नशीले(मादक) पदार्थों के सेवन से होने वाले रोग व दुष्परिणाम

Last Updated on August 5, 2019 by admin

शरीर को खोखला बनाते मादक पदार्थ :

नशीले पदार्थों (मादक पदार्थों) का सेवन आज के सभ्य और उन्नत समाज केलिये सबसे भयानक अभिशाप बनकर रह गया है। एक अनुमान के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक वयस्क आबादी किसी न किसी प्रकार के मादक पदार्थों के सेवन की अभ्यस्त बन चुकी है और यह प्रतिशत तो तब है जब समाज में इनके प्रति इतनी जागरूकता है और लोगों को इनके दुष्परिणामों के विषय में जानकारी है। वयस्क आबादी की अपेक्षा युवा पीढ़ी इनके जाल में शीघ्र फंस जाती है। शायद यही कारण है कि विश्व विघालयों और कॉलेजों के प्रांगणों में इन नशीले पदार्थों ने अपने पैर पसार लिये हैं तथा नशा निरोधक सभी प्रयास बेअसर होते प्रतित होने लगे हैं।

अलग-अलग लोग अलग-अलग कारणों से इनके अभ्यस्त बनते हैं व अलग-अलग नशों को अपनाते हैं पर सबसे अधिक सेवन शराब और तम्बाकू का किया जाता है। कुछ लोग इनका सेवन इसलिये करते है कि वे अपने आपको अधिक आधुनिक और सभ्य दिखाकर दूसरों पर रौव जमा सकें, तो कुछ लोग अपने एकाकीपन को भुलाने, उदासी के क्षणों को दूर करने अर्थात अपने गमों को भुलाने और विवाह शादी तथा खुशी के अवसरों पर प्रसन्नता को व्यक्त करने के उद्देश्य से इन्हें अपने गले से लगाते है। कुछ लोग अपने शरीर को तरो-ताजा और अधिक शारीरिक परिश्रम करते समय अथवा थकावट दूर करने के नाम पर इनका सेवन करते है। कुछ विधार्थियों और दूसरे अन्य कई व्यक्तियों को मानसिक एकाग्रता बनाने के लिये भी इनका सेवन करते देखा गया है। कुछ लोग अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ शारीरिक सम्बंध बनाने से पूर्व भी अपनी तथा कथित पौरूष शक्ति बढ़ाने के नाम पर इनका सेवन करते हैं। कुछ लोग शौच जाने से पूर्व इनका सहारा लेते देखे गये हं।

अक्सर इन मादक पदार्थों के सेवन की शुरूआत शराब या तम्बाकू (बीडी, सिगरेट,खैनी, तम्बाकू यूक्त गुटखे आदि) के रूप में होती है, जो बाद में कभी-कभी अधिक काल्पनिक आनन्द की प्राप्ति के लिये चरस, गांजा, भांग, हेरोइन, कोकीन, कुछ दर्द निवारक, अवसादक व उत्तेजना शामक औषधियों के सेवन तक पहुँच जाती है। किन्तु एक बात बिल्कुल तय है कि चाहे किसी भी मादक पदार्थ का सेवन किया जाए और चाहे किसी भी कारण से क्यों न किया जाये, उसकी प्रतिक्रिया शरीर पर अवश्य होगी और वह भी दुष्परिणाम युक्त। साथ ही इनका खामियाजा एक न एक दिन शरीर को भुगतना ही पड़ेगा चाहे रोगों के रूप में चाहे शारीरिक क्रिया हीनता के रूप में ।

मादक पदार्थ कई प्रकार के होते हैं। इनकी रासायनिक संरचना अलग-अलग तरह की होती है और शरीर पर इनकी प्रतिक्रिया भी अलग-अलग तरह से होती है।उसी प्रकार उनके शरीर पर कुप्रभाव भी पड़ते हैं। लोगों द्वारा सेवन किये जाने वाले कुछ प्रमुख मादक पदार्थ हैं शराब (ईथाइल एल्कोल) , तम्बाकू के उत्पाद (सिगरेट, बीड़ी, गुटखा, हुक्का, खैनी आदि), अफीम, चरस, गांजा, भांग, कोकीन, कोडीन आदि औषधियां, हेरोइन इत्यादि। इनमें से शराब और तम्बाकू के पदार्थों का सेवन सबसे ज्यादा और अधिक लोगों द्वारा किया जाता है। इनमें से शराब तो केवल पीने वाले के शरीर पर अपना अधिकार दिखाती है पर तम्बाकू तो बिना बुलाये मेहमान के रूप में अपरिचितों के शरीर में पहुँचकर अपना प्रभाव दिखा सकती है।

कम मात्रा में शराब शरीर पर उत्तेजक प्रभाव डालती है। मुँह, कन्ठनलिका और आमाशय आदि में इसके कारण गरमाहट का अहसास पैदा होता है, मुँह में लार व आमाशय में जठर रस का स्त्राव भी बढ़ता है और रोगी को भूख की अनुभूति होने लग जाती है। यह हृदय पर भी प्रभाव डालकर ह्रदय की धमनी को चौड़ा कर हृदय को रक्त की आपूर्ति में भी सहायक बनाती है, किन्तु अधिक मात्रा में यह अवसादक प्रभाव पैदा करती है। उस समय व्यक्ति की सोचने की शक्ति घट जाती है तथा उसका स्वभाव बदल जाता है। परिणामस्वरूप कुछसमय के लिये व्यक्ति अपनी चिन्ताओं, गमों, दुखदर्द को भूलकर काल्पनिक आनन्द का अनुभव करने लग जाता है। शराब के विपरीत तम्बाकू मस्तिष्क पर शामक प्रभाव डालता है, अर्थात यह व्यक्ति के सोचने को तो प्रभावित नहीं करता किन्तु उत्तेजित स्नायुओं पर प्रतिक्रिया कर उन्हें शांत करने में मदद करता है, फलस्वरूप व्यक्ति अपनी थकावट को भूलकर पुनः अपने आपको तरो-ताजा और चुस्त अनुभव करने लग जाता है। परंतु यह स्थिति अधिक दिनों तक जारी नहीं रहती। शीघ्र ही मस्तिष्कीय कोशिकाएं और स्नायु इनके लगातार सेवन से अभ्यस्त बनती चली जाती है और उनमें इन नशीले पदार्थों के प्रति एक प्रकार का प्रतिरोध पैदा होने लग जाता है, अर्थात व्यक्ति को उसी स्तर की काल्पनिक आनन्द की अनुभूति प्राप्त करने के लिये इन पदार्थों की अधिक मात्रा में जरूरत पड़ने लगती है। अतः उसे इनका सेवन बार-बार और अधिक मात्रा में करना पड़ता है। यह क्रम लगातार जारी रहता है। कुछ समय पश्चात् उसे पहली मात्रा से दुगनी, चौगुनी और अधिक गुनी मात्रा में इनका सेवन करना पड़ता है।

कम मात्रा में पूर्ण नशे की अनुभूति न मिल पाने के कारण व्यक्ति को इनकी मात्रा में वृद्धि करनी पड़ती है, किन्तु इनके अत्यधिक महंगे होने के कारण विशेषकर शराब के अधिकतर व्यक्ति इनके स्थान पर कम मात्रा में अधिक नशा पैदा करने वाले तथा सस्ते मादक पदार्थों की शरण में पहुंच जाते है। कई बार तो। जब व्यक्ति को शराब या तम्बाकू के कम प्रभावशाली नशे से पूर्ण संतुष्टि नही मिल पाती तो वह सीधे ही तीक्ष्ण और प्रभावशाली नशों को अपनाता है। अफीम, कोकीन, मोरफीन, चरस, गांजा, ब्राउन शुगर, कई प्रकार की कोडीन युक्त औषधियां दस्त रोकने वाली कुछ औषधियां, दर्द निवारक व शान्तिदायक कई प्रकार की औषधियां तथा महलम आदि इसी श्रेणी में आती है। शरीर पर इन मादक पदार्थों का प्रभाव अतिशीघ्र होता है।

नशीले पदार्थों के दुष्परिणाम / मादक पदार्थों के कु-प्रभाव :

सभी प्रकार के मादक पदार्थों का शरीर के मस्तिष्क पर तो प्रभाव होता ही है पर अन्य महत्वपूर्ण अंग भी इनके पड़ने वाले कुप्रभावों से नहीं बच पाते हैं, जिनका परिणाम बाद में विभिन्न रोगों तथा इन अंगों की कार्य क्षमता घट जाने के रूप में सामने आता है । प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति सीधे ही इन मादक पदार्थों के कुप्रभाव से अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
इनके अतिरिक्त यातायात दुर्घटनाओं, लड़ाई-झगड़े, मार-पीट, हिंसा, लूट-पाट, बलात्कार आदि के अधिकांश मामलों के पीछे इन मादक पदार्थों की एक प्रमुख भूमिका होती है।शारीरिक शक्ति घटने से लोग परिश्रम कम कर पाते है अथवा अपने कार्य पर ध्यान केन्द्रित नहीं रख पाते, जिनका परिणाम निकलता है आमदनी का घट जाना। मादक पदार्थों की खरीद पर भी उसे अपनी आमदनी का एक बड़ा भाग लगातार खर्च करना पड़ता है, उससे भी उसमें परिवार की आय पर बोझ बढ़ता हैं। आमदनी कम तथा खर्च अधिक के परिणामस्वरूप परिवार की ठीक प्रकार से परिवरिश नहीं हो पाती और धन में नित-प्रति क्लेश रहने लग जाता है, जिसका परिणाम अनेकों बार बड़े भयानक रूप में निकलता है।

मादक पदार्थों का शरीर पर दुष्प्रभाव :

विभिन्न नशीले पदार्थों का शरीर के विभिन्न अंगों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव होता है, जैसे कि शराब, तम्बाकू, अफीम, कोकीन, चाय/कॉफी आदि को ही देखें –

शराब के दुष्प्रभाव –

शराब,सर्वाधिक सेवन किया जाने वाला मादक पेय पदार्थ है। ब्रिटेन जैसे विकसित देश, स्कॉटलैंड, वेल्स में तो 95 प्रतिशत पुरूष और 89 प्रतिशत स्त्रियां शराब का आनन्द लेते हैं। शराब का सेवन वहाँ के लोगों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित तीसरी मुख्य समस्या है।

शराब को अक्सर मुँह के द्वारा ही सेवन किया जाता है, पर यह नाक के रास्ते फेफड़ों तक पहुंच कर अपना हल्का प्रभाव दिखा सकती है। शराब पीने के तुरंत पश्चात आमाशय, छोटी आँत्र में पहुंचते ही बिना किसी खास परिवर्तन के सीधे ही (C2H2OH- इसे ईथायल एल्कोहल कहा जाता है और शराब के नाम पर इसे ही विभिन्न सान्द्रता के रूप में, सेवन किया जाता है।) तेजी से अवशोषित होकर रक्त में मिलने लग जाती है। 20 प्रतिशत के लगभग शराब का अवशोषण तो आमाशय में ही सम्पन्न हो जाता है तथा शेष का मध्यांत्र तक ही अवशोषण हो जाता है । 10 प्रतिशत शराब शरीर में ही आक्सीकृत होकर कार्बनडाई ऑक्साइड और पानी में बदल जाती है व कम मात्रा में उर्जा का उत्पादन करती है, किन्तु शरीर में प्रति घंटे 10 मि.ली. की दर से ही शराब का आक्सीकरण हो पाता है, इसी कारण यह उर्जा उत्पादन का कोई स्त्रोत नही है। शराब के ऑक्सीकरण की शुरूआत यकृत में इन्सुलिन की मदद से ही सम्पन्न हो पाती है। अतः इन्सुलिन की आवश्यकता इस समय बढ़ जाती है। शराब के ऑक्सीकरण के लिये इसके अतिरिक्त थायमिन और निकोटिननिक अम्ल की भी आवश्यकता रहती है।

शराब शरीर के लगभग समस्त उत्तकों, तथा केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क) पर अवसादक प्रभाव डालकर उसकी अनुभूति व सोच को प्रभावित कर देती है। शराब का यह प्रभाव एक तरह से संज्ञाहीनता के समान होता है। अन्य अंगों पर प्रभाव डालकर यह श्वसन गति को घटाती है, जबकि नाड़ी की गति को बढ़ाती है। रक्त वाहिकाओं को फैलाकर रक्तसंचार को बढ़ाती है, विशेषकर त्वचा, हृदय व जननेन्द्रियों के स्थान पर, जिससे शरीर अधिक मात्रा में ताप का उत्पादन करने लग जाता है।

अत्यधिक मात्रा में शराब के सेवन से तंत्रिका संबंधी एक और रोग होजाता है, जिसमें आंखों की पुतलियों की गति देने वाली मांस पेशियों को लकवा मार जाता है, जिसे ‘ओप्थैल्मोप्लेजिया’ कहा जाता है। हाथ, पैर के स्नायु कमजोर पड़ सकते हैं, जिससे चलने-फिरने में भी असुविधा होने लग जाती है।

शराब का पाचन संस्थान पर दुष्प्रभाव –

अधिकांश शराब का अवशोषण आमाशय और मध्यांत्र तक ही संपन्न हो जाता है। यों इसके अवशोषण की गति, इसकी सान्द्रता कुछ खाद्य पदार्थों की उपस्थिति पर निर्भर करती है, जैसे कि वसीय पदार्थों के साथ इसके सेवन से इसकी अवशोषण की गति धीमी पड़ जाती है और शराब अधिक समय तक आमाशय व आँत में रूकी रहती है, इसी कारण खाली आमाशय की तुलना में भोजन के समय पिये जाने पर इसका प्रभाव धीमे होता है।

कम मात्रा में शराब गले व आमाशय में गर्माहट देती है तथा थूक और जठर रस के स्त्राव को बढ़ाती है। इस जठर रस के स्त्राव में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की मात्रा अधिक तथा पेप्सिन नामक एन्जाइम की कमी होती है, जबकि अधिक सान्द्रता वाली शराब आमाशय की श्लेष्मिक झिल्ली को अधिक नुकसान पहुँचा कर जठर रस स्त्राव को अवरूद्ध भी कर सकती है। शराब आमाशय की आँतरिक भित्ति पर प्रभाव डालकर इसके सामान्य क्रिया कलाप को प्रभावित करती है, जिससे जठर अम्ल भित्ति पर क्षोभक प्रभाव डालकर उसमें शोथ (आमाशय शोथ) तक पैदा कर डालता है आमाशय शोध की यह दशा अधिकतर शराब का सेवन करने वाले लोगों में देखने में आती है।

अमेरिका में कंठ नलिका के कैंसर वाले 75 प्रतिशत से अधिक रोगी अधिक शराब का सेवन करने वाले पाये गये हैं।
शराब का सेवन करने वाले 10 प्रतिशत लोगों में यकृत संबंधी एक विशेष रोग ‘यकृत सिरोसिस’ हो जाता है। यकृत सिरोसिस के कारण इन रोगियों को यकृतीय उच्च रक्तचाप और फिर अफरा, भूख की कमी, मितली, वमन, प्लीहा का आकार में बढ़ जाना आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते है। सिरोसिस के 3 से 5 साल के भीतर घातक लक्षण सामने आने शुरू हो जाते हैं।

अत्यधिक मात्रा में लगातार शराब के सेवन से यकृत कोशिकाओं में शोथ (यकृत शोथ) उनकी कार्य क्षमता समाप्त व अन्य यकृत संबंधी कई रोग हो जाते हैं, जिससे कभी-कभी यकृत आकार में बढ़ जाता है और वसा (चर्बी) से भरा हुआ प्रतीत होता है। यकृत रोगों के कारण रोगी की भूख समाप्त , जी मिचलाना और वमन जैसे लक्षण भी शुरू हो सकते हैं। रोगी को अपने शरीर में हल्का ज्वर और पेट में यकृत के स्थान पर दर्द प्रतीत हो सकता है। जैसे-जैसे शराब के कुप्रभाव से यकृत का रोग बढ़ता जाता है, रोगी के पैरों , चेहरे और सारे शरीर पर सूजन आने लग जाती है। पेट में पानी भरने लग जाता है। पेट में रक्तस्त्राव भी हो सकता है और वह खून की उल्टी कर सकता है या उसके मल के साथ रक्त आ सकता है। रोग के अन्तिम पड़ाव के रूप में पीलिया के लक्षण पैदा हो सकते हैं। व रोगी बेहोश हो सकता है।

यकृत में ही शरीर के लिये आवश्यक विभिन्न प्रकार की प्रोटीन व अन्य पदार्थों का निर्माण होता है। ये पदार्थ रक्त को जमाने, मांस पेशियां व उत्तकों का निर्माण करने तथा शरीर की सुरक्षा प्रणाली के लिये आवश्यक होते हैं, पर जब स्वयं यकृत ही बीमार पड़ जाता है तो यह पदार्थ और प्रोटीन आदि तैयार नहीं हो पाते। इससे रोगी अपने शरीर में थकावट महसूस करने लग जाता है, उसका वजन घटने लगता है, जरा सी चोट लगने या दाढ़ी बनाते समय कट जाने पर रक्त का बहना नहीं रूक पाता तथा शरीर पर विभिन्न प्रकार के संक्रमित रोगों को पनपने का अवसर मिल जाता है।शराबियों में अग्नयाशय संबंधी रोग जैसे कि अग्नयाशय की शोथ सामान्य लोगों की तुलना में अधिक व जटिल रूप में देखने को मिलते हैं।

शराबियों में एक आदत और भी होती है कि ये पीते (शराब)अधिक हैं, खाते (खाद्य पदार्थ) कम हैं, जिससे शरीर में विभिन्न प्रकार की विटामिन्स, खनिजों तथा प्रोटीन की कमीं उत्पन्न हो जाती है, जिनके कारण रक्ताल्पता व दूसरे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं।

स्त्रियों के गर्भावस्था के दौरान शराब पीते रहने से उनके पेट में पल रहे बच्चों को जन्म से ही कई प्रकार के रोग, विशेषकर मंदबुद्धि और शारीरिक अपंगता हो सकती है। ऐसे बच्चों का जन्म के समय वजन भी सामान्य की तुलना में काफी कम होता है। गर्भपात के अवसर भी शराब के सेवन से बढ़ जाते हैं।

तम्बाकू का दुष्प्रभाव –

तम्बाकू को प्राचीन काल से ही कई रूपों और कई तरह से सेवन किया जाता रहा है, यथा धूम्रपान के रूप में, नसवार के रूप में एवं चबाने के रूप में । तम्बाकू में निकोटिन नामक एक रसायन रहता है, यही तम्बाकू के मादक प्रभाव का मुख्य कारण है। निकोटिन की मात्रा, तम्बाकू पौधे के विभिन्न भागों और विभिन्न प्रजातियों में अलग-अलग रहती है। अधिकतर तम्बाकू का प्रयोग धूम्रपान के रूप में ही करते है। धुएं में मौजूद 90 प्रतिशत से अधिक निकोटिन का अवशोषण श्वांस द्वारा हो जाता है, जो मस्तिष्क के कुछ केन्द्रों और स्नायुओं पर प्रभाव डालकर शरीर में उत्साह या आनन्द का सा अनुभव कराते हैं।

तम्बाकू का पाचन तंत्र पर दुष्प्रभाव –

तम्बाकू (निकोटिन) का प्रभाव समस्त ऊतकों पर ही होता है। यह सूक्ष्म रक्त शिराओं में संकुचन पैदा करके रक्तचाप में वृद्धि करता है व हृदय के रक्त की आपूर्ति घटाकर हृदय शूल तक पैदा कर सकता है। धूम्रपान का सेवन करने वाले लोग अक्सर नेत्र ज्योति में कमीं या वर्णान्धता की भी शिकायत करते देखे गये हैं, यहाँ तक कि इससे पूर्ण अन्धापन भी हो सकता है।

पाचन संस्थान पर निकोटिन के प्रभाव से वमन और मितली आ सकती है, क्योंकि निकोटिन आमाशय में संकुचन पैदा कर देता है । जब यह संकुचन आमाशय के अतिरिक्त संपूर्ण पाचन तंत्र में शुरू हो जाता है तब व्यक्ति को कई बार मल त्याग के लिये जाना पड़ सकता है। वमन या मल की आवृत्ति से रोगी में पानी, खनिज लवण और विटामिन आदि की कमीं उत्पन्न हो सकती है।

तम्बाकू में निकोटिन के अतिरिक्त 4000 से अधिक और रासायन भी मौजूद रहते है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं, हाइड्रोजन साइनाइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, विजापायरेन के पदार्थ तथा पेलिनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व तम्बाकू के जलने के पश्चात जो धुंआ पैदा होता है, उसमें 5 प्रतिशत के लगभग तो अकेली कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस ही होती है, जो मनुष्य के लिये एक विषाक्त गैस है। हमारे रक्त में मौजूद एक लाल रसायन हीमोग्लोबिन से कार्बन मोनो ऑक्साइड की शक्ति ऑक्सीजन की तुलना में 200 गुना ज्यादा होती है। यही कारण है कि धूम्रपान करने वालों के रक्त की ऑक्सीजन ले जाने की सामर्थ्य बहुत घट जाती है, और व्यक्ति थोड़े से चलने फिरने या श्रम करने पर ही हांफने लग जाता है।

धूम्रपान रक्त में एपीनेफ्रिन और नोरएपीनेफ्रिन की मात्रा में वृद्धि करके व्यक्ति के रक्तचाप में वृद्धि करता है। तम्बाकू के धुएं में निकोटिन और कार्बन मोनो ऑक्साइड दोनों ही मोजूद होते हैं जो हृदय की मांस पेशियों के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता बढ़ाते है, जबकि कार्बन मोनो ऑक्साइड रक्त की आक्सीजन ले जाने की क्षमता घटाती है। निकोटिन रक्त प्लाज्मा के लिपिड और प्लेटलिट कोशिकाओं को भी प्रभावित करके रक्त के थक्का बनने की गति में वृद्धि करता है, जिससे हृदय वाहिनी रोगों की संभावना बढ़ती है। एक अनुमान के अनुसार तम्बाकू का सेवन करने वाले लोगों में तम्बाकू का सेवन न करने वालों से 70 प्रतिशत से अधिक हृदय संबंधी रोग होते है। तम्बाकू सेवन से 40 और 54 वर्ष के मध्य के लोगों में मृत्यु दर तम्बाकू का सेवन न करने वालों से 300 प्रतिशत अधिक है।

अफीम के दुष्प्रभाव –

अफीम भी एक चिर परिचित और प्राचीन समय से ही सेवन किया जाने वाला मादक पदार्थ है। यह शरीर पर अवसादक प्रभाव डालता है, जिससे व्यक्ति को न तो दर्द की अनुभूति होती है और न थकावट की। व्यक्ति की सोचनेविचारने की शक्ति भी नशे के दौरान अपने तक ही सिकुड़ कर रह जाती है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपने आप को चिन्ताओं से मुक्त अवस्था में पाता है।

अफीम के सेवन से कुछ लोगों में मितली, जी मिचलाना और वमन के लक्षण प्रकट हो जाते है, क्योंकि अफीम का मस्तिष्क के एक अंग मेडूलरी केन्द्र पर उत्तेजित तथा वेस्टीवूलर अप्रेटस पर अवसादक औषधि की तरह होता है। अफीम के सेवन से जठरान्त्र में भी कुछ परिवर्तन देखने को मिलते है और ग्रहणी में इसके कारण मरोड़ तक पैदा हो सकती है। यह कुछ विशेष तंत्रिकाओं को प्रभावित करके आँत की गति तीव्र कर सकती है, थूक, आमाशय स्त्राव तथा अग्नयाशय स्त्राव की मात्रा को घटाया अवरूद्ध कर सकती है।

अफीम आमाशय की गति को कम करके तथा जठर निर्गम की गति को बढ़ाकर आमाशय के खाली होने के समय को बढ़ाती है, अर्थात अफीम के कारण आमाशय को रिक्त होने में अधिक समय लगता है। इसी तरह यह छोटी और बड़ी आँत में पुरःसरण गति को धीमा करके मलाशय के भरने के समय को बढ़ाती है। तथा मल विसर्जन की गति को रोकती है, जिसके कारण अफीमचिओं को अक्सर कब्ज की शिकायत रहने लगती है। अफीम का औषधीय रूप में दस्तों के लिये इसी गुण के कारण उपयोग किया जाता है।

अधिक मात्रा में अफीम केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर तीव्र अवसादक प्रभाव डालकर श्वसन गति, रक्तचाप, नाड़ी की गति को कम करती है तथा रोगी की श्वसन क्रिया बंद हो जाने के कारण मृत्यु तक हो सकती है।

अफीम का सेवन करने वाले लोगों को अल्पपोषणता की शिकायत भी हो सकती है, जिससे कई अन्य रोग भी व्यक्ति में जन्म ले सकते है।

अफीम का एक रसायन है ‘मोरफीन’ जिसका प्रभाव भी शरीर पर अफीम की तरह ही होता है किन्तु अत्यधिक तीव्रता के साथ। इसीलिये इसके प्रयोग से उत्पन्न होने वाले कुप्रभाव भी अधिक भयानक और तीव्र रूप में पैदा होते

कोकीन के दुष्प्रभाव –

कोकीन भी एक तीव्र मादक पादर्थ है, जो कोको नामक एक पौधे से प्राप्त किया जाता है। कोकीन के अभ्यस्त अधिक लोग यूरोप और अमेरिका में ही है, किन्तु भारत में भी कुछ लोगों को कोकीन का सेवन करते पाया गया है।

कोकीन अपने प्रभाव से स्थानीय रूप में संवेदनासूचक स्नायुओं को कुछ समय के लिये लकवा ग्रस्त बना देती है। इसके अतिरिक्त यह श्वसन गति, नाड़ी की गति और रक्तचाप बढ़ाती है। स्थानीय रूप में आंख की पुतलियों को फैला देती है। शरीर के तापमान में वृद्धि करती है तथा रक्त ग्लूकोज के स्तर को भी बढ़ाती है।

मस्तिष्क के एक केन्द्र सेरीब्रम पर उत्तेजक प्रभाव डालकर यह मांस पेशियों की क्षमता बढ़ाती है तथा थकावट से छुटकारा दिलाती है। इसी कारण बहुत से मजदूर, किसान, खिलाड़ी आदि अपनी शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि करने के उद्देश्य से इसके अभ्यस्त बन जाते है।

चूंकि कोकीन का प्रयोग नसवार के रूप में नाक द्वारा किया जाता है, अतः इसके अभ्यस्त लोगों के नाक के अंदर जख्म बन जाते है।
कोकीन पाचन संस्थान को प्रभावित करके पाचन प्रक्रिया को कमजोर बनाती है, भूख घटाती है। और थूक (लार) के बनने तथा उसके स्त्राव को रोकती है। आहार में थूक के भली प्रकार से न मिल पाने के कारण उसका पाचन, आमाशय आदि में समुचित रूप से नहीं हो पाता है।

चाय और कॉफी का दुष्प्रभाव –

चाय और कॉफी ताजगी और स्फूर्ति प्राप्त करने के लिये सामान्य रूप से पिये जाने वाले पेय पदार्थ हैं, परंतु ये भी शरीर पर कुप्रभाव डालने से मुक्त नहीं है। इनमें 10 से अधिक ऐसे रासायन मौजूद रहते हैं जो शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालते है। इनमें से कुछ प्रमुख रासायन है कषाय अम्ल,टैनिन अम्ल (18 प्रतिशत) कैफीन (2.75 प्रतिशत) , धीन (3 प्रतिशत), पैमीन, वोलेटाडल, ऐरोमौलिक, काराबोलिक अम्ल, सादनोजेन, आक्जेलिकअम्ल तथा स्टिनायल आदि।

टैनिक अम्ल शरीर की रक्तनलिकाओं को कठोर बनाता है तथा उनमें रक्त संचार की गति को कम करता है। पेट में यह घाव व गैस पैदा करता है, जबकि कैफीन से एसिड अधिक मात्रा में पैदा होने लग जाता है, साथ ही यह गुर्दो को कमजोर करता है। कारबोलिक अम्ल भी आमाशय में पहुंच कर अति अम्लता के लक्षण उत्पन्न करता है। इसके कारण बुढ़ापा भी शीघ्र आता है। पैमीन भी व्यक्ति की पाचन शक्ति को घटाता है। यही कारण है कि अधिक मात्रा में व बार-बार चाय, कॉफी पीने वाले व्यक्तियों को अक्सर भूख की कमीं तथा पेट में अम्ल-पित्त जैसे रोग के लक्षण भी पैदा कर देता है। ऐरोमौलिक अन्तड़ियों में खुश्की पैदा करता है। साइनोजेन की अधिक मात्रा से अनिद्रा रोग या लकवा तक हो सकता है जबकि स्टिनायल रक्त विकार तथा नपुंसकता क लिये जिम्मेदार हो सकता है । वोलेटाइल नामक रसायन आँखों के लिये हानिकारक सिद्ध होता है।
इन रासायनों की मात्रा चाय की बड़ी पत्ती की अपेक्षा बारीक चूर्ण, जिसे क्वेज कहा जाता है और जो ज्यादा स्फूर्ति प्रदान करता हैं, मैं अधिक होती है। सामान्यतः इन दोनों पेय पदार्थों को उबाल करके पिया जाता है, जिससे इन रासायनों की मात्रा इन पेयों में बढ़ जाती है। इसीलिये इन पेय पदार्थों के सेवन से पाचन संबंधी विकारों के अतिरिक्त, हृदय की धड़कन बढ़ जाना, स्नायु संबंधी तनाव तथा अनिद्रा जैसे लक्षण भी उत्पन्न हो जाते हैं।

निष्कर्ष :

उपरोक्त मादक पदार्थों के संक्षिप्त अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ये सभी मादक पदार्थ शरीर के समस्त ऊतकों व पाचन संस्थान को सीधे-सीधे रूप में कुप्रभावित तो करते ही है, दूसरे रूप में भी इनकी कार्य क्षमता और सामर्थ्य को प्रभावित करते हैं और व्यक्ति क्षणिक आनन्द की भूल में धीरेधीरे अपने को रोगों के भयंकर जाल में फंसा लेता है।

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