Last Updated on March 5, 2023 by admin
योनि (स्त्रियों का जननांग) रोगों के प्रकार : types of vaginal diseases in hindi
‘सुश्रुत’ और ‘माधव निदान’ आदि ग्रन्थों में योनि-रोग बीस प्रकार के लिखे हैं, जो निम्नांकित हैं –
- ये 5 योनि रोग जो ‘वायु-रोग’ से होते हैं –
(1) उदावृता (2) बन्ध्या (3) विप्लुता (4) परिप्लुप्ता (5) वातला । - ये 5 योनि-रोग जो ‘पित्त-दोष’ से होते हैं –
(1) लोहिंताक्षरा (2) प्रसंसिनी (3) वामनी (4) पुत्रहनी (5) पित्तला । - ये 5 योनि-रोग जो ‘कफ के दोष’ से होते हैं –
(1) अत्यनन्दा (2) कर्णिनी (3) चरणा (4) अतिचरणा (5) कफजा । - ये 5 योनि-रोग जो वात-पित्त-कफ से होते हैं –
(1) बंडी (2) अण्डिनी (3) महती (4) सूचीवक्त्रा (5) त्रिदोषजा ।
योनि रोगों के कारण : yoni me hone wale rog ke karan
योनि-रोगों के निदान-कारण-‘सुश्रुत’ में योनि रोगों के-ये कारण लिखे हैं-
- मिथ्याचार (गलत आचरण)
- मिथ्या विहार (गलत सैर-सपाटा)
- दुष्टआर्तव (मासिक धर्म संबंधी रोग)
- वीर्य दोष और
- दैवेच्छा (देव इच्छा)
आजकल आयुर्वेद की शिक्षा से वंचित होने के कारण पुरुषों की भाँति स्त्रियाँ भी समय-बे समय खाती हैं, दूध और मछली आदि विरुद्ध पदार्थ और प्रकृति विरुद्ध भोजन करती हैं । गरम मिजाज होने पर भी-गरम भोजन करती हैं और सर्द मिजाज होने पर भी सर्द पदार्थ खाती हैं । दिन-रात मैथुन करती हैं, अत्यधिक व्रत-उपवास करती हैं तथा खूब क्रोध और चिन्ता करती हैं । इन कारणों तथा इसी प्रकार के अन्य और कारणों से भी उनका मासिक धार्म का खून गरम होकर, उपरोक्त 20 प्रकार के योनि रोग उत्पन्न करता है ।
इसके अतिरिक्त माता-पिता के वीर्य दोष से जिस कन्या का जन्म होता है, उसे भी इन 20 योनि रोगों में से कोई न कोई योनि रोग हो जाता है।
बीसों प्रकार के योनि रोगों के लक्षण :
(1) जिस स्त्री की योनि से झाग मिश्रित खून, बड़े कष्ट के साथ गिरता है, उसे ‘उदावृत्ता’ कहते हैं।
नोट-उदावृत्त योनि-रोग वाली स्त्री का मासिक धर्म बड़ी तकलीफ से होता है, उसके पेंडू में दर्द होकर रक्त की गाँठ-सी गिरती है।
(2) जिसका आर्तव नष्ट हो यानि जिस स्त्री को रजोधर्म न होता हो, रजोधर्म होता हो तो अशुद्ध और ठीक समय पर न होता हो, उसे ‘बन्ध्या’ कहते हैं।
(3) जिसकी योनि में निरन्तर पीड़ा या भीतर की ओर सदा एक तरह का दर्द-सा होता रहता है, उसे ‘विप्लुता’ योनि कहते हैं।
(4) जिस स्त्री को मैथुन समय में योनि के भीतर बहुत पीड़ा होती हो, उसे ‘परिलुप्ता’ योनि कहते हैं।
(5) जो योनि कठोर या कड़ी हो तथा उसमें शूल और चोंटने जैसी पीड़ा हो, उसे ‘वातला’ योनि कहते हैं । इस रोग वाली स्त्री का मासिकधर्म का खून अथवा आर्त्तव, बादी से रूखा होकर, सुई चुभाने जैसा दर्द होता है।
नोट- यद्यपि उदावृता, बन्ध्या, विप्लुता और परिप्लुता नामक योनियों में वायु के कारण से दर्द होता रहता है किन्तु ‘वातला योनि’ में उन चारों की अपेक्षा अधिक दर्द होता है । हालांकि इन पाचों योनि रोगों में ‘वायु’ का कोप रहता है।
(6) जिस योनि से दाह युक्त रुधिर बहता है अर्थात जिस योनि से जलन के साथ गरम-गरम खून बहता है उसे ‘लोहिताक्षरा’ योनि कहते हैं ।
(7) जिस स्त्री की योनि, पुरुष के मैथुन करने के बाद पुरुष के वीर्य और स्त्री के रज-दोनों को बाहर निकाल दे उसे ‘वामनी’ योनि कहते हैं ।
(8) जिसकी योनि अधिक देर तक मैथुन करने से, लिंग की रगड़ के मारे बाहर निकल आए अर्थात स्थान भ्रष्ट हो जाए और विमर्दित करने से प्रसव योग्य न हो उसे ‘प्रसंसिनी’ योनि कहते हैं । यदि ऐसी स्त्री को कभी गर्भ रह जाता है, तो बच्चा बड़ी मुश्किल से निकलता है।
(9) जिस स्त्री का रुधिर क्षय होने से गर्भ न रहे, उसे ‘पुत्रघ्नी’ योनि वाली के नाम से जाना जाता है । ऐसी योनि वाली स्त्री का मासिक खून गरम होकर कम हो जाता है और गर्भगत शिशु अकाल या असमय में ही गिर जाता है।
(10) जो योनि अत्यन्त दाह, पाक और ज्वर-इन लक्षणों वाली हो, वह ‘पित्तला’ योनि के नाम से जानी जाती है । इस योनि वाली स्त्री की भग के भीतर दाह या जलन होती है और भग के मुँह पर छोटी-छोटी फुन्सियाँ होकर पीड़ा से ज्वर चढ़ आता है ।
नोट- यद्यपि लोहिताक्षरा, प्रसंसिनी, पुत्रघ्नी और वामनी योनि में पित्त कोप के चिह्न पाए जाते हैं और ये योनि रोग पित्त से ही होते हैं किन्तु पित्तलायोनि रोग में -पित्तकोप के लक्षण विशेष रूप से देखे जाते हैं । दाह, पाक और ज्वर पित्तला के लक्षण मात्र हैं। उनमें से नीला, पीला और सफेद आर्तव बहता रहता है ।
(11) जिस स्त्री की योनि अत्यधिक मैथुन करने से भी सन्तुष्ट न हो, उसे ‘अत्यानन्दा’ योनि कहते हैं । इस योनि वाली स्त्री एक दिन में कई पुरुषों से मैथुन कराने से भी सन्तुष्ट नहीं होती । चूँकि इस योनि वाली एक पुरुष से राजी नहीं रहती है, इसी से इसे गर्भ नहीं रहता है।
(12) जिस स्त्री की योनि के भीतर गर्भाशय में कफ और खून मिलकर कमल के इर्द-गिर्द माँसकन्द सा बना देते हैं, उसे ‘कर्णिनी’ योनि कहते हैं ।
(13) जो स्त्री मैथुन करने से पुरुष से पहले ही स्खलित हो जाती है और वीर्य ग्रहण नहीं करती, उसे ‘चरणा’ योनि कहते हैं ।
(14) जो स्त्री कई बार मैथुन करने पर स्खलित होती है उसे ‘अतिचरणा’ योनि के नाम से जाना जाता है।
नोट- ऐसी योनि वाली स्त्री कभी एक पुरुष की होकर नहीं रह सकती । ‘चरणा’ और ‘अति चरणा’ योनि वाली स्त्रियों को गर्भ नहीं रहता।
(15) जो योनि अत्यन्त चिकनी हो, जिसमें खुजली चलती हो और जो भीतर से शीतल रहती हो, वह ‘कफजा’ योनि के नाम से जानी जाती है।
नोट- अत्यानन्दा, कर्णिनी, चरणा और अति चरणा-इन चारों योनियों में कफ का दोष होता है, पर ‘कफजा’ में कफ दोष विशेष रूप से होता है।
(16) जिस स्त्री को मासिकधर्म न होता हो, जिसके स्तन छोटे हों और मैथुन करने से योनि लिंग को खुरदरी मालूम होती हो, उसे ‘पण्डी’ योनि कहते हैं।
(17) छोटी उम्र वाली स्त्री यदि बलवान पुरुष से मैथुन कराती है तो उसकी योनि अण्डे के समान बाहर लटक आती है, उस योनि को ‘अंडिनी योनि’ कहते हैं ।
नोट- इस रोग वाली स्त्री का रोग शायद ही नष्ट हो । इसको गर्भ नहीं रहता ।
(18) जिस स्त्री की योनि बहुत फैली हुई होती है, उसे ‘महती योनि’ कहते हैं ।
(19) जिस स्त्री के योनि रोग वातादि दोषों से होते हैं, किन्तु जिस योनि रोग में तीन दोषों के लक्षण पाए जाएँ-वह ‘त्रिदोषज योनि’ कहलाती है।
योनिकन्द रोग के लक्षण :
जब दिन में बहुत सोने, बहुत ही क्रोध करने, दिन-रात मैथुन करने, योनि के छिल जाने अथवा नाखून या दाँतों के लग जाने से योनि के भीतर घाव हो जाते हैं तब वातादि दोष कुपित होकर खून और पीप को एकत्रित करके, योनि में बड़हल के फूल जैसी गाँठ पैदा करते हैं, उसे ही-‘योनि कन्द’ रोग के नाम से जाना जाता है।
विशेष- यदि वात का कोप ज्यादा होता है तो यह गाँठ रूखी और फटी-सी होती है। यदि पित्त का कोप ज्यादा होता है तो गाँठ में जलन और सुखी होती है, इससे बुखार भी आ जाता है । अगर कफ का कोप ज्यादा होता है तो उसमें खुजली चलती है और रंग नीला होता है । जिसमें तीनों दोषों के लक्षण हैं, उसे ‘सन्निपातज योनिकन्द’ रोग कहते हैं।
योनि रोग चिकित्सा में प्रमुख स्मरणीय बातें :
- बीसों प्रकार के योनि रोग साध्य नहीं होते । कुछ सहज चिकित्सा से और कुछ बड़ी दिक्कत के साथ आराम होते हैं और इनमें से कितने ही योनि रोग असाध्य होते हैं । अत: चिकित्सक को योनि रोग के निदान, लक्षण और साध्य-असाध्य का विचार करके ही इलाज अपने हाथ में लेना चाहिए ।
- योनि रोग को आराम करने हेतु-ये उपाय काम में लेने पड़ते हैं –
तेल में रुई का फाहा तर करके योनि में रखना, दवा की बत्ती बनाकर योनि में रखना, योनि में धूनी या बफारा देना, दवाओं के पानी से योनि को धोना, मुख द्वारा सेवनीय औषधि देना तथा यदि योनि टेढी या तिरछी हो गई हो अथवा बाहर निकल आई हो तो-योनि को चिकनी और स्वेदित करके अर्थात तेल चुपड़कर और बफारों से पसीने निकालकर उसे यथा स्थान स्थापित करना एवं मधुर औषधियों का वेशवार बनाकर योनि में घुसाना । इसके अतिरिक्त रुई का फाहा तेल में तर करके, बलानुसार योनि के भीतर रखने से योनि के शूल, पीड़ा, सूजन और स्राव आदि दूर हो जाते हैं।
टेढी योनि को हाथ से नवाना, सिकुड़ी योनि को बढ़ाना और बाहर निकली हुई योनि को भीतर घुसाना । नोट – सौंठ, काली मिर्च, पीपर, धनिया, जीरा, अनार और पीपरामूल इन सातों के पिसे छने चूर्ण को विद्वान आयुर्वेदाचार्य ‘वेशवार’ कहते हैं । - बातज योनि रोगों में शास्त्रोक्त औषधि ‘नाताद्य तेल’ में रुई का फाहा तर करके जब तक रोग आराम न हो तब तक बराबर योनि में रखना चाहिए । इसके प्रयोग से पूर्व गिलोय, त्रिफला और दातृनि की जड़ इन तीनों के काढ़े से योनि को धोकर स्वच्छ कपड़े या डाक्टरी वाली रुई से पोंछ लेना चाहिए।
- पित्तज योनि रोगों में योनि को काढ़े से सींचना, धोना, तेल लगाना और तेल के फाहे लगाना अच्छा है । पित्तज रोगों में शीतल और पित्त नाशक नुस्खों का प्रयोग करना चाहिए । शीतल औषधियों के तरड़े और फाहे योनि में रखने से अनेक बार तत्काल लाभ दिखाई देता है । पित्त योनि रोगों में-गरम उपचार भयानक हानिप्रद सिद्ध होता है । शतावरी घृत और बला तेल-ये दोनों पित्त नाशक उत्तम प्रयोग हैं।
- कफ जनित योनि रोगों में शीतल उपचार कभी नहीं करना चाहिए । ऐसे योनि रोगों में गरम उपचार लाभकारी होते हैं । कफजन्य योनि रोगों में रूखी और गरम दवाएँ देना अच्छा है।
- वात से पीड़ित योनि में हींग के कल्क में घी मिलाकर योनि में रखना चाहिए।
- कफजन्य योनि रोगों में श्यामादिक औषधियों के कल्क अथवा लुगदी में घी मिलाकर योनि में रखना चाहिए ।
- यदि योनि कठोर हो तो उसे मुलायम करने वाली चिकित्सा करनी चाहिए ।
- सन्निपवातज योनि रोगों में साधारण क्रिया करनी चाहिए। (10) पित्त से पीड़ित योनि में पंचबल्कल के कल्क में घी मिलाकर योनि में रखें।
- यदि योनि में बदबू आती हो तो सुगन्धित पदार्थे के काढ़े, तेल, कल्क या चूर्ण योनि में रखना चाहिए ।
- अन्य रोगों में ‘वात नाशक चिकित्सा’ उपकारी है किन्तु वातज योनि रोगों में स्नेहन, स्वेदन और वस्तिकर्म विशेष रूप से करने चाहिए ।
योनि रोग नाशक नुस्खे और इलाज : yoni rog ka ilaj
योनि के घाव व सूजन का उपचार (yoni me ghav ka ilaj)
धातक्यादि तेल (सन्दर्भ ग्रन्थ ‘चरक’)-इस तेल का फाहा योनि में रखने से और उसकी पिचकारी लगाने से विप्लुता आदि योनि रोग, योनिकन्द रोग, योनि के घाव, सूजन और पीप बहना इत्यादि निश्चय ही ठीक हो जाते हैं।
विशेष-यदि यह तेल पीठ, कमर और पीठ की रीढ़ पर मालिश किया जाये तथा योनि में इसका फाहा रखा जाये और पिचकारी में भरकर योनि में छोड़ा जाये तो-विप्लुता, परिप्लुता, योनिकन्द, योनि की सूजन, घाव और मवाद बहना शर्तिया आराम हो जाते हैं । इन रोगों पर यह तेल लाभदायक है ।
कठोर योनि का उपचार
वातला योनि (जो योनि कठोर या कड़ी हो) में अथवा उस योनि में जो कठोर स्तब्ध और थोड़े स्पर्श वाली हो उसके पर्दे बिठाकर तिली के तेल का फाहा रखना पर हितकारी है।
बाहर निकली योनी का इलाज
यदि योनि प्रसंसिनी हो, लिंग की रगड़ से बाहर निकल आई हो तो उस पर घी मलकर दूध का बफारा देकर उसे हाथ से भीतर बिठा दें, फिर उसका मुँह बन्द करके पट्टी बाँध दें।
योनि में जलन दूर करने का उपाय (yoni me jalan ka ilaj)
यदि योनि में दाह या जलन होती हो तो नित्यप्रति आँवलों के रस में चीनी मिलाकर पीनी चाहिए अथवा कमलिनी की जड़ चावलों के पानी में पीसकर सेवन करना चाहिए ।
योनि की बदबू दूर करने के घरेलू उपाय (Vaginal Odour Remedies)
यदि योनि में बदबू आती हो अथवा योनि लिबलिबी हो तो पहले अमलताश आदि के काढ़े से योनि को धोकर बच, अडूसा, कड़वे परवल, फूल प्रियंगू और नीम इनके चूर्ण को योनि में रखना चाहिए ।
गर्भाशय के रोग का इलाज (garbhashay ke rog ka ilaj)
कर्णिका नामक कफजन्य योनि रोग हो, गर्भाशय के ऊपर माँस-सा बढ़ गया हो तो नीम आदि शोधक पदार्थों की बत्ती बनाकर योनि में रखनी चाहिए ।
योनि में खुजली के उपाय (yoni me khujli ka ilaj in hindi)
गिलोय, हरड़ आँवला और जमाल घोटा इनका काढ़ा बनाकर-उस काढ़े की धार से योनि की खुजली नष्ट हो जाती है ।
कफ सम्बन्धी योनि रोग दूर करने के उपाय
पीपर, काली मिर्च, उड़द शताबर, कूट और सेंधा नमक-इन सबको महीन कूटपीसकर छान लें फिर इस चूर्ण को सिल पर रखकर पानी के साथ पीस कर, अंगठे के समान बर्तियाँ बनाकर छाया में सुखालें । इन बत्तियों के नित्य योनि में रखने से कफ सम्बन्धी योनि रोग (अत्यानन्दा, कर्णिका, चरणा और अति चरण तथा कफजा योनि रोग) नष्ट हो जाते हैं और योनि बिल्कुल शुद्ध हो जाती है।
योनि में दर्द का इलाज (yoni me dard ke upay)
- ‘गुडूच्यादि तेल’ में रुई का फाहा भिगो कर योनि में रखने से वातजनित योनि पीड़ा शान्त हो जाती है । वादी के योनि रोगों में इस तेल का प्रयोग उपयोगी है ।
- इन्द्रायण की जड़ और सौंठ को बकरी के घी में पीसकर योनि में लेप करने से योनि का शूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है ।
योनि में गीलापन का इलाज (yoni me gilapan ka ilaj)
इलायची, धाय के फूल, जामुन ,मँजीठ, लाजवन्ती, मोचरस और राल इन सबको पीस-छान कर सुरक्षित रखलें । इस चूर्ण को योनि में रखने से योनि की दुर्गन्ध, लिबलिबापन तथा तरी रहना आदि विकार नष्ट हो जाते हैं।
नोट-गुडूच्यादि घृत विशेषकर वातज योनि रोगों में स्त्री को उचित मात्रा में खिलाना-पिलाना चाहिए ।
योनि में दर्द या सूजन का इलाज (yoni me sujan ka upchar in hindi)
- कड़वे नीम की निबौलियों को, नीम के रस में पीस कर योनि में रखने या लेप करने से योनि शूल मिट जाता है ।
- अरण्डी के बीज नीम के रस में पीस कर गोलियाँ बनालें । इन गोलियों को योनि में रखने अथवा पीसकर इनका लेप करने से योनि-शूल मिट जाता है।
- बड़ी सौंफ का अर्क-योनि शूल, मन्दाग्नि और कृमि रोग का नाश करता है।
योनि में गांठ का इलाज (yoni mein ganth ka ilaj)
- आँवलों की गुठली, बायविडंग, हल्दी, रसौत और कायफल इनको सम मात्रा में ले कर पीस कूटकर छानलें । इस चूर्ण को शहद में मिलाकर योनि में प्रतिदिन भरने से ‘योनि कन्द'(योनि में बड़हल के फूल जैसी गाँठ पैदा होना) रोग नष्ट हो जाता है । किन्तु इसको योनि में भरने से पहले-हरड़ बहेड़ा और आँवले के काढ़े में शहद मिलाकर उससे योनि को सींचना या धोना उपर्युक्त चूर्ण शहद में मिलाकर प्रयोग में लाना चाहिए तथा काढ़ा नित्य ताजा बनाना चाहिए।
- त्रिफले के काढ़े में शहद डालकर योनि सेचन (छींटे देना) करने से योनिकन्द रोग नष्ट हो जाता है।
- कड़वी तोरई के स्वरस में ‘दही का पानी’ मिलाकर पीने से योनिकन्द रोग नष्ट हो जाता है।
- मासिक धर्म की समस्या दूर कर बुद्धिमान संतान प्राप्ति का उपाय
- सुप्रसिद्ध शास्त्रोक्त औषधि ‘फल घृत’ को यदि पुरुष पीता है तो उसकी वीर्य शक्ति बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप उसके वीर, रूपवान और बुद्धिमान पुत्र उत्पन्न होता है। इसी प्रकार जिन स्त्रियों के सन्तान मरी हुई पैदा होती है अथवा जिनकी सन्तान पैदा होकर मर जाती है या जिनके गर्भ रहकर गिर जाता है अथवा जिस स्त्री के लड़कियाँ ही लड़कियाँ होती हैं उन स्त्रियों के इस घी के पीने से दीर्घायु, रूपवान और बलवान पुत्र पैदा होता है । इस घी के पीने से योनि स्त्राव, रजो दोष तथा अन्य दूसरे योनि रोग भी नष्ट हो जाते हैं । यह घी सन्तान प्रदायक और आयु वृद्धिकारक है।
योनि रोग का इलाज (gupt rog ka ilaj hindi)
- घी का फाहा अथवा तेल का फाहा या शहद का फाहा योनि में रखने से योनि के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
- सिरस के बीज, इलायची, समन्दर झाग, जायफल, बायबिडंग और नागकेसर इनको पानी में पीसकर बत्ती बनालें । इस बत्ती को योनि में रखने से योनि रोग नष्ट हो जाते हैं।
योनि को टाइट करने का चमत्कारी उपाय (Yoni Ko Tight Karne Ka Upay)
- बूढ़ी स्त्री की भी योनि, मैनफल, शहद और कपूर को उसकी योनि में लगाने से सुन्दर और तंग हो जाती है।
- माजूफल, शहद और कपूर-इनको पीसकर अँगुली से योनि में लगाने से गिरी हुई योनि ठीक हो जाती है, नसें सीधी होकर योनि सिकुडकर तंग हो जाती है ।
अंदर घुसी हुई योनि का इलाज
- कलौंजी की जड़ के लेप करने से भीतर घुसी हुई योनि बाहर आती है ।
- करेले की जड़ को पीसकर लेप करने से, भीतर को घुसी हुई योनि बाहर निकल आती है।
(दवा व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार सेवन करें)