्नी उड़द और चावल की खिचड़ी पकाकर उसमें घी व ऋषभ या उक्षण डालकर खाते हैं तो विद्वान, प्रकांड पंडित, सुंदर वाणी बोलने वाला तथा पूरी आयु भोगने वाला पुत्र प्राप्त करते हैं। वीर्य को बढ़ाने वाली यह खिचड़ी घी में मिलाकर पति-पत्नी दोनों सेवन करें।
5- मनचाही संतान के लिए उपरोक्त में से कोई भी एक भोजन पत्नी को कराने के बाद शयन के समय पत्नी से कहें कि मैं दसवें माह में प्रसव होने के लिए गर्भाधान करता हूं। पृथ्वी जैसे अग्नि गर्भा है, आकाश जैसे सूर्य के द्वारा गर्भित हैं, दिशाएं जैसे वायु के द्वारा गर्भवती हैं, मैं तुमको उसी प्रकार गर्भअर्पित करके गर्भवती करता हूं। इतना कहने के बाद स्त्री के साथ समागम करें।
6- गर्भाधान जब सुखपूर्वक हो जाए तब प्रसव के समय कहें- जैसे वायु हर चीज को हिला देता है, वैसे ही तुम्हारा गर्भ भी अपने स्थान से खिसक कर साथ बाहर निकल आएं। तुम्हारे तेजस्वी गर्भ का मार्ग रुका हुआ और से घिरा है। गर्भ के साथ जेर भी बाहर आ जाए तथा गर्भ निकलने के समय जो मांसपेशी बाहर निकला करती है, वह भी निकल आए।
7- पुत्र जन्म हो जाए तब अग्नि जला कर पुत्र को गोद में लें। बाद में बालक के दाहिने कान में अपना मुख लगाकर ‘वाक्, वाक्, वाक्’ इस प्रकार तीन बार जपें। इसके बाद दूध, दही और घी का तरल मिश्रण सोने या चांदी के बर्तन में रखकर ‘भूवस्ते दधामि’, ‘भुवस्ते दधामि‘, स्वस्ते दघानि’, ‘भुर्भुवः स्वः सर्वं तवयि दघामि, यूं कहने के बाद उसे चार बार चटाएं। इसके बाद शिशु को माता की गोद में रखकर तथा स्तन पकड़ा कर बोलें – ‘हे सरस्वती, तुम्हारा जो स्तन दूध का अक्षय भंडार तथा पोषण का आधार है, जो रत्नों की खान है और सम्पूर्ण धन-राशि का ज्ञाता है तथा जिससे तुम सारे पदार्थों का पोषण करती हो, तुम इस मेरे पुत्र के जीवन-पोषण के लिए उस स्तन को मेरी पत्नी में प्रवेश करा दो।
8- इतना सब हो जाने के बाद पिता बालक की माता को इस तरह से अभिमंत्रित करे और कहे कि तुम ही पूजनीय अरुंधती हो। हे प्रिये! तुमने वीर पुत्र को जन्म देकर हमें वीर पुत्र का पिता बना दिया है। तुम वीरवती होओ। मैं चाहता हूं, लोग मेरे पुत्र के बारे में यह कहते न थके कि तू नि:संदेह रूप से अपने पिता से भी श्रेष्ठ निकला। उपरोक्त विधि के संपन्न होने से जो पुत्र होता है, वह धन, यश और ब्रह्मतेज के द्वारा सर्वोच्च स्थान को प्राप्त करता है।
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