वर्षा ऋतु में होने वाले रोगों का आयुर्वेदिक उपचार

Last Updated on October 2, 2020 by admin

भीषण गर्मी के तुरंत बाद आनेवाली वर्षा ऋतु में बारिश से भूमि से वाष्प निकलती है और भोजन में भी अम्लीय भाव होता है। वर्षा का दूषित जल, पीने का पानी व आहार दोनों को ही दूषित करता है और इस ऋतु में गड्डे इत्यादि में जमा पानी की वजह से मच्छर भी अधिक होते है। इन सभी कारणों से इस ऋतु में उचित सावधानी न रखने से अधिकाधिक रोग होने की संभावना रहती है। वर्षा ऋतु में निम्नोक्त रोग प्रधानतः पाए जाते हैं।

पाचनशक्ति की कमी :

कारण और लक्षण –

ग्रीष्मकाल में पहले से ही जठराग्नि मंद होती है और वर्षा ऋतु में वाष्पीभवन के कारण जठराग्नि और भी मंद हो जाती है, इसलिए इस ऋतु में ठूस-ठूस कर खाने से ज्वर, अजीर्ण, उल्टी, पेट में भारीपन आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। अतः इस ऋतु में अपने पाचन के अनुसार ही भोजन करना चाहिए।

आयुर्वेदिक उपचार –

  • पाचन शक्ति कमजोर होने पर पुदीना, कालीमिर्च, सेंधा नमक एवं जीरा इन सबको मिलाकर चटनी बनाएं व उसमें नींबू का रस निचोड़कर भोजन के साथ सेवन करना चाहिए जिससे भोजन करने में रुचि बढ़ती है।
  • पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए अदरक के पाक या अवलेह का सेवन भी लाभदायी पाया गया है। अदरक का अवलेह तैयार करने के लिए अदरक के रस में थोड़ा पानी व शक्कर मिलाकर धीमी आंच पर चाशनी बनाकर पकाना चाहिए और जब चाशनी पक जाए तो उसमें केसर, इलायची, जायफल, जावित्री एवं लौंग का चूर्ण मिलाकर किसी कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखकर प्रतिदिन भोजन पूर्व 1-1 चम्मच सेवन करना चाहिए जिससे पाचन शक्ति बढ़कर भूख जोरों की लगकर पाचन संस्थान के अन्य विकार समाप्त होते हैं।
  • अजीर्ण व भूख कम लगने पर द्राक्षासव 2-2 चम्मच भोजन पूर्व लें।

( और पढ़े – पाचनतंत्र मजबूत करने के घरेलू नुस्खे )

पेचिश :

कारण और लक्षण –

पेट में मरोड़ के साथ आंवयुक्त दस्त आते हैं, रोग की अत्यंत तीव्र अवस्था में आंव के साथ रक्त भी आता है। इसका कारण अस्वच्छ भोजन व पानी है तथा यह अमिबा (Amoeba) परजीव की वजह से होता है।

आयुर्वेदिक उपचार –

  • अतः बारिश के दिनों में बाहर के खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए व पानी उबालकर पीना चाहिए।
  • पेचिश होने पर खसखस दाना, सोंठ, सौंफ व मिश्री के चूर्ण को पानी के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • पेचिश में बेल का मुरब्बा बहुत फायदेमंद होता है या बेल का चूर्ण बनाकर रखना चाहिए। तकलीफ होने पर इसमें चीनी, सौंफ, अजवायन के चूर्ण के साथ बेल का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। अधिक बार पेचिश आने पर कुटजघन वटी 1 सुबह-शाम, कुटजारिष्ट 2 चम्मच के साथ लें।
  • पेचिश होने पर मूंग की खिचड़ी बनाकर खाना चाहिए।
  • जी-मिचलाने पर कामदूधा रस 1 गोली अदरक के रस के साथ पीना चाहिए।
  • अदरक, नींबू व सौंफ का शरबत सेवन करना फायदेमंद है।

( और पढ़े – पेचिश रोग का घरेलू इलाज )

अतिसार :

कारण और लक्षण –

इस रोग का संक्रमण हर आयु वर्ग में विशेषतः 6 माह से 2 वर्ष तक के बच्चों में अधिक होता है, यह विभिन्न जीवाणुओं, विषाणु एंव प्रोटोजोआ द्वारा होता है। इसका प्रभाव आंतों पर होता है अतः इसे आन्त्र शोथ (Enteritis) भी कहते हैं। अतिसार के जीवाणुओं से संक्रमित बिस्तर, तौलियॉ व बर्तन आदि के संपर्क से भी रोग उत्पत्ति होती है। मक्खियां इस रोग को फैलाने में उत्तरदायी हैं। इस रोग का प्रमुख लक्षण पतले दस्त आना है, साथ-साथ बुखार, उल्टी, सिरदर्द, भूख न लगना, कमजोरी, मॉसपेशियों में खिंचाव व दर्द भी होता है। रोग की अत्यंत तीव्र अवस्था में शरीर में लवण व जल की मात्रा कम हो जाने से आखें अंदर धंसना, गाल पिचकना, त्वचा की लचक समाप्त होना, पेशाब कम होना, नब्ज कम होना आदि लक्षण मिलते हैं, इसे ही आधुनिक मतानुसार रिनल फेलुयर भी कहा जाता है। अतिसार में औषधि चिकित्सक परामर्शानुसार लेनी चाहिए।

पीलिया :

कारण और लक्षण –

लीवर में सूजन उत्पन्न करनेवाले वायरस रोगी के मल से निकलता है, उससे दूषित अन्न या जल के सेवन से पीलिया रोग होता है। पीलिया होने पर भूख बहुत कम हो जाती है, मूत्र, आंख व त्वचा का रंग पीला पड़ने लगता है। कभी-कभी जी मिचलाने लगता है या पेट के ऊपरी हिस्से में दाईं ओर दर्द रहता है।

आयुर्वेदिक उपचार –

  • पीलिया होने पर आरोग्यवर्धनी 2 वटी सुबह-शाम कुमारी आसव 2 चम्मच के साथ लेना चाहिए।
  • मूली व गन्ने के रस का सेवन पीलिया में फायदेमंद है।
  • 10 ग्राम हल्दी का चूर्ण 50 ग्राम दही में मिलाकर 1 सप्ताह तक सेवन से पीलिया में विशेष लाभ मिलता है।

( और पढ़े – पीलिया के 16 रामबाण घरेलू उपचार )

मलेरिया और टायफाईड :

कारण और लक्षण –

वर्षा ऋतु में गड्डों में पानी एकत्रित होने से मच्छर बहुत बढ़ जाते हैं और इन मच्छरों के काटने से मलेरिया होने की संभावना रहती है। मलेरिया में ठंड लगकर बुखार आता है किंतु बुखार भी हमेशा नहीं रहता है, निश्चित समय 12 घंटे, 24 घंटे या 48 घंटे में ठंड लगकर बुखार आना मलेरिया का मुख्य लक्षण है।

आयुर्वेदिक उपचार –

मलेरिया में बुखार होने पर विषमज्वरांतक वटी 1 सुबह-शाम, महासुदर्शन क्वाथ 2 चम्मच के साथ लेना चाहिए। टायफाईड या आन्त्रज्वर भी वर्षाकाल के दूषित जल और भोजन ग्रहण करने से होनेवाला आम रोग है।

चर्मरोग :

कारण और लक्षण –

निरंतर गंदगी के संपर्क में रहने व बारिश में बार-बार भीगने से अनेक त्वचा विकार होते हैं जैसे फोड़े, फुॅसी, दाद, खाज, खुजली, घमौरियां, शरीर पर चकत्ते उभर आना (शीतपित्त) आदि विकार होते हैं। बारिश में भीगने के बाद तुरंत कपड़े बदलकर शीघ्रतापूर्वक पूरे शरीर को सुखे तौलिये से पोंछ कर दूसरे कपड़े पहनने चाहिए।

आयुर्वेदिक उपचार –

  • चर्मरोग में नीम की का चूर्ण घी में मिलाकर खाने से शीतपित्त के लाल चकत्ते ठीक हो जाते हैं।
  • चर्मरोग में महामंजिष्ठादि क्वाथ 2 चम्मच सुबह-शाम लेना फायदेमंद है व अधिक तकलीफ होने पर चिकित्सक द्वारा परामर्श लें।

( और पढ़े – चर्म रोग (त्वचा विकार) के अन्य घरेलू उपचार )

कृमिरोग :

कारण और लक्षण –

दूषित जल व आहार तथा अस्वच्छ वस्तुओं का संपर्क होने पर अथवा किसी अन्य तरीके से शरीर में कृमि रोग के जीवाणु प्रवेश करने पर कृमिरोग हो सकता है। जिससे कितने भी पोषक अंश सेवन करने पर शरीर को उसका फायदा नहीं होता है। कृमि के कारण शरीर में कमजोरी, उल्टी, दस्त व पेट में दर्द निरंतर बना रहता है।

( और पढ़े – पेट के कीड़े दूर करने के घरेलू उपाय )

आयुर्वेदिक उपचार –

कृमि होने पर कृमिकुठार रस 1 वटी सुबह-शाम, विडंगारिष्ट 1-2 चम्मच भोजन के पश्चात 3 से 4 माह तक सेवन करना चाहिए।

वायरल फीवर :

कारण और लक्षण –

यह वर्षा ऋतु में प्रायः सभी को होता है, घर में एक को होने पर अन्य सदस्यों को भी अधिकतर होता है। इसको मौसमी बुखार भी कहते हैं। इसके मुख्य लक्षण सिरदर्द, गले में खराश, बुखार, सर्दी, खांसी, कभी-कभी ठंड देकर बुखार आना तथा शरीर में फूटन, जकड़न, दर्द इत्यादि लक्षण मिलते हैं। यह बुखार 5 से 7 दिन तक चलता है।

आयुर्वेदिक उपचार –

  • गले में खराश, दर्द होने पर कंठसुधारक वटी या खदिरादि वटी चूसना चाहिए तथा गरम पानी की भाप लेना चाहिए।
  • औषधि में त्रिभुवन कीर्ति व महाज्वराकुंश 1-1 वटी, वासावलेह 2 चम्मच के साथ सुबह-शाम लें तथा बुखार होने पर साथ में महासुदर्शन क्वाथ 2-2 चम्मच लें।

वर्षाऋतु में, होनेवाले उपरोक्त रोगों से बचाव के लिए उपयुक्त दिनचर्या के अनुसार आहार-विहार का पालन करना आवश्यक है।

(अस्वीकरण : दवा ,उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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