Last Updated on July 22, 2019 by admin
पीपल सामान्य परिचय :
भगवान श्री कृष्ण ने पीपल का महत्व और महिमा का बखान करते हुए विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ गीता में कहा है-“सब पेड़ों में उत्तम और दिव्य गुणों से सम्पन्न पीपल मैं स्वयं हूँ।” इसका अर्थ है कि जितना सम्मान लोग भगवान श्री कृष्ण को देते हैं उतना ही आदर उन्हें पीपल के वृक्ष को देना चाहिए। इसी भाव तथा विचार को ध्यान में रखकर गांवों में । आज भी विद्यालय, पंचायत घर, मंदिर के प्रांगण आदि में पीपल का वृक्ष लगाकर उसकी जड़ को चारों ओर से एक गोल चबूतरे से घेर दिया जाता है ताकि उसको कोई जानवर या व्यक्ति हानि न पहुंचा सके और चबूतरे पर थोड़ी देर बैठकर प्राणवायु को निःशुल्क ग्रहण किया जा सके। | इस विचार से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि विभिन्न प्रकार के वृक्षों में पीपल सर्वमान्य तथा सर्वगुण सम्पन्न हैं। वेदों में भी पीपल के गुणों का वर्णन अनेक स्थानों पर किया गया है। अथर्ववेद में एक स्थान पर लिखा है- “यत्राश्वत्था….प्रतिबुद्धा अभूतन्”…. “अश्वत्थ व कारणं प्राणवायु….” इसका मतलब है कि पीपल का वृक्ष ज्ञानी-ध्यानी लोगों के लिए सब कुछ देता है….जहां यह वृक्ष होता है वहां प्राणवायु मौजूद रहती है। यह बात सच भी मालूम पड़ती है कि आज भी साधु-संत और ज्ञानी-ध्यानी लोग पीपल के पेड़ के नीचे कुटिया बनाते तथा धूनी रमाते हैं। वे पीपल की लकड़ी जलाते हैं और रूखा-सूखा खाकर भी दीर्घजीवी होते हैं। लम्बी आयु प्रदान करने वाला।
यह बात पाश्चात्य वैज्ञानिकों के द्वारा सिद्ध हो चुकी है कि पीपल के पत्तों तथा छाल का प्रयोग करने से व्यक्ति बहुत-सी बीमारियों से बचा रह सकता है। बीमारियों से बचने का मतलब है-स्वस्थ शरीर, और ऐसा शरीर ही बहुत समय तक जीवित रह सकता है। पीपल द्वारा लम्बी आयु प्रदान करने का यही रहस्य है। दूसरी रहस्य की बात यह है कि प्रकृति ने हमें हर प्रकार की नियामत दी है। यदि हम उनके मूल्य तथा गुणों को पहचान कर लाभ उठाना नहीं चाहते तो इसमें किसका दोष है? इस दृष्टि से पीपल का बूटा-बूटा और पत्ता–पत्ता हमें निरोग बनाता है, स्वस्थ रखता है और लम्बी आयु प्रदान करता है।
पीपल के वृक्ष को लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह अपने आप उग आता है। इसके पके फलों को पक्षी खाते हैं। फिर वे बीट कर देते हैं। बीट में मौजूद बीज दीवारों की दरारों या निचली भूमि में गिरकर जम जाते हैं। इसका मतलब है कि पीपल के वृक्ष को उगाने के लिए न तो किसी विशेष प्रकार की भूमि की जरूरत होती है और न ही खाद-पानी की। यह सभी प्रकार की भूमि में पैदा हो जाता है।
पीपल के फायदे ,उपयोग और महत्व : Pipal ke Fayde Upyog aur Mahatv in Hindi
पीपल के वृक्ष की विशेषताएं निम्नांकित हैं
• यह धरती और आकाश की विषैली वायु को शुद्ध करता है तथा प्राण-वायु का संचार आवश्यकतानुसार करता है।
• दमा तथा तपेदिक (टी.बी.) के रोगियों के लिए पीपल अमृत के समान है। कहा जाता है कि दमा तथा तपेदिक के रोगियों को पीपल के पत्तों की चाय पीनी चाहिए। पीपल की छाल को सुखा कर उसका चूर्ण शहद के साथ लेना चाहिए। जड़ को पानी में उबालकर स्नान करना चाहिए। ये गुण अन्य किसी वृक्ष में नहीं पाए जाते।
• पीपल का वृक्ष सूर्य की किरणों को अपने पत्तों में जज्ब कर धरती पर छोड़ता है और ये किरणें शीतलता तथा सौम्यता प्रदान करती हैं।
• पीपल की छांव में बैठने से थकावट दूर होती है क्योंकि पीपल के पत्तों से छनकर नीचे आने वाली किरणों में तैलीय गुण आ जाते हैं जो बिना तेल के ही शरीर की मालिश कर देते हैं। उससे शरीर के अंग-अंग की टूटन दूर हो जाती है।
•पीपल का वृक्ष दिन-रात प्रकाश देता है। दिन हो या रात पीपल के पेड़ के नीचे सघन अंधकार कभी दिखाई नहीं देता। पत्तियों के बीच से दिन में सूर्य का और रात में चन्द्रमा का प्रकाश छन-छनकर आता रहता है।
• पीपल के पेड़ के नीचे बैठने पर पत्तों की लोरियां सुनने को मिलती हैं। शीतल, मंद-सुगंध वायु के चलने पर कुछ पत्ते तालियां बजाते हैं तो कुछ मीठी-मीठी ध्वनि निकालते हैं, जो कानों में प्रवेश करके व्यक्ति को हल्का नशा देते हैं। इसी कारण व्यक्ति आनंदित होकर सो जाता है। इसका मतलब है कि पीपल के वृक्ष में चिन्ता को दूर करने की भी शक्ति है। इसलिए इस वृक्ष का एक नाम – ‘चिन्ता हरण – भी है।
• पीपल के पत्ते, कोंपलें, फूल, फल, डाली, छाल, जड़-सभी अमृत-रस की वर्षा प्रदान करते हैं। संसार में आनंद, सुख, दीर्घायु आदि के लिए अमृत की कल्पना की गई है। उदाहरण के लिए व्यक्ति यदि पुत्र-पौत्र वाला हो जाता है तो वह अमर हो जाता है, क्योंकि उसके नाम को याद रखने वाले उत्पन्न हो जाते हैं। यही अमरता है-यही अमृत-पान है। ठीक इसी प्रकार पीपल की हरेक चीज व्यक्ति को करने वाला है। अतः शंकर बाबा को यह वृक्ष बहुत पसंद आया। अब यदि हम भी भोले बाबा की तरह शोक, रोग, व्याधि आदि से मुक्त होना चाहते हैं तो हमें पीपल की शरण में जाना चाहिए।
• पीपल में पुरुषत्व प्रदान करने के गुण मौजूद हैं। चरक ने अपने ग्रंथ में लिखा है, – “यदि व्यक्ति में नपुंसकता का दोष मौजूद है और वह सन्तान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो उसे शमी वृक्ष की जड़ या आसपास उगने वाला पीपल के पेड़ की जटा को औटाकर उसका क्वाथ (काढ़ा) पीना चाहिए। पीपल की जड़ तथा जटा में पुरुषत्व प्रदान करने के गुण विद्यमान हैं।” पाश्चात्य देशों में इस तथ्य पर शोध की जा रही है।
• वैसे तो सभी प्रकार की दवाओं का निर्माण जड़ी, बूटियों, फलों, पत्तों, छालों, रसों आदि से होता है। उनके बनाने में देर लगती है। उस पर निर्मित दवा के प्रयोग करने के बाद भी परहेज करना पड़ता है। किन्तु पीपल का वृक्ष ‘आशुतोष है। यह नाम भगवान शंकर का है। ‘आशु का अर्थ है संतुष्टि और तोष का अर्थ है शीघ्र प्रदान करना।’ जैसे भगवान शंकर लोगों की मनोकामना शीघ्र ही पूर्ण कर देते हैं, वैसे ही
पीपल का वृक्ष बिना किसी लाग-लपेट के शीघ्र ही लाभ पहुंचाता है। स्त्रियों तथा पुरुषों दोनों को पीपल के पत्तों तथा छाल का सेवन करना चाहिए। ये दोनों चीजें पुत्र प्रदान करने वाली हैं-सूखी कोख को हरी करने वाली हैं।
• पीपल की एक विशेषता यह है कि यह चर्म-विकारों को जैसे-कुष्ठ, फोड़े-फुन्सी, दाद-खाज और खुजली को नष्ट करने वाला है। वैद्य लोग पीपल की छाल घिसकर चर्म रोगों पर लगाने की राय देते हैं। कुष्ठ रोग में पीपल के पत्तों को पीसकर कुष्ठ वाले स्थान पर लगाया जाता है तथा पत्तों का जल सेवन किया जाता है। हमारे ग्रंथों में तो यहां तक लिखा गया है कि पीपल के वृक्ष के नीचे दो घंटे प्रतिदिन नियमित रूप से आसन लगाने से हर प्रकार के त्वचा रोग से छुटकारा मिल जाता है।
• यूनानी तथा भारतीय चिकित्सा प्रणाली में अनेक बातों, जड़ी-बूटियों तथा दवा बनाने की विधियों में समानता पाई जाती है। सच तो यह है कि यूनानियों ने भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली को ही परिवर्तित करके अपना लिया है। यूनानी थेरेपी में भारतीय जड़ी-बूटियों तथा पेड़-पौधों से औषधि के तत्वों को ग्रहण किया गया है। इस बात के प्रमाण यूनानी ग्रंथों में भी मौजूद हैं। परन्तु दुःख का विषय यह है कि हम आज अपनी उन्नत चिकित्सा प्रणाली की तरफ से विमुख होकर पाश्चात्य प्रणाली को अच्छा समझने लगे हैं, जबकि यह दवा दुष्प्रभाव (Side-effect) डालती है। आइये जाने पीपल से होने वाले लाभ और आयुर्वेदिक नुस्खे
पीपल के औषधीय गुण और रोगों का घरेलू उपचार :
रोगों की जड़ है पेट पेट खराब हुआ कि बीमारियों ने धर दबोचा। आयुर्वेद में इसीलिए सभी रोगों का उपचार उदर को निरोग व स्वस्थ रख कर ही किया जा सकता है। पीपल का सही मात्रा में उपयोग कैसे उदर रोगों को निकाल बाहर करता है प्रस्तुत है रोगों के संदर्भ में उनके प्रयोग की विधि।
1-अपच :
अपच को बदहजमी भी कहते हैं अर्थात् भोजन को मेदे में ज्यों का त्यों रखे रहना। भोजन न पचने की हालत में पेट में दर्द, व्याकुलता, जी। मिचलाना या कई बार उल्टियां हो जाने की शिकायत हो जाती है। भूख खत्म हो जाती है तथा पेट में गैस अधिक मात्रा में बनने लगती है। कभी-कभी पेट में मरोड़-सा मालूम पड़ता है और जलन के साथ पीड़ा होती है। अम्ल बनने लगता है जो डकारें भी पैदा करता है।
पीपल से अपच का इलाज-
• पीपल के फल 20 ग्राम, जीरा 5 ग्राम, काली मिर्च 5 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, सेंधा नमक 5 ग्राम-सबको अच्छी तरह सुखा लें। फिरपीसकर चूर्ण बनाकर शीशी में रख लें। इसमें से प्रतिदिन सुबह-शाम एक-एक चम्मच चूर्ण गरम पानी के साथ लें। भोजन के बाद भी इस चूर्ण को खाने से काफी लाभ होता है।
• अजवायन, छोटी हर्र, हींग 2 रत्ती) तथा पीपल की छाल-सब 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण भोजन के बाद गरम पानी से सेवन करें।
• आठ लौंग, दो हरड़, चार फल पीपल के तथा दो चुटकी सेंधा नमक-सबको पीसकर चूर्ण बना लें। सुबह-शाम इस चूर्ण का प्रयोग भोजन के बाद करें। पीपल के पत्तों को कुचल कर एक चम्मच रस निकाल लें। उसमें प्याज का रस आधा चम्मच मिलाएं। दोनों का सेवन सुबह-शाम करें।
• पीपल के पत्तों को लेकर सुखा लें। फिर कूट-पीस कर चूर्ण बना लें।
एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करें। ( और पढ़े – अपच के 6 घरेलु उपचार)
2-अजीर्ण :
अजीर्ण का रोग हो जाने पर भूख नहीं लगती। खाना भी ठीक से हजम नहीं होता। पेट फूल जाता है और कब्ज के कारण पेट में दर्द होने लगता है। प्यास अधिक लगती है तथा पेट में बार-बार दर्द हो जाता है। जी मिचलाना, बार-बार डकारें आना, पेट में गैस का बनना, सुस्ती, सिर में भारीपन आदि अजीर्ण रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
पीपल से अजीर्ण का इलाज-
• पीपल की छाल, चार नग लौंग, दो हरड़ तथा एक चुटकी हींग-चारों चीजों को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर सेवन करें।
• खट्टी डकारें आती हों तो पीपल के पत्तों को जलाकर उसकी भस्म में आधा नीबू निचोड़ कर सेवन करें।
• पीपल के दो फल (गूलर), एक गांठ की दो कलियां लहसुन, थोड़ी-सी अदरक, जरा-सा हरा धनिया, पुदीना तथा काला नमक-सबकी चटनी बनाकर सुबह-शाम भोजन के साथ या बाद में सेवन करें।
• पीपल की छाल, जामुन की छाल तथा नीम की छाल–तीनों छालों को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर कूट लें। फिर काढ़ा बनाकर सेवन करें। यह काढ़ा पेट के हर रोग के लिए उत्तम दवा है।
• एक चम्मच राई, थोड़ी-सी मेथी तथा पीपल की जड़ की छाल–तीनों चीजों को कूट कर काढ़ा बनाकर सेवन करें।
भोजन तथा अन्य उपाय –
प्रतिदिन शारीरिक श्रम करने के बाद हल्का भोजन खाएं। सब्जियों में लौकी, तुरई, करेला, पात गोभी, पालक, मेथी आदि पेट के लिए फायदेमंद रहती है। फलों में पपीता, नारियल की कच्ची गिरी, पुराने चावल का भात, गेहूं व जौ की पतली रोटी का सेवन करें। मन से चिन्ता, भय, उत्तेजना, क्रोध, शोक आदि को निकाल दें।
3-अरुचि या भूख न लगना :
अरुचि की पहचान बड़ी सरल है। पेट हर समय भारी-भारी रहता है। भोजन लेने को मन करता है लेकिन खाते समय भीतर से जी भोजन
को ग्रहण नहीं करता। मुंह में लार आ जाती है। फीकी तथा खट्टी डकारें आती हैं। यदि यह रोग बराबर बना रहता है तो रोगी को दूसरे रोग भी घेर लेते हैं।
पीपल से भूख न लगने का इलाज-
• सर्वप्रथम मन को शान्त करें। मन से चिन्ता, भय, शोक, क्रोध, घबराहट आदि को दूर करें।
• पीपल के आठ फल सुखाकर पीस लें। इनमें दो चम्मच अजवायन, एक रत्ती हींग, एक चम्मच सोंठ, जरा-सा काला नमक मिला लें। इस चूर्ण में से एक चम्मच चूर्ण सुबह और एक चम्मच शाम को भोजन के
बाद गरम पानी से लें।
• पीपल की छाल 10 ग्राम, पीपल (दवा) 5 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम-तीनों को महीन पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण का सेवन
दोपहर के बाद करें। भोजन तथा अन्य उपाय – गेहूं तथा जौ की रोटी, हरी सब्जियां, सादी दाल, उबली हुई सब्जी आदि का कुछ दिनों तक सेवन करें।
• खट्टी, तेज, गरिष्ठ, मिर्च-मसालेदार तथा देर से पचने वाली चीजें न खाएं।
4-अम्लपित्त :
तेज, कठोर, खट्टे, गरिष्ठ तथा देर से पचने वाले पदार्थों को खाने से पेट में अम्लपित्त बढ़ जाता है। कुछ लोगों को घी, तेल, मिर्च-मसाले तथा मांस-मछली खाने का बहुत शौक होता है। अतः ये सब चीजें भोजन को ठीक से नहीं पचने नहीं देतीं।
पेट तथा सीने में जलन होती है। कभी-कभी आंतों में हल्के घाव बन जाते हैं। भोजन हजम होने के समय पित्त अधिक मात्रा में बनना शुरू हो जाता है। कभी खट्टी तथा कभी फीकी डकारें आने लगती हैं। भोजन स्वादिष्ट नहीं लगता।
पीपल से अम्लपित्त का इलाज-
• पीपल की थोड़ी-सी कोंपलें, मुलहठी का चूर्ण आधा चम्मच तथा बच का चूर्ण 2 रत्ती–तीनों की चटनी बनाकर शहद के साथ सेवन करें।
•पीपल के दो पत्तों को भोजन के बाद चबा जाएं।
• पीपल की छाल को सुखाकर पीस लें। उसमें जरा-सी हींग, जरा-सा सेंधा नमक तथा जरा-सी अजवायन मिलाकर गरम पानी के साथ सेवन करें।
• पीपल के चार सूखे फल, सफेद जीरा, धनिया–तीनों 10-10 ग्राम लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से एक-एक चम्मच भर चूर्ण सुबह-शाम भोजन से पहले गरम पानी के साथ सेवन करें।
•10 फल पीपल, मुनक्का 50 ग्राम, सौंफ 25 ग्राम, काला नमक 5 ग्राम-सबको पीस कर रख लें। इसमें से एक चम्मच भर पाउडर भोजन के बाद सेवन करें।
भोजन तथा अन्य उपाय –
मूंग की दाल छिलके सहित, पुराने चावल, हरी सब्जियां, गेहूं तथा जौ का आटा, लहसुन, मौसमी फल आदि का सेवन करें।
तिल, तेल, घी, शराब, बीड़ी-सिगरेट, अम्ल बनाने वाले पदार्थ, पित्त बढ़ाने वाले पदार्थ आदि का सेवन न करें। ( और पढ़े – एसिडिटी के 27 घरेलू उपचार)
5-अफारा :
पेट में बहुत अधिक वायु भर जाती है। रोगी यकायक घबरा जाता है। उसे सांस लेने में कष्ट का अनुभव होता है। पेट की नसें तन जाती हैं। पेट तथा सीने में जलन होती है। रोगी को लगता है जैसे उसका पेट फट जाएगा। नाड़ी तेजी से चलने लगती है। माथे पर पसीना आ जाता है। पेट की गैस ऊपर की ओर चढ़ जाती है तो रह-रहकर डकारें आने लगती हैं। सिर में दर्द, माथे का चकराना तथा गिर-गिर पड़ना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं।
पीपल से अफारा का इलाज-
• पीपल के पत्तों को सुखाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में जरा-सी राई पीसकर मिला लें। दोनों को छाछ या मड़े के साथ सेवन करें।
• बेल की गिरी का गूदा, 4 रत्ती छोटी इलायची, 5 ग्राम पीपल के सूखे फल-इन सबको नीबू में मिलाकर घोट लें। फिर भोजन के बाद दोनों वक्त सेवन करें।
• एरण्ड के तेल में पीपल के पत्तों का चूर्ण मिलाकर पेट पर मलें। इससे अपान वायु बाहर निकल जाएगी और आद्यमान (अफरा) दूर हो जाएगा।
• ‘पीपल की जड़ 10 ग्राम, गेंहू की भूसी 10 ग्राम, बाजरे के दाने 10 ग्राम, सेंधा नमक दो चुटकी या आधा चम्मच, काला जीरा 8 ग्राम,अजवायन 5 ग्राम-सबको एक पोटली में बांधकर गरम करें। फिर इससे पेट की सिंकाई करें।
• बच का चूर्ण 2 रत्ती, काला नमक 4 रत्ती, हींग 2 रत्ती, पीपल की छाल 10 ग्राम-सबको सुखाकर पीस लें। इसमें से प्रतिदिन आधा चम्मच चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करें।
• पीपल की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण में दो रत्ती हींग तथा जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
6-पेट का दर्द :
इस रोग में भोजन के बाद आमाशय में पीड़ा होती है। ऐसा लगता है। जैसे नाखून से कोई आंतों को खुरच रहा है। खाने की चीजें पेट में पहुंचते ही दर्द शुरू हो जाता है। दर्द की हालत में बेचैनी बढ़ जाती है। यह रोग भोजन की अधिकता, पेट में मल के रुकने, आंतों में मल के चिपकने, पाचनदोष तथा पेट में वायु के भर जाने के कारण होता है।
पीपल से पेट दर्द का इलाज-
आमाशय से वायु निकलने वाली दवा का प्रयोग सबसे पहले करना चाहिए।
• पीपल के पत्ते से इलाजपीपल के पत्ते को गरम करके उस पर जरा-सा घी लगाएं। अब पत्ते को पेट पर रखकर पट्टी बांध दें। वायु निकलते ही पेट का दर्द रुक जाएगा।
• पीपल की छाल का चूर्ण, अजवायन का चूर्ण, हींग तथा खाने वाला सोडा-सबकी उचित मात्रा लेकर फंकी लगाएं और ऊपर से गरम पानी पी लें।
• पीपल के पत्तों का रस 10 ग्राम, भांगरे के पत्तों का रस 5 ग्राम, काला नमक 3 ग्राम-सबको मिलाकर सेवन करें।
• सोंठ का चूर्ण एक चम्मच, पीपल के सूखे फलों का चूर्ण एक चम्मच तथा काला नमक चौथाई चम्मच तीनों को मिलाकर सेवन करने से पेट का दर्द तत्काल रूक जाता है। ( और पढ़े – पेट दर्द के 41 घरेलू उपचार)
7-अतिसार (दस्त) :
गलत खान-पान, अशुद्ध जल, पाचन क्रिया की गड़बड़ी, पेट में कीड़ों का होना, यकृत की खराबी, मौसम बदलने के कारण पेट में खराबी, जुलाब लेने की आदत, चिन्ता, शोक, भय, दुःख आदि के कारण अतिसार का रोग हो जाता है। यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है, किन्तु सही समय पर अच्छी चिकित्सा की जरूरत पड़ती है।
इसमें पतले दस्त आते हैं किन्तु दस्त आने से पहले पेट में हल्का दर्द होता है। दस्त लगते ही पिचकारी-सी छूटती है। चूंकि पेट का जल दस्तों के साथ बाहर निकल जाता है इसलिए बहुत ज्यादा कमजोरी हो जाती है। आंखें भीतर की तरफ धंस जाती हैं और पीली पड़ जाती हैं। शरीर की त्वचा रूखी हो जाती है। देखते-देखते रोगी की शक्ति क्षीण हो जाती है। प्यास अधिक लगती है और पेट में गुड़गुड़ होती रहती है।
पीपल से अतिसार (दस्त) का इलाज-
• घरेलू चिकित्सा के अंतर्गत रोगी को मूंग, जौ का पानी, अनार तथा संतरे का रस, मौसमी का रस तथा पुराने चावलों का भात बनाकर दें।
• पीपल के पत्तों के साथ थोड़े से खजूर पीसकर चटनी बना लें। यह चटनी घंटे-घंटे भर बाद खाएं।
• पीपल की कोंपलें, नीम की कोंपलें, बबूल के पत्ते-सब 6-6 ग्राम लेकर पीस लें। इसमें थोड़ा-सा शहद मिला लें। इस चटनी की तीन खुराक करके सुबह-दोपहर-शाम को सेवन करें।
• पीपल के फलों का चूर्ण, जामुन की गुठली का चूर्ण, आम की गुठली की गिरी का चूर्ण तथा भुनी हुई हरड़ का चूर्ण-चारों चीजों को मिलाकर लगभग एक चम्मच की मात्रा में चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करें।
• हल्दी का चूर्ण सूखे तवे पर भून लें। उसमें हल्दी से आधी मात्रा में काला नमक मिलाएं। इसमें से एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करें।
• दूध, अत्यधिक गरम चीजें, गरम दवाएं बिल्कुल न दें।( और पढ़े – दस्त के 33 घरेलू उपचार)
8-आमाशय में घाव :
यदि किसी व्यक्ति को पुराना अजीर्ण का रोग है तो कुछ समय के बाद उसके आमाशय में घाव हो जाता है। यह बीमारी महिलाओं को अधिक होती है।
इसके प्रमुख लक्षण हैं कि भोजन ठीक से नहीं पचता। पेट में भारीपन तथा दर्द रहता है। भोजन के बाद रोगी को बेचैनी हो जाती है
आमाशय में घाव का इलाज –
• यदि घरेलू दवाओं से लाभ न हो तो किसी योग्य चिकित्सक से दिखाकर दवा लेनी चाहिए। रोग बढ़ जाने पर शल्य चिकित्सा भी जरूरी है।
• पीपल के फल, इन्द्र जौ, नागरमोथा, सोंठ, काली मिर्च, भुनी हुई सौंफ तथा भुना जीरा कूट-पीस कर कपड़छन चूर्ण बना लें। इसमें से 4 ग्राम चूर्ण सुबह और इतना ही शाम को कुछ दिनों तक गरम पानी के साथ सेवन करें।
• रोगी को भय, चिन्ता, उत्तेजक भोज्य पदार्थ, तेल, मिर्च, मसाले, तली ।
हुई वस्तुएं, खट्टे पदार्थ, क्रोध आदि से बचना चाहिए।
9-बवासीर :
यह बीमारी हर समय कुर्सी या गद्दी पर बैठने वाले व्यक्तियों को हो जाती है। इसके अलावा, पुराने कब्ज तथा अधिक शराब पीने वाले लोगों को भी यह रोग हो जाता है। कुछ लोग कटु, अम्लयुक्त, तेज लवण तथा उष्ण पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं, शौच क्रिया के समय जोर लगाते हैं तथा व्यायाम अधिक करते हैं, उनको भी यह बीमारी हो जाती है। इसमें खून भी आ सकता है।
पीपल से बवासीर का इलाज –
पीपल के पत्तों को कुचलकर 10 ग्राम रस निकाल लें। इसमें अमरबेल का स्वरस 50 ग्राम तथा 5-6 काली मिर्चे का चूर्ण मिला लें। तीनों को घोटकर दिनभर में तीन खुराक के रूप में पिलाएं। यह दवा दोनों प्रकार की बवासीर के लिए लाभकारी है।
• सरसों या तिल्ली के तेल में चार-पांच पीपल के पत्ते डालकर तेल को अच्छी तरह खौला लें। फिर छानकर शीशी में भर लें। यह तेल रूई की फुरेरी से गुदा के भीतर तथा बाहर लगाएं। पीपल के फल 10 ग्राम, कमलकेशर 4 ग्राम, नागकेशर 4 ग्राम, शहद 4 ग्राम, चीनी 4 ग्राम तथा मक्खन 10 ग्राम-सबको पीसकर चटनी बना लें। इसमें से 5 ग्राम चटनी नित्य दूध के साथ सेवन करें। प्रतिदिन सवेरे के समय यदि चटनी का सेवन बेल के शरबत के साथ किया जाए तो दुगुना लाभ होता है।
• 10 ग्राम निबोली छिलके सहित तथा 10 ग्राम पीपल के फल-दोनों को कूट-पीस कर महीन कर लें। इसमें से दो चम्मच दवा सुबह के समय गरम पानी से सेवन करें।
भोजन तथा परहेज –
इस रोग में पपीता, जिमीकंद, पिस्ता, बादाम, नाशपाती, सेब, पुराने चावल, मट्ठा, दूध, कच्ची मूली आदि बहुत लाभदायक हैं। इसके विपरीत चाय, कॉफी, रूखी तथा भुनी हुई चीजें, शराब, सिगरेट, लहसुन, प्याज, मछली, मांस, उड़द की दाल, लाल मिर्च आदि का सेवन न करें | सीधे होकर बैठे तथा समय पर मल-मूत्र का त्याग करें | कठोर परिश्रम या अधिक देर तक खड़े होने से बचें।( और पढ़े – )
10-कब्ज :
मल जब ठीक से नहीं उतरता या कठोरता के साथ आता है तो उसे कब्ज या कॉन्सटीपेशन (Constipation) कहते हैं। यह रोग आंतों की खराबी के कारण होता है। रात में जागना, तेज प्रभावकारी चाय, कॉफी तथा अन्य नशीली चीजों का प्रयोग, शोक, दुख, भय, यकृत की बीमारी, वृद्धावस्था, गरिष्ठ भोजन आदि कारणों से भी कब्ज की शिकायत हो जाती है।
बच्चों को भी कब्ज हो जाता है। उनको जब मां का दूध पूरी मात्रा में नहीं मिलता या मां के दूध में कुछ खराबी होती है तो कोष्टबद्धता या मल का रुकना-इस प्रकार की व्याधियां दूर हो जाती हैं।
पीपल से कब्ज का इलाज –
• शौच के समय अधिक जोर न लगाएं, मल चाहे आए या ना आए।
• प्रातःकाल नित्य तांबे के बरतन में रखा हुआ पानी पीएं।
• आम, अंगूर, खरबूजा, किशमिश, मुनक्का, खजूर, संतरा, नाशपाती, अमरूद, पपीता, अंजीर, आलूबुखारा, आडू शहद, मक्खन आदि का प्रयोग अवश्य करें।
• अमलतास के फूल तथा पीपल के फल दोनों को समान मात्रा में लेकर सुखा लें। फिर इसमें थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। इसमें से एक चम्मच चूर्ण प्रतिदिन पानी के साथ सेवन करें।
• पीपल के पत्तों को सुखाकर पीस लें। एक चम्मच चूर्ण शहद के साथ कुछ दिनों तक सेवन करें।( और पढ़े –कब्ज के 27 घरेलू उपचार )
11-उल्टी :
उल्टी या कै की पहचान आम है। इसे सभी जानते हैं। हां, इतना अवश्य है कि के होने पर शरीर में कमजोरी आ जाती है। आंतें निष्क्रिय-सी हो जाती हैं। माथे पर पसीना आ जाता है। रोगी की घबराहट बढ़ जाती है।
पीपल से उल्टी का इलाज –
• सर्वप्रथम उल्टी के कारण का पता लगाएं। यदि पेट में अम्ल बढ़ गया हो तो पीपल के पत्तों को जलाकर शुद्ध शहद के साथ उसकी भस्म चटाएं।
• पीपल की छाल को सुखाकर पीस लें। उसमें जरा-सा खाने कासोडा, जरा-सा पिसा हुआ जीरा, तथा जरा-सी हींग मिला लें। एक चम्मच की मात्रा सादे पानी से दें।
• पीपल के सूखे फलों के चूर्ण में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
• एक गिलास गन्ने के रस में एक चम्मच पीपल के पत्तों का रस मिलाकर पिलाएं।
• पीपल के सूखे फलों का चूर्ण, पीपल का चूर्ण, बिजौरा नीबू का रस–तीनों चीजें उचित मात्रा में लेकर रोगी को चटाएं।
12-आंतों में कृमि :
पेट में कृमि कई प्रकार के होते हैं, जैसे-चुन्ने (Thread Worms), टेपवर्म (Tape Worms), गोल कीड़े (Round Worms) तथा अंकुश कीड़े (Hook worms), चुन्ने पतले धागे की तरह होते हैं। ये सफेद रंग के कीड़े मल के साथ निकलते रहते हैं। यह बालक की गुदा में खुजली पैदा कर देते हैं।
पीपल से आंतों में कृमि का इलाज –
• यदि पेट में किसी भी प्रकार के कीड़ों की शिकायत मिले तो खीरा, ककड़ी, आलू, मांस, चीनी, मिठाई, खटाई आदि खाना बंद कर दें। दिन भर नारियल का पानी कई बार पिलाएं।
• पीपल के दो पत्ते, दो कागजी बादाम, एक कली लहसुन तथा एक नीबू का रस-सब चीजों को खरल में डालकर महीन कर लें धीरे-धीरे दिन भर में कई बार सेवन करें।
• कच्चे आम की गुठली की गिरी का चूर्ण आधा चम्मच और पीपल के चार फल-दोनों को चटनी की तरह बटकर सुबह-शाम ताजे पानी के साथ सेवन करें।
• पीपल की छाल पानी में घिसकर एक चम्मच की मात्रा में ले लें। उसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें।
• पीपल के पत्तों के रस में पान के पत्तों का रस मिलाकर बच्चों को इसका सेवन कराएं।
• पीपल के पत्तों के रस में प्याज का रस मिलाकर देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
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