Last Updated on April 10, 2020 by admin
तीसरी आँख या पीनियल ग्रंथि कहाँ होती है ?:
भगवान शिव के तृतीय नेत्र द्वारा कामदेव का दहन एवं प्रलयरूपी दावानल उत्पन्न करने की घटना पौराणिक कथागाथा मात्र नहीं है। यह दिव्य घटना एक वैज्ञानिक तथ्य एवं सच्चाई को प्रकट करती है। आज आधुनिक विज्ञान मानव के तृतीय नेत्र के अस्तित्व को स्वीकारने लगा है। वैज्ञानिक भाषा में इस आँख को ‘पीनियल ग्रंथि’ कहा जाता है। यह ग्रंथि ठीक ततीय नेत्र अर्थात आज्ञाचक्र के पीछे पीटटरी से जुड़ी द्विदलीय कमल के रूप में होती है। इस ग्रंथि के द्वारा स्रवित रसायन बड़े ही चमत्कारिक होते हैं। तीसरी आँख अतींद्रिय क्षमतासंपन्न होती है। त्राटक के माध्यम से तृतीय नेत्र की असीम सामर्थ्य को जगाया-उभारा जा सकता है।
पुराणशास्त्रों में तीसरी आँख (पीनियल ग्रंथि) का वर्णन :
भारतीय आर्षग्रंथों में इस नेत्र के बारे में व्यापक एवं विस्तृत विवेचना मिलती है। ऋषि इस नेत्र को जाग्रत कर अदृश्य जगत के रहस्यों को खुली आँखों के समान देखते थे। इसलिए भारतीय पुराणशास्त्रों में आज्ञाचक्र-जागरण और तृतीय नेत्र उन्मीलन के रूप में माहात्म्य-प्रतिफल का व्यापक वर्णन मिलता है। दमयंती के शाप से व्याघ्र का भस्म होना, गांधारी द्वारा दुर्योधन को बज्रांग बनाना, धृतराष्ट्र को संजय द्वारा महाभारत के दृश्य दिखाना, भगवान कृष्ण द्वारा अपने विश्वरूप दर्शन हेतु अर्जुन को दिव्य चक्षु प्रदान करना आदि अनेक घटनाओं को कथा-किंवदंती समझा नहीं जा सकता। इनमें वैज्ञानिक तथ्य एवं रहस्य समाहित हैं। मेस्मेरिज्म एवं हिप्नोटिज्म से इस नेत्र की वेधक एवं सूक्ष्मदृष्टि को बढ़ाया, विकसित किया जाता है। शरीरशास्त्री डेढ़ से दो मिलीग्राम वाली आँख की पुतली के समान इस संरचना को पीनियल ग्रंथि कहते हैं। इसमें एक पारदर्शक द्रव भरा रहता है। इसमें प्रकाश संवेदी कोशिकाओं की भी बहुलता होती है।
रहस्यों से भरी पीनियल ग्रंथि :
मनुष्य में पीनियल ग्रंथि अविकसित अवस्था में पाई जाती है। अन्य कशेरुकी जीवों की आँखों में भी यह अविकसित या अल्प विकसित रूप में होती है। यह दृश्य के साथ ही गंध, शब्द और ताप तरंगों को ग्रहण कर सकती है, जो सामान्यत: नाक, कान और त्वचा की सूक्ष्म पकड़ से परे होती हैं। मछलियाँ इस ग्रंथि के माध्यम से पानी का तापमान ज्ञात करती हैं और अपने लिए अनुकूल क्षेत्रों का चुनाव-चयन करती हैं। मछलियाँ इससे यह पता लगा लेती हैं कि समुद्र की अथाह गहराई और अत्यधिक दूरी में स्थित चीजें घातक तो नहीं हैं ? मेंढक की तीसरी आँख में मेलेटोनिन नामक हॉर्मोन मिलता है। इस हॉर्मोन से यह असंभव समझी जाने वाली क्रियाओं को संपादित करता रहता है। इस प्रकार तीसरी आँख को रहस्यों का पिटारा माना जा सकता है।
पीनियल ग्रंथि मेंढक और गिरगिट में भी देखी जा सकती है। यह ग्रंथि इन जीवों के मस्तिष्क पर एक उभार के रूप में दृष्टिगोचर होती है। ये जीव इस ग्रंथि के माध्यम से ऋतुओं का पूर्वाभास पाते हैं और इसी के अनुरूप अपनी भाती जीवनचर्या, लेखा-जोखा बनाते हैं।
मनुष्य शरीर पर पीनियल ग्रंथि का प्रभाव :
आधुनिक अनुसंधान से पता चलता है कि मनुष्य की आँखें पीनियल ग्रंथि से प्रभावित होती हैं। यह ग्रंथि अपनी विकसित अवस्था में आँखों को अनेक दिव्य क्षमताएँ प्रदान करती है। सामान्यतः आँखों की दृश्य शक्ति अत्यंत क्षीण होती है, परंतु इस ग्रंथि को सक्रिय करके अल्ट्रावायलेट एवं इन्फ्रारेड जैसी अदृश्य किरणों को खुली आँखों से देखा जा सकता है। इसका संबंध महत्त्वाकांक्षा और कामुकता से भी जोड़ा जाता है। इस क्षेत्र में थोड़ी-सी विशिष्टता बढ़ जाने से मनुष्य असाधारण रूप से महत्त्वाकांक्षी हो उठता है और दुस्साहस भरे कदम उठाने के लिए तत्पर-तैयार रहता है। इस ग्रंथि के रसायन के उतार-चढ़ावों से कामुकता की प्रवृत्ति पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इस रसायन की वृद्धि से कामुकता असाधारण रूप से बढ़ जाती है और इसकी कमी से नपुंसकता जैसी स्थिति बन जाती है।
पीनियल की सहयोगी पिट्युटरी ग्रंथि के कार्य :
तीसरी आँख के रूप में जानी जाने वाली इस ग्रंथि को सहयोग एवं सहायता प्रदान करने के लिए एक और ग्रंथि होती है। इसे मास्टर ग्रंथि अर्थात पिट्युटरी ग्रंथि कहते हैं, जो मस्तिष्क के अग्र भाग में दोनों आँखों के बीच अवस्थित होती है और अपने जैव रसायनों से समस्त मस्तिष्क को नियंत्रित एवं नियमित करने की क्षमता रखती है। यों तो इसका प्रभाव क्षेत्र एड्रीनल और थाइरॉइड ग्रंथियों से रिसने वाले हॉर्मोनों पर अधिक रहता है, फिर भी यह पीनियल ग्रंथि के कार्यों में बराबर भागीदारी निभाती है। उदासी, प्रसन्नता जैसे व्यवहार इसी क्षेत्र की स्थिति और प्रतिक्रिया पर निर्भर करते हैं। आलस्य और उत्साह की प्रवृत्ति भी इसी से संबंधित मानी जाती है। शारीरिक विकास पर पड़ने वाले असाधारण प्रभाव के लिए पोषक तत्त्वों से कहीं अधिक उपर्युक्त ग्रंथियों की हलचलों के व्यतिरेक को जिम्मेदार बताया जाता है।
तीसरे नेत्र का जागरण कैसे करते है ? :
मानवीय नेत्रों का चुंबकीय आकर्षण इसी पीटुटरीपीनियल क्षेत्र के दिव्य प्रभाव का ही परिणाम माना जाता है। यह क्षेत्र विकसित होने पर नेत्रों की वेधक दृष्टि बढ़ जाती है और स्थूल आँखों की सीमाओं से परे एवं पार के अदृश्य दृश्य दृश्यमान होने लगते हैं। असीम संभावनाओं से भरा-पूरा तृतीय नेत्र सामान्यतः सुषुप्त एवं निष्क्रिय पड़ा रहता है। त्राटक-साधना द्वारा इसकी दिव्य क्षमता को जाग्रत किया जाता है।
जाग्रत तीसरे नेत्र की अलौकिक शक्तियां :
तीसरी आँख-आज्ञाचक्र को जाग्रत करके इससे राडार, टेलीविजन एवं एक्सरे यंत्रों की भाँति कितने ही असाधारण और आश्चर्यजनक कार्य संपादित किए जा सकते हैं। तीसरी आँख में अतींद्रिय क्षमता होती है अर्थात स्थूल इंद्रियों के बिना ही इन कार्यों को संपन्न किया जा सकता है। इसके जागरण से बिना किसी यंत्र के दर-सदर क्षेत्र की घटनाओं और दृश्यों को देखा जा सकता है। शरीर के भीतरी भागों और बाह्य ब्रह्मांड के विभिन्न भागों का चित्रांकन इसी से संभव हो पाता है। इस प्रकार भ्रूमध्य पर अवस्थित आज्ञाचक्र की जाग्रत अवस्था अनेक भौतिक प्रयोजनों को पूरा करती है।
तीसरे नेत्र को जागृत करने से होने वाले आध्यात्मिक लाभ :
✡ तीसरी आँख की भौतिक उपलब्धियों की तुलना में आध्यात्मिक रहस्य अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस आँख के जागरण से दुनिया एवं दुनिया को देखने का अंदाज ही बदल जाता है; क्योंकि स्थूल आँखों से कहीं अधिक और विराटविस्तृत सूक्ष्म आँख से देखा और जाना-समझा जा सकता है।
✡ आज्ञाचक्र के जगते ही लुभावना एवं आकर्षक लगने वाला सतरंगी संसार निस्सार और बेजान-सा जान पड़ता है। बाहरी संसार का आकर्षण क्षणस्थायी है-बुलबुले के समान फटता-बनता रहता है। चिरस्थायी एवं विलक्षण आकर्षण अपने ही अंदर है। तुष्टिदायक इस दिव्यदर्शन का आनंद आज्ञाचक्र से ही उठाया जा सकता है।
✡ आज्ञाचक्र ही स्थूल एवं नश्वर शरीर के अंदर स्थित अनश्वर आत्मा के असीम सौंदर्य को देख-परख सकता है। यह अपने अस्तित्व के अपार आकर्षण के साथ विराट ब्रह्मांड के अनोखे दृश्य को देख पाने में समर्थ है।
✡ आज्ञाचक्ररूपी तीसरी आँख के दिव्य प्रकाश से आँखों पर बँधी मलीनताओं के आवरण कटने-छंटने लगते हैं और गहराई में दबी, ढंकी-ढंपी आत्मसत्ता जगमगाने व चमकने लगती है। ऐसी शाश्वत अनुभूति का रसास्वादन प्राप्त कर साधक को परा एवं अपरा प्रकृति के संपूर्ण रहस्यों का बोध होने लगता है।
✡ अपनी तपस्या से संचित-संघनित ऊर्जा से ऊर्जान्वित आज्ञाचक्र भविष्य में घटने वाली घटनाओं को दूरदर्शन के चित्रपट में उभरते-उतरते चित्रों के समान देखता है।वह भविष्य के गर्भ में पकने वाली घटनाओं का साक्षात्कार करता है। तपस्या के बल पर ही आज्ञाचक्र की सामर्थ्य प्रकट होती है। भगवान शिव, शंकराचार्य, रमण महर्षि, श्री अरविंद, स्वामी विवेकानंद आदि महातपस्वियों के आज्ञाचक्रों की पहुँच धरती एवं ब्रह्मांड के आर-पार होती है।
✡ शास्त्र कहते हैं-“त्राटक के अभ्यास से समयानुसार राजयोग की समाधि का लाभ संभव है।” इस तरह इस अभ्यास से निर्विवाद रूप से हम असामान्य भौतिक उपलब्धियों तथा अद्भुत आध्यात्मिक लाभों से अनुप्राणित हो सकते हैं। इस प्रक्रिया से तमाम विसंगतियों एवं समस्याओं से भरे जटिल जीवन में दिव्य प्रकाश एवं दिव्य दृष्टि को उत्पन्न किया जा सकता है।
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