Last Updated on May 9, 2023 by admin
पुनर्नवा का अभिप्राय है यह है कि जो रसायन व रक्तवर्धक होने से शरीर को फिर से नया जैसा बना दे, उसे पुनर्ववा कहते हैं। पुनर्नवा का सूखा पौधा बारिश के मौसम में नया जीवन पाकर फूलने-फलने लगता है। पुनर्नवा पूरे भारत में खासकर गर्म प्रदेशों में बहुतायत से प्राप्त होता है। हर साल बारिश के मौसम में नए पौधे निकलना और गर्मी के मौसम में सूख जाना इसकी खासियत होती है।
पुनर्नवा कितने प्रकार के होते हैं ?
पुनर्नवा की 2 प्रकार की जातियां लाल और सफेद पाई जाती हैं। इनमें रक्त (खून) जाति वनस्पति का प्रयोग अधिकता से औषधि के रूप में किया जाता है।
पुनर्नवा का पौधा कैसा होता है ?
- पुनर्नवा का कांड (तना), पत्ते, फूल सभी रक्त (खून या लाल) रंग के होते हैं। फलों के पक जाने पर वायवीय भाग सूख जाता है। परंतु भूमि में पड़ी रहती है, जो बारिश के मौसम में फिर से उग आती है।
- पुनर्नवा की जड़ – इसकी जड़ 1 फुट लंबी, उंगली जितनी मोटी, गूदेदार, 2 से 3 शाखाओं से युक्त, तेजगंध वाली तथा स्वाद में तीखी होती है।इसे तोड़ने पर इसमें से दूध बहने लगता है। औषधि प्रयोग के लिए इसकी जड़ और पत्ते काम में आते हैं।
- पुनर्नवा के पत्ते कैसे होते हैं – पुनर्नवा की शाखाएं अनेक और पत्ते छोटे, बड़े 2 तरह के होते हैं। पुनर्नवा के पत्ते कोमल, मांसल, गोल या अंडाकार और निचला तला सफेद होता है।
- पुनर्नवा के फूल -इसमें पुष्प (फूल) सफेद या गुलाबी छोटे-छोटे, छतरीनुमा लगते हैं। फल आधा इंच के छोटे, चिपचिपे बीजों से युक्त तथा पांच धारियों वाले होते हैं। पुनर्नवा के फूलों और फलों की बहार सर्दी के मौसम में आती है।
पुनर्नवा का स्वाद कैसा होता है ? :
सफेद पुनर्नवा का रस पीने में मधुर (मीठा), तीखा और कषैला होता है।
पुनर्नवा की तासीर :
पुनर्नवा खाने में ठंडी, सूखी और हल्की होती है।
- श्वेत पुनर्नवा भारी, वातकारक और पाचनशक्तिवर्द्धक है। यह पीलिया, पेट के रोग, खून के विकार, सूजन, सूजाक (गिनोरिया), मूत्राल्पता (पेशाब का कम आना), बुखार तथा मोटापा आदि विकारों को नष्ट करती है।
- पुनर्नवा का प्रयोग जलोदर (पेट में पानी का भरना), मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन), घाव की सूजन, श्वास (दमा), हृदय (दिल) रोग, बेरी-बेरी, यकृत (जिगर) रोग, खांसी, विष (जहर) के दुष्प्रभाव को दूर करता है।
- यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार पुनर्नवा दूसरे दर्जे की गर्म और रूक्ष होती है।
- यह गुर्दे के कार्यो में वृद्वि करके पेशाब की मात्रा बढ़ाती है, खून साफ करती है।
- पुनर्नवा सूजन दूर करती है, भूख को बढ़ाती है और हृदय के रोगों को दूर करती है।
- पुनर्नवाबलवर्द्धक, खून में वृद्धि करने वाला, पेट साफ करने वाला, खांसी और मोटापा को कम करने वाला होता है।
- पुनर्नवा के पत्तों का रस -10 से 20 मिलीलीटर।
- जड़ का चूर्ण – 3 से 5 ग्राम ।
- बीजों का चूर्ण – 1 से 3 ग्राम ।
- पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) चूर्ण – 5 से 10 ग्राम।
1. शरीर पुष्ट (मजबूत और ताकतवर) करना: पुनर्नवा को दूध के साथ खाने से शरीर पुष्ट होता है।
2. दिल के रोगों में: पुनर्नवा का हृदय के रोग से पैदा हुए अस्थमा में काफी लाभ होता है।
3. लम्बी उम्र के लिए: 20 ग्राम पुनर्नवा को रोजाना दूध के साथ 6 महीने तक लगातार पीने से मनुष्य की उम्र बढ़ती है।
4. मासिक-धर्म (रजोदर्शन): पुनर्नवा की जड़ और कपास की जड़ को बारीक पीसकर गर्म पानी से छान लें, फिर इस पानी के सेवन से मासिकस्राव में खून का अधिक आना तथा गर्भाशय के रोग दूर हो जाते हैं।
5. बुढ़ापे में जवानी के लिए: 2 ग्राम पुनर्नवा की जड़ों का चूर्ण गाय के दूध के साथ सेवन करने से बूढ़े शरीर में जवानी आ जाती है।
6. शरीर की झुर्रियों के लिए: पुनर्नवा की जड़ों का काढ़ा बनाकर उसमें बराबर मात्रा में असगंध का चूर्ण मिलाकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। इस 1-1 गोली को खाकर ऊपर से मिश्री मिलाकर दूध पीने से वीर्य की कमी दूर होकर शरीर की झुर्रियां समाप्त हो जाती हैं या पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के चूर्ण को दूध और शक्कर के साथ सेवन करें।
7. मूत्राघात (पेशाब में धातु का आना) : दूध में पुनर्नवा के पत्ते का रस मिलाकर पीने से पेशाब में आने वाला घात रुक जाता है।
8. फेफड़ों की सूजन: पुनर्नवा की जड़ को थोड़ी सी सोंठ के साथ पीसकर सीने पर मालिश करने से सूजन व दर्द समाप्त हो जाता है।
9. दिवांधता (दिन में न दिखाई देना): सफेद पुनर्नवा की जड़ को तेल में घिसकर आंखों में लगाने से लाभ होता है।
10. आंखों का फूला, जाला:
- विसखपरा या पुनर्नवा (गदहपुरैना) के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर आंखों में लगाने से आंखों के रोहे और फूले आदि कट जाते हैं।
- पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण को घी में मिलाकर अंजन (काजल) बनाकर आंखों में लगायें। इससे आंखों का फूला और जाला कट जाता है। इसे दिन में 2 बार प्रयोग करना चाहिए।
11. खांसी: पुनर्नवा की जड़ के चूर्ण में शक्कर मिलाकर फांकने से सूखी खांसी मिट जाती है।
12. कनीनिका प्रदाह (आंखों की पुतली में जलन): पुनर्नवा (गदहपुरैना) की जड़ को साफ पानी में अच्छी तरह से धोकर पीस लें, फिर इसे शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से पूरा आराम मिलता है।
13. मोतियाबिंद: विषखपड़ा (गदपुरैना, पुनर्नवा) जो सफेद फूलवाली हो, उसकी जड़ भंगरैया की पत्ते के रस से घिसकर रोजाना 2 से 3 बार आंखों में लगाने से काफी आराम आता है। इसके कुछ दिनों के लगातार प्रयोग से मोतियाबिंद समाप्त हो जाता है। आंखों की रोशनी मे चमक आ जाती है।
14. उरस्तोय: लगभग 14 से 28 मिलीमीटर पुनर्नवा की जड़ का रस दिन में 2 बार सेवन करने से उरस्तोय रोग (फेफड़ों में पानी भर जाना) दूर होता है।
15. कब्ज: श्वेत गदहपुरैना (श्वेत पुनर्नवा) की जड़ का चूर्ण 5 से 10 ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 खुराक देने से शौच खुलकर आती है जिससे कब्ज दूर हो जाता है।
16. मूत्ररोग: पुनर्नवा को साग के रूप में बनाकर खाने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।
17. भगन्दर:
- पुनर्नवा, हल्दी, सोंठ, हरड़, दारूहल्दी, गिलोय, चित्रकमूल, देवदार और भारंगी के मिश्रण का काढ़ा बनाकर पीने से सूजन वाले भगन्दर में अधिक लाभ होता है।
- पुनर्नवा की जड़ और बरना की छाल को पकाकर काढ़ा बनाकर पीने भगन्दर में लाभ होता है।
18. जलोदर (पेट में पानी का भरना):
- पुनर्नवा के 40 से 60 मिलीलीटर फांट (घोल) में 1 से 2 ग्राम शोरा डालकर पिलाने से जलोदर का रोग मिट जाता है।
- पुनर्नवा, अपामार्ग, चिरायता और सोंठ को एक साथ लेकर काढ़ा बनाकर खाने से दिल के कार्य करने की क्षमता बढ़ती है और जलोदर कम होता है।
- पुनर्नवा (पुनर्नवा) की सब्जी खाने से भी जलोदर में लाभ होता है।
- पुनर्नवा (लाल गदहपुरैना) के पत्तों या जड़ का रस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सोंठ के साथ सेवन करने और पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप लगाने से जलोदर के कारण पेट में उत्पन्न होने वाले दर्दों में लाभ मिलता है।
- सूखे पुनर्नवा का फांट (घोल) बनाकर उसमें शोरा मिलाकर पीने से जलोदर में आराम मिलता है।
- पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी बनाकर रोटी के साथ खायें।
- पुनर्नवा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को पीसकर पेट के ऊपर लेप करने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
- पुनर्नवा की जड़ का रस 14 से 28 मिलीलीटर की मात्रा में दिन में 2 बार देने से जलोदर में आराम मिलता है।
19. पेट का बढ़ना (अमाशय की प्रसारण): लाल पुनर्नवा के फूल वाली गदपुरैना के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर या मूल (जड़) का रस 6 से लेकर 10 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम देने से या लाल पुनर्नवा के पंचांग को पीसकर गर्म करके लेप करने से भी पेट की बढ़ोत्तरी दूर हो जाती है।
20. गठिया (घुटनों के दर्द):
- पुनर्नवा और कत्था को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है और दर्द से आराम मिलता है।
- गठिया के रोगी को श्वेतपुनर्नवा (सफेद गदपुरैना) को सब्जी के रूप में प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
21. अन्दरूनी फोड़ा: सफेद पुनर्नवा की जड़ और वरुण की छाल को बराबर भाग में लेकर उसका 14 से 28 मिलीलीटर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को 10 ग्राम शहद के साथ दिन में 2 बार लेने से आंतरिक फोड़े में लाभ होता है।
22. पेशाब के रोग: पुनर्नवा के पत्ते 3-4 ग्राम और 4 ग्राम कालीमिर्च शर्बत की तरह घोटकर पीने से पेशाब साफ आता है।
23. हृदय की आंतरिक सूजन: पुनर्नवा के पत्ते का रस सुबह-शाम 10 से 20 मिलीलीटर सेवन करने से आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार की सूजन में लाभकारी है।
24. नहरूआ (स्यानु):
- नहरूआ के रोगी को पुनर्नवा की जड़ को अदरक के रस में पीसकर घाव पर लगाएं।
- सफेद फूलों वाले पुनर्नवा की जड़ को उसके जूस के साथ घिसकर घाव पर लगाने से नहरूआ में उत्पन्न सूजन मिट जाती है।
25. स्तनों के रोग: पुनर्नवा की जड़ का लेप बनाकर स्तनों पर लगाने से स्तन की जलन और जख्म ठीक हो जाता है।
26. गर्भ में मरा हुआ बच्चा निकालना : पुनर्नवा की 50 ग्राम ताजी जड़ का चूर्ण बनाकर 200 मिलीलीटर पानी में इतना पकाएं कि 50 मिलीलीटर ही बच जाए तब इसे छानकर सेवन कराने से गर्भिणी (गर्भवती महिला) मरा हुआ बच्चा प्रसव (प्रजनन) होकर बाहर निकल जाएगा।
27• आंखों के रोगों :
- पुनर्नवा की जड़ को गुलाबजल में घिसकर रोजाना सोते समय आंखों में लगाने से आंखों के अनेक रोग दूर होकर नज़र में सुधार होता है। पुनर्नवा के पत्तों का रस 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार शहद के साथ आंखों के रोगों में प्रयोग कर सकते हैं।
- पुनर्नवा की जड़ों को पीसकर घी में मिलाकर अंजन करने से आंखों की फूली कट जाती है।
- पुनर्नवा की जड़ों को पीसकर शहद में मिलाकर अंजन (काजल) की तरह लगाने से आंख की लाली ठीक हो जाती है।
28. आंखों की खुजली: पुनर्नवा की जड़ों को भांगरे के रस के साथ घिसकर आंखो में लगाने से आंखों की खुजली दूर होती है।
29. तिमिर (आंखों के आगे अंधेरा आना) : पुनर्नवा की जड़ों को केवल पानी के साथ घिसकर आंखों में लगाने से तिमिर रोग (आंखों के आगे अंधेरा आना) दूर हो जाता है।
30. मुख पाक (मुंह के छाले): मुंह में छाले होने पर पुनर्नवा की जड़ों को दूध में घिसकर छालों पर लेप करने से लाभ मिलता है।
31. शोथ (सूजन):
- लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पुनर्नवा मण्डूर दिन में 3 बार पानी के साथ लेने से शरीर की सूजन खत्म हो जाती है।
- लगभग 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में लाल पुनर्नवा के पत्तों का रस या इसकी जड़ का रस लगभग 10 ग्राम सोंठ के साथ सेवन करने से सूजन खत्म हो जाती है।
- पुनर्नवा के पत्तों को पीसकर गर्म करके लेप की तरह से लगाने से पेट में खराबी के कारण होने वाली सूजन खत्म हो जाती है।
- पुनर्नवा के पत्तों के रस में सोंठ, कुटकी और चिरायता को मिलाकर खिलाने से हृदय रोग के कारण होने वाली सूजन ठीक हो जाती है।
- पुनर्नवा के पत्तों को सब्जी के रूप में खाने से शरीर में आई हुई सूजन ठीक हो जाती है।
- पुनर्नवा के पत्तों की सब्जी रोजाना सेवन करते हुए इसकी जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में लगभग आधा ग्राम नौसादर के साथ गर्म पानी के साथ सुबह-शाम पीने से तुरंत सूजन में आराम मिलता है।
- 10-10 ग्राम पुनर्नवा की जड़ और नागरमोथा लेकर कल्क (लुगदी) बना लें। फिर इसे 640 मिलीलीटर लेकर गाय के दूध में पकाकर वातज शोथ के रोग में सुबह-शाम पीने से लाभ होता है।
- पुनर्नवा की जड़ों, देवदारू तथा मूर्वा को मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ देने से गर्भावस्था से उत्पन्न शोथ (सूजन) उतर जाती है।
32. जलमय शोथ: पुनर्नवा की जड़, चिरायता और शुंठी तीनों को बराबर मात्रा में लेकर रख लें, फिर इस मिश्रण को 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 मिलीलीटर पानी में पकायें, जब यह एक चौथाई भाग शेष बचे तो बचा हुआ काढ़ा पीने से जलमय शोथ (सूजन) में लाभ होता है।
33. हड़फूटनी: 3 ग्राम पुनर्नवा को खैर की लुग्दी के साथ खाने से हड़फूटनी मिटती है।
34. बाइटें: 25 से 50 मिलीलीटर पुनर्नवा की जड़ों से बना काढ़ा सुबह-शाम पीने से बाईटें मिट जाती हैं।
35. कुष्ठ (कोढ़): पुनर्नवा को सुपारी के साथ खाने से कुष्ठ (कोढ़) के रोग में आराम आता है।
36. बुखार:
- 2 ग्राम श्वेत पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण ज्वर (बुखार) में दूध या ताम्बूल के साथ सुबह-शाम सेवन करने से बुखार में आराम आता है।
- पुनर्नवा का सेवन करने से पेशाब की जलन, मूत्रमार्ग (पेशाब करने के रास्ते में परेशानी) में संक्रमण के कारण पैदा हुए बुखार के रोग में भी तुरंत लाभ मिलता है।
- लाल पुनर्नवा, परवल की पत्ती, परवल का फल, करेला, पाठा, ककोड़ा आदि की सब्जी खाने से बुखार में लाभ होता है।
37. सर्प विष (सांप के जहर): पुनर्नवा का सेवन सांप के सभी प्रकार के जहरों को दूर करता है।
38. विद्रधि (फोड़ा): 5 ग्राम श्वेत पुनर्ववा की जड़ को 500 मिलीलीटर पानी में पकाकर चौथाई काढ़ा बचने के बाद उस काढ़े को 20 से 30 मिलीलीटर मात्रा सुबह-शाम पीने से आधे पक्के हुए फोड़े समाप्त हो जाते हैं।
39. नारू (त्वचा से एक तरह के कीड़े का निकलना): पुनर्नवा की जड़ और सोंठ को पुनर्नवा के रस में पीसकर नारू पर बांधने से नारू मिटता है।
40. बिच्छू के काटने पर:
- पुनर्नवा के पत्ते और अपामार्ग की टहनियों को पीसकर बिच्छू के डंक पर मसलने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
- रविवार और पुष्प नक्षत्र के दिन उखाड़ी हुई पुनर्नवा की जड़ को चबाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
41. स्तनों के फोडे़: स्तनों के फोड़े होने पर पुनर्नवा की मूल (जड़) को छाछ के साथ पीसकर लेप करने से स्तनों के फोड़े ठीक हो जाते हैं।
42. प्रमेह (वीर्य विकार): पुनर्नवा के 1 ग्राम फूलों को सुखाकर और पीसकर, 3 ग्राम मिश्री में मिलाकर खाकर उसके ऊपर से दूध पीने से बल बढ़ता है और प्रमेह रोग समाप्त हो जाता है।
43. सभी प्रकार की सूजन: 20 ग्राम पुनर्नवा, नीम की छाल, पटोल के पत्ते, सोंठ, कटुकी, गिलोय, दारूहल्दी और हरड़ को एक साथ मिलाकर मिश्रण बना लें। इस पिसे मिश्रण को लगभग 320 मिलीलीटर पानी में डालकर गर्म करें, जब इसका चौथाई हिस्सा शेष बच जाये तो छान लें, फिर इसे 44 से 30 मिलीलीटर सुबह-शाम पीने से सभी प्रकार की सूजन, उदर रोग (पेट के रोग), पार्श्वशूल (कमर का दर्द) और दमा आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
45. पीलिया (कामला):
- पुनर्नवा की जड़ को साफ करके छोटे-छोटे 21 टुकड़ों में काट लें, फिर इन 21 टुकड़ों की माला बनाकर रोगी के गले में पहना दें। इसे पहनाने के बाद जब पीलिया ठीक हो जाए तो उस माला को किसी वृक्ष पर लटका देना चाहिए।
- पुनर्नवा का रस या मकोये का रस एक तिहाई कप शहद में मिलाकर दिन में 3 बार पिला सकते हैं।
- गदहपुरैना की नमक रहित सब्जी बनाकर खाने से पीलिया रोग जड़ से दूर हो जायगा।
- पुनर्नवा मण्डूर 1 गोली 3 बार पानी से लें।
- पुनर्नवा का 2 चम्मच रस सुबह-शाम भोजन के बाद शहद से रोजाना सेवन करने से और पुनर्नवा की जड़ के 108 टुकड़ों से बनी माला को गले में धारण करने से पीलिया के रोग में लाभ होता है।
- पुनर्नवा के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के 10-20 मिलीलीटर रस में हरड़ का 2-4 ग्राम चूर्ण मिलाकर पीने से पीलिया रोग कम हो जाता है।
46. वृक्क (गुर्दे) के रोग: punarnava benefits for kidney in hindi पुनर्नवा के 10 से 20 मिलीलीटर पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) के काढ़े का सेवन करने से वृक्क (गुर्दे) के रोगों में लाभ होता है।
47. वातकंटक: श्वेतपुनर्नवा मूल (जड़) को तेल में शुद्ध करके पैरों में मालिश करने से वातकंटक रोग दूर हो जाता है।
48. आमवात (गठिया, जोड़ों का दर्द): पुनर्नवा के काढ़ा के साथ कपूर तथा सौंठ के 1 ग्राम चूर्ण को 7 दिनों तक खाने से आमवात दूर होता है।
49. घाव और चोट लगने पर: पुनर्नवा की पत्तियों की लुगदी को घाव और चोट पर बांधने से आराम आता है।
50. रक्ताल्पता (खून की कमी, एनीमिया) : पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण, मुनक्का और हल्दी को बराबर मात्रा में पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम 1 कप दूध के साथ सेवन करने से खून की कमी के रोग में लाभ होता है।
51. हृदय (दिल) के रोग: पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण और सूखे पत्तों के चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच की खुराक में रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें। इससे दिल के अनेक रोगों में लाभ होता है।
52. रक्तप्रदर:
- पुनर्नवा के पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से मासिक-धर्म में खून जाने के रोग में लाभ मिलता है।
- पुनर्नवा की 3 ग्राम मात्रा को जलभांगरे के रस के साथ खाने से रक्तप्रदर का रोग मिटता है।
53. योनि शूल (दर्द): स्त्रियों के योनिशूल में पुनर्नवा के रस को योनि में लेप करने से महिलाओं के योनि का दर्द दूर हो जाता है।
54. सुख प्रसव (प्रजनन): पुनर्नवा की जड़ को तेल में चिकना करके योनि में रखने से प्रजनन आसानी होता है।
55. ड्रोप्सी: पुनर्नवा का सेवन ड्रोप्सी के रोग में हितकारी है।
56. पेशाब के रोग: पुनर्नवा की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से पेशाब की जलन, संक्रमण, रुकावट और पथरी के रोग में लाभ मिलता है।
57. विष (जहर) विकार: पुनर्नवा के पत्ते, जड़ और बीज को बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर 1 चम्मच दिन में 3 बार सेवन करने से शरीर में चढ़ा हुआ जहर निकल जाता है।
58. अनिद्रा (नींद का कम आना): 50 से 100 मिलीलीटर पुनर्नवा का काढ़ा पिलाने से रोगी को नींद आती है।
59. उर:क्षत (छाती में जख्म) : उर:क्षत के रोगी के थूक में बार-बार रक्त (खून) आ रहा हो तो 5 से 10 ग्राम पुनर्नवा की मूल (जड़) तथा शाठी चावलों के चूर्ण को मुनक्का के रस, दूध और घी में पकाकर पिलाने से आराम मिलता है।
60. दमा: पुनर्नवा की जड़ के 3 ग्राम चूर्ण में लगभग आधा ग्राम हल्दी को मिलाकर सुबह-शाम खिलाने से दमा का रोग मिट जाता है।
61. बच्चों के रोग: 100 मिलीलीटर पुनर्नवा के पत्तों का रस, 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण तथा 12 ग्राम पिप्पली (पीपल) के चूर्ण को मिलाकर पकायें, जब चाशनी गाढ़ी हो जाये तो इसे उतारकर बंद बोतल में भर लें, इस शर्बत की 4 से 10 बूंद बच्चों को दिन में 3 बार चटायें। इससे बच्चों की खांसी, सांस, जुकाम, फुफ्फुस (फेफड़ों के रोग), लार अधिक बहना, जिगर बढ़ जाना या जिगर की अन्य खराबी और प्रतिश्याय (नजला) आदि रोग दूर हो जाते हैं।
62. वमन (उल्टी): 2 से 5 ग्राम पुनर्नवा की मूल (जड़) के चूर्ण के सेवन से (उल्टी) बंद हो जाती है।
63. विरेचक (दस्त लाने वाला): पुनर्नवा मूल (जड़) का चूर्ण दिन में 2 बार चाय के चम्मच जितनी मात्रा में लेने से मृदु विरेचक का काम करता है जिससे पेट साफ हो जाता है।
64. उदर (पेट) के रोग: पुनर्नवा की जड़ को गाय के मूत्र (पेशाब) के साथ देने से सभी प्रकार के शोथ (सूजन) तथा पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
65. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी):
- पुनर्नवा के 5-7 पत्तों को 2-3 कालीमिर्च के दानों के साथ पीस-छानकर पिलाने से पेशाब करने में परेशानी मिट जाती है।
- पुनर्नवा के 5 से 10 मिलीलीटर पत्तों के रस को दूध में मिलाकर पिलाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।
- पुनर्नवा का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) या जड़ का सूखा चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में शहद या गर्म पानी के साथ सेवन करें। इससे सूजन, मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में परेशानी या जलन) तथा दिल के रोग ठीक हो जाते हैं।
इस दवा के कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं फिर भी इसे आजमाने से पहले अपने चिकित्सक या सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ से राय अवश्य ले ।
अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।
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