Last Updated on July 24, 2020 by admin
प्राणायाम का महत्व और लाभ : Pranayam ka Mahatva in Hindi
जैसे अग्नि आदि के तपाने से स्वर्ण आदि धातुओं के मल-विकार नष्ट हो जाते हैं वैसे ही प्राणायाम से इंद्रियों एवं मन के रोग दूर होते हैं।
प्राणायाम करने से मन के ऊपर आया हुआ असत्, अविद्या और क्लेश रूपी तमस का आवरण क्षीण होता है। शरीर में कंठ से लेकर हृदय तक जो वायु कार्य करती है उसे प्राण कहा जाता है। यह प्राण नासिका, कंठ, स्वरतंत्र, वाकेंद्रिय, अन्ननलिका, श्वसन तंत्र, फेफड़े और हृदय को गति तथा शक्ति प्रदान करती है।
प्राणायाम से शरीर पर विज्ञान सम्मत प्रभाव पड़ते हैं। रक्त संचार, नाड़ी संचालन, पाचन क्रिया, गहन निद्रा, स्फूर्ति एवं मानसिक विकास में सहायता मिलती है । स्वस्थता,उत्साह, एकाग्रता, स्थिरता, दृढ़ता आदि का विकास होता है।
व्यक्ति यदि नियमित रूप से योग और प्राणायाम करता रहे तो वह शरीर में व्याप्त गंभीर रोगों से भी मुक्त हो सकता है और ऐसी जीवनी शक्ति प्राप्त कर लेता है कि जीवन में सदैव निरोगी बना रहे और उसकी रोग निरोधक क्षमता में वृद्धि हो जाती है तथा मानसिक और शारीरिक रूप से भी सबलता अर्जित कर सुखी जीवन यापन करता है।
प्राणायाम के लिए कुछ तथ्यों का विशेष रूप से ध्यान रखना पड़ता है, जो इस प्रकार हैं –
प्राणायाम करने के सामान्य नियम :
प्राणायाम करते समय इन बातों का रखें ख्याल –
- प्राणायाम स्थल को प्रदूषण रहित बनाने के लिए दीपक तथा गूगल से उस स्थान को सुवासित करना चाहिये।
- प्राणायाम नित्य तथा अपनी प्रकृति के अनुकूल ही करना चाहिये।
- प्राणायाम करने का स्थान स्वच्छ, हवादार, शांत व पवित्र होना चाहिये।
- प्राणायाम सुखासन, सिद्धासन, योगासन अथवा वज्रासन की स्थिति में बैठकर करना चाहिये।
- भोजन करने के चार घंटे बाद ही प्राणायाम करना चाहिये।
- बहुत ज्यादा भूख हो तो प्राणायाम नहीं करना चाहिये।
- प्राणायाम करने वाले का भोजन सात्विक और हल्का होना चाहिये।
- प्राणायाम का पर्याप्त लाभ उठाने के लिए आहार-विहार संतुलित होना चाहिये।
- निर्बल व कमजोर व्यक्तियों को योग गुरु के मार्गदर्शन में प्राणायाम करना चाहिये।
- असाध्य रोग अथवा ज्वर के समय तथा गर्भवती स्त्रियों को प्राणायाम नही करना चाहिये।
- प्राणायाम के अभ्यासी को सदैव नाक से श्वास लेने की आदत डालना चाहिये।
- पेट को सदैव हल्का और मल रहित रखना चाहिये।
- ब्रह्मचर्य के पालन का विशेष ध्यान रखना चाहिये।
- प्राणायाम करते समय छाती को पर्याप्त रूप से फुलाना चाहिये।
- मुंह से तेजी के साथ वायु नहीं खींचना चाहिये।
- श्वास के नियंत्रण के लिए नाक से श्वास ली जानी चाहिये।
- प्राणायाम के समय एकाग्र चित्त होना चाहिये।
- तीनों बंध (उड्डियान, मणि एवं मूल) विशेष मार्गदर्शन में करना चाहिये। ।
- प्राणायाम समाप्ति पर 15 से 20 मिनट विश्राम अवश्य करना चाहिये।
- प्राणायाम की समाप्ति पर शिथिलीकरण हेतु लेटना अथवा आराम कुर्सी पर
बैठकर विश्राम करना चाहिये। - श्वसन क्रिया को शरीर के निचले अंगों से प्रारंभ कर ऊपर की ओर लाना चाहिये।
- शिथिलीकरण के बाद कठोर श्रम नहीं करना चाहिये।
- प्राणायाम करते समय मन शांत और प्रसन्न होना चाहिये।
- प्राणायाम के समय मुख, नाक, कान आदि अंगों पर किसी भी प्रकार का तनाव नहीं रखना चाहिये।
- प्राणायाम स्नानादि से निवृत्त होकर करना चाहिये । यदि प्राणायाम के बाद स्नान करना हो तो 15-20 मिनट बाद ही करना चाहिये।
- प्राणायाम करते समय थकान हो तो दूसरा प्राणायाम प्रारंभ करने से पहले 5-7 बार दीर्घश्वास लेना चाहिये।
- प्राणायाम करते समय गर्दन, मेरूदंड, वक्षस्थल तथा कमर को सीधा रखकर बैठना चाहिये।
- प्राणायाम में श्वास को जबर्दस्ती नहीं रोकना चाहिये।
- प्राणायाम में पूरक, कुम्भक व रेचक क्रियाओं के साथ ही मन को स्थिर व एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिये।
- प्राणायाम में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं होना चाहिये। सहजता रहनी चाहिये।