Last Updated on September 1, 2019 by admin
मंत्र किसे कहतें है ? :
“मनन त्राण धर्माणो मंत्रः।”मंत्रार्थ मंजरी के इस सूत्र में मंत्र का समस्त ज्ञान-विज्ञान समाहित है। श्रद्धा और निष्ठा के साथ मंत्र के मनन और चिंतन से परमात्मा का सिंहासन डोल उठता है और वह भी प्रकट हो उठते हैं।
मंत्र जाप के लाभ :
यही अशक्ति और अभाव को दूर कर मुक्ति का पथ प्रशस्त करता है। मंत्र से जहाँ भौतिक सुख-संपदा की प्राप्ति होती है वहीं आत्मिक समृद्धि का लाभ भी मिलता है। यह लौकिक विज्ञान तथा आत्मिक ज्ञान का अमोघ साधन है।
मंत्र शिव और शक्ति का वह सूक्ष्म स्वरूप है जिसमें अद्भुत सामर्थ्य भरी पड़ी है। इसलिए जॉन वुडरफ ने इन दोनों के समुचित समन्वय को ही मंत्र की संज्ञा दी है। मंत्र में विद्यमान वाच्य और वाचक रूपी दो ऐसी शक्तियाँ हैं, जो भौतिक साधन-सुविधा से, लेकर मोक्ष तक देने में समर्थ होती हैं। वाच्य शक्ति मंत्र की आत्मा है। उपासक ही उसकी प्रेरणा शक्ति है।
इष्टदेव के अनुग्रह विशेष को भी मंत्र कहा गया है। देवशक्तियों के सूक्ष्म स्वरूप को भी मंत्र कहते हैं। वस्तुत: मंत्र मनन । विज्ञान है। किसी चीज का बारंबार विचार करना मनन कहलाता है। बार-बार विचार करने से उसमें मन रम जाता है और वह स्वभाव बन जाता है। मंत्र में इष्ट का मनन एवं ध्यान किया जाता है। अत: अपने मंत्र के अनुरूप इष्ट साधक का स्वभाव बन जाता है। वह जिस मंत्र की साधना करता है उसी मंत्र के गुण-धर्म के अनुरूप उसकी वृत्तियाँ बन जाती हैं। सूर्य के मंत्र से पवित्रता एवं प्रखरता में वृद्धि होती है। गायत्री मंत्र को सद्बुद्धि का मंत्र माना गया है। इसी प्रकार हरेक मंत्र की अपनी विशिष्टताएँ होती हैं। आइये जाने मंत्र जाप कैसे करना चाहिए
मंत्र जाप कैसे करें / जप करने के नियम :
विधि-विधानपूर्वक की गई मंत्र साधना अचूक एवं लाभप्रद होती है। इस साधना के लिए चार चीजों पर ध्यान देना आवश्यक है।
❂ मंत्र के स्वर एवं ध्वनि का उच्चारण शुद्ध होना चाहिए।
❂ संयम से ही मंत्र साधना सधती है। शारीरिक एवं मानसिक संयम का पालन करते हुए उसकी शक्तियों को मंत्र साधना में नियोजित करना चाहिए।
❂ शुद्धता भी एक आवश्यक अंग है। माला, आसन आदि उपकरणों का शुद्ध एवं पवित्र होना जरूरी है।
❂ इन सबमें सर्वोपरि है श्रद्धा और विश्वास की भावना । यह भावना ही मंत्र-साधना का मूल रहस्य है। साधनारूपी समस्त ज्ञान-विज्ञान का यही एकमात्र आधार है। जिस मंत्र की साधना की जाए सर्वप्रथम उसके प्रति मन में प्रबल विश्वास एवं हृदय में अगाध श्रद्धा हो। इसी के आधार पर ही चमत्कारी प्रतिफल देखे जा सकते हैं।
❂ मंत्र-जप मात्र जिह्वा की प्रक्रिया नहीं है। जिह्वा से बोले गए मंत्र का प्रभाव उतना प्रभावोत्पादक नहीं हो सकता, जब तक उसमें हृदय की भावना का समन्वय न हो। मंत्रोच्चारण में जिह्वा की जितनी महत्ता होती है। भावना की भी उतनी ही होती है।
❂ शरीर सूक्ष्म शक्तियों का केंद्र है। इसके विभिन्न अंगउपांगों में इन शक्तियों का भंडार भरा पड़ा है। ये संस्थान वाणी से संबंधित होते हैं। वाणी मात्र बाहरी प्रभाव ही नहीं छोड़ती, बल्कि इसका आंतरिक प्रभाव भी पड़ता है। जब शब्द बोले जाते हैं, तो जिह्वा की नस-नाड़ियाँ और स्वरक्रम उन प्रसुप्त संस्थानों को झंकृत कर देती हैं। प्रसुप्त शक्तियाँ जाग्रत् होने लगती हैं, जैसे सितार के तारों को छेड़ते ही उसमें से कई प्रकार के स्वर उठने लगते हैं और यदि इस वाद्य का पारंगत उसे बजाए तो मन और भावना को उद्वेलित कर देने वाली न जाने कितनी धुनें निकलने लगती हैं। इसी प्रकार विशिष्ट मंत्र का प्रभाव शरीर संस्थानों पर विशेष प्रकार से पड़ता है। मंत्रोच्चारण करते समय सारा स्वर संस्थान झंकृत हो उठता है। शरीर के इन संस्थानों में हलचल मच जाती है और मंत्र के अनुरूप ऐसी ऊर्जा तरंगें विनिर्मित होती हैं कि मंत्र का देवता अवश हो जाता है। वह साधक के पास दौड़ता-खिंचा चला आता है, परंतु ‘उसके साथ भावना का पुट भी होना चाहिए। श्रद्धा और निष्ठा का संयोग भी होना आवश्यक है। इस तरह उच्चारण वह बाहरी ढाँचा है, जिसके अंदर भावना प्राण फूंकती है। इसी कारण हृदय और जिह्वा को शिव-शक्ति, प्राण-रयि और अग्नि-सोम के रूप में अलंकृत किया जाता है। इसी में मंत्र का रहस्य छुपा है। यही मंत्र की वैज्ञानिकता है, जिसे मंत्र के चमत्कार के रूप में देखा जाता है।
मंत्र जाप से अदभुत सामर्थ और सिद्धियां :
❈ प्राचीनकाल में मंत्र शक्ति के विशेषज्ञ मांत्रिक हुआ करते थे, जो अद्भुत एवं आश्चर्यजनक कार्य करते थे। तिब्बत के लामा इसमें बड़े ही पारंगत एवं प्रवीण थे। २६ जनवरी १९४१ के एक अंगरेजी अखबार ट्रिब्यून में अलाई जइलिज गर्लेय का एक लेख छपा था। इसमें मंत्र के माध्यम से वर्षा रोकने का उल्लेख किया गया है। उसके अनुसार एक नृत्यस्थल पर लामाओं का नृत्यगान चल रहा था। सभी इस नृत्य का आनंद उठा रहे थे, परंतु यह आश्चर्यजनक दृश्य था कि केवल नृत्यस्थल के अलावा चारों ओर मूसलाधार बारिश हो रही थी। विशेषज्ञों के अनुसार यह मंत्र का ही प्रभाव था। नि:संदेह मंत्र में चामत्कारिक शक्ति होती है। कोई मंत्र साधक ही इस दिव्य अनुभूति से परिचित हो सकता है, परंतु इसके प्रभाव को सामान्य रूप से देखा भी जा सकता है।
❈ इसी संदर्भ में अलाइस इलिजाबेथ ने अपने ग्रंथ ‘वाइज ऑफ मिस्टिक इंडिया’ में स्पष्ट किया है कि लामा मंत्रोच्चारण कर ओलों के बड़े टुकड़ों को तोड़ देते हैं और खेती की रक्षा करते हैं। उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गरज को वह बंद कर देते हैं। जब ओले गिरने आरंभ होते हैं तो वे मंत्रोच्चारण करते हैं और ओलावृष्टि बंद हो जाती है।
❈ संत-महात्माओं के जीवन में यह अद्भुत घटना सामान्य रूप से देखी जा सकती है। वे लोक-कल्याण के लिए इस शक्ति का प्रयोग करते हैं। शब्द शक्ति का स्फोट मंत्र शक्ति की रहस्यमय प्रक्रिया है और वे इस रहस्य के मर्मज्ञ होते हैं। अणु विस्फोट के समान इससे अनंत ऊर्जा उत्पन्न होती है और साधक स्वयं शक्तिमान होता है तथा औरों की सेवा-सहयोग करने में इसे नियोजित करता है। यही मंत्र साधना का श्रेष्ठ स्वरूप है।
❈ प्राचीनकाल में इस अपरिमित ऊर्जा का उपयोग युद्ध के दौरान किया जाता था। उन दिनों दिव्य अस्त्र-शस्त्र मंत्र चालित होते थे। विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का पाशुपत अस्त्र, ब्रह्मा का ब्रह्मास्त्र, दधीचि की अस्थियों से विनिर्मित इंद्र का वज्र ये सभी मंत्र से परिचालित होते थे। मंत्र शक्ति से शत्रु सेना में अग्नि की ज्वालाएँ भड़क उठती थीं और मंत्र के माध्यम से इस अग्नि को बुझाने के लिए वर्षा भी कर ली जाती थी।
आधुनिक विज्ञान मे ध्वनि तरंगों का उपयोग :
वर्तमान में ध्वनि कंपनों से हथियारों का निर्माण किया जा रहा है। विज्ञान की आधुनिक प्रयोगशालाओं में अब विज्ञान के अन्य अनेक प्रयोग-परीक्षणों के साथ ध्वनि को धारदार एवं असरदार अस्त्रों का रूप दिया जा रहा है। ध्वनि निर्मित इन हथियारों का प्रभाव बड़ा ही खतरनाक सिद्ध हो सकता है। वैज्ञानिक मान्यता है कि ये अस्त्र तीव्र आवाज से व्यक्ति के मानसिक संतुलन को बिगाड़ सकते हैं, इसलिए ध्वनि तरंगों को शक्तिशाली किरणों या गोली का आकार दिया जा रहा है।
इस संदर्भ में कैलिफोर्निया के साइंस एप्लीकेशन्स एंड रिसर्च एसोसिएट्स संस्था में सोनिक बुलेट नामक आवाज की गोली विकसित की जा रही है। इस अनुसंधान में निरत वैज्ञानिक कहते हैं कि ये गोली दिखाई नहीं देतीं, लेकिन बड़ी ही असरदायक होती हैं। इनमें इतनी आवाज होतो है कि दंगा-फसाद वाले भाग खड़े होते हैं । इस गोली की अति उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि से व्यक्ति भ्रमित हो सकता है। अगर इसकी आवृत्ति और अधिक बढ़ा दी जाए, तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती हैं। इन सोनिक बुलेट के द्वारा फूटबाल के मैदान जितनी दूरी पर स्थित लक्ष्य पर वार किया जा सकता है।
ध्वनि तरंगों को गोली की आकृति प्रदान करने के लिए विशेष तकनीक को प्रयोग में लिया जा रहा है। उसके तहत यह ध्यान दिया जाता है कि तरंगें इधर-उधर बिखर न जाएँ और सीधे लक्ष्य तक पहुँचें। इससे इनकी मारक क्षमता में अभिवृद्धि होती है। अमेरिका में इस तकनीक को कर्डलर यूनिट कहा जाता है। यह कई प्रकार का प्रारूप बनाता है। इसे एच. पी. एस.-१ नामक ध्वनि प्रणाली में लागू किया जाता है। इसमें कान को फाड़ देने वाली भीषण आवाज निकलती है। इसकी ध्वनि तीव्र घातक स्तर से थोड़ी ही कम होती है।
इन अस्त्रों का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। रूस में तो इनका आविष्कार भी हो चुका है। वहाँ पर इन सोनिक बुलेट की तीव्रता दस हर्टज है और इससे सौ गज की दूरी तक प्रहार किया जा सकता है। दंगा-फसाद के लिए एकत्रित भीड़ को भगाने के लिए यह बड़ा ही कारगर सिद्ध हो सकता है।
ध्वनि की तरह विद्युत् तरंगों एवं अदृश्य विद्युत् चुंबकीय तरंगों से भी ऐसे ही घातक हथियार बनाने की प्रक्रिया चल रही है। इस परिकल्पना को मूर्त रूप देते हुए प्रायोगिक स्तर पर हथियारों का निर्माण भी हो चुका है। इलेक्ट्रिफाइड स्टेनगन को कम दूरी पर वार करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है तथा टेसर की मारक क्षमता लंबी होती है। इसके प्रभाव से मनुष्य चलने-फिरने लायक भी नहीं रह जाता है। इन हथियारों से निकलने वाली विद्युत् तरंगें अधिक वोल्टेज और कम एंपियर की होती हैं। इससे शरीर की मांसपेशियाँ खिंच जाती हैं तथा झटके लगते हैं। कई बार तो यह खिंचाव इतना जबर्दस्त होता है कि हड्डियाँ चटखने लगती हैं।
इन हथियारों से निकलने वाली किरणें व्यक्ति के कपड़े को भेदकर त्वचा पर प्रहार करती हैं। इनसे लगभग ६५० गज की दूरी तक वार किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कम तीव्रता वाली लेसर किरणों को एवं अधिक तीव्रतायुक्त स्ट्रोब लाइट को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रयोग चल रहे हैं।
किसी कार पर सवार होकर भाग रहे अपराधी या आतंकवादी को पकड़ने के लिए आर्गन लेसर किरणों के प्रयोग किए जा सकते हैं। हालाँकि यह एक परिकल्पना है, परंतु इसके प्रायोगिक निष्कर्ष बड़े ही सफल रहे हैं। अपराधी की कार की विंड शील्ड और खिड़कियों के शीशे पर इन किरणों की बौछार की जाएगी, इससे इन शीशों की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी और वह गहरे हरे रंग में परिवर्तित हो जाएँगे। परिणामतः चालक को बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं देगा और अंत में उसके सामने आत्मसमर्पण करने या जान देने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रहेगा।
इस प्रकार विज्ञान के इन ध्वनिचालित हथियारों में प्राचीन भारतीय काल के मंत्रपूरित अस्त्रों की झलक मिलती है। ध्वनि के इस प्रभाव को अब विज्ञान भी समझने लगा है। इसी तरह ध्वनि शक्ति का ही स्वरूप मंत्र में भी अपरिमित ऊर्जा होती है। हाँ, इसका उपयोग विवेक-बुद्धि के ऊपर निर्भर करता है कि उनका प्रयोग संहार के रूप में किया जाए या लोक-कल्याण एवं आत्मोत्थान के लिए। सदुपयोग में ही इसकी सार्थकता है और यह तभी संभव है जब बुद्धि परिष्कृत हो। इसके लिए गायत्री महामंत्र का जप करना चाहिए, जो हमारे अंत:करण को दिव्य, पावन एवं परिष्कृत करके हमारी बुद्धि को सन्मार्गगामी बनाता है।
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