Last Updated on October 11, 2020 by admin
ऋतुओं के संधिकाल में, जब एक ऋतु समाप्त होती है तथा दूसरी ऋतु प्रारंभ होती है, उस समय खासतौर से सावधान रहना चाहिए। वसंत ऋतु का आगमन, विसर्ग और आदान का संधिकाल होता है। अतः कभी गर्मी महसूस होती है, तो कभी सर्दी का एहसास होता है। चूंकि इस ऋतु में स्थायीपन नहीं रहता, इसलिए इसे चंचल स्वभाव वाली ऋतु माना जाता है। इस ऋतु में दक्षिण दिशा में शीतल, मंद व सुगंधित हवा प्रवाहित होने, सूर्य की रश्मियों में तीव्रता आने, पेड़ों में नूतन कोंपलें आने, कमल, मौलश्री, अशोक, ढाक आदि के पेड़ों पर फूल आने तथा कोयल की कूक और भौंरों के गुंजायमान स्वर से मौसम अत्यधिक सुंदर और मनोहारी रहता है। मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षी भी इस ऋतु के प्रभाव से अछूते नहीं रह पाते, वे भी आनंदित होते हैं। चराचर जगत पर वसंत के मोहक प्रभाव को देखते हुए ही इस ऋतु को ‘ऋतुराज’ के नाम से भी जाना जाता है।
हेमंत ऋतु (अगहन और पूस महीने की ऋतु) में भारी तथा चिकनी वस्तुओं के सेवन से काया में जो कफ (बलगम) एकत्र होता है, वह वसंत ऋत में सूर्य की गर्मी से कुपित होकर कई प्रकार की व्याधियों की उत्पत्ति करता है। इसलिए इस ऋतु में आहार-विहार के प्रति विशेष ध्यान देना अत्यंत ही आवश्यक है। खासतौर से स्मरण रखने योग्य तथ्य यह है कि इस मौसम में कभी जाड़ा, कभी गर्मी का असर रहता है, इसलिए खानपान एवं रहन-सहन में संतुलन कायम रहना चाहिए।
वसंत ऋतु में क्या खाना चाहिए ? (What to Eat During Spring Season in Hindi?)
वसंत ऋतु में यह सब खाएं (हितकारी आहार) –
किसी भी व्यक्ति को अपना आहार समय से ग्रहण करना चाहिए। जो हमेशा इस नियम का पालन करते हैं, उनका स्वास्थ्य उत्तम बना रहता है और उनकी पाचक अग्नि ठीक रहने से पाचन सामर्थ्य भी अच्छा रहता है। अतः सिर्फ वसंत में ही नहीं, बल्कि अन्य ऋतुओं में भी आहार के प्रति सजग रहना जरूरी है। लेकिन समय से संयमित आहार ग्रहण करने के साथ-साथ ऋतु के स्वभाव पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। उसे देखते हुए ही खाद्य-अखाद्य का निर्णय लेना हितकर है, अन्यथा शरीर पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है।
- वसंत ऋतु में ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए, जिससे काया में एकत्र कफ नष्ट हो। इसके लिए कठोर, रूखे,चटपटे, ताजे, हलके एवं सुपाच्य खाद्य का सेवन करना उपयुक्त है।
- इस ऋतु में तले-भुने और मिर्च-मसालेदार तथा भारी, खट्टे और देर से पचने वाले खाद्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- ज्यादा भोजन करने, अजीर्ण में भोजन करने, ज्यादा मीठा खाने, ठंडा और बासी खाने और उड़द, नया गेहूं, दही, सिंघाड़ा, केला इत्यादि का सेवन करने से कफ प्रकुपित होता है। वैसे भी इस ऋतु में जठराग्नि मंद होने के कारण हलका-सुपाच्य भोजन करना ही उचित है।
- घी के साथ छिलके वाली मूंग की दाल एवं चावल की खिचड़ी, पुराना गेहूं, बाजरा, जौ, साठी चावल, अरहर, अदरक, शहद, आंवला, गाजर, मूली, पेठा, अमरूद, कचनार, गूलर, कीकर (बबूल) की फलियां, शलजम, सरसों का साग, जिमीकंद, हरड़, लहसुन, चौलाई, पालक, सोंठ, नीम, बहेड़ा, गिलोय आदि का सेवन प्रचुर मात्रा में करें।
- इस ऋतु में मौसमी फलों का सेवन भी विशेष लाभकारी है।
- वसंत ऋतु में जहां तक हो सके, दही का सेवन नहीं करना चाहिए। जिन्हें प्रतिदिन दही खाने की आदत है, वे काली मिर्च का चूर्ण और नमक मिलाकर दही का सेवन करें। वसंत ऋतु में चीनी मिलाकर दही का सेवन वर्जित है।
वसंत ऋतु में हितकारी विहार :
वसंत ऋतु में यह भी है लाभदायक –
- वसंत ऋतु में व्यायाम या योगासन करना लाभकारी बताया गया है। यदि रोजाना व्यायाम करना संभव न हो, तो प्रातः जल्दी उठकर पार्क या खुले स्थानों में टहलने जाना चाहिए। कहा गया है- ‘वसंते भ्रमणे पथ्यम्’ अर्थात् भ्रमण वसंत ऋतु का विशेष पथ्य है ।
- हलके व्यायाम यथा- घूमना, दौड़ना और तैरना भी हितकारी है क्योंकि प्रातःकाल टहलने, दौड़ने या तैरने से दिन भर काया में स्फूर्ति का संचार होता है। इन क्रियाओं से रक्त परिसंचरण में गतिशीलता आती है और शुद्ध वायु ग्रहण की जाती है, जो आरोग्यता के लिए अत्युत्तम है।
- व्यायाम के कुछ देर बाद सरसों या जैतून के तेल से मालिश करने से शरीर को शक्ति और स्फूर्ति मिलती है। यदि प्रतिदिन मालिश करना संभव न हो, तो सप्ताह में एक-दो बार मालिश का नियम जरूर बना लें और मालिश के कुछ देर बाद गुनगुने पानी से स्नान करें।
- चंदन, अगर व केसर का लेप, उबटन लगाने आदि को भी आयुर्वेद ग्रंथों में इस मौसम में हितकारी बताया गया है।
- इस ऋतु में आंखों में अंजन का प्रयोग और दांतों की स्वच्छता के लिए बबूल, नीम आदि की दातून करना उत्तम है।
- इस ऋतु में त्रिफला जल से सुबह-शाम आंखों को धोना चाहिए।
वसंत ऋतु में इनसे होती है हानि :
वसंत ऋतु में इन आदतों का त्याग करें –
- इस ऋतु में दिन में सोना नुकसानदायक और कुपथ्य है क्योंकि दिन में सोने से कफ की वृद्धि होती है। आयुर्वेद में स्पष्ट निर्देश है-‘दिवास्वप्न निषिध्यते’ अर्थात् वसंत ऋतु में दिन में नहीं सोना चाहिए। इसके विपरीत दिन में सोना उन व्यक्तियों के लिए वर्जित नहीं है, जो रात में जागकर अपनी ड्यूटी देते हैं। रात्रि जागरण के बाद यदि दिन में नींद पूरी नहीं की जाएगी, तो शरीर में तंद्रा, आलस्य और थकान बनी रहेगी। साथ ही पुनः रात्रि जागरण संभव नहीं होगा, जिससे ड्यूटी कर पाना मुश्किल हो जाएगा। सामान्यतया दिन में सोना, रात्रि जागरण, प्रातः देर से बिस्तर का परित्याग करना और खुले आकाश यानी ओस में सोना आरोग्यता की दृष्टि से हानिप्रद हैं।
- चूंकि वसंत ऋतु में सर्दी-गर्मी का मिलाजुला प्रभाव रहता है, अतः अकस्मात गरम वस्त्रों को त्यागकर शीतल वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए।
- रात में ढीले वस्त्र पहनकर पूरब की तरफ सिर कर, कोमल बिस्तर वाले पलंग पर सोएं क्योंकि पलंग वात और कफ के असंतुलन को दूर करता है। खाट में भी नींद ली जा सकती है क्योंकि यह त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त और कफ के असंतुलन को नष्टकरने वाली है। आयुर्वेद ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है- ‘त्रिदोष शमनी खट्वा, तूली वातकफायहा।’ ।
- हालांकि आयुर्वेद ग्रंथों में वसंत ऋतु में स्त्री-संसर्ग का विधान बताया गया है, लेकिन हेमंत और शिशिर ऋतु की अपेक्षा वसंत ऋतु में स्त्री-संसर्ग भी थोड़ा कम कर देना ही श्रेयस्कर है। वैसे इस ऋतु में कामोत्तेजना तीव्र होती है, इसलिए वसंत ऋतु को कामदेव का मित्र माना जाता है।
वसंत ऋतु में होने वाले रोग और उनका उपचार :
वसंत ऋतु में होने वाले रोगों का इलाज कैसे करें ?
स्वास्थ्य संवर्धन हेतु आयुर्वेदिक उपचार स्वास्थ्य उन्नयन के लिए जहां वसंत ऋतु बेहतर मानी जाती है, वहीं जरा-सी लापरवाही से इस ऋतु से होने वाली व्याधियों से बचना भी कठिन हो जाता है। इस ऋतु में गले में खराश, टांसिल की पीड़ा, नजला, जुकाम, सर्दी, खांसी, श्वास, चेचक, खसरा, न्यूमोनिया, बुखार, इंफ्लूएंजा, आंतों और आंखों के रोग, शरीर में भारीपन, अपच, अतिनिद्रा आदि कफ की समस्याएं उपद्रव करती हैं। इन व्याधियों से राहत पाने के लिए कुछ कारगर प्रयोग निम्नलिखित हैं –
1). कफजन्य रोग – इस समय कफ का प्रकोप होता है, अतः कफ को नष्ट करने के लिए वमन और नस्यादि के लिए किसी उत्तम वैद्य से परामर्श लेना चाहिए।
2). रक्त विकार से सुरक्षा – इन दिनों नीम के वृक्ष में पतझड़ के बाद कोंपलें आ जाती हैं। पूरे चैत्र महीने में रोजाना सवेरे दस-पंद्रह नरम कोंपलों को खूब चबा-चबाकर तथा खूब महीन करके थोड़ी देर मुंह में रखकर चूसते रहना चाहिए. तत्पश्चात निगल जाना चाहिए। यह एक साल तक रक्त विकार, त्वचा रोग, बुखार आदि से काया को सुरक्षा प्रदान करने वाला अचूक उपाय है।
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3). मौसमी रोग से रक्षा – इस मौसम में शुरू में नीम की नरम कोंपलों के साथ काली मिर्च तथा मिश्री मिलाकर प्रयोग करने से कोई भी मौसमी रोग नहीं होता।
4). हरड़ का प्रयोग – इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण तीन से पांच ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिश्रित कर सुबह-शाम चाटकर सेवन करना चाहिए। यह प्रयोग रसायन की तरह गुणकारी है।
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5). गले के रोग – गले की खराश, टांसिल की पीड़ा या हलकी खांसी होने पर एक गिलास गर्म जल में आधा-आधा चम्मच खाने का सोडा और खाने का नमक तथा एक से दो चम्मच पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में चार-पांच बार गरारे करना चाहिए। घरेलू उपचार के रूप में गरारे करना, गले को सेंकना तथा सोते वक्त आधा चम्मच पिसी हुई हल्दी दूध में मिलाकर तीन-चार दिन पीना अथवा तुलसी के काढ़े का सेवन लाभकारी है।
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6). सर्दी जुकाम – दूध में हल्दी और सोंठ (सुंठ) मिलाकर बच्चों को पिलाने से जुकाम एवं अन्य कफ व्याधियों का शमन होता है।
7). खांसी – वसंत ऋतु में भोजन के साथ अदरक का सेवन जरूर करना चाहिए। यह तीक्ष्ण, गरम और अग्नि को प्रदीप्त करने वाला है। इसके प्रयोग से कफज व्याधियों, जैसे- खांसी, सर्दी-जुकाम आदि से राहत मिलती है।
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8). मंदाग्नि (अपच) – अदरक का रस, नींबू का रस तथा सेंधा नमक एक साथ मिलाकर भोजन के पहले प्रयोग में लाने से अग्नि प्रदीप्त होती है, कास, शोथ (सूजन), कफ, मंदाग्नि आदि विकारों का शमन होता है और धातु वृद्धि होती है।
9). भूख बढ़ाने – खाना खाने से पहले जरा-सा अदरक तथा सेंधा नमक का सेवन करने से इस मौसम में जीभ और गला सही होता है तथा खुलकर भूख लगती है।
10). कफ – कफ का शमन करने के लिए नमक मिले गरम पानी से सुबह और रात्रि को सोते वक्त गरारे जरुर करने चाहिए।
सुबह गरम पानी में कागजी नींबू का रस डालकर जरा-सा सेंधा नमक मिश्रित कर पीना फायदेमंद है।
टमाटर, गोभी, ककड़ी, पालक इत्यादि को काटकर उसका सलाद बनाकर उस पर काली मिर्च का चूर्ण डालकर खाएं। इससे कफ का शमन होता है।
11). सभी व्याधियों से रक्षा – वसंत ऋतु में शहद का सेवन अवश्य करना चाहिए। गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिश्रित कर इस्तेमाल करने से इस ऋतु में शरीर सभी व्याधियों से सुरक्षित रहता।
12). अजीर्ण – इन दिनों चटनी के रूप में पुदीने का इस्तेमाल रोजाना करना चाहिए। यह कफ शामक तथा पाचक है। इसका लगातार सेवन करने से खांसी, अजीर्ण, अग्निमांद्य आदि विकारों का शमन होता है ।
पुदीने का ताजा रस या अर्क कफ, सर्दी आदि में अत्यधिक लाभकारी है।
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13). दमा – लौंग को चबाकर निगलना जुकाम, सर्दी, कफ और दमा में हितकारी है।
14). त्रिकटु चूर्ण है फायदेमंद – सोंठ, काली मिर्च एवं पिप्पली की सममात्रा लेकर कपड़छन चूर्ण तैयार कर लें। इस त्रिकटु चूर्ण को एक से तीन ग्राम की मात्रा में शाक, सब्जी और दाल में मिश्रित कर प्रयोग में लाने का भी शास्त्रीय विधान है। दूध अथवा मट्ठे में इस चूर्ण को मिलाकर पीने से कफ की उत्पत्ति नहीं हो पाती और इस कारण उत्पन्न होने वाले रोगों से सुरक्षा मिलती है।
15). आयुर्वेदिक औषधियां – वसंत कुसमाकर रस, मकरध्वज, मदनानंद मोदक, च्यवनप्राश, ब्राह्म रसायन, अमृत भल्लातक, द्राक्षारिष्ट और अश्वगंधारिष्ट इन दिनों सेवनीय शास्त्रीय औषधियां हैं। लेकिन इनका प्रयोग किसी विशेषज्ञ वैद्य के परामर्श से ही करना चाहिए।
(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)