Last Updated on October 6, 2020 by admin
नीम एक चैतन्य वृक्ष है। नीम का सेवन प्राचीनकाल से ही शक्ति लाभ का एक उपाय रहा है। नीम के बारे में सदियों पुरानी कहावत है, ‘नीम का खाया और बड़ों का सिखाया, शुरू में कड़वा लगता है, लेकिन बाद में मीठा’ । अमृततुल्य नीम में कई ऐसे गुण भरे पड़े हैं कि कोढ़ से लेकर बहुत सारी बीमारियों का इलाज इससे हो सकता है। यह वात, पित्त, कफ को भी दूर करता है और निस्तेज को तेज कर देता है।
नीम एक, लाभ अनेक :
नीम खाइए और पीजिए – नीम ठंडा भी है व गर्म भी। जो नीम की दातुन करेगा, नीम के पत्ते खाएगा, नीम का रस पिएगा, नीम के तले सोयेगा उसमें इतनी शक्ति आ जाएगी कि वह हमेशा स्वस्थ रहेगा।
नीम का रेशा-रेशा आपका सेवक है – नीम के पत्तों में प्रोटीन, कैल्शियम, लोह और विटामिन ‘ए’ काफी मात्रा में व गंधक अल्प मात्रा में है।
नीम की लकडी से टिकाऊ मकान बन सकता है। इसमें घुन नहीं लगता। जड़ व पत्ते की भी औषधि बनाई जा सकती है। पेस्ट बनता है। नीम की छाया, छिलका (छाल), पत्ते, फूल और डंठल सब उपयोगी हैं। यह वातावरण को शुद्ध करता है। मतलब यह है कि नीम के एक-एक रेशे में इंसान की तंदुरूस्ती का अमृत भरा है।
नीम कोढ़नाशक – नीम का सही इलाज नीम कर सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इसे सही माना है। चर्मरोगों पर नीम जादु सा असर करता है।
जितनी कड़वी उतनी मीठी – नीम की कटुता में कितनी मिठास और शीतल सुगंध है, इसका अनुमान आप नीम की दातौन करके सहजता से लगा सकते हैं। नीम छाल का पाउडर घाव भर देगा। उबटन की तरह लगाओ तो मुखड़ा संवार देगा। साग-सब्जी में खाओ तो नस-नस में स्फुर्ति भर देगा। काजल बनाकर लगाएं तो आंखों की ज्योति बढ़ा देगा। निम्बति सिञति अर्थात जो स्वास्थ्य को बढ़ाए।
नीम का संस्कृत में निम्न पर्याय है :
- निम्ब जो स्वास्थ्य वृद्धि करे।
- पिचुमर्द – कुष्ठ को नष्ट करनेवाला।
- अरिष्ट – शरीर को कोई हानि नहीं।
- हिंगुनिर्यास – जिसमें हींग के समान गोंद निकले।
नीम के 3 रुप :
- साधारण नीम का पेड़ भारत में सर्वत्र मिलता है।
- मीठा नीम 10 से 15 फीट ऊंचाई तक जाता है। इसके पत्ते कटे हुए किनार के नहीं होते। इसमें सफेद फूल लगते हैं।
- नीम – बकायन बड़े पत्तों गुच्छेदार फलों और चालीस फीट ऊंचाई में पाए जाने वाले नीम को आम भाषा में ‘बकायन’ कहते हैं। संस्कृत में ‘महानिम्ब’ कहते हैं इसका रस बहार के मौसम में (फाल्गुन-चैत्र) में नशीला और कुछ कड़वा होता है।
नीम के विविध औषधीय गुण :
नीम शीतल, खाने में कटुरस, जठराग्नि को मंद करनेवाला व वात, प्यास, खांसी, ज्वरकृमि, पित्त, कफ, वमन, कुष्ठ, प्रमेह आदि का नाश करता है।
- पत्ते : नेत्र रोग, गर्मी, कोढ़ और कफ को दूर करता है। इसके पत्ते कृमि नाशक, विष नाशक हैं। अरूचि और अजीर्ण को दूर करता हैं।
- फल : कफ और कृमि नाशक है।
- डंठल : खांसी, बवासीर, प्रमेह और कृमि जैसे विकार को मिटाता है।
- तेल : कृमि, कोढ़ और त्वचा के रोगों में मुक्ति दिलाता है। दांत, मस्तक, स्नायु और सीने के दर्द का निवारण करता है।
नीम शरीर को विकार-मुक्त करके पुष्ट और सबल बनाता है। नीम चेतना वर्धक है और दिमागी ताकत का भंडार है। नीम ऋतु स्राव (मासिक धर्म) को नियमित करता है। इसलिए महिलाओं के लिए विशेषतः अनुकूल है। गृहस्थ में रहे लोगों को नीम का लगातार अधिक सेवन वर्जित है।
नीम की रासायनिक संरचना :
- छाल में – निमबिन 4%, निमबिनीन 0. 001 %, निमबिडीन 0.4%, निम्बोस्टेराल 0.03 %, उड़नशील तैल – 0.02 %, टेनिन – 6.00 %, इसके अलावा मार्गोंसिन नामक एक तिक्त घटक होता है।
- बीज तैल में – गंधक, एक क्षाराभ, राल, ग्लाइकोसाइड तथा वसाम्ल होते हैं। एमिनोएसिड भी होता है। बीजों में 25% स्थिर तेल होता है।
- नीम के सार भाग में – टेनिन, कैल्शियम, पोटेशियम तथा लौह के लवण पाए जाते हैं।
- नीमताड़ी – किसी-किसी नीम को पर्याप्त मात्रा में जल मिलने पर 3-4 वर्षों में एक बार, एक सप्ताह तक उससे रस का स्राव होता है जिसे नीम ताड़ी कहते हैं। यह रस बोतल में लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। यह रस कीटाणुनाशक, रक्त शोधक होता है। कुष्ठ रोगों और चर्मरोगों को नष्ट करने वाला तथा मूत्रदाह, जीर्णज्वर और रक्त विकार को दूर करता है।
नीम के पत्तों के से जुड़े लाभ और औषधीय प्रयोग (Benefits of Neem Leaves in Hindi)
नीम के कई छोटे-छोटे प्रयोग भी हैं, जो बड़े गुणकारी सिद्ध होते हैं। कुछ प्रयोग प्रस्तुत हैं –
1. जहरीले कीड़े के काटने पर – नीम के पत्तों को महीन पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बरे (दतैया) बिच्छु आदि जहरीले कीड़े द्वारा काटे हुए स्थान पर लगाने से राहत मिलती है।
2. दाद – पत्तों को दही के साथ पीसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक होता है।
3. पुराने घाव – पत्तों को पीसकर पेस्ट बनाकर घाव पर रख कर बांधने से पुराने घाव का बहना रूक जाता है। इसे नासूर में लगाने से लाभ होता है।
4. कान बहना – नीम का तेल व शहद समभाग मिलाकर 2-2 बूंद कान में टपकाने से कान बहना बंद हो जाता है।
5. गुर्दे की पथरी – गुर्दे में पथरी हो तो नीम के पत्तों की राख 2 ग्राम प्रतिदिन पानी के साथ लेने से पथरी गलकर मूत्रमार्ग से निकल जाती है। पत्तों की राख तैयार करने के लिए पत्तों को जलाकर राख निकालकर पीस कर शीशी में भर लें।
6. स्तनों का दूध सूखाने – शिशु के देहान्त के बाद मां के स्तनों का दूध सूखाने के लिए, नीम के निम्बोलियों का गूदा पीसकर मोटा-मोटा लेप स्तनों पर प्रतिदिन स्नान से पहले लगाएं। कुछ दिनों के प्रयोग से दूध सूख जाएगा।
7. मलेरिया – मलेरिया ज्वर होने पर नीम की छाल का काढ़ा बनाकर, दिन में 3 बार 2 बड़े चम्मच पीने से ज्वर में आराम होता है और कमजोरी दूर होती है।
8. शीत पित्ती – नीम के तेल में कपूर डालकर इसे शरीर पर लगाकर मालिश करने से शीत पित्ती (आर्टिकेरिया) ठीक होती है।
9. दाँतों की मजबूती – नीम के फूलों का काढ़ा बनाकर कुल्ले करने से दांत व मसूढ़े मजबूत व निरोग होते है और मुख में दुर्गंध नहीं रहती।
नीम के अन्य फायदे :
नीम खासकर निम्निलखित रोगों में बहुत कारगर साबित हुआ है –
- नीम के ताजे पत्ते का रस निकालकर 2-2 बूंद नाक कान में टपकाने से कान का बहना व दर्द दूर होता है।
- अजीर्ण व अम्लपित्त के लिए।
- आंख दुःखना, जलन, आंखों में सूजन के लिए।
- एक्ज़ीमा, दाद, नासुर, फोड़े-फुसी आदि के लिए।
- कोढ़ के समुचित इलाज के लिए।
- पेट के कीड़े होने पर कृमिनाशक है।
- बवासीर के लिए बहुत उपयोगी है।
- बलगमी खांसी पर असरदार है।
- जोड़ो के दर्द के लिए।
- पायरिया को दूर करने के लिए।
- चेचक से बचने के लिए।
नीम का उपयोग कैसे करें ? :
इसका उपयोग 2 माह से ज्यादा लगातार न करें।
वयस्कों के लिए – नीम के पत्ते का रस 2 से 4 चम्मच तक सबेरे प्रतिदिन पिएं। नीम के तेल की 5 बूंदे प्रतिदिन पिए। नीम के 4 से 6 पत्ते प्रतिदिन चबाकर खाए।
बच्चों के लिए – नीम के पत्तों का रस एक चम्मच प्रतिदिन पिलाएं। नीम के 2 पत्ते को प्रतिदिन खिलाएं। नीम के तेल की 2 बूंदे प्रतिदिन पिलाएं।
उपयुक्त जानकारी सबको दें और नीम के पेड़ लगाएं। नीम का उपयोग करिए’ नीम बहुत से रोगों का हरने वाला है। अतः आप नीम पत्तों का उसके बीज, छाल और तेल का समुचित उपयोग करें।