Last Updated on December 10, 2021 by admin
गर्दन को आराम देने के लिए, उसकी शरीर की ओर अंतर्वक्रता बनाए रखने के लिए-अर्थात रीढ़ के भीतरी हिस्से को तानने के लिए रीढ़ को पीछे मोड़ने की यह क्रिया आवश्यक है। मत्स्यासन, पर्यंकासन आदि में पीठ पर लेटकर गर्दन को पीछे झुकाया जाता है। पीठ के बल होने के कारण और माथे का (ऊर्ध्व शीर्ष) हिस्सा जमीन पर टिका हुआ होने के कारण इन दोनों टेकुओं के सहारे गर्दन के स्नायुओं को क्रियाशील बनाकर उसे अंतर्वक्र बनाया जा सकता है।
पर पीड़ायुक्त स्नायु और छिजे हुए मनकों को सहसा एकदम क्रियाशील करने पर वे दुखते हैं। उनपर सूजन आती है, दाह पैदा होता है और वेदना असह्य हो जाती है। स्नायुओं में आलस्य और निष्क्रियता-सी आ जाती है। ऐसे समय स्नायु क्रियाशील भी नहीं होते। अतः गर्दन की अंतर्वक्रता साधकर उसे सहारा देने से गर्दन के स्नायु शिथिल होकर अक्रियाशील और शांत हो जाते हैं।
गर्दन पीछे तानने की इस क्रिया को इस शिथिलीकरण से आगे चरण-दर-चरण क्रियाशीलता की ओर बढ़ाने से गर्दन के दर्द को नियंत्रित किया जा सकता है और यथावकाश स्नायु भी मजबूत होने लगते हैं।
गर्दन के दर्द से छुटकारा दिलाते हैं यह सरल योग आसन :
गर्दन की पूर्व प्रतन क्रिया – 1 :
गर्दन की यह स्थिति मत्स्यासन एवं पर्यंकासन आदि आसनों में होनेवाली क्रिया हैं।
विधि –
1. खाट या पलंग पर अथवा मेज पर पीठ के बल लेटें। पैरों को घुटनों में मोड़कर पलंग के किनारे की तरफ इस प्रकार सरक जाएँ, जिससे गर्दन उस किनारे पर पीछे झुकेगी, मुड़ेगी और टँगी रहेगी । गर्दन के नीचे तौलिया या वैसी ही किसी कपड़े की लपेटी हुई तह का सहारा लें। ठुड्डी को सिर की तरफ तानते हुए गर्दन को लंबा करें। कंधे चौड़े और सीना ऊँचा रखें।
2. सीना उठाते समय सीने के पीछे की रीढ़ की हड्डी यदि पलंग अथवा मेज पर ढीली पड़ रही हो तो पीठ के नीचे कंबल की तह का सहारा लें। संक्षेप में यह कि सीना, पीठ, कंधे ताड़ासन की रचना के समान रखें, जिससे गर्दन पर तनाव आएगा। (चित्र 1 बाजू की तरफ से, चित्र 2 सामने से)
3. इसमें भी जरा सी सूक्ष्मता ध्यान में आने पर पहले गर्दन का ऊपरी अर्थात् खोपड़ी के निचले हिस्से को मोड़ें। उसके बाद किनारों की ओर खिसकते हुए गर्दन का मध्य और अंतिम निचला मनका इस क्रम से उसे मोड़ें।
4. गर्दन को पीछे मोड़ते समय आँखें भी उसी दिशा में ले जाएँ। सिर पीछे और आँखें सीने की ओर, इस प्रकार विपरीत क्रिया न करें। आँखें बंद भी न करें। अंतर्वक्र गर्दन और पलंग के किनारों में यदि खुली जगह रह जाए तो कंबल की नली जैसी वृत्ताकार तह गर्दन के नीचे रखें।
5. अस्थमा, उच्च रक्तचाप, सिर दर्द, हृदय रोग आदि बीमारियों में अथवा वृद्धावस्था में-गर्दन को पीछे घुमाने की क्रिया अन्य कोई कठिनाई उत्पन्न न होने पर की जा सकती है। इस स्थिति में 3 से 5 मिनट तक रुका जा सकता है।
6. गर्दन को पीछे लटकती रखने के बाद झटके से न उठे अथवा गर्दन को हिलाकर इधर-उधर न देखें। पहले मेज या बिछौने के किनारे से पैरों की ओर सरकते हुए सिर के पीछे के पश्चिम शीर्ष और धड़ को एक ही स्तर पर लाएँ। कुछ देर इस शवासन स्थिति में रुकें, फिर बाजू की ओर मुड़ें और उठ जाएँ।
गर्दन की पूर्वप्रतन क्रिया – 2 :
इसमें गर्दन ऊर्ध्व धनुरासन अथवा उष्ट्रासन आदि पीछे की ओर मुड़ने वाले आसनों के समान मोड़ी जाती है।
पूर्व तैयारी –
खिड़की की ऊपरी सलाख में मजबूती से रस्सी बाँधे। सावधानी रखें कि उसकी गाँठ खुल न जाए। इस प्रकार रस्सी का फंदा तैयार हो जाएगा। देखें कि फंदे वाली रस्सी की लंबाई आपके खड़े रहते कमर तक आएगी। ऐसी रस्सी के लूप पर नैपकिन अथवा छोटा तौलिया तह करके रखें, जिससे गर्दन में चुभेगी नहीं।
विधि –
1. खिड़की की ओर मुँह करके खड़े रहें। इस रस्सी का लूप गर्दन में डालें। उसपर गर्दन को अब टंगे रखना है। नैपकिन जैसा कपड़ा गर्दन पर ठीक-ठीक बैठाएँ।
2. खिड़की से डेढ़-दो फीट दूर जाएँ। दोनों हाथों से रस्सी पकड़ें, जिससे वह गर्दन से हिलेगी नहीं। पैरों को सख्त रखकर गर्दन को पीछे झुकाएँ। (चित्र 3)
3. अब कदम दीवार पर सटाएँ, सीना उठाएँ। गर्दन की अंतर्वक्रता साधने पर हाथ पीछे पार्श्व भाग पर रखें अथवा जमीन की ओर तानें। डर लगे या तनाव को न सह पाने पर हाथ से रस्सी को पकड़े रखें।
4. अब पैरों को घुटनों में जरा सा मोड़ें। रीढ़ की कमान बनाएँ, जिससे गर्दन और पीछे की ओर मुड़ेगी। पहले पैर को कड़ा रखकर और आगे अभ्यास से पैर मोड़कर गर्दन को पीछे की ओर मोड़ें। पैर को मोड़ते समय हाथ से रस्सी पकड़ें या उसे जाँघ पर या कमर पर रखें। रीढ़ की हड्डी को अंतर्वक्र बनाकर तानने से उसमें अधिक खिंचाव होता है। (चित्र 4) पीछे मोड़ने के कारण गर्दन अधिक खुली हो जाती है। कंधे, गर्दन और बगलें खुली रखें। जत्रु की हड्डियों को चौड़ा करें। कंधे के पाँखों को अंदर की तरफ लें। गर्दन और पीठ की अंतर्वक्रता साधे।
मुड़े पैर सीधे करके गर्दन को झुकाना उष्ट्रासन जैसी और पैरों व गर्दन को झुकाना ऊर्ध्व धनुरासन जैसी क्रिया होती है।
5. इस आसन प्रकार से वापस आते समय पहले हाथ से पार्श्व भाग को सहारा दें और पैरों को सीधा करें। कुछ देर रुकें। हाथों से रस्सी को पकड़कर तथा दीवार से दूर आते हुए पैर सीधे करें। रस्सी को पकड़कर पीछे चलते हुए शरीर ताड़ासन में लाएँ। गर्दन सीधी रखें। फिर गर्दन के चारों ओर का फंदा निकालें। आँखें खुली रखें। रक्तचाप कम होने पर काम का तनाव गर्दन पर आ जाने या गर्दन को पीछे मोड़ने की आदत न होने के कारण आँखों के सामने अँधेरा छाया-सा लगता है। इसलिए आँखें खुली ही रखें। आँखें बंद करने पर अधिक तकलीफ होती है। इस प्रकार अँधेरा छा जाना स्पॉण्डिलाइटिस की आहट समझें। न घबराते हुए गर्दन को मोड़ने की यह क्रिया जारी रखें।
आरंभ में प्रकार 1 करके प्रकार-2 के चित्र 3 के अनुसार क्रिया करने पर गर्दन मोड़ने की तीव्रता धीरे-धीरे बढ़ेगी और उसकी आदत हो जाएगी।
काम के तनाव या मानसिक तनाव के कारण गर्दन के स्नायु थक जाते हैं, यही तनाव का मुख्य लक्षण होता है। गर्दन (सर्वाइकल) और पेट का पोला हिस्सा (लंबर) ये दोनों ऐसे अंग हैं कि उनका इस्तेमाल भी अधिक होता है और उनमें थकान भी बहुत होती है। और जमीन पर टिकाकर उन्हें आराम नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वे अधर में ही हैं। इन दोनों प्रकारों में गर्दन को प्राप्त सहारा उसे आराम देता है, जिससे दिमाग भी शांत हो जाता है।
दफ्तर या स्कूल से लौटने पर काम, पढ़ाई, भीड़,आवागमन आदि से होनेवाली थकान को इस तरीके से मिटाया जा सकता है। गर्दन दर्द का यह रामबाण उपाय सबके लिए उपयुक्त है।