Last Updated on September 28, 2020 by admin
भारत एक परम्परा प्रिय देश है। आयुर्वेद ऐसी ही एक परंपरा उसे विरासत में मिली है। भले ही 21 वी शताब्दी में विज्ञान ने कितनी ही उन्नति क्यों न की हो लेकिन फिर भी आयुर्वेद का महत्व जरा भी कम नहीं हुआ है। आयुर्वेद मे रोगों को जड़ से दूर करने की शक्ति है। इसलिए आज हर कोई उसकी ओर आकृष्ट रहा है। आज के फास्ट युग में हर कोई दौड़ रहा है। जिसकी वजह से दिनचर्या बदल कर इसका असर मनुष्य की सेहत पर पड़ रहा है।
आज कोई भी चीज पहले जैसी शुद्ध नहीं है। कोई भी पेय लें तो उसमें अनेक प्रकार के केमिकल्स मिले रहते है। सब्जियों की पैदावार बढ़ाने के लिए उसमे जेनेटिक प्रक्रिया की जाती है। मौसम का हाल तो कुछ अलग ही है, कभी बिन मौसम बारिश तो कभी धूप है। ऐसे में माता-पिताओं के सामने एक बडी समस्या है कि अपने बच्चों को स्वस्थ कैसे रखें? इसका जवाब हमें आयुर्वेद देता है, कि कैसे हम खुद को और अपने बच्चों को स्वस्थ रख सकते हैं। जो लोग आयुर्वेद स्वस्थचर्या का पालन करते है वो ज्यादातर बीमार नहीं पड़ते। आयुर्वेद सिखाता है “Prevention is better than cure” ऐसे समय सुवर्णप्राशन ये एक नैसर्गिक, सदियों से चली आ रही परंपरा है जिससे रोगप्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है और बच्चे तन्दुरुस्त रह सकते है।
सुवर्णप्राशन अर्थात क्या ? (What is Swarna Prashana in Hindi)
सुवर्णप्राशन 16 संस्कारों में से एक संस्कार है जो आचार्य काश्यप ने लेहनाध्याय नामक अध्याय में विस्तार से वर्णन किया है।
- सुवर्ण = गोल्ड, सोना
- प्राशन = चटाना
सुवर्णप्राशन का अर्थ है – उचित मात्रा व अनुपात के साथ सोना चटाना।
आचार्य वाग्भट्ट व सुश्रुत ने सोने को शहद के साथ देने को जातकर्म संस्कार कहा है और इसका कारण बताते समय कहा है कि शिशु के जन्म के पश्चात 4 दिन तक माता को दूध कम रहता है तब सुवर्णप्राशन करने से बच्चे का पोषण होकर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है।
आधुनिक जगत में जैसे विविध प्रकार के रोगप्रतिकारक लसीकरण, विटामिन ड्राप्स बताये है बीमारियों से बचने के लिये, वैसे ही सुवर्णप्राशन एक आयुर्वेदिक इम्युनायजेशन (Immunisation) है। जिससे जीवाणु और विषाणु के विरोध प्रतिकारक शक्ति बढ़कर बच्चा स्वस्थ रहता है और बच्चों को बार बार होनेवाली सर्दी, खांसी, बुखार जैसी बीमारियां कम होती है। सुवर्णप्राशन की वजह से बच्चों के मस्तिष्क का विकास होता है। चूंकि मस्तिष्क का विकास 5 साल की उम्र तक ज्यादा होता है इसलिए इसी उम्र में सुवर्णप्राशन देना उचित है।
सुवर्णप्राशन किसे दें और किसे न दें ?
किसे दें ?
- जिस बच्चे की माता को दूध कम है।
- जो बच्चा रात मे सोता नहीं है।
- जो बच्चा कमजोर है व दूध पीने के बाद भी रोता हो।
- Hyperactive & Delayed milestone
किसे न दे ?
- जिसका अग्नि मंद है।
- जिसे अतिसार है।
- खांसी, उल्टी, जीर्ण संक्रमण
- खाना खाने के तुरंत बाद न दें।
सुवर्णप्राशन कब देना चाहिए ?
आचार्य काश्यप के अनुसार रोज ही सुवर्णप्राशन दे सकते है। लेकिन हर महीने के पुष्य नक्षत्र में देने की प्रथा है। कोई भी काम करने के लिये पुष्य नक्षत्र शुभ माना है जैसे कि पुंसवन संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, औषधिसंग्रहण आदि सभी नक्षत्रों में इसे पोषक माना है। इसे The star of nourishment कहा है। जब ये गुरुवार के दिन आता है तो इसे गुरुपुष्यामृत योग कहते है। जिसे हम सोना खरीदने के लिये उत्तम योग मानते है और जब ये रविवार के दिन आता है तो इसे रविपुष्यामृत योग कहते है। आचार्य काश्यप के अनुसार जन्म से लेकर 16 साल की उम्र तक सुवर्णप्राशन दे सकते है किंतु बच्चों का मानसिक विकास 5 साल तक ज्यादा तेजी से होता है। इसलिये इसी उम्र में सुवर्णप्राशन कराना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है।
सुवर्णप्राशन बनाने की विधि :
ग्रन्थोक्त : पूर्व दिशा की तरफ मुंह करके आयुर्वेद वैद्य द्वारा स्वर्णभस्म को एक निश्चित अनुपात में लेकर , असमान मात्रा मे शहद व घी में मिलाकर बच्चों को चटाने का उल्लेख है।
- स्वर्णभस्म – 1 से 5 mg,
- शहद – 4 ml,
- घी अथवा औषधि सिद्ध घी – 2 ml,
सिद्ध घी : ब्राम्ही घृत, कल्याणक घृत, पंचगव्य घृत, संवर्धन घृत में सभी मेध्य द्रव्य (बुद्धि को बढ़ाने वाले) है। जिससे बच्चों का मानसिक विकास होने में मदद होती है।
सुवर्णप्राशन सेवन की मात्रा (Swarna Prashana Dosage in Hindi)
- जन्म से 1 साल तक – 2 बूंद
- 1 साल से 16 साल तक – 4 बूंद
सुवर्णप्राशन के लाभ (Swarna Prashana Benefits in Hindi)
सुवर्णप्राशन के फायदे निम्नलिखित हैं –
- बच्चों का मानसिक विकास करता है।
- पाचन शक्ति सुधारता है।
- ताकत व स्मरणशक्ति बढ़ाता है।
- बीमारियों से दूर रखने में मदद करता है।
- त्वचा का वर्ण सुधार कर शरीर मे कांति लाता है।
- ग्रहबाधा एवं बुरी नजर से बचाता है।
- रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाता है।
- बदलते मौसम के कारण होनेवाले रोगों से बचाता है।
- 1 महिना सुवर्णप्राशन करने से बालक परम मेधावी बन जाता है। उसकी स्मरणशक्ति बढ़ाती है।
- 6 महिने तक सुवर्णप्राशन करने से बालक श्रुतधर होता है। जिसके कारण बच्चा सुनी हुई बातें भी याद रख सकता है।
(अस्वीकरण : दवा को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)
यह योग इसी नाम से बना बनाया आयुर्वेदिक औषधि विक्रेता के यहां मिलता है। इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।
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