Last Updated on January 30, 2024 by admin
मूंग दाल क्या है ? परिचय एवं स्वरूप : green gram in hindi
मँग एक द्विदलीय धान्य है। अपने पाचक गुणों के कारण सभी दलहनों में यह अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। मूंग का पौधा मझोले कद का, झालरा, एकदम हरा; पत्ते पान के आकार के मगर छोटे, खुरदरे, तना रोएँदार; पुष्प पीले-सफेद गुच्छों में लगते हैं, इन्हीं में फलियाँ बनती हैं, कच्ची हरी-तोतई, स्वादिष्ट, पकने पर काली पड़ जाती है, मगर अंदर दाना लंबोतरा हरा। ज्यादा देर पौधे पर रहे तो चटककर बिखर जाती है, अतः इससे पहले ही तीन-चार बार तुड़ाई की जाती है।
गेहूँ कटने के साथ इसे तुरत बो दिया जाता है और मक्का या चावल की फसल से पहले इसकी एक फसल ले ली जाती है। मूंग तुड़ाई के बाद पौधों को खेत में ही जोतकर धान के लिए खेत तैयार कर लिया जाता है, इसकी उत्तम हरी खाद बनती है। हरी मँग एशियाई देशों के साथ-साथ यूरोप और अमेरिका में भी उगाई जाती है। भारत के मैदानी भागों, विशेषकर उत्तर भारत में खूब उगाई जा रही है। मई-जून की प्रचंड गरमी में यह पककर तैयार हो जाती है। इसके हरे पौधे को पशु बड़े चाव से खाते हैं। भारत में मूंगदाल हजारों वर्षों से पारंपरिक आहार का हिस्सा रही है।
विविध भाषाओं में नाम :
- अंग्रेजी – Green gram,
- गुजराती – मग,
- तमिल – पाटचार, तेलुगूपाटचा,
- पंजाबी – मूंग,
- फारसी – बनोमाष, मासे सब्ज,
- बँगला – मुग, बुलट, खेरुया,
- मराठी – मँग,
- संस्कृत – मुङ्ग, सूपश्रेष्ठ, भुक्तिप्रद, हयानंद,
- हिंदी – मूंग, हरी दाल, छिलका दाल ,
मूंग दाल के गुणधर्म :
- निघंटुकारों की दृष्टि में मूंगदाल रस में मधुर, वीर्य में उष्ण, विपाक में मधुर एवं वात-पित्तनाशक है।
- यह मधुर, स्निग्ध, वादी, कफकारक, मलरोधक, मल को बाँधनेवाली है।
- इसका तेल कुछ पीला, गंधरहित, मधुमेह, शुक्रविकृति में हितकर तथा आँतों के लिए बलकारक है।
- इसके अलावा यह पचने में हलकी, स्वादिष्ट, गुणकारी तथा पौष्टिक गुणों से परिपूर्ण है।
- चरक तथा सुश्रुत ने भी इसे अत्यधिक गुणकारी माना है।
- मूंग का पसावन यानी पानी वायुकारक नहीं होता। यह पसावन रोगी को दूध जैसा लाभ देता है। लंबी बीमारी या ज्वर मुक्ति के बाद वैद्य लोग रोगी को मूंग का पसावन देने की सलाह देते हैं, यह वात-पित्त और कफ का शमन करता है, अतः रोगियों के लए अत्यंत हितकर है।
- इसके प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग में कार्बोहाइड्रेट 19.5. शर्करा 2. खाने योग्य रेशे 7.6, प्रोटीन 23.62, स्नेह 2.69, कार्बोज 53.45 ग्राम कैल्सियम 27, फॉस्फोरस 99, पोटैशियम 266, सोडियम 2 मिग्रा. तक होते हैं।
मूंग दाल के उपयोग :
- संसार भर में मूंग की सर्वाधिक खपत दाल के रूप में है।
- इसके अलावा मूंग की दाल से पापड़, बडियाँ आदि बनाई जाती हैं; मूंग के पौष्टिक लड्डू बनाए जाते हैं और जाड़े की ऋतु में इनका सेवन किया जाता है।
- चावल में डालकर इसकी पौष्टिक खिचड़ी बनती है।
- मूंग की दाल का हलवा तो शादी-पार्टियों की शान है।
- मूंगदाल का पसावन रोगियों का उत्तम पथ्य है।
- मूंग दाल की पिट्ठी से स्वादिष्ट कचौरियाँ बनाई जाती हैं।
- नमकीन उद्योग में इसकी बड़ी खपत है।
- टायफाइड के रोगी के लिए मूंग दाल सबसे मुफीद है।
- चूंकि यह सुपाच्य होती है, अतः सबसे पोषक खाद्य मानी जाती है।
मूंग दाल के फायदे व उपयोग : moong dal ke labh in hindi
आयुर्वेदिक चिकित्सकों की यह सबसे पसंदीदा दाल है। रोगी व्यक्तियों के लिए यह अत्यंत हितकर मानी जाती है; आयुर्वेद चिकित्सा में प्राचीन काल से ही इसका उपयोग होता चला आ रहा है।
1-उत्तम शक्तिवर्धक :
ज्वर से पीडित या टायफाइड जैसी लंबी बीमारी से उठे रोगी नित्य मूंग की दाल खाएँ तो शरीर की शक्तिहीनता जल्दी ही दूर हो जाती है। रोगी को दाल के रूप में खिचड़ी बनाकर खिला सकते हैं। जिन रोगियों के लिए अन्न का सेवन बंद हो, उन्हें मूंग दाल का पसावन दें। फीका अच्छा न लगता हो तो इसमें स्वादानुसार नमक, कालीमिर्च पाउडर तथा हींग डाल देसी घी में तड़का लगाकर दें, यह रोगी को बल प्रदान करेगा।
2-ज्वर-बुखार :
ज्वर से पीड़ित रोगी को छिलकेवाली हरी दाल आँवले डालकर पकाएँ। इसे रोगी को सुबह-शाम खिलाएँ। इसके सेवन से ज्वर उतर जाता है तथा पेट भी साफ होता है, भारीपन नहीं रहता।
3-कब्जनाश :
जिन भाई-बहनों को बराबर कब्ज की शिकायत रहती है, पेट ठीक तरह से साफ नहीं होता है, वे दो भाग मूंग दाल तथा एक भाग चावल मिलाकर खिचड़ी बनाएँ। स्वादानुसार नमक डालें। ठंडी होने पर घी डालकर खाएँ। इससे मल बँधकर आएगा, पेट साफ होगा और कब्ज नहीं रहेगी।
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4-चर्म रोग :
दाद, खाज, खुजली आदि चर्म रोगों में छिलकेवाली मूंग दाल को उतने पानी में या मिट्टी के बरतन में भिगोएँ कि दाल सब पानी सोख ले, फिर इस दाल को बारीक पीसकर पेस्ट बनाएँ। रात को इसे पीडित स्थान पर लगाएँ। प्रातः धोकर पुनः लगाएँ, इस तरह कुछ सप्ताह के प्रयोग से चर्म रोग में फायदा होता है।
5-जल जाने पर :
असावधानता के कारण आग, गरम पानी, चाय-कॉफी आदि से शरीर का कोई अंग झुलस जाए तो तुरंत मूंग दाल को पानी में पीसकर जले स्थान पर लेप कर दें। इससे जलन शांत होकर ठंडक पड़ जाती है।
6-पसीने की बदबू :
जिन भाइयों को अकारण ज्यादा पसीना आता है, पसीने से दुर्गंध आती हो तो मूंग के दानों को थोड़ा सेंककर बारीक पीस लें। स्वच्छ पानी मिलाकर इसका लेप बनाएँ, इससे शरीर की मालिश करें। कुछ दिनों के प्रयोग से ही अधिक पसीना आना तथा पसीने से दुर्गंध आना बंद हो जाएगा।
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7-बच्चों के लिए :
दालें पौष्टिक गुणों से भरपूर होती हैं, मूंग की दाल तो उत्तम पाचक भी है। अतः बढ़ रहे बच्चों को यह दाल अवश्य खिलानी चाहिए; यह उनका भरपूर पोषण करती है; बद्धि तेज होती है, शरीर में फरती तथा चैतन्य बढ़ता है। मूंग की दाल बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद है। इनकी हड्डियों को मजबूत बनाती है।
8-खून की कमी :
ऐसे रोगी, जो खून की कमी से पीडित हैं और बराबर कमजोरी बनी रहती है, वे प्रतिदिन सुबह-शाम मूंग दाल का पसावन सेवन किया करें। दोनों समय एक-एक गिलास की मात्रा में पीने से शरीर में रक्त के साथ-साथ अन्य खनिज पदार्थों की पूर्ति होकर कमजोरी दूर होगी। इससे आँखें भी स्वस्थ रहती हैं।
9-मोटापा कम :
बहुत से लोग इन दिनों अनावश्यक मोटापे से परेशान हैं, वे अंकुरित मूंग प्रात:काल खूब चबा-चबाकर खाएँ या रात्रि में हर रोज मूंग की दाल खाएँ। कम खाने पर भी इससे भरपूर पोषण मिल जाता है, ज्यादा भोजन या अन्य चीजें खाने की जरूरत नहीं पड़ती, साथ ही मोटापा भी नहीं बढ़ता है।
10-कसरत के लिए :
जो लोग सेहत बनाने के लिए किसी भी प्रकार की कसरत किया करते हैं। और मेवा-दूध आदि महँगे तथा मिलावटी होने के कारण पौष्टिक आहार नहीं ले पाते हैं, वे रात को एक कप मूंग तथा एक कप चना अथवा सोयाबीन स्वच्छ पानी में भिगो दें। प्रातः इनको खूब चबा-चबाकर खाएँ। इससे शरीर का भरपूर पोषण होगा।
11-मजबूत बाल :
मूंगदाल के सेवन से शरीर में ताँबा की आवश्यकता पूरी होती है। इससे दिमाग में ऑक्सीजन बिना किसी रुकावट के पहुँचकर बालों की जड़ों को मजबूती प्रदान करती है, जिससे बाल घने, लंबे और मजबूत होते हैं।
12- हृदयाघात :
मूंगदाल नित्य सेवन करने से दिल की धमनियों तथा कोशिकाओं में जमा कोलेस्टरॉल कम होता है और रक्त का संचार अच्छे ढंग से होता है, परिणामस्वरूप हृदयाघात की आशंका नहीं रहती है।
13-रक्तचाप :
मूंगदाल का सेवन शरीर में वसा को नियंत्रित करता है। इसमें मैग्नीशियम होने के कारण रक्तचाप को यह संतुलित रखने में मदद करता है, रक्त संचार को सुचारू बनाता है, उच्च रक्तचाप को नियंत्रण में रखता है। इन गुणों के कारण यह दाल मधुमेह के रोगी के लिए बड़ी फायदेमंद है।
14-मूंग के लड्डू :
मूंग को सेंककर उसका आटा बना लें। आटे में घी डालकर धीमे-धीमे चलाते हुए उसे भूनें, जब आटा कुछ ललाई में आ जाए तो बीच-बीच में उसके ऊपर दूध छिड़कते जाएँ, ऐसा करते हुए जब दाने पड़ जाएँ तो कड़ाही आँच पर से उतारकर खाँड़ या शर्करा, बादाम, पिस्ता, इलायची दाना, लौंग, कालीमिर्च आदि का पाउडर डालकर हाथ में घी लगाकर लड्डू बाँध लें। मूंग के ये लड्डू सुबह-सायं दूध के साथ खाएँ। ये लड्डू वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक एवं वातशामक हैं। सर्दी के दिनों में ये लड्डू गरमाहट, शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करते है।
मूंगदाल लौह तत्त्व (आयरन) की भी अच्छी स्रोत है। अतः अनीमिया में फायदेमंद है। मूंगदाल गर्भावस्था के दौरान पाचन की गड़बडियों को दूर करती है, इससे शरीर में शुगर का स्तर सामान्य रहता है।