Last Updated on August 27, 2020 by admin
सोरायसिस-जिद्दी त्वचा रोग
अनियमित जीवनशैली, असमय खानपान, अत्यधिक कृत्रिम व रासायनिक पदार्थो के संयोग से बनी वस्तुओं का उपयोग, अव्यवस्थित रहन-सहन व मानसिक तनाव से मनुष्य अनेक चर्मरोगों का शिकार हो रहा है। सोरायसिस व्याधि का कारण भी यही है। इसके रुग्णों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। वर्षों तक इलाज चलता रहता है। तात्कालिक लाभ मिलता भी है, पर पूर्णत: लाभ नहीं मिलता है। ऐसे रुग्ण अंत में हर ओर से थक -हारकर आयुर्वेद की शरण में आते हैं, जबकि शुरुआत में ही आयुर्वेद चिकित्सा ली जाए, तो पूर्णत: लाभ होने की संभावना होती है । आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में जहाँ सोरायसिस का कारण अज्ञात बताया गया है, वहीं आयुर्वेद में इसके कारणों व चिकित्सा का विस्तृतरुप से विवेचन किया गया है।
सोरायसिस : Psoriasis in Hindi
समस्त चर्म रोगों में सोरायसिस एक ऐसा रोग है, जो पुनः पुनः उभर आता है और यह सिलसिला सालों तक चलता रहता है। यह किसी को भी हो सकता है चाहे व्यक्ति विशेष अमीर हो या गरीब, विद्वान हो या अनपढ़, युवा हो या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष। इसके कारण व्यक्तित्व व सुन्दरता प्रभावित होती है। चूंकि लोग इसे त्रुटिवश कोढ़ या कोढ़ के समतुल्य समझते हैं, वे ऐसे लोगों से संपर्क बढ़ाने में हिचकिचाते हैं। स्वाभाविक जिज्ञासा उठती है कि इस रोग का इतिहास व प्रकृति क्या है और किस प्रकार इससे छुटकारा मिल सकता है।
ग्रीस में इस रोग को कुष्ठ समझा जाता था, जिसके कारण ऐसे रोगियों को कोढ़ी व्यक्तियों की तरह अलग रहकर एक तिरस्कृत जीवन व्यतीत करना पड़ता था। सन् 1841 में हेब्रा नामक व्यक्ति ने इस बीमारी की प्रकृति को ठीक से समझा और यह कहा कि यह कोढ़ से भिन्न है। यद्यपि उस समय न तो इसका कारण ही ज्ञात हो पाया और न ही काबू करने का कोई विश्वसनीय उपाय । इस रोग का कारण न कोई जंतु है, न ही कोई विषाणु। यह एलर्जी भी नहीं है और संसर्गजन्य रोग भी नहीं है। इसका कारण आधुनिक शास्त्रज्ञ ज्ञात नहीं कर सके हैं, परंतु आयुर्वेदानुसार दोषों की विषमावस्था ही इसका कारण है।
सोरायसिस – क्या है यह रोग ? (What is Psoriasis in Hindi)
psoriasis rog kya hota hai –
चिकित्सा शास्त्र में यह अत्यंत जिददी (हठीला) रोग माना गया है क्योंकि यह कई वर्षों तक लगातार रहता है। इसके चट्टे शरीर के किसी भाग की त्वचा पर हो सकते हैं, जो अधिकतर सिर, पीठ, नितम्ब, कुहनी, घुटनों व पैरों पर पाये जाते हैं। अच्छी बात यह है कि चेहरे पर इसके चट्टे नहीं दिखते। इनमें सफेद रंग के हल्के गुलाबी चमक लिये हुए शल्क (Plaques/Flake) झड़ा करते हैं, जिसके कारण रोगियों को हल्का-सा मुलायम ब्रश अपने साथ इन शल्कों को झाड़ने के लिये रखना पड़ता है ताकि त्वचा भद्दी व गन्दी न दिखाई पड़े। जब शल्क हट जाते हैं तो त्वचा में रक्त निकलने वाले बिन्दु दिखते हैं।
इसके रोगियों में लगभग 50% व्यक्ति युवावस्था में ही इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं और स्त्री व पुरुष दोनों ही इस रोग से सामान्य रुप से प्रभावित होते हैं।
सोरायसिस के रुग्ण को उपद्रवस्वरुप सोरायसिस आर्थराइटिस (संधिवात), लिम्फोमा, हृदय रोग (CVD), क्रॉन्स रोग, अवसाद होने की संभावना रहती है।
कैसे बढ़ता है सोरायसिस ? (How does Psoriasis Disease Progress in Hindi)
इसकी शुरुआत त्वचा कोशिकाओं के तेजी से बढ़ने के कारण होती है और कोशिकाओं के विकास की दर कोशिकाओं के झड़ने की दर से कहीं अधिक बढ़ जाती है। बढ़ती हुई कोशिकाएं जगह न मिल पाने के कारण एक-दूसरे पर छाकर कसती हुई गोल या अनियमित आयताकार रुप में भर जाती हैं। इनका रंग हल्का या चटक गुलाबी हो सकता है और इन दागदार त्वचा से भरी हुई कोशिकाएं शल्क (FLAKE) के रुप में झड़ा करती हैं। यह परतें अभ्रक के पत्तों की तरह झड़ती रहती हैं।
आयुर्वेद में सोरायसिस को किटिभ कुष्ठ कहा है। आयुर्वेदिक संहिताओं में 18 प्रकार के कुष्ठ का वर्णन है। 7 महाकुष्ठ व 11 क्षुद्रकुष्ठ। किटिभ कुष्ठ या सोरायसिस का वर्णन क्षुद्रकुष्ठ के अंतर्गत आता है। चरक संहिता में सोरायसिस के लक्षणों का वर्णन मंडल कुष्ठ के अंतर्गत भी आता है।
त्वचा पर उठे हुए, श्वेत परत से छाये हुए, गाढ़े, चिकने, चिरस्थायी स्थल किनारों वाले लाल रंग के एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए, कृच्छसाध्य मण्डलाकृति चकतों को चरक ने ‘मण्डल’ कुष्ठ कहा है। यह गोलाकृति या मुद्राकृति होता है, इसलिए इसे ‘मण्डल’ कहते हैं तथा शरीर में विशेषतः कफदोष या आमदोष की अधिकता से उत्पन्न होने वाला रोग कहा कुष्ठ रोग की उत्पत्ति का मुख्य कारण है । विरुद्ध आहार-विहार । यथा-दूध व मछली का एक साथ सेवन इत्यादि। अतः सोरायसिस की उत्पत्ति में भी हम विरुद्ध आहार-विहार को कारण मान सकते हैं। आयुर्वेदानुसार इस रोग में वात, पित्त, कफ तीनों दोष दूषित होते हैं।
सोरायसिस क्यों होता है ? इसके कारण (Causes of Psoriasis in Hindi)
psoriasis ke karan kya hai –
सोरायसिस क्यों होता है ? इस विषय में वैज्ञानिकों के भिन्न-भिन्न मत हैं। सोरायसिस के वंशानुगत होने के अनेकों प्रमाण उपलब्ध हैं। न केवल माता-पिता प्रत्युत पांच-सात पीढ़ी पहले के पूर्व पुरुषों का प्रभाव भी कारण हो सकता है। यद्यपि पितृपक्ष में रोग होने की सम्भावना अधिक है, तो भी मातृपक्ष से रोग के आने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता।
यदि माता-पिता दोनों में से किसी एक को यह रोग हो तो संतान में पच्चीस प्रतिशत तक सोरायसिस होने की सम्भावना रहती है। यदि पति-पत्नी दोनों ही इस रोग से ग्रस्त हों तो संतान में पचहत्तर प्रतिशत तक रोग होने की सम्भावना रहती है। वस्तुतः वंश-परम्परा से रोग नहीं, बल्कि रोग की सम्भावना आती है। जहां उपयुक्त स्थिति और वातावरण प्राप्त होता है, वहां ही रोग अंकुरित हो जाता है।
अभी तक इस रोग के होने के सही कारण नहीं मालूम हो पाये हैं, पर वैज्ञानिकों के मतानुसार निम्न कारणों को रोग का कारक माना जा सकता है –
- स्थानीय या दैहिक संक्रमण – जैसे चोट, आघात, घाव, फोड़े, फुन्सी।
- मानसिक अस्वस्थता – तनाव, निराशा, अवसाद, व्यावसायिक व्यग्रता, कुण्ठा व परेशानियां।
- लम्बे अरसे तक औषधि सेवन का प्रभाव – बीटा ब्लाकर,मलेरिया निरोधक, Non-steroidal anti-inflammatory drugs, calcium channel blockers, captopril , lithium, terbinafine, granulocyte colony-stimulating factor, lipid-lowering drugs आदि। कार्टिकोस्टेरॉइड (Topical steroid cream) को छोड़ने से सोराससिस की तकलीफ बढ़ती है।
- HIV/AIDS से ग्रस्त रुग्ण में सोरायसिस होने की संभावना ज्यादा रहती है। HIV पोजिटिव में निगेटिव की अपेक्षा सोरायसिस अधिक होता है। साथ ही सोरायटिक संधिवात भी HIV पोजिटिव में होने की संभावना अधिक होती है।
- सूर्य प्रकाश – त्वचा यदि पहले से ही चुटीली हो तो उस पर तेज सूर्य की किरणों का आघात बहुत हानिकारक हो सकता है, जिसके कारण सोरायसिस हो सकता है।
- वंशानुगत – पारिवारिक इतिहास के सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ है कि यह रोग आनुवंशिक है, यद्यपि इसके जिम्मेदार जीन की आज तक खोज नहीं हो पायी है।
- रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी – रोग प्रतिरोधक शक्ति में कमी हो जाने पर भी सोरायसिस रोग हो सकता है।
सोरायसिस के क्या लक्षण है ? : (Symptoms of Psoriasis in Hindi)
psoriasis ke lakshan bataiye –
- गहरे लाल रंग या गहरे ब्राउन रंग के मसूर के दाने जैसे उभार शरीर पर प्रकट होते हैं। वे उभार पारदर्शी श्वेत परिधान में लिपटे होते हैं। कभी-कभी तो उभार मात्र पिन हेड जितना ही होता है।
- कोहनी, पिंडली, कटि, पृष्ठभाग तथा कान के पिछले भाग पर प्रायः रोग प्रारम्भ होता है।
- स्थिति के अनुसार रोग का प्रसार होने लग जाता है। चकते बढ़ते-बढ़ते अधिक स्थान घेर लेते हैं। कभी-कभी रोग बहुत विकराल रुप धारण कर लेता है और सम्पूर्ण शरीर पर फैल जाता है।
- कई बार रोग नाममात्र का ही रहता है। जीवनभर रोगी को जरा भी कष्ट नहीं देता। कई बार तो रोगी को रोग की उपस्थिति का अनुमान भी नहीं होता।
- कई बार सोरायसिस एकाएक आता है और स्वयं गायब भी हो जाता है।
- ये पीड़िकाएं बीच से ठीक होकर किनारों से बढ़ती जाती हैं, इस प्रकार विशेष गोलाकार आकृतियां बन जाती हैं।
- शरीर का जो हिस्सा प्रकाश के संपर्क में अधिक होता है, वहां सोरायसिस की पीड़िकाएं नहीं होतीं।
- शीतऋतु सोरायसिस के बढ़ने के लिए अनुकुल है।
- कुछ शास्त्रज्ञों के मतानुसार मछली के त्वचा के समान शरीर पर पपड़ी का आना व जाना, पसीना न आना, शुरुआत में कान, घुटने के नीचे व सिर पर पपड़ियां आती हैं। खुजली कई बार नहीं होती है। बिस्तर में सोने पर पपड़ियां खुद ही निकलती हैं।
- कुछ रुग्णों को पित्त की अधिकता के कारण जीभ, गुदाभाग में लालिमा आती है।
- जिन लोगों की पपड़ी नहीं गिरती उन्हें पूरे शरीर पर अनियमित, गोल चट्टे होते हैं। ये चट्टे, मोटे व गोल होते हैं।
- सोरायसिस 5 से 15 वर्ष के स्त्री या पुरुष किसी को भी हो सकता है।
- अनेक रोगियों को सोरायसिस सिर से प्रारम्भ होता है। सोरायसिस को सिर की रुसी (Dandruff) समझकर दृष्टिविगत (ignore) कर दिया जाता है। परंतु जब वह केश-सीमा को लांघकर मस्तक की ओर बढ़ने लगता है तो चिन्ता का कारण बन जाता है और तभी इसका सही निदान भी होता है।
सोरायसिस के प्रति लोगों की मिथ्या धारणाएं (People’s Misconceptions About Psoriasis in Hindi)
- छूत लगने की बीमारी – आमतौर पर लोगों की यह मिथ्या धारणा है कि यह छूत की बीमारी है, जिसके कारण रोगी को अन्य लोगों से दूर रहना चाहिये। जबकि वास्तव में रोग से ग्रसित त्वचा का अन्य व्यक्तियों से सम्पर्क होने पर भी यह रोग नहीं होता।
- हमारे देश में इस बीमारी से बहुत थोड़े व्यक्ति ही प्रभावित होते हैं, जबकि पश्चिम देशों में यह इतनी बुरी तरह व्याप्त है कि प्रत्येक 100 व्यक्तियों में कम से कम एक व्यक्ति इस रोग से ग्रस्त है।
- इस रोग को उपचारित करने के लिये तो औषधियां भी नहीं हैं और न इसको नियंत्रण में करने के लिये कोई उपाय है। अभी तक ऐसी औषधियां आविष्कृत नहीं हुई हैं, जिनसे रोग से छुटकारा मिल सके पर प्रभावशाली औषधियां अवश्य हैं, जो संक्रमण के समय रोग के प्रकोप को कम करने में सक्षम हैं।
- लोगों की यह धारणा है कि धूल, मैल, गन्दगी के कारण यह रोग उत्पन्न होता है, पर आनुसंधानिक अध्ययनों से यह ज्ञात हुआ है कि बहुत से ऐसे लोगों को भी यह हो गया, जो स्वास्थ्य के नियमों का पालन करते रहते हैं।
- लोगों का यह विश्वास है कि सूर्य की किरणों के शरीर पर पड़ने से यह बीमारी उभरती है, जबकि सच्चाई यह है कि सूर्य की अल्ट्रा बैंगनी किरणें इस रोग में लाभदायक हैं।
सोरायसिस रोग की विशेषता (Characteristic of Psoriasis Disease in Hindi)
यें उपचार करने से यद्यपि यह रोग ठीक हो जाता है, पर इसको पुनः होने से रोका नहीं जा सकता है क्योंकि 90% रोगी इसकी चपेट में पुनः आ जाते हैं।
☛ यह बीमारी सभी व्यक्तियों को सामान्य रुप से प्रभावित नहीं करती। कुछ रोगी लम्बे अरसे तक इस रोग से ग्रस्त रहते हैं। कुछ व्यक्तियों में प्रत्येक वर्ष इसका आक्रमण होता है, पर कुछ में 30 से 40 वर्ष पश्चात ही आक्रमण होता है।
☛ कुछ व्यक्तियों में बिना उपचार किये यह बीमारी ठीक हो जाती है और कभी-कभी यह फिर अचानक उभर आती है तथा कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक हो जाती है।
☛ पुनः बीमारी न होने की अवधि भी निश्चित नहीं होती। कुछ व्यक्तियों में 1 वर्ष के पश्चात इसका पुनः आक्रमण हो जाता है पर कुछ व्यक्तियों में 50 वर्ष तक इसका संक्रमण नहीं होता।
☛ आधुनिक मत सोरायसिस दीर्घकालिक ऑटोइम्यून रोग है। त्वचा पर क्षत (Injury) होने से उस स्थान पर सोरायसिस होने की संभावना अधिक रहती है, जिसे कॉबनर फिनोमिनॉन (Koebner Phenomenon) कहते हैं। सोरायसिस को जेनेटिक रोग कहा जा सकता है, जो कि वातावरण के घटकों (Environmental Factors) से बढ़ता है।
आधुनिक मतानुसार सोरायसिस के प्रकार (Types of Psoriasis in Hindi)
psoriasis kitne prakar ke hote hain –
1). प्लेक सोरायसिस (Plaque Psoriasis) – प्लेक सोरायसिस को सोरायसिस वल्गेरिस (Psoriasis Vulgaris) भी कहते हैं। 90% रुग्णों में इसी प्रकार का सोरायसिस होता है। प्लेक सोरायसिस में लाल वर्ण के चकते होते हैं, जिनके ऊपर सफेद छिलके होते हैं। इसे प्लेक कहते हैं, जो कोहनी, सिर, घुटने, पीठ, पेट पर होता है।
2). गट्टेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis) – जब ये चकते बिन्दु रुप में होते हैं, तब इसे गट्टेट सोरायसिस कहते हैं। गट्टेट सोरायसिस में सूक्ष्म (3-5mm), स्केलयुक्त, लाल या गुलाबी बिंदु के आकार का घाव होता है। ये चट्टे छाती, हाथ, पैर व सिर पर होते हैं। स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण(Pharyngitis) के कारण यह बढ़ता है।
3). इन्वर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis) – इन्वर्स सोरायसिस में लाल वर्ण के चकते त्वचा के संधि स्थानों (Skin Folds) पर रहते हैं। ये चट्टे जननांग के चारों ओर, कांख, दो नितंब के बीच, स्तन के नीचे, स्थूल व्यक्ति में पेट पर होते हैं।
4). पस्चुलर सोरायसिस (Pustular Psoriasis) – पस्चुलर सोरायसिस में छोटा असंक्रमित पस से भरा फफोला होता है। फफोले के नीचे व चारों ओर की त्वचा लाल व वेदनायुक्त होती है। इसके दो प्रकार होते हैं- (a) स्थानिक (Localized) व (b) सार्वदैहिक (Generalized)।
- (a) स्थानिक (Localized) – यह प्रकार हाथ व पैरों के तलवों में होता है, जिसे पामोप्लान्टर पस्चुलोसिस (Palmoplantar pustulosis) कहते हैं। Acrodermatitis continua में सोरायसिस के चट्टे हाथ व पैरों की उंगलियों व अंगूठों में होते हैं। कभी-कभी हाथ-पैरों तक भी फैल सकते हैं। Pustulosis palmariset plantaris यह स्थानिक का अन्य प्रकार है, जिसमें हाथ के पंजे व पैर के तलवों में लाल रंग के वेदनायुक्त स्केल्स वाले चट्टे होते हैं।
- (b) सार्वदैहिक (generalized pustular psoriasis) – सार्वदैहिक प्रकार के सोरायसिस की वृद्धि प्रायः संक्रमण, कार्टिकोस्टेरॉइड उपचार को अचानक छोड़ने से, गर्भावस्था, कैल्शियम की कमी, औषधि से होती है। इसमें त्वचा पर लाल रंग के अनेक फफोले हो जाते हैं। साथ ही बुखार, मांसपेशी का दर्द, जी मिचलाना, श्वेत रक्तकण (WBC) बढ़ा हुआ मिलता है। इसके अंतर्गत गर्भावस्था में होने वाला सार्वदैहिक प्रकार का सोरायसिस जिसे Impetigo Herpetiformis कहते हैं, बहुत गंभीर होता है। इसमें गर्भिणी को भर्ती करने की जरुरत होती है, पर यह बहुत कम होता है।
सार्वदैहिक प्रकार के अंतर्गत एक अन्य प्रकार Annular pustular psoriasis है, जो कि बाल्यावस्था में होता है। यह बहुत ही कम (Rare) होता है और लड़कियों में ज्यादा पाया जाता है। इसमें रिंग के आकार का चट्टा होता है, जिसमें किनारे पर फफोले व पीली पपड़ी (Yellow crusting) होती | है। यह गर्दन, हाथ व पैर में होता है।
5). इरीथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Erythrodermic Psoriasis) – इरीथ्रोडर्मिक सोरायसिस में रैश बहुत फैला हुआ रहता है। दूसरे प्रकारों में से भी यह हो सकता है। पैर व हाथ की अंगुलियों के नाखूनों में यह सोरायसिस हो सकता है। जब चट्टे सिक्के के आकार के हों, तब इन्हें Numular psoriasis कहते हैं। त्वचा लाल हो, छिलके झड़ते हों तो उसे PsoriaticErythrodermia कहते हैं।
6). नैपकिन सोरायसिस(Napkin Psoriasis) – छोटे बच्चों को होने वाला सोरायसिस, जिसमें डायपर स्थान पर लाल वर्ण के सिल्वर स्केलयुक्त फफोले होते हैं, जो कि पैरों तक फैलते हैं। कभी-कभी इस प्रकार के सोरायसिस का नैपकिन डर्मेटाइटिस से गलत निदान हो जाता है।
7). ओरल सोरायसिस (Oral Psoriasis) – यह बहुत ही कम पाया जाने वाला प्रकार है। इस प्रकार का सोरायसिस मुख गुहा (Oral cavity) को आक्रान्त करता है। कभी-कभी इसके कोई लक्षण नहीं होते। कभी-कभी सफेद या स्लेटी पीले रंग के चट्टे नजर आते हैं। जीभ पर छाले (Fissured tongue) आम तौर पर पाये जाते हैं।
8). म्यूकोसल सोरायसिस (Mucosal psoriasis) – यह सोरायसिस जननांग की म्यूकस मेम्ब्रेन जैसे-शिश्न मुंड (Glans penis) को आक्रान्त करता है। oral mucosa की अपेक्षा यह अधिक प्रभावित होता है।
9). सिबोरिक सोरायसिस (seborrheic Psoriasis) – सिबोरिक सोरायसिस सामान्य रुप से पाया जाने वाला सोरायसिस है, जिसमें सोरायसिस व सिबोरिक डर्मेटाइटिस के लक्षण मिलते हैं। इसे सिबोरिक डर्मेटाइटिस ही समझा जाता है। इसमें लाल रंग के स्केल्सयुक्त चट्टे होते हैं। सिर, माथे त्वचा के संधिस्थान (skin fold) व दो होंठों का संधिस्थल. नाक के बाज की त्वचा, छाती पर सिबम अधिक निर्मित होता है।
10). आर्थोपैथिक सोरायसिस (Arthopathic psoriasis) – सोरायसिस के उपद्रवस्वरुप संधियां भी आक्रान्त होती हैं। इसमें मुख्यतः हाथ-पैरों के संधियों में सूजन,दर्द, जकड़ाहट की शिकायत होती है। कभी-कभी वंक्षण, घुटने व मेरुदण्ड की अस्थियां भी प्रभावित होती हैं। इस प्रकार का सोरायसिस जहां संधियां आक्रान्त होती हैं, उसे आर्थोपैथिक सोरायसिस कहते हैं। अधिकांशतः यह त्वचा व नख सोरायसिस के साथ होता हैं। करीब 30% सोरायसिस के रुग्णों में यह संधिवात होता है।
11). फॉलिक्युलर सोरायसिस (Follicular psoriasis) – यह सोरायसिस वल्गेरिस के साथ होता है, जिसमें खुजली अधिक होती है।
12). नखमंडल सोरायसिस (Psoriasis unguium) – यह रोग त्वचा के साथ-साथ नखों में भी हो सकता है तथा केवल नखों में ही हो सकता है। एक तिहाई रुग्णों में नाखून भी सोरायसिस से प्रभावित होते हैं। इसमें नाखून का आकार अनियमित हो जाता है और वे टेढ़े हो जाते हैं। छोटे-छोटे गड्ढे होकर नाखून निकल जाते हैं। नख में यह रोग दो-तीन रुपों में होता है –
- नख क्रमशः रुक्ष, खुरदरे, मोटे, पीतवर्ण तथा भंगुर होते जाते हैं।
- एक या अनेक नख अपने सिरों पर नख-भूमि से पृथक होकर उठे से हो जाते हैं।
इसके अलावा नाखून दबे हुए (Pitting), सफेद वर्ण के, नाखून के नीचे की रक्तवाहिनी से रक्तस्राव, नाखून का पीला व लाल होना,नाखून के नीचे की त्वचा मोटी होना (Subungual hyperkeratosis), नाखून का ढीला होकर अलग होना (Onycholysis), नाखून में दरारें पड़ना इत्यादि लक्षण मिलते हैं।
सोरायसिस रोग से बचाव के उपाय (How to Prevent Psoriasis Disease in Hindi)
psoriasis bimari se bachne ke upay –
इस बीमारी के होने का वास्तविक कारण आज तक ज्ञात नहीं है। फिर भी ऐसे व्यक्तियों को त्वचा सुरक्षा के नियमों का पालन करना चाहिये, जिनकी त्वचा अधिक संवेदनशील है और जिनके परिवार में यह रोग अधिक पाया जाता है।
■ तेज धूप से बचाव – सूर्य की तेज किरणें त्वचा के लिये बहुत हानिकारक होती हैं, विशेषकर दोपहर के समय इनके सम्पर्क से त्वचा क्षतिग्रस्त हो सकती है। इस कारण यदि दोपहर में बाहर निकलना आवश्यक हो तो आंखों पर धूप का चश्मा लगाना चाहिये तथा सिर को अंगोछा, टोपी या हैट से ढंककर निकलना चाहिये। चेहरे की त्वचा पर सनस्क्रीन लोशन लगाकर निकलना चाहिये।
■ स्वच्छता के नियमों का पालन – धूल आदि से अपने आपको बचाना चाहिये । त्वचा को दिन में कम से कम दो बार धोना चाहिये तथा प्रतिदिन स्नान के समय शरीर के हर अंग की सफाई करनी चाहिये।
■ आलस्य त्यागकर श्रम करें – श्रमरहित दिनचर्या त्यागें तथा प्रतिदिन व्यायाम अवश्य करें। इससे शरीर में रक्त संचालन बढ़ेगा तथा शरीर के प्रत्येक अंग को रक्त द्वारा भरपूर ऑक्सीजन व पोषण मिल जायेगा।
■ मानसिक स्वस्थता – मानसिक तनाव से जहां तक संभव हो बचें । सकारात्मक रवैया अपनाते हुए सदा प्रसन्नचित्त रहें।
■ धूम्रपान को तिलांजलि – धूम्रपान न करें क्योंकि इसके विषैले धुएं में बहुत से हानिकारक पदार्थ होते हैं।
■ मदिरापान न करें – इसका मुख्य तत्व अल्कोहल बहुत ही हानिकारक है। यह शरीर के विषैले पदार्थों को अपने में घोल लेता है और जिगर को प्रभावित करता है, जिससे पाचनतंत्र बिना प्रभावित हुए नहीं रह पाता। अधिक मदिरा के सेवन से सोरायसिस भी हो सकता है, जिससे जीवन खतरे में पड़ सकता है। त्वचा के रोग होने पर बिना कुछ सोचे-समझे कोई औषधि नहीं सेवन करनी चाहिये और न मरहम ही लगाना चाहिये।
सोरायसिस रोग में क्या खाए व क्या न खाए (What to Eat and What Not to Eat in Psoriasis in Hindi)
सोरायसिस में सेवन किए जाने वाले आहार (Your Diet During Psoriasis in Hindi)
त्रिफला पानी, गेहूं के ज्वारे का रस, गाजर, संतरे, पालक का रस, मौसमी फल, मुनक्का, अंजीर, गाय का दूध, हरी उबली सब्जी, सलाद, आंवला, पुदीना, खीरा, चुकंदर, अंकुरित मूंग, मोठ आदि प्राकृतिक आहार का सेवन करें।
सोरायसिस में सेवन नहीं किए जाने वाले आहार (Food to Avoid in Psoriasis in Hindi)
दूध से बने पदार्थ, मूली, प्याज, लहसुन, बैंगन, भिंडी, तला भुना आहार, गरिष्ठ भोजन, खट्टे पदार्थ, मांसाहार, मादक द्रव्य, चावल, आलू, चाय, मैदे से बने पदार्थ, मिठाई, शीतपेय (कोल्ड ड्रिंक्स) आदि आहार सेवन न करें। नमक, प्याज, मछली ये तीनों दूध के साथ मिलाकर न खाएं।
सोरायसिस का आधुनिक उपचार (Modern Treatment of Psoriasis in Hindi)
सोरायसिस से त्रस्त रुग्ण स्थायी आराम के लिए काफी परेशान नजर आते हैं क्योंकि इसका स्थायी उपचार उपलब्ध नहीं है। आधुनिक औषधि से यह रोग कुछ समय के लिए दबता जरुर है, पर औषधि बंद करने पर पुनः होना प्रारंभ होता है और अधिक उग्र स्वरुप धारण करता है।
आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में स्टेराइड क्रीम, विटामिन डी 3 क्रीम, अल्ट्रावायलेट लाइट व इम्यून सिस्टम को बढ़ाने वाली औषधियां देते हैं। इस प्रकार इसमें लाक्षणिक चिकित्सा देते हैं। कुछ चिकित्सक स्टेरॉइड व कैंसर निवारक मिथोट्रेक्सेट नामक औषधि देते हैं। जिसको प्रयोग करने के पूर्व लिवर व किडनी के कार्य प्राकृत है या नहीं, इसकी जांच करके ही दवा देते हैं वरना इस औषधि के दष्परिणामस्वरुप लिवर सोरायसिस (Cirrhosis of Liver), ल्युकोपीनिया (Leucopenia), अंतड़ियों में व्रणोत्पत्ति (Ulceration) इत्यादि विकृतियां होती हैं। अतः चिकित्सक को बहुत सावधानीपूर्वक व सजग होकर यह दवा देनी चाहिए।
शल्यक्रिया (Operation)
हाल ही में अनुसंधान में पाया गया है कि प्लेक सोरायसिस, गट्टे सोरायसिस व पामोप्लान्टर पस्चुलोसिस के रुग्ण में टॉन्सिल का ऑपरेशन करने से लाभ मिल सकता है।
सोरायसिस का घरेलू उपचार (Psoriasis Treatment Home Remedies in Hindi)
Psoriasis ka gharelu upchar –
- पत्ता गोभी के सबसे ऊपर के भाग को (जो मोटा व हरा हो) गरम पानी से धोएं और उसे टॉवेल से पोंछ लें। पत्ता गोभी का उभरा भाग काट लें। ये मृदु व चिकनी पत्तियां सोरायसिस के स्थान पर लगायें। कुछ समय बाद निकालकर उसे फिर धोएं व पुनः सोरायसिस के स्थान पर लगाएं। उसके ऊपर एक ऊनी कपड़ा भी लगाएं या इलैस्टिक बैंड भी लगा सकते हैं।
- एक कप करेले का रस व एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर सुबह खाली पेट लगातार 6 माह तक लें।
- सोरायसिस के रुग्ण को छाछ का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए व छाछ को प्रभावित स्थान पर लगाना भी चाहिए।
- किसी अनुभवी सिद्ध पुरुष ने सोरायसिस से ग्रस्त रुग्ण को कुछ दिन सेब के सेवन पर अधिक जोर दिया है।
- धनिया और कूठ के समान भाग के चूर्ण को जल में पीसकर लेप लगाएं।
- पूतिकरंज की गुद्दी, देवदारु, जटामांसी, मुद्गपर्णी, काकनासा (कौआठोठी) इनके समान भाग के कपड़छान चूर्ण में पकाया हुआ मध (अरिष्ट) और मधु मिलाकर लेप लगाएं। मण्डल कुष्ठ को नष्ट करने में यह योग सिद्ध है।
पंचकर्म चिकित्सा से सोरायसिस का इलाज (Psoriasis Treatment with Panchakarma Therapy in Hindi)
panchakarma therapy for psoriasis in hindi –
आयुर्वेद शास्त्र में रोगोत्पत्ति का कारण दोषों का असंतुलन माना गया है। सोरायसिस रोग में तीनों दोषों की दुष्टि पाई जाती है। दोषों को साम्यावस्था में लाने के लिए आयुर्वेदीय पंचकर्म सक्षम है, जिसके अत्यंत बेहतरीन परिणाम मिलते हैं। सोरायसिस के रुग्णों में वमन, विरेचन, बस्ति, रक्तमोक्षण (जलौकाविचरण) के अलावा औषधियुक्त तक्रधारा के आश्चर्यजनक परिणाम देखे गए हैं।
पंचकर्म से शरीर की शुद्धि होकर लंबे समय तक सोरायसिस का आक्रमण नहीं होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा से सोरायसिस का उपचार (Naturopathy Treatment for Psoriasis in Hindi)
prakritik chikitsa se psoriasis ka ilaj –
सोरायसिस के रुग्णों में नेचरोपैथी के परिणाम अच्छे मिलते हैं। इसके अंतर्गत रोगी को पूर्णतः प्राकृतिक आहार देना चाहिए। मिट्टी का लेप, स्थानिक वाष्प प्रयोग, एनिमा, मिट्टी-पट्टी का पेट पर प्रयोग, सूर्यकिरण चिकित्सा -हल्की धूप में 10-15 मिनट का धूप स्नान, वाष्पस्नान – सप्ताह में 2 बार, सप्ताह में 2 बार मिट्टी स्नान + नीम जल, सुधार होने पर प्रतिदिन प्रातःकाल 10 मिनट का ठंडा कटि स्नान आदि प्रक्रियाओं को अपनाया जाता है।
योग से सोरायसिस का इलाज (Psoriasis Cure with Yoga in Hindi)
yog se psoriasis ka ilaj –
नियमित योगासन व प्राणायाम का अभ्यास करें। योगासन में भुजंगासन, सर्वांगासन, मत्स्यासन, हलासन, चक्रासन, शीर्षासन, पश्चिमोत्तानासन, सूर्यनमस्कार व प्राणायाम में कपालभाति, शीतली, शीतकारी, भ्रामरी व नाड़ीशोधन प्राणायाम के साथ ध्यान का अभ्यास प्रतिदिन करें।
ध्यान से सोरायसिस का इलाज (Psoriasis Cure with Meditation in Hindi)
अभी हाल ही में हुए शोधों के अनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि ध्यान द्वारा सोरायसिस उपचारित हो सकता है। शोधों द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि स्ट्रेस होने से रोग का प्रकोप बढ़ता है और इस कारण जब भी रोग का प्रकोप हो, स्ट्रेस (तनाव) को शान्त रखने का प्रयास करना चाहिये।
शोधकर्ताओं ने 37 रोगियों को चुना, जो बुरी तरहसोरायसिस से ग्रस्त थे। हफ्ते में तीन बार रोगियों ने कपड़े उतारकर अल्ट्रा बैंगनी किरणों के सेंक लिये। इनमें से आधे व्यक्तियों ने ‘मीडिएशन टेप’ में दिये गये निर्देशों को ध्यान से सुना, जिसमें यह कहा गया था कि रोगी ध्यानमग्न होकर श्वसन शवासन करते हुए यह कल्पना करें कि अल्ट्रा बैंगनी किरणें, जो संक्रमित त्वचा पर पड़ रही हैं, उनके प्रभाव से रोगग्रस्त कोशिकाएं नष्ट होती जा रही हैं तथा स्वस्थ कोशिकाएं विकसित होती जा रही हैं। इस तरह 13 सप्ताह तक करने के पश्चात रोगग्रस्त त्वचा ठीक हो गई। इस शोध द्वारा यह संकेत मिलता है कि रोगी स्वयं घर पर ही ध्यान व लगाने वाले मरहम का उपयोग कर सकता है।
सोरायसिस के विषय में दिये गये उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह रोग घातक नहीं है। यह बहुत जिद्दी किस्म का रोग है, जिससे निजात पाने के लिये केवल औषधि का सेवन व मरहम को प्रभावित त्वचा पर लगाना ही काफी नहीं है। मानसिक अस्वस्थता विशेषकर तनाव, चिन्ता या व्यावसायिक परेशानी आदि रोग को बढ़ाने में सहायक होती है। इसलिये मानसिक व शारीरिक उपचार दोनों साथ-साथ करना चाहिये ताकि रोग से छुटकारा मिल सके।
सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार (Psoriasis Ayurvedic Treatment in Hindi)
psoriasis ka ayurvedic ilaj in hindi –
(माप :- 1 रत्ती = 0.1215 ग्राम)
सोरायसिस के उपचार में आयुर्वेदिक औषधि के अंतर्गत निम्नलिखित चिकित्सा उपक्रम में से 1 से 2 उपाय चिकित्सक के मार्गदर्शन में करें
- आरोग्यवर्धिनी वटी 10 ग्राम, गंधक रसायन 10 ग्राम, प्रवाल भस्म 5 ग्राम, कामदुधा रस 5 ग्राम, सिद्ध हरताल भस्म 1 ग्राम, पंचतिक्त घृतगुग्गुल 10 ग्राम व वंगभस्म 5 ग्राम की 60 पुड़ियां बनाकर सुबह-शाम महामंजिष्ठादि क्वाथ 2 चम्मच के साथ 6 माह तक सेवन चिकित्सक परामर्शानुसार करना चाहिए।
- रसमाणिक्य 1-1 रत्ती (0.1215 ग्राम) की मात्रा में घी और मधु के साथ लें। त्वचा पर करंज तैल स्थानिक रुप से लगाना चाहिए। चट्टों पर शतधौत घृत लगाने से लाभ होता है।
- महातिक्त घृत 2 चम्मच सुबह-शाम व त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच रात्रि में कुनकुने पानी के साथ लें।
- तालकेश्वर रस का 1/2 या 1 रत्ती की मात्रा में दिन में दो बार कुछ काल प्रयोग इस रोग के लिए लाभदायक कहा गया है।
- चित्रकादिलेप – चित्रकमूल को घिसकर उसका लेप करें। सूख जाने पर उसे उतारकर फिर एरण्ड बीजों को पीसकर लेप कर दें।
- गण्डीरादि तेल – स्नुही, चित्रकमूल, भृंगराज अर्कमूल, कुष्ठ, कृटजत्वक, सैन्धव बराबर मिलाकर 1 पाव, तेल 1 किलो , गोमूत्र 4 किलो । तेल साधन कर लगाएं।
- गोपाल कर्कटी (Kigelia pinnata) के लटकने वाले कठोर फल को पीसकर उसका स्वरस लगाने से मण्डल कुष्ठ शीघ्र ही ठीक होने लगता है।
- चक्रमर्दादि लेप (योग रत्नाकर) – चकवँड का बीज तथा दालचीनी को पीसकर और दूध में भावित कर गोमूत्र मिला दें और लेप करें अथवा मदार तथा वेतस के कन्द को गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करें। यह किटिभ कुष्ठ को दूर करता है।
- पिप्पल्यादि लेप (योग रत्नाकर) – पीपर, करन्ज, हरे, कूठ, गाय का पित्त (गोरोचन) तथा चित्रक समभाग, इन सब को अच्छी तरह पीसकर लेप करें। यह किटिभ कुष्ठ को नष्ट करता है। इसकी चिकित्सकों ने प्रशंसा की है।
- गोमूत्रादि लेप (योग रत्नाकर) – मैनसिल, कासीस तथा तूतिया को समभाग लेकर गोमूत्र के साथ पीसकर लेप लगायें। यह किटिभ कुष्ठ, विसर्प तथा कुष्ठ को नष्ट करता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)