Last Updated on January 6, 2021 by admin
रत्न अत्यंत मूल्यवान होते हैं। सामान्यत: इनका उपयोग गहनों में जड़ने के लिए किया जाता है लेकिन इनमें औषधिय गुण होने के कारण कुछ वैद्य-हकीम इसकी भस्मों का इस्तेमाल रोग को जड़ से उखाड़ने हेतु करते हैं।
रोग उपचार में रत्नों का उपयोग
1). माणिक :
यह रक्तवर्धक रत्न है। क्षयरोग, पेट दर्द, आँखों के विकार, कब्ज, शारीरिक दाह कम करने के उपचार के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।
2). मोती :
यह हृदय के लिए उपयुक्त होता है । कैल्शियम की कमी की वजह से होनेवाले विकार, आँखों की जलन, दमा, कमजोरी, रक्तचाप, हृदय विकार एवं खाँसी पर मोती रत्न उपयोगी होता है।
3). पन्ना :
यह रक्तदोष निवारक होता है। रक्तदोष, मूत्रदोष, हृदय विकार पर लाभकारी एवं अम्लपित्त पर प्रभावी होता है।
4). पुष्कराज :
यह पीलिया रोग पर असरकारक होता है। पीलिया, अपचन, बवासीर, जहरीले जंतुओं के प्रभाव से होनेवाले तकलीफों पर पुष्कराज प्रभावी होता है।
5). हीरा :
यह मधुमेह नाशक होता है। मधुमेह पर अत्यंत गुणकारी, क्षयरोग, खून की कमी, सूजन, प्रमेह, मेदरोग, पीलिया, जलोधर व नपुसंकता पर ‘हीरा’ गुणकारी होता है।
6). नीलमणि :
विषमज्वर, बौद्धिक कमजोरी, उन्माद, संधिवात, स्नायुओं के दर्द, पेट के दर्द पर ‘नीलमणि’ असरकारक होता है।
7). गोमेद :
यह बवासीर पर गुणकारी होता है। वायु से उत्पन्न रोगों पर, चर्मरोग, कृमिरोग पर गोमेद’ प्रभावशाली होता है।
8). मूंगा
यह गर्भपात रोधक होता है। केवड़े या गुलाब के पानी में मूंगे का लेप गर्भवती के पेट पर लगाने से गर्भपात का धोखा टल जाता है। कुष्ठरोग, खाँसी, पांडुरोग पर ‘मूंगा’ गुणकारी होता है।
9). गार्नेट :
इस का उपयोग खून का स्राव रोकने के लिए किया जाता है।
ऊपर बताए गए रत्न केवल जानकारी के लिए बताए गए हैं, इनका इस्तेमाल तज्ञ वैद्य ही कर सकते हैं।
(अस्वीकरण : ऊपर बताए उपचार डॉक्टर की सलाह लेकर लेने है ।)