Last Updated on November 4, 2021 by admin
वात प्रकृति के लक्षण :
वात प्रकृति के लोगों के लक्षण क्या होते हैं ?
- वात प्रकृति के लोगों का शरीर रूखा-सूखा, दुर्बल, कमजोर व शीतल होता है।
- वात प्रकृति वाले शरीर में अकड़न और जकड़न होती है।
- शरीर में कँपकँपी, सिहरन, दर्द, पेट में ऐंठन वात की निशानी है।
- आंतों में गैस की शिकायत।
- कमर के निचले हिस्से में दर्द।
- मासिक धर्म में पीड़ा।
- सिर दर्द।
- पीठ दर्द।
- फटी त्वचा व होंठ।
- वजन की कमी।
- जोड़ों में दर्द।
- ऊर्जा की कमी।
( और पढ़े – वात दोष से होने वाले रोग और उनसे बचने के उपाय )
वात में ये चीजें खाना चाहिए :
✓ भोजन गरम, भारी, नमीयुक्त (तैलीय) हो। भोजन में बहुत-सी चीजें एक साथ न लें। मीठा व नमकीन ज्यादा हो, कड़वा, रूखा (कटु) और तीखा न हो।
✓ यदि आप खट्टा फल खा रहे हों तो उसमें शक्कर या नमक डालकर खायें।
✓ गेहूँ की चपाती, उड़द दाल, मूंग दाल, मसूर दाल, सरसों, गाय का दूध, ताजी दही की छाछ, मीठी लस्सी, घी, मिश्री, अदरक, धनिया, पुदीना, जीरा, जायफल, अजवाइन, परवल, लौकी, मूली, गाजर, चौलाई, शतावरी, चुकंदर (बीटरूट), मूली, नारियल, खजूर, अंगूर, नारंगी (मीठी हो तो खाएं), पपीता, पके हुए आम, मीठा अनार, अखरोट, चेरी, मीठे फल, बादाम, अंजीर एवं काला मुनक्का खा सकते हैं।
✓ बादाम का यदि सेवन करना हो तो उसे रात में भिगोकर रखें। सुबह छिलका निकालकर और पीसकर थोड़ी मात्रा में खायें। (एक दिन में 2 या 3)
✓ खाने के पहले गर्म सूप भी वात को कम करता है।
✓ वात प्रकृति के लोगों के लिए नाश्ता करना जरूरी है। नाश्ता पोषक होना चाहिए।
✓ वात प्रकृति के लोगों को गरम, नरम तथा पूरी तरह से पका हुआ भोजन खाना चाहिए। ऐसा भोजन जो आसानी से पच जाए क्योंकि वात प्रकृति के देह की पाचन अग्नि मंद होती है।
✓ हर तरह के तेल वात प्रकृति में राहत देते हैं। इनके शरीर के लिए तिल का तेल सबसे उत्तम है।
✓ रात को गरम दूध लें। सुबह हर्बल या अदरक की चाय पीयें।
✓ मीठे मसाले ले सकते हैं। हींग, तुलसी, सौंफ, दालचीनी, इलायची, पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए अच्छे हैं।
✓ जब कभी बाहर (पार्टी में) भोजन खाना पडे तब पीने के लिए ठंढे पानी की जगह गरम पानी मॅगायें।
( और पढ़े – वात पित्त कफ दोष के कारण लक्षण और इलाज )
वात में ये चीजें न खायें-पीयें :
✗ आहार में चावल.चने की भाजी, चने, मोठ, मसूर, तुअर, शक्कर, फूल गोभी, पत्तागोभी, मटर, कच्चा प्याज, कच्चे केले, कच्ची लहसुन, पालक (हरी सब्जियाँ), सूखे मेवे, चाय, कॉफी, शराब एवं सिगरेट आदि का त्याग करें।
✗ वात बढ़ाने के लिए मशरूम, मिर्च-मसाले, अंकुरित अन्न, अनार, नाशपाती, सूखे फल, ज्वार-बाजरा, राई, जौ, मक्का, पॉपकॉर्न जैसे हलके पदार्थ जिम्मेदार हैं।
✗ वात प्रकृति के लिए खाना ठंढा, सूखा व हलका न हो।
✗ बाहर (होटल इत्यादि) के खाने से परहेज करें, घर का भोजन ही करें। कम कैलरी वाला सुखा और ठंढा भोजन वात प्रकृति के लोगों के लिए आदर्श आहार नहीं है। कोई भी आहार अच्छा व बुरा नहीं होता, अच्छा और बुरा आहार इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कौन खा रहा है। जो खाना वात प्रकृति के लिए अच्छा नहीं है, वही खाना कफ प्रकृति के लिए अच्छा हो सकता हैं।
✗ वात प्रकृति के लोगों को टमाटर व आलू इत्यादि का सेवन कम करना चाहिए।
( और पढ़े – अच्छी सेहत के लिये खान पान के महत्वपूर्ण 50 नियम )
वात प्रकृति के लोगों के लिए आवश्यक सावधानियां :
1). वात प्रकृति के लोगों को रात्रि जागरण या रात को देरी से सोने की आदत छोड़नी चाहिए। अनिद्रा, दूषित वात की निशानी है। रात को सिर में तिल या बादाम का तेल लगायें।
2). बरसात और ठंढ के मौसम में विशेष ख्याल रखें। ऐसे में स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सजग रहें।
3). वात प्रकृति के लोगों को बहुत ज्यादा व्यायाम करने से बचना चाहिए। उन्हें थकावट महसूस होते ही व्यायाम बंद कर देना चाहिए।
4). वात प्रकृति के इंसान को अपराध बोध के भाव से मुक्त रहना चाहिए। जिंदगी में हुई गलतियों में अटके न रहें। सब स्वीकार करें, नये ढंग से जिंदगी शुरू करें। दूसरों को माफ करें तथा स्वयं को भी माफ करें। खुद से प्रेम करें, दूसरों के साथ भी प्रेम से रहें। ऐसा करना वात को काफी राहत देता है।
5). पेट साफ करने के लिए बस्ती (एनीमा) लें। यह आयुर्वेद का पहला चरण है, जो वात दोष काया के लिए इस्तेमाल होता है।
6). वात प्रकृति के इंसान को गर्म पानी से स्नान करना चाहिए। गर्मियों में कम गरम पानी से स्नान करना चाहिए। ठंढे जल का स्नान वात व कफ दोष को बढ़ाता है।
7). वात प्रकृति की काया शैम्पू का इस्तेमाल न करे या बिलकुल कम करे। साबुन के साथ तेल भी इस्तेमाल करें यानी नहाने के बाद या पहले पूरे शरीर पर तेल की मालिश करें। यह रूखी त्वचा के लिए बेहतर होगा तथा शरीर की मालिश स्वास्थ्य में चार चाँद लगायेगी।
8). वात प्रकृति के इंसान को शांत माहौल (वातावरण) में रहने की कोशिश करनी चाहिए। वात संतुलित करने के लिए ध्यान की विधि (Meditation) सीखें। ध्यान वात दोष युक्त काया में बड़ा सहायक है।
9). भरपूर आराम बढ़े हुए वात को शांत कर सकता है। वात तीनों दोषों में सम्राट माना गया है इसलिए पहले इसे शांत करना जरूरी है वरना वात फिर पित्त पर हमला करता है। जिससे परेशानियाँ, रोग और भी बढ़ जाते हैं।
10). नियमितता का जीवन वात को शांत रखने के लिए उपयोगी है। हर काम समय पर करें-जैसे समय पर उठे,काम करें, व्यायाम करें, खाये और सोयें।
11). हलका-फुलका मनोरंजन वात प्रकृति के लिए बड़ी राहत का काम करता है।
12). व्यसनों से सदा दूर रहें। व्यसन चंचलता पैदा करते हैं, जो वात के लिए हानिकारक है।
13). सूखे मेवे, खुश्क पहाड़ी हवा, बिस्कुट, पॉपकॉर्न, चाय, कॉफी जैसे पदार्थों से दूर रहें।
14). वात की तुलना खरगोश से की गयी है क्योंकि खरगोश चंचल होता है और यहाँ-वहाँ दौड़ता रहता है।
15). बुढ़ापे में वात बढ़ता है इसलिए पहले ही वात संतुलित रखने की कला सीखें।
16). जब तक कोई काबिल व दक्ष डॉक्टर कुछ अलग खाने की राय न दे तब तक आप इस भाग में बताये गये आहार ले सकते हैं।
17). बस्ति का उपयोग करें। बस्ती यानी गुदा (मल) मार्ग से दी जाने वाली औषधि, तेल या द्रव्य (काढ़ा, स्नेह, द्रव्य)।
a) निरुह (सस्नेह): यह एक औषधि द्रव्यों का काढ़ा है। जिससे आँतों की शुद्धता करके, उसकी ताकत बढ़ाई जाती है। यह उपाय जब पेट रिक्त होता है या 3 घंटे पूर्व कुछ न खाया हो तब किया जाता है।
b) अनुवासन: इसमें स्नेह की मात्रा अधिक होती है इसलिए इसे ज्यादातर रात के भोजन के पश्चात लेना होता है।
आयुर्वेद में वात के लिए बस्ती प्रमुख चिकित्सा है। इसका बहुत महत्व है। सामान्यत: पेट साफ होने के लिए डॉक्टर विरेचन (मुँह से लेनेवाली दवाइयाँ) देते हैं। रोगी भी विरेचन लेने के लिए तैयार रहता है। वात के लिए बस्ती ही प्रमुख चिकित्सा है, आवश्यकता है थोडे से धैर्य की।
हमेशा इन चीजों से बचें:
- रात में व बारिश में दही खाना
- शहद खाने के बाद गर्म पानी पीना
- दूध और खट्टी चीजें साथ में खाना
- गरम और ठंढा एक-दूसरे के ऊपर खाना
जब कभी आपको वातदोष बढ़ाने वाला खाना खाना पड़े तब वात संतुलन ज्ञान के अनुसार, आप उस खाने के साथ ऐसा कुछ जरूर खाएं, जो वात को कम करता है। इस तरह आप वात को हमेशा संतुलित रख सकते हैं। इसी तरह कफ और पित्त प्रकृति के लोग भी यही उपाय कर सकते हैं। जितना हो सके ऐसे भोजन पदार्थों को टालें, जिनसे आपकी काया का दोष बढ़ता है।