आयोडीन क्या है ? इसके स्रोत ,कार्य व कमी से होने वाले रोग | Iodine In Hindi

Last Updated on July 6, 2022 by admin

आयोडीन क्या है ? और इसकी दैनिक आवस्यकता :

आयोडीन एक कुदरती तत्त्व है। यह हमारे जीवन के लिए बेहद जरूरी है। इससे ही हमारी गल-ग्रंथि (थाइरॉयड ग्लैंड) थायरॉक्सिन और ट्राई आडियो-थायरोनिन नाम के हार्मोन बनाती है, जिनके जरिए शरीर के बहुत से क्रियाकलाप पूरे होते हैं। इसके लिए हमें रोजाना सिर्फ 150 माइक्रोग्राम, या कहें, मात्र सुई की नोक-बराबर आयोडीन चाहिए।

आयोडीन के स्रोत :

आयोडीन प्राप्ती के अनेक स्त्रोत होते हैं। यह आयोडीन हमें अपने खान-पान से मिलती है। आयोडीनयुक्त जमीन पर उगनेवाले अनाज, कुछ साग-सब्जियों और पानी में ही इतनी आयोडीन मिली रहती है कि हमारी जरूरत पूरी होती रहती है। समुद्र के पानी में उगनेवाली वनस्पतियों में भी प्रचुर मात्रा में आयोडीन पाई जाती है।
लेकिन हर जगह की धरती आयोडीनयुक्त नहीं है। कई जगह मिट्टी और पानी आयोडीन से रहित होते हैं। ऐसे इलाकों में उगनेवाली फसल और जमीन से निकलनेवाला पानी भी आयोडीनरहित होता है। इसलिए इन इलाकों में रहनेवाले लोगों में आयोडीन की कमी हो जाती है।

आयोडीन के कार्य :

वैज्ञानिक खोजों से यह स्पष्ट हो चुका है कि आयोडीन से गल-ग्रंथि में बननेवाले हार्मोन शरीर और मस्तिष्क की सही वृद्धि, विकास और संचालन के लिए बेहद जरूरी हैं। शरीर की कई महत्त्वपूर्ण क्रियाएँ इन हार्मोनों के सही मात्रा में बनते रहने से ही पूरी हो पाती हैं।

आयोडीन की कमी से रोग और उनके लक्षण :

जब शरीर में आयोडीन की कमी बनी रहती है तब गल-ग्रंथि के पूरा सक्रिय रहने के बावजूद हार्मोन्स नहीं बन पाते। इससे शरीर में थाइरॉयड हार्मोन्स की कमी हो जाती है, जो अलग-अलग उम्र और अवस्था में तरह-तरह से प्रकट होती है।

1. घेघा रोग – इसका सबसे चिर-परिचित रूप घेघा यानी गल-ग्रंथि का बढ़ जाना है। यह रोग विकार आयोडीन की कमीवाले क्षेत्रों में बड़ी तादाद में पाया जाता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। शुरू की अवस्था में यह ग्रंथि इतनी बड़ी नहीं होती कि आम आदमी इसे पहचान सके।

इस अवस्था में अनुभवी डॉक्टर ही इसकी पहचान कर सकता है। पर जैसे-जैसे गल-ग्रंथि फूलकर बड़ी होती जाती है, इसका आकार इतना बड़ा हो जाता है कि वह दूर से ही दिखाई देने लगती है। इसके साथ-साथ थाइरॉयड हार्मोन्स की कमी के कारण व्यक्ति का मन-मस्तिष्क और शरीर भी ठीक से काम नहीं कर पाते । सोच-विचार की क्षमता शिथिल पड़ जाती है और हर समय सुस्ती और थकान बनी रहती है। ( और पढ़े – पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोग ,लक्षण और उपाय )

2. गर्भपात – लेकिन आयोडीन की कमी का सबसे गंभीर दुष्प्रभाव गर्भावस्था और बाल्यकाल में पड़ता है। स्त्री के शरीर में आयोडीन की कमी होने पर उसे बार-बार गर्भपात हो सकता है। जन्म लेने से पहले ही बच्चे की मृत्यु हो सकती है या जीवन के पहले हफ्ते में ही वह प्राण छोड़ सकता है या फिर बच्चे का विकास ठीक ढंग से नहीं हो पाता और उसमें तरह-तरह की विकृतियाँ आ जाती हैं। यह सब बच्चे में थायरॉक्सिन हार्मोन के सही मात्रा में न बन पाने के कारण होता है।

3. साँस की तकलीफ – कुछ बच्चों में इसके लक्षण प्रारंभिक जीवन से ही दिखने लगते हैं। बच्चे की त्वचा शुष्क, मोटी और खुरदरी हो जाती है, पेट फूला हुआ रहता है और वह हमेशा सुस्त-सा दिखाई पड़ता है। उसे साँस की तकलीफ हो सकती है। कब्ज रहती है। शारीरिक तापमान सामान्य से कम हो सकता है। आठ-दस हफ्ते का होने तक उसके चेहरे पर क्रेटिनिज्म के लक्षण उभर आते हैं-चेहरा फूला-फूला सा दीखता है, पलकें भारी, नाक मोटी और मुँह हमेशा खुला रहता है। जुबान मोटी होती है और बाहर निकली रहती है। ये बच्चे मंदबुद्धि होते हैं और शारीरिक विकास ठीक से न हो पाने के कारण उनका कद भी ठिगना रह जाता है। ( और पढ़े – प्रोटीन के श्रोत इसके फायदे और नुकसान )

4. भेगापन – कुछ बच्चों में आयोडीन की कमी के कारण भेगापन भी आ जाता है। कुछ में बहरापन और गंजापन। कुछ मांसपेशियों में संतुलन पैदा न हो पाने से ठीक से खड़े नहीं हो सकते और चलने-फिरने में कठिनाई महसूस करते हैं।

5. मिक्सीडीमा – यह रोग वयस्कों को होता हैं। जिनके आहार में पर्याप्त मात्रा में आयोडीन नहीं होता है। इसके कारण शरीर सूजन आ जाती है। और बहुत जल्दी थकार आने लगती हैं। व्यक्ति सुस्त आलसी, उत्साहहीन एवं थका सा दिखता हैं। शरीर की मांसपेशियाँ कमजोर एवं दुर्बल हो जाती हैं। हदय की गति मंद हो जाती है।

6. हाइपोथाइरॉयडिज्म – हिमालय की तराई में बस्तियों में किए गए विशेष सर्वेक्षणों और अध्ययनों में यह देखा गया है कि वहाँ लगभग पंद्रह फीसदी नवजात शिशु आयोडीन की कमी से उपजने वाले हाइपोथाइरॉयडिज्म से पीड़ित होते हैं। ( और पढ़े – आयरन के फायदे और नुकसान )

लेकिन आयोडीन की कमी सिर्फ तराई के इलाके तक सीमित नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि देश का बहुत बड़ा हिस्सा इस कमी से प्रभावित है। उत्तर में जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर-पूर्व का पूरा क्षेत्र, मध्य भारत में मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा, पश्चिम में महाराष्ट्र और पूर्व-दक्षिण में उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, केरल और तमिलनाडु के कुछ इलाके आयोडीन की कमीवाले क्षेत्र हैं।

हर पाँचवाँ भारतीय आयोडीन की कमीवाले इलाके का निवासी है। | इस व्यापक समस्या को देखते हुए ही देश में आयोडीनयुक्त नमक के उत्पादन और बिक्री का राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम शुरू किया गया है। कुछ ऐसा ही कार्यक्रम सन् 1920 के आसपास संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में प्रारंभ किया गया था। उनका अनुभव हमारे लिए एक मिसाल है कि कैसे प्रतिदिन के आठ-दस ग्राम नमक में मिली जरा सी आयोडीन हमें इसकी कमी से होनेवाले गंभीर विकारों से बचाए रख सकती है।

Leave a Comment

Share to...