Last Updated on May 4, 2022 by admin
छोटी पिप्पली और शिशु रोग :
परिचय :
पिप्पली, जो कि पीपल के नाम से ज्यादा प्रसिद्ध है, आयुर्वेदिक औषधियों में प्रयोग होने वाली मुख्य वनस्पति है। यह एक ऐसी बेल झाड़ी है। जिसकी शाखाएं धरती पर फैलती तथा ऊपर की ओर उठती हुई पास की झाड़ियों के साथ ऊंची भी उठ जाती है। देश के उष्ण (गर्म) भागों में यह खुद ही पैदा हो जाती है। मुरादाबाद, जिले के पास के जंगलों में भी पाई जाती है। दक्षिण भारत और बंगाल में इसकी खेती की जाती है।
- आयुर्वेद में पिप्पली को अधिक गुणकारी औषधि के रूप में माना जाता है। नारियों के गर्भाशय तथा आदमियों और औरतों के फेफड़ों पर इसका खास असर पड़ता है। प्रसव-विलम्ब (बच्चा पैदा होने पर देरी में) भी इसे देने से लाभ होता है। चिकित्सा में इसकी जड़ और फल दोनों का उपयोग होता है। पिप्पली की जड़ पीपलमूल के नाम से प्रसिद्ध है।
- पिप्पली शरीर को ताजगी देने वाली, समशीतोष्ण, कटु, बिपाक में मधुर तथा जठराग्नि प्रदीपक है। पाचक रसों की वृद्धि करती है तथा गुल्म (फोड़ा), शूल (दर्द), हिक्का, उदर-विकार (पेट के रोग), खांसी, कुष्ठ (कोढ़) आदि रोगों में लाभ करने वाली है। मूत्र (पेशाब) और प्रजनन-संस्थान (बच्चा पैदा होने की जगह पर) पर इसका अच्छा प्रभाव रहता है। वात (गैस) और कफ (बलगम) को समाप्त करने में विशेष गुण-सम्पन्न मानी जाती है।
पिप्पली के द्वारा विभिन्न रोगों की चिकित्सा –
1). उल्टी :
- पंचकोल में पिप्पली का मुख्य योगदान है, पिप्पली, पीपलामूल, चव्य, चित्रक और सोंठ यह पंचकोल है, इसका चूर्ण 240 ग्राम दोनों प्रकार की छोटी कटेरी और बड़ी कटेरी के रस में शहद मिलाकर वमन (उल्टी), दूध उलटना, अपच (भोजन न पचना) आदि रोगों में देते हैं। रस की मात्रा 10 या 15 मिलीलीटर होनी चाहिए। सर्दी, खांसी, कफ (बलगम), तथा वातरोग के लिए लाभकारी है।
- बच्चे को हिचकी और वमन (उल्टी) हो तो पिप्पली और कालीमिर्च का चूर्ण शहद के साथ चटाना बहुत ही लाभकारी है।
2). ज्वर : ज्वर (बुखार), खांसी, वमन (उल्टी) आदि रोकने के लिए छोटी पीपल, रसौत, सौंफ, काकड़सिंगी और कालीमिर्च के बराबर भाग का चूर्ण शहद मिलाकर चटाते है। इससे भी बहुत जल्दी आराम हो सकता है।
3). आंवदस्त : दुग्धपान (दूध पीने वाले) बच्चे को यदि आंवदस्त का रोग हो, अर्थात आंव के साथ मल निकलता है तो उसे बहुत दर्द होता है। ऐसी हालत में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग पिप्पली का चूर्ण बच्चे की मां को उड़द के पानी के साथ देने आराम आता है।
4). मूत्रावरोध : यदि बच्चे को मूत्रावरोध (पेशाब रुक गया) हो तो उसे छोटी पीपल, कालीमिर्च, शर्करा, छोटी इलायची और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर उसमें शहद मिलाकर देने से जल्दी आराम आता है। यह चूर्ण 1 साल के बच्चे को 0.12 ग्राम देना चाहिए।
5). श्वास : बच्चों के श्वास (सांस), तमक श्वास और खांसी में पिप्पली, हरड़, मुनक्का और जवासा के चूर्ण के असमान भाग को शहद और घी के साथ सेवन करना चाहिए।
6). खांसी : बच्चों की सब प्रकार की खांसी में पिप्पली, पुष्करमूल, अतीस, काकड़ासिंगी और धमासा के बराबर भाग के चूर्ण को लेकर 0.12 ग्राम अथवा उम्र और ताकत के अनुसार मात्रा में शहद के साथ चटाना लाभकारी है।
7). आंखों का रोग : बच्चे के आंखों के रोगों में पिप्पली, शुद्ध रसांजन, मैनसिल और शंखनाभि को पानी के साथ पीसकर बत्ती बना लें। इसे शहद के साथ घिसकर लगाना चाहिए।
कालीमिर्च से शिशु के रोगों की चिकित्सा :
1). अफारा : अफारा (पेट में गैस), उदरशूल (पेट में दर्द), अरुचि (भोजन करने का मन न करना) तथा पाचन संस्थान से सम्बन्धित रोगों में इसका उपयोग किया जा सकता है। कसरत करने वाले पहलवान घी में कालीमिर्च मिलाकर पीते हैं। स्वर-भंग (आवाज बैठ जाना) तथा जुकाम आदि में भी इसका उपयोग किया जाता है। कालीमिर्च को दूध के साथ पकाकर रात को सोते समय पीने से पाचक रसों का उत्तेजन होता है।
2). संग्रहणी : बच्चे को संग्रहणी (दस्त) हो जाने पर उसे कालीमिर्च सेवन कराते हैं। 1 भाग कालीमिर्च, 2 भाग सोंठ और 4 भाग गुड़ को कपड़े में छानकर बच्चे को उम्र और क्षमता के अनुसार देने से गुड़ और मट्ठे के साथ देना चाहिए।
3). जुकाम : जुकाम में एक ओर की नाक का छेद बंद हो गया हो या छींके आ रही हों और नाक से ज्यादा पानी गिर रहा हो तो बच्चे को कालीमिर्च का चूर्ण सुंघाने से आराम आता है।
4). अतिसार : कालीमिर्च का चूर्ण अतिसार (दस्त) को रोकने में लाभकारी होता है।
5). जुकाम : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कालीमिर्च का चूर्ण बच्चे को गुड़ के साथ खिलाकर ऊपर से गर्म पानी पिलाने से जुकाम में आराम आता है।
6). खांसी : कालीमिर्च और कटेरी की धूनी (धुंआ) जलाकर नाक के द्वारा लेने से खांसी कम हो जाती है।
7). बुखार :
- कालीमिर्च का बिल्कुल बारीक चूर्ण तथा स्वल्प (थोड़ी) मात्रा में कस्तूरी को घिसकर लार के साथ आंखों की बाहरी पलकों पर लगाने से ज्वर (बुखार) कम हो जाता है।
- कालीमिर्च का चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन करने से चढ़ा हुआ बुखार (धीरे-धीरे) उतर जाता है।
9). हैजा : कालीमिर्च, शुद्ध अफीम और घी में भुनी हुई हींग तीनों को बराबर मात्रा में लेकर बिल्कुल बारीक चूर्ण बना लें और पानी से पीसकर 120 मिलीग्राम की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली हर 2-2 घंटे के बाद दें। इसे छोटे बच्चों को मां के दूध में भी दे सकते हैं।
अतिविषा (अतीस) का बाल रोगों में उपयोग :
संस्कृत में अतिविषा के नाम से प्रसिद्ध औषधि का नाम ही अतीस है। इसे प्रविविशा, विश्वा, श्रंणी, शुक्लकन्दा तथा शिशु भैषज्य आदि भी कहा गया है। हिंदी में अतीस को कड़वा भी कहते हैं। यह जहर का असर खत्म करने वाली होने के कारण भी अतिविषा कहलाती है। औषधि के रूप में इसका उपयोग प्राचीनकाल से ही होता रहा है।
अतीस के तीन भेद हैं- काली अतीस, सफेद अतीस और अरुण कन्दा। इनमें से काली अतीस का असर ही सबसे ज्यादा होता है। यह तिक्तरस प्रधान कड़वी होती है। श्वेतकन्दा और अरुणकन्दा में अधिक कड़वापन नहीं होता। “निघण्टु संग्रह´´ के अनुसार श्वेतकन्दा में गुणों की अधिकता है।
अतीस में उत्तेजक, पाचन, ग्राही तथा सभी दोषों का हरण करने वाली होने की खासियत है। बाल रोगों में भी इसका उपयोग अधिकता से होता है। ज्वर (बुखार), खांसी और दस्त होने पर यह देना बहुत ही लाभकारी माना जाता है। बच्चे के दांत निकलने के समय भी इसका प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है।
अतीस का प्रसिद्ध योग –
आयुर्वेद का यह प्रसिद्ध योग है। पाचन तन्त्र (भोजन पचाने की जगह) को ठीक रखने और अतिसार आदि को रोकने में इसका विशेष योगदान है। दन्तोद्गम (दांत निकलने के समय) काल में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसमें 0.48 ग्राम से 0.60 ग्राम अतीस, छोटी पीपल, काकड़सिंगी और नागरमोथा बराबर मात्रा में लेकर कपड़े में छानकर चूर्ण बना करके और उसमें शहद मिलाकर बच्चे को चटाते हैं। इसको चटाने से बच्चों का ज्वरातिसार (बुखार के साथ दस्त होना), वमन (दूध उलटना), खांसी, श्वास (सांस) आदि रोग जल्दी दूर हो जाते हैं अथवा इसे थोड़े से पानी के साथ क्वाथित (काढ़ा) करके भी, छोटे बच्चों को 2-3 चम्मच की मात्रा में पिला देते हैं। ऐसा करने से जल्दी आराम आता है।
अतीस जलन को भी शांत करती है। यह आम-दोष (पेट के रोग) को खत्म करने वाली है। बच्चों की बीमारी को दूर करने वाली होने के कारण अधिक उपयोगी है। अजीर्ण जन्य विकार (भूख न लगने के कारण हुए रोग), ग्रहणी-दोष, विष दोष (जहर के कारण), तथा शूल (दर्द) में भी जल्दी आराम आता है। अतीस की मात्रा बच्चों के लिए लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक तथा बड़ों के लिए लगभग 1 ग्राम से लगभग 2 ग्राम तक हो सकती है। अकेले अतीस का चूर्ण भी बच्चों के रोगों में चमत्कारिक रूप से कार्य करता है। बच्चों के रोगों में प्रचलित एक अन्य योग भी अतीस मिश्रित है। उसका प्रयोग भी ज्वर (बुखार) और वमन (दूध पीकर उल्टी कर देना) किया जा सकता है।
अतीस के अन्य लाभकारी योग –
1). ज्वरातिसार : अतीस का चूर्ण रसौत के चूर्ण के साथ बच्चों को सेवन कराने से बच्चों का ज्वरातिसार (बुखार के साथ दस्त आना) रुक जाता है।
2). खांसी : काकड़ासिंगी, नागरमोथा और अतीस को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें, फिर उसे कपड़े से छानकर शहद के साथ मिलाकर बच्चे को चटाना चाहिए। इससे बच्चे का ज्वर (बुखार) और खांसी का वेग रुकेगा और दूध उलटने का रोग भी दूर हो जायेगा।
3). कृमि :
- अतीस का चूर्ण वायविडंग के चूर्ण के साथ शहद में मिलाकर बच्चे को चटाने से आन्त्र-कृमि (आंतों के कीड़े) समाप्त होते हैं।
- लगभग 120 ग्राम अतीस का चूर्ण मां के दूध में मिलाकर दिन में 2 से 3 बार बच्चे को देने से बच्चे के कृमि (कीड़े) मिट जाते हैं।
4). चूहे काटे का जहर : अतीस का चूर्ण शहद के साथ दिन में 2 से 3 बार बच्चे को चटाने से चूहे काटे का जहर भी दूर होता है। काटे हुए स्थान पर अतीस को घिसकर गाय के मूत्र के साथ लगा देना चाहिए ।
5). आमातिसार : अतीस का चूर्ण शहद में अथवा मां के दूध में मिलाकर देने से आमातिसार (ऑवयुक्त दस्त) भी समाप्त हो जाते हैं।
6). दस्त : अतीस का चूर्ण दूध अथवा पानी के साथ मिलाकर बच्चे को पिलाने से हरे-पीले अथवा पतले दस्त बंद हो जाते हैं।
7). छाले : यदि बच्चे के गले में छाले हो गये हों अथवा उसका काग गिर गया हो, तो भी अतीस का चूर्ण शहद में मिलाकर चटायें और रूई के फाये से छालों पर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं।
8). आंखों का दर्द : आंखों में दर्द होने पर अतीस के गुनगुने काढ़े से आंखों की हल्की सिकाई करें तथा गुलाबजल के साथ अतीस को पीसकर आंखों के बाहर चारों ओर 1-1 इंच छोड़कर लेप करें और सूखने पर छुड़ा दें। अतीस के काढ़े से आंखों को धोने से बहुत लाभ होता है।
9). सूजन : अतीस को पीसकर गोमूत्र (गाय के पेशाब) के साथ मिलाकर थोड़ा गर्म करके गुनगुना होने पर ही लेप करने से सूजन की बीमारी दूर होती है।
बच्चों के विभिन्न रोग-नाशक आयुर्वेदिक औषधियां :
1). पीपल : काकड़ासिंगी, अतीस, पीपल और नागरमोथा का थोड़ा सा भाग लेकर चूर्ण बना लें। 2 से 6 ग्राम तक इस चूर्ण को शहद में मिलाकर बच्चों को चटाने से बच्चों का बुखार, खांसी और उल्टी आदि रोग दूर हो जाते हैं।
2). वायविडंग : वायविडंग के दाने दूध में उबाल लें। जब दूध उबल जाये तो उसमें से दाने निकालकर वह दूध बच्चों को पिलाने से बच्चे ताकतवर बनते हैं।
3). अमरबेल : अमरबेल का टुकड़ा बच्चों के गले, हाथ या बालों में बांधने से बच्चों के सभी रोग समाप्त हो जाते हैं।
4). नारियल : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग जहरमोरा, लगभग आधा ग्राम जहरीले नारियल की गिरी और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग निर्मली को पीसकर गुलाबजल के साथ पिलाने से बच्चों की उल्टी, अतिसार (दस्त), और सूखा रोग (रिकेट्स) ठीक होता है।
5). नागरबेल : नागरबेल का एक पान लेकर उसमें तेल लगाकर आग में गर्म करके बच्चे की छाती पर रख दें, उसके ऊपर दो पान और रखकर बांधने से बच्चों के सांस के रोग, दिल के रोग, जुकाम, खांसी, लीवर आदि ठीक होते हैं।
6). हल्दी : हल्दी, दारूहल्दी, मुलहठी, कटेरी और इन्द्र-जौ का थोड़ा सा भाग लेकर काढ़ा बनाकर बच्चे को पिलाने से अतिसार (दस्त) श्वास (सांस) तथा खांसी आदि रोग ठीक होते हैं।
घाव की चिकित्सा :
मुलेठी : कड़वे नीम के पत्ते, दारूहल्दी, मुलेठी और घी को कूट-पीसकर, घी में मिलाकर मरहम बना लें। इस मरहम के लगाने से घाव (जख्म) अन्दर से भर जाता है। अगर घाव में खराबी हो, किसी भी दवाई से आराम न हुआ हो तो नीम के पत्ते डालकर पानी उबाल लें और उससे घाव को धोकर ऊपर से मरहम लगा दीजिये। घाव चाहे जैसा भी हो फोड़ा, नासूर या कोई भी कुछ दिनों तक लगातार यह मरहम लगाने से और घाव को धोने से आराम हो जाएगा। अगर फोड़ा फूटकर बहता हो, तो कड़वे नीम के पत्तों को पीसकर और शहद में मिलाकर लगाना चाहिए।
होठ फटना :
- घी : घी में नमक मिलाकर रोजाना दिन में तीन बार नाभि पर मलना चाहिए।
- तरबूज : तरबूज की मींगी (बीज) को पानी के साथ पीसकर, होठों या जीभ पर मलने से होठ या जीभ के फटने में आराम हो जाता है।
सिर में जुंए :
नीम : अगर बच्चे के सिर में जूं पड़ जाएं, तो कड़वे नीम के बीज पानी में पीसकर सिर में लगायें या दबायें।
कान में कीड़ा :
कसौंदी : अगर बच्चे के कान में कीड़ा या मच्छर घुस जाये तो मकोय के पत्तों का रस कान में डाले अथवा कसौंदी के पत्तों का रस कान में डालें। अगर कान में कनखजूरा घुस गया हो तो मरोड़फली की जड़ को अरण्डी के तेल में घिसकर 10 से 15 बूंद डालें। इसमें कीड़ा मरकर ऊपर आ जाएगा।
बिच्छू के डंक का इलाज :
- चिरमिटे (अपामार्ग) की जड़ : जिस बच्चे या औरत-आदमी के बिच्छू ने डंक मारा हो, उसे चिरचिटे की जड़ का स्पर्श करायें अथवा दो बार दिखा देने से जहर उतर जाता है।
- हुलहुल : हुलहुल की जड़ बिच्छू काटे हुए व्यक्ति को सात बार सुंघाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।
नहारू या बाला :
नीम : अगर नहारू या बाला निकल आये, तो कड़वे नीम के पत्ते पीसकर उसका लेप करने से नहारू ठीक हो जाता है।
बाल न आना :
- परवल : अगर कहीं बाल न आते हों, तो कड़वे परवल के पत्तों का रस उस जगह लगायें।
- रीठा : अगर सिर में गंजेपन (किसी स्थान से बाल उड़ गये हो) तो रीठे के पत्तों से सिर को धोयें और करन्ज का तेल, नींबू का रस और कड़वे कैथ के बीजों का तेल मिलाकर लगायें। इससे गंजापन का रोग दूर हो जाता है।
- रसौत : हाथी-दांत की राख और रसौत लगाने से फौरन बाल आ जाते हैं।
लू या आग की लपट लगना :
- कमलगट्टा : अगर बच्चे को लूं से बचाना हो, तो एक प्याला कमलगट्टा हर समय उसके पास रखें।
- प्याज : अगर लू या आग की लपक लग जाय, तो एक प्याज को भून लें और एक को कच्चा रखें। फिर उनको एक साथ सिल पर पीसकर और साथ ही 2 ग्राम जीरा और 20 ग्राम मिश्री मिलाकर खिलाने से लाभ होता है।
- धनिया : धनिये को पानी में पीसकर और मिश्री मिलाकर पिलाने से न लू लगती है और न आम खाने से गर्मी होती है।
- खरबूजा : अगर आग की लपक लग जाये तो खरबूजे के बीज पीसकर सिर पर लगायें और रस शरीर पर लेप करें।
कमजोर बालक को ताकतवर बनाने का उपाय :
छुहारा : अगर बच्चा कमजोर हो तो उसे उम्र के अनुसार 6 से 30 ग्राम तक छुहारे लेकर पानी में धोकर साफ कर लें और गुठली निकालकर दूध में भिगो दें। थोड़ी देर बाद छुहारों को निकालकर सिल पर पीस लें और कपड़े में रस निचोड़ लें। इस तरह दिन में तीन बार हर बार ताजा रस निकालकर बच्चे को पिलायें। बच्चे के शरीर में खूब ताकत आ जायेगी। एक महीने से कम उम्र के बच्चे को यह रस नहीं पिलाना चाहिए।
बालक को दस्त कराने का सहज उपाय :
छुहारा : अगर बालक को दस्त कराने हों तो रात को छुआरा पानी में भिगों दें। सवेरे उसे पानी में मसलकर निचोड़ लें और छुआरे को फेंक दें। उसके बाद वही पानी बच्चे को पिलाने से दस्त होंगे अथवा थोड़े से गुलाब के फूल और चीनी खिलाकर ऊपर से पानी पिला दें, दस्त होगें। बड़े आदमी को डेढ़ ग्राम शीरा, चीनी या शहद में मिलाकर चटाने से दस्त होगें। दो भाग दाख और एक भाग हरड़ को कूट-पीसकर 8 ग्राम तक रोज खाने से कब्ज (पेट में गैस) दूर हो जाती है।
फुंसियों का इलाज :
आंवला : अगर बच्चे के शरीर पर फुन्सियां हों, तो रेवन्दचीनी की लकड़ी को पानी में घिसकर लेप करें। अगर फोड़ा हो, तो आंवले की राख को घी में मिलाकर लेप करें। अगर फोड़े-फुन्सी बहुत हों तो आंवलों को दही में भिगोकर लगायें या नीम की छाल पानी में घिसकर लगायें।
पैर फटना :
गुड़ : अगर पैर फट गये हो तो औरत का दूध, गुड़, घी, शहद और गेरू बराबर मात्रा में लेकर और मिलाकर लेप करें। इससे पैर कमल जैसे मुलायम हो जायेंगे।
बढ़े पेट के घटाने का उपाय :
शहद : अगर पेट बहुत ज्यादा बढ़ गया हो और उसे कम करना हो, तो शीतल जल (ताजे पानी में) शहद मिलाकर रोजाना सुबह पीने से लाभ होता है।
पेट के दर्द का इलाज :
हल्दी : अगर पेट में दर्द हो, तो एलुआ, हल्दी, फिटकरी, नौसादर और सुहागा को पीसकर गोमूत्र (गाय के पेशाब) में मिलाकर पेट पर गर्म-गर्म लेप करने से पेट दर्द में आराम आता है।
मुंह के घावों का इलाज :
मिश्री : अगर बड़े बच्चे के मुंह में घाव (जख्म) हो तो सफेद चिरमिटी के पत्ते शीतलचीनी और मिश्री को मुंह में रखकर चूसना चाहिए अथवा चिरमिटी की जड़ चबानी चाहिए या शहद और ताजा पानी को मिलाकर गरारे करने चाहिए।
मुबारकी रोग का इलाज :
गोरोचन : अगर बच्चे के पेट में मल की गांठ बन गई हो, पेट फूल रहा हो, पसली दुखती हो, गालों पर सूजन हो, पेशाब पीला आ रहा हो, कमजोरी हो तो समझ लेना चाहिए कि `मुबारकी रोग´ हो गया है। अगर मुबारकी रोग हो तो 3 ग्राम खैर की अन्तरछाल और गोरोचन आधे उड़द के बराबर घिसकर गाय के दूध में मिलाकर रोज सवेरे 3 दिनों तक सेवन करने से मुबारकी रोग में आराम आता है।
बहरेपन का इलाज :
सफेद कत्था : अगर किसी कारण की वजह से कान से कम सुनाई देता हो तो सफेद कत्था कपड़े में छानकर, गर्म पानी में मिलाकर, पिचकारी के द्वारा कान में पहुंचाना चाहिए और पीछे से कान को धोकर साफ कर लेना चाहिए। अगर किसी जख्म या किसी और कारण से बहरापन होगा या चेचक के पीछे बहरापन हो गया होगा तो आराम हो जायेगा।
बालक के तुतलाने का इलाज :
लघु ब्राह्मी : अगर बच्चा तुतलाकर बोलता हो, तो `लघु ब्राह्मी´ के ताजा पत्तों को पीसकर कुछ दिनों तक लगातार पिलायें। इससे जीभ नर्म और पतली हो जायेगी।
बालक को जल्दी बढ़ाने का उपाय :
गुड़ : अगर बच्चे को जल्दी बढ़ाना हो तो प्याज और गुड़ मिलाकर कुछ दिनों तक खिलायें। अगर बच्चे की चेतन्यता (दिमागी शक्ति) बढ़ानी हो तो मक्खन और छुहारे खिलायें।
बालक के पेट से मिट्टी निकालना :
- केला : अगर बालक के पेट में मिट्टी हो, तो एक पका हुआ केला शहद में मिलाकर खिला दीजिये।
- केसर : केसर, मुलेठी, पीपल और निशोथ का काढ़ा बनाकर चिकनी मिट्टी में डुबोकर सुखा दें। इस तरह चार बार डुबायें और सुखायें। पीछे वहीं मिट्टी बालक को खिला दें। उसके खाने से बालक के पेट की मिट्टी बाहर निकल जायेगी।
पेट का रोग :
- प्याज : अगर बच्चे के पेट में कीड़े हों या बदहजमी (भोजन का हजम न होना) का रोग हो तो प्याज का रस निकालकर पिलायें।
- हल्दी : अगर बच्चे के पेट में दर्द हो, तो करेले के पत्तों का रस 1 मिलीलीटर में जरा-सी हल्दी मिलाकर पिलाने से उल्टी और दस्त होकर पेट साफ हो जाएगा।
- नींबू : अगर बच्चे को अजीर्ण रोग हो तो नींबू के रस में केसर को घिसकर चटा दें। अगर पेट में मल रुक रहा हो तो नींबू के रस में जायफल घिसकर चटा दें।
- केसर : अगर बच्चे के पेट में कीड़े हों, तो केसर और कपूर एक-एक चावल भर या कम ज्यादा खिलाकर दूध पिला दें।
बच्चे की आंख में रोग :
- चिरमिटी : अगर बच्चे की आंख में माता से फूला पड़ जाय तो दूध में चिरमिटी को घिसकर आंखों में काजल की तरह लगाएं।
- प्याज :
- अगर बच्चे की आंख में गर्मी हो तो प्याज के रस में मिश्री मिलाकर आंख में लगाएं या लाल चंदन को पीसकर आंख के ऊपर लगायें।
- अगर बच्चे की आंख में दर्द हो, तो प्याज का रस आंखों में डालने से लाभ होता है।
- गुलाबजल : अगर आंखों में जलन हो तो गुलाब-जल की छींटे आंखों में मारें अथवा केसर को घोटकर शहद में मिलाकर आंखों में लगाने से लाभ होता है।
- फिटकरी : 1 ग्राम लोध, 1 ग्राम भुनी हुई फिटकरी, आधा ग्राम अफीम और 4 ग्राम इमली की पत्तियों को लेकर और सबको पीसकर पोटली बना लें और पानी में भिगो-भिगो कर आंखों पर फेरे। इससें आंखों का दर्द कम हो जाता है। 2-2 ग्राम इमली की पत्तियां, हल्दी और फिटकरी को लेकर बारीक पीसकर, पोटली बनाकर और पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से और थोड़ा सा आंखों में डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
- कपूर : 3 ग्राम कपूर और 1 ग्राम पठानी लोध को पीसकर, पोटली में बांधकर और एक घंटे तक पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से और आंखों के अन्दर डालने से आंखों के दर्द में आराम आता है।
- फिटकरी : 1 ग्राम फिटकरी और 2 ग्राम कलसी (पृष्ठपर्णी) बिना पिसी हुई पोटली में बांधकर, पानी में भिगोकर आंखों पर लगाने से आंखों का लाल होना दूर होता है।
- धतूरा : जिस दिन आंखों में दर्द हो, उसी दिन धतूरे की पत्तियों का रस निकालकर और थोड़ा गर्म करके कान में डालें। अगर बांई आंख में दर्द हो, तो दाहिने कान में डालें और अगर दाहिनी आंख में दर्द हो तो बायें कान में डालें।
- नीम : नीम की कोपलों (मुलायम पत्ते) को पीसकर रस निकाल लें और गर्म कर लें। अगर दोनों आंखों में दर्द हो, तो दोनों कानों में डालें। अगर दाहिनी आंख में दर्द हो, तो बायें कान में डालें। अगर बांई आंख में दर्द हो, तो दाहिने कान में डालने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।
- बड़ : बड़ (एक तरह का पेड़) का दूध आंख में लगाने से आंखों के दर्द में आराम होता है।
- कटाई : कटाई के पत्तों का रस आंख में डालने से और कटाई के पत्तों को पीसकर आंखों पर बांधने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। यह लगाने में बहुत तेज होता है।
- प्याज : अगर रतौंधी (आंख से कम दिखाई देना) हो, तो प्याज का रस आंखों में लगायें अथवा समुद्रफल का गूदा पीसकर, बकरी के पेशाब में मिलाकर आंखों में लगायें या लाहौरी नमक को सलाई से आंखों में लगायें अथवा दही के पानी में थूक मिलाकर आंख में लगाएं अथवा अदरक का रस आंखों में डालें और हुक्के के नीचे का कीट आंखों में लगाएं अथवा कालीमिर्च अपने थूक में मिलाकर आंखों में लगाने से रतौंधी (आंख से कम दिखाई देना) में आराम आता है।
तुलसी का बच्चों के विभिन्न रोगों में उपयोग :
परिचय :
तुलसी एक ऐसी वनस्पति है जो धार्मिक हिन्दू समुदाय में बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। बच्चे, बूढ़े, औरते और आदमी सभी इसके सेवन से लाभ उठाते हैं। तुलसी जुकाम, खांसी, बुखार, सूखा रोग (रिकेटस), डब्बा रोग, पसलियों का चलना, बच्चों का निमोनिया, कब्ज और अतिसार (दस्त), सभी में रोगों में चमत्कारी रूप से अपना असर दिखाती है।
तुलसी के प्रयोग –
- जिगर का बढ़ना : यकृत (जिगर) बढ़ने पर 10 ग्राम तुलसी के पत्तों को 20 मिलीलीटर ताजे पानी में डालकर उबाल लें। उबलने पर जब एक चौथाई पानी रह जाये तो उसे उतारकर छान लें। इसे सही मात्रा में 2 से 4 बार तक बच्चों को पिलायें। इसको पीने से जिगर का बढ़ना या जिगर से सम्बन्धित दूसरे रोग समाप्त हो जाते हैं।
- प्रतिश्याय : प्रतिश्याय (जुकाम) होने पर 50 ग्राम तुलसी के पत्ते, 20 ग्राम बनफ्शा, 10 ग्राम मुलहठी को लेकर पानी के साथ उबालकर छान लें। फिर 10 ग्राम मिश्री के साथ शर्बत की तरह चाशनी तैयार कर लें। मात्रा : 1 चम्मच तक उम्र और ताकत के अनुसार दें। इससे जुकाम, खांसी, अफारा, वमन (उल्टी) आदि रोगों में लाभ होता है। सामान्य ज्वर (बुखार) की हरारत भी दूर हो जाती है।
- निमोनिया : बच्चों के निमोनिया, पसली चलना आदि रोगों में 10 ग्राम तुलसी के पत्तों के रस को, 6 ग्राम गोघृत (गाय का घी) में मिलाकर आग पर गुनगुना सा कर लें। इसे 1 बार या 2 बार में दे सकते हैं। ज्वर (बुखार) में इसे नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे दस्त हो सकते हैं। दस्त हो तब भी इसे नहीं देना चाहिए।
- दस्त : जब दस्त ज्यादा हो रहे हों तो तुलसी के पत्तों के रस में धाय के फूलों को पीसकर और उसे मां के दूध में मिलाकर बच्चे को देने से आराम आता है।
- उल्टी और दस्त : वमन (उल्टी) और अतिसार (दस्त) में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग या जरूरी मात्रा में फुलाया हुआ चौकिया सुहागा, तुलसी के पत्तों के रस के साथ पीस लें और किंचित मधु-योग (शहद मिलाकर) मूंग के बराबर की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली को पानी के साथ देना चाहिए। इससे बच्चों की उल्टी दस्त में आराम मिलता है।
बेल (बिल्ब) का बच्चों के कुछ रोगों में उपयोग :
- उल्टी और दस्त : बेल की जड़ के काढ़े में धान की खील और शर्करा मिलाकर मिला लें और बच्चे को पिला दें। इससे हर प्रकार के अतिसार (दस्त) और वमन (उल्टी) में जल्दी लाभ होता है।
- आमातिसार और संग्रहणी : बेलगिरी, इन्द्रायण, सुगन्धवाला, मोचरस और नागरथ के मिश्रण के साथ बकरी का दूध यथाविधि सिद्ध करके बच्चे को पिलाना चाहिए। इससे आमातिसार (खूनी दस्त) और संग्रहणी (बार-बार दस्त का आना) रोग जल्दी दूर हो जाता है।
- रक्तातिसार : भुने हुए बेलगिरी के गूदे को गुड़ के साथ मिलाकर बच्चों को सेवन करायें। इससे आमशूल (पेट में दर्द), कब्ज, रक्तातिसार (खूनी दस्त) आदि रोग दूर होते हैं।
- खूनी दस्त : 20 ग्राम बेलगिरी का चूर्ण, 160 मिलीलीटर बकरी का दूध और 640 मिलीलीटर पानी मिलाकर, कम आग पर पकायें, जब दूध थोड़ा बाकी रह जाये तब इन्द्रायव, मोचरस और शर्करा का चूर्ण डालकर पिलायें। इससे खूनी दस्त में आराम आता है।
नोट : उपर्युक्त दी गई मात्रा वयस्क व्यक्तियों के लिए है, बच्चों के लिए मात्रा उनकी उम्र और ताकत के अनुसार निर्धारित करनी चाहिए।
- गैस : कच्चे बेल की गिरी, पिप्पली और सोंठ का चूर्ण शहद के साथ सही मात्रा में बच्चे को चटाने से वायु का अवरोध (गैस का जमना) तथा शूलयुक्त प्रवाहिका का जल्दी अंत होता है।
- खूनी दस्त : आमातिसार (ऑवयुक्त दस्त), रक्तातिसार (खूनी दस्त) आदि में, सही मात्रा में बेलगिरी का मुरब्बा अथवा मुरब्बे का शर्बत पीने से लाभ होता है।
- पेचिश : इसमें बेलगिरी, मोथा इन्द्रायव, पठानी लोध, मोचरस और धाय के फूल को एक साथ लेकर पीस लें। इसके सेवन से पेचिश और दर्द में जल्दी आराम आता है।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
isme likha upachar bahut achha hai, jankalyan ka kam aa raha hai.