Last Updated on May 8, 2023 by admin
सेमल क्या है ? : Bombax ceiba (Red Silk-Cotton Tree) in Hindi
आचार्य श्री प्रियव्रत शर्मा ने अपने द्वारा रचित प्रिय निघण्टु में सेमल के विषय में वर्णन किया है कि – ग्रीष्म ऋतु में सेमल के वृक्ष में रुई भरे फल लगते हैं, जो धूप में सूखने पर फट जाते हैं और लू के झोंके से सफेद रुई सभी दिशाओं में ऐसे फैल जाती है मानो यह रुई सेमल के धवल यश का प्रचार प्रसार कर रही हो।
यह धवल यश इस वृक्ष की औषधीय उपादेयता के अतिरिक्त इसके अन्य महत्व को भी प्रदर्शित करता है। यद्यपि कंटक युक्त होने से यह वृक्ष घर की सीमा में शुभदायक नहीं है किन्तु घर की सीमा के बाहर यह शुभप्रद है। घर की सीमा में भी यदि यह विद्यमान है तो उसके नीचे निर्गुण्डी का पौधा लगा दिया जाय तो इसका दोष समाप्त हो जाता है। कांटे होने पर भी यह वृक्ष अनेक प्रकार से मानव का कल्याण करता है।
अगर समझ पायें इनको ये कांटे सारे फूल हुये हैं।
इन सेमर के मूलों से ही रोग बहुत निर्मूल हुये हैं।।
चरकसंहिता में कषाय (इसका निर्यास कषायरस युक्त होता है) स्कन्ध में वर्णित शाल्मलीकुल (बोम्बेकेसी) कुल की इस वनौषधि को पुरीषविरजनीय शोणितस्थापन एवं वेदना स्थापन दशेमानि के अन्तर्गत समाविष्ट कर वर्णन किया है। वस्तुतः दूषित मल को स्वाभाविक रंग प्रदान करने वाले द्रव्य पुरीष विरचनीय कहे गये हैं।
सेमल प्रायः समस्त भारत में विशेषतः उष्णतर वन्यक्षेत्र में पाया जाता है। इसके वृक्ष बाग-बगीचों में सड़कों के किनारे भी पाये जाते हैं।
सेमल का पेड़ कैसा होता है ? : Semal ka Ped Kaisa Hota Hai
सेमल के ऊंचे-ऊंचे, कंटीले पर्णपाती वृक्ष (पतझड़ करने वाले) होते हैं। ये वृक्ष 125 फीट तक ऊंचे तथा 20 फीट तक मोटे होते हैं। वृक्ष दीर्घजीवी होने के कारण ही इन्हें स्थिरायु कहा गया है। काण्ड और शाखाओं पर सर्वत्र दृढ़ तथा शंक्वाकार कंटक पाये जाते हैं।
सेमल के पत्ते : सेमल के पत्ते करतला कार, खण्डित होते हैं। ये 6-12 इंच डंठल पर धारण किये जाते हैं।
सेमल के फूल (पुष्प) : सेमल के फूल बड़े आकार के प्रायः 4-5 इंच व्यास वाले, मोटे दलों के लाल रंग के होते हैं जो शाखाओं के अग्रभाग पर समूहबद्ध लगते हैं। इनके बहिर्दल एक इंच लम्बे, प्याले के आकार के, किनारे पर कुछ खण्डित होते हैं। अन्तर्दल 5, लालरंग के, 6-7 इंच लम्बे, आयताकार, मांसल, मुड़े हुये, पुंकेशरों से लम्बाई में दूने होते हैं। पुंकेशर नलिका छोटी तथा केशरसूत्र अनेक होते हैं। जिसमें सबसे भीतरी पांच शीर्ष पर विभक्त, मध्यवर्ती दस छोटे होते हैं। कुक्षिवन्त पुंकेशरों से बड़े होते हैं।
सेमल के फल : सेमल के फल 5-7 इंच लम्बे, आयताकार अण्डाकार, गोलाग्र, पंचकोणीय होते हैं। जिनके फटने पर चिकने तथा काले रंग के अनेक बीज निकलते हैं। इन बीजों के चारों ओर सफेद रेशमी रुई लगी रहती है। सेमल की रुई तकिया एवं गद्दों में भरने के लिये बहुत अच्छी समझी जाती है। बीजों से तैल भी प्राप्त किया जाता है।
दिसम्बर-मार्च में पत्र झड़ जाने पर प्रायः पुष्प आते हैं और मार्च-मई में फल लगते हैं।
सेमल की गोंद के फायदे : Mochras ke Fayde in Hindi
सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है। पुराने पेड़ की छाल में कीड़ों के दंश, अन्य विकार या क्षय के कारण छोटे-छोटे कोटर बन जाते हैं जिनमें जेली की भांति गाढ़ा स्राव जमा होता रहता है। स्राव अधिक होने पर उसके दबाव से वहां छाल फट जाती है और स्राव बाहर निकलकर जम जाता है। यह मोचास्राव ही मोचरस के नाम से जाना जाता है।
यह निर्यास भूरे रंग का पोला और हल्का होता है। इसे संस्कृत में शाल्मलीवेष्ट और हिन्दी में मोचरस या सुपारी का फूल कहते हैं। इसे ही फारसी में गुल सुपारी या गुले फोफल कहते हैं। यह पानी में डालने पर फूल जाती है।
सेमल की जड़ के फायदे : Semal ki Musli ke Fayde in Hindi
एक-दो वर्ष की आयु के वृक्षों के मूल का सेमल मूसला (सेमल मूसली या सेमलकंद) के नाम से औषध में प्रयोग होता है। यह ध्यान रहे अधिक पुराने वृक्ष की जड़ औषध निमित्त उपयोगी नहीं होती।
छाल उतारा हुआ सेमल का मूसला पीताभ श्वेतवर्ण का, कोमल तथा लुआबी (Mucilainous) होता है। इसे पानी में भिगोने से काफी मात्रा में स्वच्छ लुआब निकलता है।
सेमल की लकड़ी के लाभ :
सेमल का फलक (तख़्ता) नरम होता है। तभी तो सुश्रुत ने (सु.सू.9) शस्त्र विस्रावण (रक्त का बहना ) संस्कार के लिये इसका प्रयोग बताया है। यारयबल्क्य स्मृति में भी जो धोबी सेमल के फलक का प्रयोग न कर पत्थर पर कपड़ों को पछाड़ कर धोता है उसे दण्डित करने को कहा है।
सेमल का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Red Silk-Cotton Tree in Different Languages
Red Silk-Cotton Tree in –
- संस्कृत (Sanskrit) – शाल्मली, मोचा, कंटकाढया, तूलिनी, रक्तपुष्प, स्थिरायु आदि।
- हिन्दी (Hindi) – सेमल, सेमर
- गुजराती (Gujarati) – शेमलो, सीमलो
- मराठी (Marathi) – सांवर
- बंगाली (Bangali) – शिमलुगाछ
- तेलगु (Telugu) – वूरुग
- कन्नड़ (Kannada) – वूरुग
- तामिल (Tamil) – मुल्लिलवु।
- मलयालम (Malayalam) – मुल्लिलवु।
- इंगलिश (English) – रेड सिल्क कॉटन ट्री (Red Silk-Cotton Tree)
- लैटिन (Latin) – सलमलिया मलबारिका (Salmalia Malabarica Schott and Endl.)
सेमल का रासायनिक विश्लेषण : Bombax ceiba Chemical Constituents
- सेमल मूसली (जड़) में स्टॉर्च, शर्करा, प्रोटीन वसा और सेल्युलोज होते हैं।
- मोचरस (गोंद) में खनिज पदार्थ तथा कैटेकाल टैनिन होता है।
- इसमें टैनिक एसिड (कषायाम्ल) और गैलिक एसिड (मायाफलाम्ल) भी होते हैं।
सेमल के प्रकार :
इसकी एक जाति जो श्वेत शाल्मली या कूट शाल्मली (एरियोडेण्ड्रोन एन्फ्रक्टुओजम Eriodendron Anfructuosurn Dc. एवं (पर्याय) सेईबा पेटांडा Ceiba Pentandra (L.) Gaerin) कहलाती है। इसमें कांटे बहुत कम और पुष्प श्वेत, भीतर पीताभ होते हैं।
यह श्वेत शाल्मली उक्त रक्त शाल्मली का उत्तम प्रतिनिधि द्रव्य है। इसका निर्यास भी गाढ़े लाल रंग का होता है। जिन प्रान्तों में रक्त शाल्मली कम होती है तथा वहां श्वेत शाल्मली के वृक्ष अधिकता से पाये जाते हैं, यहां इसके उन सभी अंगों का औषधि के रूप में व्यवहार रक्तशाल्मली की ही भांति किया जाता है। इसकी एक प्रजाति s. insiquis (Wall) schott and Endl. दक्षिण भारत और अण्डमान में होती है।
सेमल के उपयोगी अंग :
मूल, पुष्प, फल और निर्यास (मोचरस / गोंद)
सेवन की मात्रा :
- मूल (सेमल मूसली) चूर्ण – 5 से 10 ग्राम
- पुष्प स्वरस – 10 से 20 मिली
- फलचूर्ण – 2 से 3 ग्राम
- निर्यास (गोंद) – 1 से 3 ग्राम
- वीर्यकालावधि – सेमल मूसली 1 वर्ष तक।
- मोचरस (गोंद) – दीर्घकाल तक।
सेमल के औषधीय गुण : Semal ke Gun in Hindi
- रस – मधुर (मोचरस कषाय) गुण – लघु, स्निग्ध, पिच्छिल वीर्य – शीत (श्वेतशाल्मली उष्ण वीर्य है)
- विपाक – मधुर (मोचरस कटु)
- दोषकर्म – वातपित्त शामक
- मोचरस – कफपित्त शामक
अन्य कर्म –
- सेमल मूसली – बल्य, वृष्य बृंहण
- मोचरस – स्तम्भन, व्रणरोपण, रक्तस्तम्भन और शुक्र स्तम्भन
- कंटक – लेखन, वर्ण्य।
- कच्चेफल – कासहर, मूत्रल
- पुष्प – रक्त स्तम्भन
- यूनानी मतानुसार सेमल मूसली पहले दर्जे में शीत और रुक्ष है।
सेमल के उपयोग : Uses of Bombax ceiba in Hindi
- दौर्बल्य, कार्य, शुक्रक्षय आदि में सेमल मूसली का प्रयोग हितावह है।
- शुक्रस्तम्भन हेतु मोचरस उपयोगी है।
- मोचरस रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, रक्तपित्त, रक्तार्श, मुखपाक (मुह के छालें), व्रण (घाव) आदि में उपयोग में लाया जाता है।
- यह मल स्तम्भक होने से अतिसार, प्रवाहिका और ग्रहणी में बहुत लाभदायक है।
- जब मल आमलक्षण युक्त आता हो तब सोंठ, जीरा, सोंफ आदि उष्ण संग्राहक द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिये तथा जबमल पक्वलक्षण युक्त आता हो तब मोचरस, धातकी पुष्प, लोध्र आदि शीत संग्राहक द्रव्यों का प्रयोग हितावह है। अथवा इन द्रव्यों का उपयुक्त मिश्रण तैयार कर रोगी को सेवन कराना चाहिये।
- डा. श्री शिवचरण ध्यानी ने इसे बहुत अच्छे ढंग से समझाया है।
अतिसार रोग में अग्निमांद्य, वातदुष्टि, पुरीषदुष्टि तथा पुरीषवह स्रोतोदुष्टि होती हैं। यदि अग्नि की प्रबल विकृति है तो शुण्ठी दें यदि वात को ठीक करना है तो हिंगु (हींग) दें। यदि शोषण को बढ़ाना है तो रस पर्पटी दें, यदि आंतों की गति को कम करना है तो कर्पूर, अहिफेन, मोचरस जैसी स्तम्भक औषधि दें। इन सबको मिलाकर एक अतिसारघ्न योग तैयार किया जा सकता है। आयुर्वद में योगों का निर्माण इसी आधार पर हुआ है।- द्रव्यगुण सिद्धान्त - मुखपाक, व्रण आदि में मोचरस के बारीक चूर्ण का अवचूर्णन करते हैं जिससे दाह दूर होकर व्रणरोपण शीघ्र होता है। इसे दन्तमंजनों में भी मिलाते हैं जिससे यह दन्त गत रोगों से बचाता है।
- रक्तप्रदर और रक्तपित्त में पुष्प स्वरस का प्रयोग करने के साथ ही पुष्यों का शाक बनाकर भी खिलाया जाता है।
- क्षत (रगड़ या खरोंच) के रक्त को रोकने के लिये भी पुष्प स्वरस लगाते हैं कास, अश्मरी, मूत्रकृच्छ्र, वृक्कशूल आदि में कच्चे फलों का क्वाथ या चूर्ण सेवन कराने से लाभ होता है।
- सेमल की छाल का व्रणशोथ (घाव की सूजन) एवं दाह में लेप किया जाता है।
- सेमल के कांटों को दूध में पीसकर मुख पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है और न्यच्छ (न्यच्छ में शरीर पर काले चकत्ते हो जाते हैं), पिडिका (मुँहासे) आदि दूर होती है।
- सिद्ध शाल्मली कल्प ( भै.र.) वृष्य (वह चीज जिससे वीर्य और बल बढ़ता हो) हेतु उपयोगी है।
- एम.बी. मिश्रा, जे.पी. तिवारी एवं एस.एन. मिश्रा के द्वारा किये गये अनुसंधान में शाल्मली के बीजों के क्वाथ में गर्भाशय बल्य (Uterotinic) क्रिया पाई गई।
- इसके अतिरिक्त इसके तीन चार बीजों को निगलने से चेचक रोग से बचा जा सकता है। यह रहस्य बूंटीरहस्य में निर्दिष्ट है।
- इसकी रुई का भी विशेष महत्व है। इस रुई से भरे हुये तकिये को लगाने से मस्तिष्क शान्त रहता है।
- यदि इस तकिये पर पीले कपड़े की खोल चढ़ी हुई हो तो ऐसे तकिये को सिरहाने लगाने से चिन्तन शक्ति में सुधार होता है।
- इस रुई से वर्तिका (बत्ती) बनाकर उसमें जैतून का तैल या तिल का तैल भर कर अध्ययन कक्ष और शयन कक्ष में कुछ देर (5-10 मिनट) जलाने से बालकों की बुद्धि का विकास होता हैं। दीपक मिट्टी का होना चाहिये।
सेमल के फायदे : Benefits of Bombax ceiba in Hindi
1. मूत्रविकार में सेमल के प्रयोग से लाभ (Benefits of Bombax ceiba in Urinary disorder in Hindi) : पुष्पों को पहले छाया में सुखायें इसके बाद एक दिन धूप में सुखाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 3-3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से मूत्रदाह, प्रमेह आदि मूत्रदोष दूर होते हैं।
2. प्लीहावृद्धि में सेमल का उपयोग फायदेमंद (Semal Uses to Cure Enlarged spleen Disease in Hindi : इसके 4-5 पुष्पों को रात में भिगोकर प्रातः मसल छानकर उसमें 2 ग्राम राई का चूर्ण मिलाकर पीने से बढ़ी हुई तिल्ली ठीक होती है।
3. प्रमेह में सेमल के इस्तेमाल से फायदा (Semal Benefits to Cure Blennorrhagia in Hindi) : सेमल का मूसला (जड़) छील कतर कर छाया में सुखाकर चूर्ण कर लें, फिर 3-3 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेहों में लाभ मिलता है। इससे वीर्य विकारों का भी शमन होता है। इसे निरन्तर 21 दिनों तक सेवन करना आवश्यक है।
4. श्वेतप्रदर में सेमल का उपयोग फायदेमंद (Semal Uses to Cure Leucorrhoea Disease in Hindi) : सेमल का मूसला (जड़) और गोखरु क्रमशः 6 ग्राम और 4 ग्राम लेकर उसमें बराबर मिश्री मिलाकर ठण्डे पानी से सेवन करने से श्वेतप्रदर में लाभ मिलता है। ऐसी एक मात्रा दिन में तीन बार सेवन करनी चाहिये।
5. बवासीर मिटाए सेमल का उपयोग (Semal Cures Piles in Hindi) : सेमल के फूल, खसखस और मिश्री को दूध में डालकर पकाकर दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है।
6. छाती के रोग में सेमल का उपयोग फायदेमंद (Semal Benefits in Chest Diseases in Hindi) : मोचरस और लाख 100-100 ग्राम तथा शक्कर 200 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण तैयार कर लें। इस चूर्ण में से 5-5 ग्राम चूर्ण दिन में तीन बार सेवन कराना चाहिये। इसका अनुपान (दवा के साथ या बाद ली जानेवाली वस्तु) दूध रखें। उरःक्षत के कारण या यक्ष्मा के कारण मुख से आने वाला रक्त इससे बन्द होता है।
7. आंव रक्त (पेचिश) होने पर : सेंमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह को उस पानी में मिश्री में मिलाकर पीने से प्रवाहिका (पेचिश) का रोग दूर हो जाता है।
8. गिल्टी (ट्यूमर) : सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बांधने से गांठों की सूजन कम हो जाती है।
9. रक्तप्रदर : सेमल का गोंद 1 से 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
10. नपुंसकता : सेमल के पेड़ की छाल के 20 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर में वीर्य बढ़ता है और मैथुन शक्ति बढ़ती है।
11. प्रदर रोग : सेमल के फलों को घी और सेंधानमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है। सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से भी प्रदर रोग में लाभ होता है।
12. व्रण (जख्म) : सेमल की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है।
13. रक्त पित्त : सेमल के 1 से 2 ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन मे 2 बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
14. अतिसार : सेमल के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में 3 बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा मे रोगी को देने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाते हैं।
15. आग से जलने पर : सेमल की रूई को जला कर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम आता है।
16. नपुंसकता : 10 ग्राम सेमल के फल का चूर्ण, 10 ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोट कर सुबह-शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है।
सेमल से निर्मित विशिष्ट योग :
1. शाल्मली घृत – बनाने की विधि और फायदे
(क) पहली विधि –
सेमल की छाल का रस चार लीटर, बकरी का दूध चार लीटर और 2 किग्रा. गाय का घी तथा मुनक्का, मुलहठी, सोंठ, अनन्तमूल, सफेद मुसली, रास्ना, शतावरी, असगंध 25-25 ग्राम लेकर इनका तैयार किया हुआ कल्क इन सबको मिलाकर मिट्टी के पात्र या स्टील के पात्र में रखकर मन्द अग्नि पर पकावें। कल्क (चूर्ण) की औषधियों को पानी के साथ एकत्र पीसना चाहिये। जब मात्र घृत शेष रह जाय अर्थात सब जलीयांश जल जाय तब घी को छान लें ।
शाल्मली घृत के लाभ –
इस घृत को 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह, धातुक्षय, शोष (शुष्कता, खुश्की), कास (खाँसी) और नपुंसकता आदि में लाभ मिलता है। (- भै. र.)
(ख) दूसरी विधि –
सेमल के पुष्प, पृश्निपर्णी, घम्भारी के फल और सफेद चन्दन 25-25 ग्राम लेकर पानी के साथ पीसकर कल्क तैयार कर लें। सेमर के पुष्पों का स्वरस आधा लीटर, धृत एक किलो और पानी 16 लीटर लेकर विधिवत घृत सिद्ध कर लें । (- यो. र.)
दूसरी विधि से निर्मित शाल्मली घृत के फायदे –
यह घृत 10-20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से स्त्रियों के सभी प्रकार के प्रदर दूर होते हैं। इसका अनुपान भी दूध ही रखना चाहिये।
2. शाल्मली कल्प – बनाने की विधि और फायदे
सेमल की जड़ और असगंध समान लेकर चूर्ण बनाकर इनसे चौगुना उड़द का आटा लेकर उसमें घी शक्कर मिलाकर पकौड़ी निकालें।
शाल्मली कल्प के लाभ –
ये पकौड़ियां नित्य ताजा तैयार कर 21 दिनों तक खाने से मनुष्य बलवान, और वीर्यवान होता है अम्ल रस का परहेज रखें। यह उत्तम वृष्य योग है। (- कल्प चिकित्सा)
3. मोचरस पाक – बनाने की विधि और फायदे
मोचरस 500 ग्राम लेकर उसे 2.5 लीटर दूध में पकावें। दूध गाय का होना चाहिये। खोवा जैसा हो जाने पर उसे 250 ग्राम गोघृत में सेक लें, फिर उसमें नागरमोथा, तेजपात, दालचीनी, इलायची, नागकेशर, अकरकरा, धनियां, सोंठ, मिर्च, पीपल, लोग, जावित्री, वंशलोचन, चित्रक, जायफल 5-5 ग्राम का बारीक चूर्ण मिलाकर 2 किलो मिश्री की चाशनी पृथक से कर के उस चाशनी में उक्त मिश्रण मिलाकर पाक जमा दें।
मोचरस पाक के लाभ –
यह पाक 10-20 ग्राम प्रातः सायं दूध के साथ सेवन करने से वातज रोग, पित्तज रोग, ग्रहणी विकार, उदर रोग, हृदयरोग आदि का निवारण होता है। यह बाजीकरण भी है।
सेमल के दुष्प्रभाव : Semal Side Effects in Hindi
कफ प्रकृति वालों के लिये सेमल की अधिक मात्रा उपयुक्त नहीं है ।
निवारण – शक्कर और शतावर।
(अस्वीकरण : ये लेख केवल जानकारी के लिए है । myBapuji किसी भी सूरत में किसी भी तरह की चिकित्सा की सलाह नहीं दे रहा है । आपके लिए कौन सी चिकित्सा सही है, इसके बारे में अपने डॉक्टर से बात करके ही निर्णय लें।)