Last Updated on January 20, 2024 by admin
पालक एक सुप्रसिद्ध भाजी है। भारतवर्ष में प्राचीनकाल से ही इसको उगाया जाता है। रेतीली जमीन को छोड़कर शेष समस्त प्रकार की जमीन इसकी खेती के लिए अनुकूल रहती है।
हरे पत्तों की तरकारियों में पालक के पत्तों की तरकारी पथ्य और उपयोगी है। पालक के पत्तों को तरकारी स्वतन्त्ररूप से तथा सोऐ की भाजी अथवा अन्य पत्तों वाली भाजी के साथ मिलाकर पकाई जाती है।
पालक की तासीर :
पालक की प्रकृति-पाचक, तर और ठण्डी है।
पालक में मौजूद पोषक तत्व :
- पालक में विटामिन ‘ए’ ‘बी’ ‘सी’ लोहा और केल्शियम अधिकता से पाया जाता है।
- पालके में विटामिन ‘ई’ तथा प्रोटीन, सोडियम, केल्शियम, फास्फोरस तथा क्लोरिन है । यह खून के रक्ताणुओं को बढ़ाता है।
- पालक में प्रोटीन उत्पादक एमिनोएसिड अधिकतम मात्रा में है।
- इसके हरे पत्तों में एक ऐसा तत्व है जो प्राणिमात्र की वृद्धि और विकास करता है।
- यह बुद्धि बढ़ाने में सहायक बनता है ।
- दूध विटामिन ‘ए’ का भण्डार माना जाता है, परन्तु हरी साग भाजियों में दूध का कुदरती मूल तत्त्व है।
- प्रोटीन को पचाने के लिए आवश्यक विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ पालक से उपलब्ध होते हैं ।
- दाल से मिलने वाले प्रोटीनों में एमिनोएसिड नहीं होते। अतः दाल के साथ हरे पत्तों की भाजी मिलाकर खाने से इसी कमी की पूर्ति हो जाती है।
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आयुर्वेद के अनुसार पालक के गुण :
- पालक वायु करने वाला, शीतल कफ कारक, मल को मुक्त करने वाला, भारी और मल को रोकने वाला है।
- यह मद, श्वास, पित्त, रक्तविकार और कफ को नष्ट करता है ।
- ‘सुश्रुत’ पालक को रुक्ष एवं पित्त और कफ पर हितकारी मानते हैं।
- पालक शीतल, स्नेहन, रोचन, मूत्रल, शोथहर और शामक है ।
- इसके गुणधर्म सामान्यतः सोड़ा सदृश हैं।
- इसका शाक रुचिकर और शीघ्र पाची है।
- पालक आँतों को क्रियाशील रखता है और आँतों में स्थित मलका निःसारण करने में सहायक बनता है।
- यह मधुमेह के रोग में भी गुणकारी है।
- इसके बीज सारक और शीतल हैं तथा यकृत रोग, पीलिया और पित्त प्रकोप को मिटाते हैं ।
- कफ और श्वास सम्बन्धी रोगों में भी ये हितकारी हैं।
- इनमें से चर्बी जैसा गाढ़ा तेल निकलता है। यह तेल कृमि और मूत्र रोगों पर लाभकारक है।
पालक का उपयोग :
- पालक को पकाने से इसके गुण नष्ट नहीं होते।
- कच्चा पालक खाने से कडुवा और खारा लगता है, परन्तु गुणकारी होता है।
- दही के साथ कच्चे पालक का रायता बहुत ही स्वादिष्ट और गुणकारी होता है।
- गुणों में पालक का शाक सभी शाकों से बढ़-चढ़ कर है। यदि इसका रस पीने में अच्छा न लगे तो इसके रस में आटा गूंथकर रोटी बनाकर खानी चाहिए।
- पालक की भाजी बनाने के लिए पानी अत्यन्त थोड़ा लें, ताकि भाजी पक जाने के बाद पानी निकाल देना न पड़े। यदि पत्ते पहले से ही धोए गए हों तो पत्तों में लगा हुआ पानी ही इसके पकने के लिए पर्याप्त होता है।
- पालक के पत्तों में पर्याप्त औषधीय गुण विद्यमान हैं। इसमें सज्जीखार और चिकनापन अधिक है। ये पथरी को पिघलाकर बाहर निकालते हैं । यह इसका सबसे बड़ा गुण है ।
- पालक फेंफड़े की सड़न को भी सुधारता है।
- आँतों के रोग, दस्त, संग्रहणी आदि में भी यह लाभदायक है।
- टमाटर के बाद साग-भाजियों में पालक की भाजी ही सर्वाधिक शक्तिप्रदायक है।
- इसमें लौह और ताँबे के अंश होने के कारण यह पाण्डुरोग से ग्रस्त रोगियों के लिए भी पथ्य है।
- इसमें रक्त बढ़ाने का गुण ज्यादा है तथा यह रक्त को शुद्ध करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है।
- पालक के हरे पत्ते जीवनशक्ति का मूल है। दूध यदि पर्याप्त मात्रा मे उपलब्ध न हो सके तो ऐसी दशा में पालक के हरे पत्ते का रस बच्चों को देने से पर्याप्त लाभ मिल सकता है।
- इसके बीज का भी औषधि के रूप में उपयोग होता है।
- सम्पूर्ण पाचनतन्त्र की प्रणाली के लिए पालक का रस सफाई कारक एवं पोषणकर्ता है।
- कच्चे पालक के रस में प्रकृति ने प्रत्येक प्रकार के शुद्धिकारक तत्व रखें ।
- पालक संक्रमणरोग तथा विषाक्त कीटाणुओं से उत्पन्न रोगों से रक्षा करता है।
- पालक में पाया जाने वाला विटामिन ‘ए’ म्यूकसमेम्बेन्स की सुरक्षा के लिए उपयोगी है।
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पालक के कुछ स्वास्थ्य लाभ (Palak ke Fayde in Hindi)
1. फेफड़ों की सूजन, खाँसी व गले की जलन – इन कष्टों में पालक के रस का कुल्ले करने से अत्यधिक लाभ होता है।
2. खून की खराबी – रक्तविकार में पालक का सेवन लाभप्रद है।
3. रक्त शुद्धी – चालीस दिनों तक आधा गिलास पालक के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर सेवन करने से शरीर का खून शुद्ध हो जाता है।
4. खून की कमी – खून की कमी दूर करने के लिए पालक सर्वोत्तम आहार है । यदि प्रतिदिन दिन में तीन बार पालक का रस 125 ग्राम की मात्रा में सेवन किया जाए तो रक्त संबंधी समस्त विकार दूर होकर शरीर में उत्साह और स्फूर्ति उत्पन्न होकर शक्ति का संचार होता है। अत्यधिक प्यास, पित्त ज्वर, शरीर में जलन, पीलिया, उन्माद तथा हिस्टीरिया जैसे रोगों में भी पालक का सेवन लाभप्रद है।
5. नेत्र ज्योति बढ़ानेवाला – नित्य कुछ दिनों तक पालक का रस पीने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
6. पायोरिया – कच्चे पालक को दाँतों से चबाकर खाने से पायरिया रोग नष्ट होता है । पालक दाँतों और मसूढ़ों को मजबूत बनाता है। गाजार के रस में पालक का रस मिलाकर पीने से मसूढ़ों से खून का गिरना बन्द हो जाता है।
7. बहुमूत्रता – शाम को पालक की सब्जी खाने से रात्रि में बार – बार पेशाब जाना कम हो जाता है।
8. गले का दर्द – पालक के पत्तों को उबालकर पानी छान लें । इस गर्म-गर्म पानी से गरारे करने से गले का दर्द दूर होता है।
9. पेट के रोग – लगातार कुछ दिनों तक पालक की सब्जी खाने से पेट के रोग दूर होतें है । बथुआ के साथ पालक का साग बनाकर खाने से कब्ज की समस्या में लाभ होता है ।
10. पथरी – पालक के पत्तों का क्वाथ कुछ दिनों तक नियमित पीने से पथरी टूटकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है ।
11. गांठ – पालक के पत्तों को पीसकर, पुल्टिश बनाकर अपक्व गाँठ पर बाँधने से गाँठ जल्दी पक जाती हैं ।
पालक खाने के नुकसान (Palak Khane ke Nuksan in Hindi)
- पालक की साग वायुकारक है। अतः वर्षा ऋतु में इसका सेवन न करें।
- इसमें जन्तु होते हैं, अतः गर्म पानी से धोने के बाद ही इसका उपयोग करें।