आक (मदार) के 99 चमत्कारी फायदे और उपयोग : Aak Ke Fayde in Hindi

Last Updated on June 23, 2024 by admin

आक (मदार) क्या है ? : Madar (Aak) in Hindi

आक का पौधा पूरे भारत में पाया जाता है। गर्मी के दिनों में यह पौधा हरा-भरा रहता है परन्तु वर्षा ऋतु में सूखने लगता है। इसकी ऊंचाई 120 सेमी से 360 सेमी तक होती है। पत्ते 10 सेमी से 15 सेमी लंबे और 3 से 6 सेमी चौड़े होते हैं। फूल का रंग सफेद और हल्का बैंगनी होता है।

फल लगभग 10 सेमी लंबे और 1-2 सेमी चौड़े होते हैं, जो पकने पर फट जाते हैं और इसमें से सफेद मुलायम रूई से ढके काले रंग के बीज हवा में इधर-उधर उड़ने लगते हैं और वर्षा के पानी से नये पौधे के रूप में उग आते हैं।

आक का पौधा विषैला होता है तथा यह मनुष्य के लिए घातक है। यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्टी-दस्त होकर मनुष्य मर भी सकता है। इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में और चिकित्सक की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा फायदा होता है। इसका हर भाग औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

आक (मदार) के औषधीय गुण : Madar (Aak) Ke Gun in Hindi

आयुर्वेदिक मतानुसार- आक का रस कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा), उष्ण (गर्म) प्रकृति, वात-कफ दूर करने वाला, कान-दर्द, कृमि (कीड़ा), अर्श (बवासीर), खांसी, कब्ज, पेट के रोग, त्वचा रोग, वात रोग, सूजन नाशक होता है।

यूनानी मतानुसार- आक गर्म, कफ को हटाने वाला, पसीना लाने वाला, बलवर्धक (ताकत देने वाला) है। यह गठिया (जोड़ों का दर्द), जलोदर (पेट में पानी भरना), प्रवाहिका (पेचिश) तथा सर्पविष में लाभकारी है। आक का दूध जलन पैदा करने वाला, चमड़ी पर फफोला पैदा करने वाला होता है तथा दाद, खाज, कोढ़, प्लीहा (स्पलीन) रोग में भी गुणकारी है।

वैज्ञानिक मतानुसार- आक के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसकी जड़ और तने में एमाईरिन, गिग्नटिओल तथा केलोट्रोपिओल के अलावा थोड़ी मात्रा में मदार ऐल्बन, फ्लेबल क्षार भी मिलता है। दूध में ट्रिप्सिन, उस्कैरिन, केलोट्रोपिन तथा केलोटोक्सिन तत्व मिलते हैं।

आकड़े के फायदे : Madar (Aak) Ke Fayde

कील-मुहासें : हल्दी में आक के दूध को मिलाकर कील मुंहासों पर लेप करने से कुछ ही दिनों में लाभ होगा और चेहरे पर चमक आएगी।

2. हिलते हुए दांत निकालना : हिलते हुए दांत की जड़ में एक-दो बूंद आक का दूध लगाने से वह आसानी से निकल जाता है। आक की जड़ के टुकड़े को दुखते हुए दांत से दबाने से दर्द कम हो जाता है।

3. खुजली :

  • आक के 10 सूखे पत्ते सरसों के तेल में उबालकर जला लें। फिर तेल को छानकर ठंडा होने पर इसमें कपूर की 4 टिकियों का चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में भर लें। यह तेल खाज-खुजली वाले अंगों पर दिन तीन बार लगाएं। इससे खुजली ठीक हो जाती है।
  • 10 ग्राम आक के दूध में 50 मिलीलीटर सरसों का तेल मिलाकर आग पर पकाने के लिये रख दें। जब पकते-पकते दूध जल जाये तो इसे आग पर से उतारकर बचे हुए तेल से शरीर पर मालिश करने से कुछ ही समय में खुजली बिल्कुल दूर हो जायेगी।

4. बिच्छू के काटने पर : आक का दूध काटे हुए स्थान पर बार-बार लगाएं।

5. फोड़े-फुंसी : आक की जड़ को पानी के साथ पीसकर तैयार किए लेप को फोड़े-फुंसियों पर लगाएं।

6. सर्पविष : आक के दूध को कटे हुए घाव पर बार-बार लगाएं और इसकी जड़ को पानी में पीसकर पिलाएं।

7. छोटे सफेद दागों पर : सेंधानमक आक के दूध में घिसकर दागों पर लगाएं।

8. वात रोगों में : तिल के तेल में आक की जड़ को पका लें। छानकर इस तेल को पीड़ित अंगो पर मलें।

9. वायु से अंग दुखने पर : आक के पत्तों को गर्म करके शरीर सेंकना चाहिए।

10. सभी प्रकार के विष पर : आक की जड़ ठंडे पानी में घिसकर पिलाना चाहिए या आक की 5-6 नरम पत्तियों के रस में घी मिलाकर पीना चाहिए।

11. घुटनों के दर्द पर : आक का दूध तीन दिन तक लगाना चाहिए।

12. शीत ज्वर पर : आक की कोपलें पानी के साथ खानी चाहिए।

13. श्लीपद (पैर हाथी के समान मोटा हो जाना) रोग :

  • आक की जड़ को कॉजी में पीसकर लेप करना चाहिए।
  • आक के जड़ की छाल 10 ग्राम, त्रिफला चूर्ण 10 ग्राम को एक साथ आधा किलो पानी में तब तक पकायें जब तक उसका आठवां हिस्सा शेष न बचे। इसमें 1 ग्राम शहद और 3 ग्राम मिश्री मिलाकर सेवन करायें और साथ ही मदार की जड़ को छाछ में पीसकर श्लीपद पर गाढा लेप करें, 40 दिन में पूर्ण लाभ होता है।
  • आक के जड़ की छाल और अडूसा की छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करें।
  • फीलपांव के रोगी का रोग दूर करने के लिए लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग आक की जड़ की छाल कपूर के रस या सिंदूर रस, सुरमा एवं सांमरसांग भस्म के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इसे फीलपांव के फोड़े पर लेप करने से भी लाभ मिलता है।

14. पेशाब में धातु के आने पर : आक के दूध में बबूल की छाल का थोड़ा रस मिलाकर नाभि के आसपास और पेडू पर लेप करने से पेशाब में धातु का आना दूर होता है।

15. पेट के सब विकारों पर : 10 ग्राम आक की जड़ की छाल को कूटकर उसमें 400 मिलीलीटर पानी डालकर अष्टमांस काढ़ा बनायें। इस काढ़े से पेट के सब विकार और प्लीहोदर (तिल्ली का बढ़ना) दूर होते हैं।

16. छोटे बच्चों के यकृत और प्लीहोदर पर : एक रुपये के बराबर आकार का आक का पत्ता लेकर उसमें 20 ग्राम कुलथी डालकर लगभग 450 मिलीलीटर पानी में अष्टमांस काढ़ा बनाये। इस काढ़े को छानकर इसमें रत्ती भर नमक डालकर देना चाहिए। एक दो दस्त होकर पेट साफ हो जाता है।

17. सब प्रकार की गांठ पर : आक के दूध में रेवन्दचीनी का शीरा घिसकर गांठ पर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करना चाहिए। इससे गांठ नरम होकर बैठ जाती है।

18. मुंह की झांई, धब्बे आदि : हल्दी के 3 ग्राम चूर्ण को आक के दूध की 5-7 बूंद व गुलाब जल में घोटकर आंखों को बचाकर झांई-युक्त स्थान पर लगायें, इससे लाभ होता है। कोमल प्रकृति वालों को आक की दूध की जगह आक का रस प्रयोग करना चाहिए।

19. सिर की खुजली : आक के दूध को सिर पर लगाने से गंदगी, जलन दर्द ए़वं खुजलीयुक्त फुंसी में लाभ होता है।

20. आंखों के रोग :

  • आक के जड़ की सूखी छाल 1 ग्राम कूटकर, 20 ग्राम गुलाब जल में 5 मिनट तक रखकर छान लें। इसे बूंद-बूंद आंखों में डालने से (3 या 5 बूंद से अधिक न डालें) नेत्र की लाली, भारीपन, दर्द, कीच की अधिकता और खुजली दूर हो जाती है।
  • आक के जड़ की छाल को जलाकर कोयला कर लें और इसे थोड़े पानी में घिसकर आंखों में लगाने से आंखों के चारों ओर की तथा पलकों की सूजन आदि मिटती है।
  • आंख दुखनी आने पर, यदि बाईं आंख हो और उसमें कड़क दर्द व वेदना हो तो दाहिने पैर के नाखूनों को, यदि दाईं आंख हो तो बायें पैर के नाखूनों को आक के दूध से भिगो दें।
  • सावधानी : आंख में इसका दूध नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम काफी भंयकर हो सकता है।

21. आंखों का फूला, जाला : आक के दूध में पुरानी रूई को 3 बार गीला कर सुखा लें, फिर गाय के घी में गीली करके बड़ी सी बत्ती बनाकर जला लें। बत्ती जलकर सफेद नहीं होनी चाहिए इसे थोड़ी मात्रा में माचिस की तिली से रात के समय आंखों में लगाने से 2-3 दिन में लाभ होना प्रारम्भ होता है।सावधानी : आंख में इसका दूध नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम काफी भंयकर हो सकता है।

22. मिर्गी :

  • सफेद आक के फल 10 ग्राम और पुराना गुड़ 30 ग्राम लेकर पहले फलों को पीस लें, फिर गुड़ के साथ खूब खरल करें और चने जैसी गोलियां बना लें, सुबह-शाम 1 या 2 गोली ताजे पानी के साथ सेवन करने मिर्गी में लाभ मिलता है।
  • आक के ताजे फूल और कालीमिर्च को एक साथ बारीक पीसकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें और दिन में 3-4 बार सेवन करें।
  • आक के दूध में थोड़ी शक्कर या मिश्री खरल कर रखें तथा इसकी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मात्रा प्रतिदिन सुबह 10 ग्राम गर्म दूध के साथ सेवन करें।
  • मदार के पत्ते और इसकी टहनी के रंग का ही टिड्डा इसके शाखा पर ग्रीष्म काल में मिलता है। इस टिड्डे को शीशी में बन्दकर सुखाकर बराबर मात्रा में कालीमिर्च मिलाकर, महीन पीसकर, अपस्मार के रोगी को बेहोशी की हालत में इसे सुंघाने से वह होश में आ जाता है और धीरे-धीरे उसका रोग दूर हो जाता है।
  • आक के जड़ की छाल को बकरी के दूध में पीस-छानकर कपड़े में रख लें और मिरगी के रोगी की नाक में 2-4 बूंदे टपका दें, तो इससे रोगी होश में आ जाता है।
  • लगभग 10 बूंद आक का दूध निकालकर सुबह 3 से 5 बजे तक रोगी के पैरों के तलुवों पर लगाकर ऊपर से कालीमिर्च के चूर्ण को डाल दें और इसके ऊपर आक के पत्ते बांधकर मोजे पहना दें। 40 दिनों तक रोगी के पैरों पर पानी न डालें। इससे मिरगी रोग नष्ट हो जाता है।

23. दांत का दर्द

  • आक के दूध में रूई भिगोकर, घी में मलकर दाढ़ में रखने से दाढ़ की पीड़ा मिटती है।
  • आक के दूध में नमक मिलाकर दांत पर लगाने से दांत की पीड़ा मिटती है।
  • उंगली के मोटाई के बराबर आक की मोटी जड़ को आग में शकरकन्दी की तरह भूनकर उसका दातुन करने से दन्त रोग व दन्त पीड़ा में तुरन्त लाभ पहुंचता है। कुची वाले भाग को काटकर पुन: उसका अगला भाग प्रयोग कर सकते हैं।
  • मदार की सूखी टहनी (डाली) को जलाकर राख बना लें। उस राख को बारीक पीसकर पाउडर बनाकर रखें। इस पाउडर में 5 बूंद सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन मंजन करने से खोखले दांतों में पानी का लगना, टीस मारना बंद हो जाता है तथा मसूढ़ों की सूजन खत्म होती है।
  • आक की जड़ की छाल का फांट का सेवन करने से लाभ मिलता है।

24. दन्त निकालना :

  • हिलते हुए दांत पर आक का दूध लगाकर उसे सरलता से निकाला जा सकता है।
  • आक के 8-10 पत्तों को 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ पीसकर उसमें थोड़ी हल्दी व सेंधानमक मिलाकर मंजन करने से दांत मजबूत रहते हैं।

25. उल्टी :

  • आक की जड़ की सूखी छाल को बराबर अदरक के रस में भली प्रकार खरलकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बनाकर धूप में सुखाकर रख लें। इसका सेवन शहद के साथ करने से उल्टी बंद हो जायेगी। प्रवाहिका, शूल, मरोड़ और विसूचिका में इसे पानी के साथ देते हैं।
  • 10 ग्राम आक (मदार) की जड़ की छाल और 20 ग्राम कालीमिर्च को लेकर 50 मिलीलीटर अदरक के रस में मिला लें और उसकी चने के आकार की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। यह 2 गोली गर्म पानी के साथ लेने से पेट के सारे रोग और उल्टी आना दूर हो जाती है।

26. आधे सिर का दर्द (माइग्रेन) :

  • जंगली कंडों की राख को आक के दूध में गीला करके छाया में सुखा लेना चाहिए। इसमें से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुंघाने से छीकें आकर सिर का दर्द, आधाशीशी, जुकाम और बेहोशी इत्यादि में लाभ होता है।  नोट:-गर्भवती स्त्री और बालक इसका प्रयोग न करें।
  • पीले पड़े हुए आक के 1-2 पत्तों के रस का नस्य लेने से आधाशीशी में लाभ होता है। किन्तु तीक्ष्ण बहुत है, अत: सावधानी से प्रयोग करें।
  • आक की छाया में शुष्क की हुई मूलत्त्वक के 10 ग्राम चूर्ण में सात इलायची तथा कपूर और पिपरमेंट प्रत्येक लगभग आधा ग्राम मिलाकर और खूब खरल कर शीशी में भर लें। इसे सूंघने से छींके आकर व कफस्राव होकर आधाशीशी आदि सिर दर्द में लाभ होता है तथा सिर का भारीपन दूर होता है।
  • अनार की 40 ग्राम खूब महीन पिसी हुई छाल को आक के दूध में गूंथकर रोटी की तरह नरम आंच से पका लें। फिर इसे सुखाकर बहुत महीन पीसकर इसमें जटामांसी, छरीला 3-3 ग्राम, इलायची और कायफल प्रत्येक 1.5 ग्राम मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। इसकी नस्य लेने से कुछ देर बाद छीकें आकर दिमागी नजला दूर होता है तथा बेहोश रोगी को होश में लाने में सहयोग मिलता है।
  • पुरानी पक्की ईंट को पीसकर खूब महीन कर आक के दूध में तर कर सुखाकर और तौलकर प्रति 10 ग्राम में सात लौंग बारीक पीसकर मिला दें। इसमें से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में सुंघाने से मस्तक पीड़ा, सूर्य के बढ़ने के साथ बढ़ने वाला सिर दर्द, जुकाम (प्रतिश्याय), नजला (पीनस) और मोतियाबिंद में लाभ होता है।
  • आक के 2 छोटे-छोटे पत्तों का जोड़ा जो आक के पत्तों के बीच में लगा होता है, गुड़ में लपेटकर सूर्योदय से पहले सेवन करें। पहली मात्रा से ही लाभ मालूम पड़ेगा। पूरे लाभ के लिए यह प्रयोग 4-5 दिन तक करें।

27. श्वास-खांसी इत्यादि :

  • आक के पुष्प की लौंग 50 ग्राम और मिर्च 6 ग्राम दोनों को एकत्रकर खूब महीन पीसकर मटर जैसी गोलियां बना लें। सुबह 1 या 2 गोली गर्म पानी के साथ सेवन करने से श्वास-खांसी का वेग रुक जाता है।
  • आक की जड़ के छिलके को आक के दूध में भिगोकर सूखाकर महीन चूर्ण कर लें, 10 ग्राम चूर्ण में 25 ग्राम त्रिकुटा चूर्ण श्रृंगभस्म 5 ग्राम, गोदंती 10 ग्राम मिलाकर लगभग 1 ग्राम सुबह-शाम शहद के साथ लेने से पुराने सांस रोग में भी लाभ होता है।
  • आक के पत्तों पर जो सफेद क्षार सा छाया रहता है, उसे 5 से 10 ग्राम तक गुड़ में लपेटकर गोली बनाकर खाने से खांसी और सांस रोग में लाभ होता है।
  • पत्तों पर छाई सफेदी को इकट्ठा कर बाजरे जैसी गोलियां बनाकर एक-एक गोली सुबह-शाम खाकर ऊपर से पान खाने से 2-4 दिन में श्वास रोग में लाभ होता है। पुरानी खांसी भी मिट जाती है।
  • पुराने से पुराने आक की जड़ को छाया में सुखाकर निर्वात (ऐसा स्थान जहां हवा न हो) स्थान में जलाकर राख कर लें, इसमें से कोयला अलग कर दें। इसकी 1-2 ग्राम राख को शहद या पान में रखकर खाने से खांसी और दमा (श्वास) में लाभ होता है।
  • आक की कोमल शाखा और फूलों को एकसाथ पीसकर 2-3 ग्राम की मात्रा में घी में सेंक लें। इसे गुड़ के साथ सुबह सेवन करने से पुरानी खांसी जिसमें हरा पीला दुर्गन्ध युक्त चिपचिपा कफ निकलता हो, शीघ्र दूर होता है।
  • आक के फूलों की लौंग निकालकर उसमें बराबर मात्रा में सेंधानमक और पीपल मिलाकर खूब बारीक पीसकर मटर जैसी गोलियां बना लें। इसकी 2 से 4 गोली बड़े व्यक्तियों को और 1 से 2 गोली बच्चों को गाय के दूध के साथ देने से बच्चों की खांसी दूर होती है।
  • आक के जड़ की छाल के लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग बारीक चूर्ण में, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शुंठी का चूर्ण मिलाकर 3 ग्राम शहद के साथ सेवन करने से कफ युक्त खांसी और श्वास रोग दूर होते हैं।
  • छाया में सुखाये हुए आक के फूलों को बराबर त्रिकटु (सौंठ, पीपल और कालीमिर्च) और जवाखार एकत्र करके अदरख के रस में खरल कर मटर जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखाकर रख लें। दिन रात में 2-4 गोलियां मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी-श्वास में परम लाभ होता है।
  • आक के दूध में चने डुबोकर मिट्टी के बर्तन में बंद कर उपलों की आग से भस्म कर लें। इसे 125 मिलीग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से असाध्य खांसी में भी तुरन्त लाभ होता है।
  • आक के एक पत्ते पर पानी के साथ महीन पिसा हुआ कत्था और चूना लगाकर दूसरे पत्ते पर गाय का घी लगाकर दोनों पत्तों को आपस में जोड़ लें, इस प्रकार पत्तों को तैयारकर मटकी में रखकर जला लें। छानकर कांच की शीशी में रख लें। इसे 10-30 ग्राम तक घी, गेहूं की रोटी या चावल में डालकर खाने से कफ प्रकृति के पुरुषों में मैथुन शक्ति (सहवास) को पैदा करता है। तथा समस्त कफज व्याधियों को और आंतों में कीड़ों को नष्ट करता है। यह कष्टदायक श्वास में अति उपयोगी है।
  • आक के ताजे फूलों का 2 लीटर रस निकाल लें। इसमें आक का ही दूध 250 मिलीलीटर और गाय का घी डेढ किलो मिलाकर हल्की आंच पर पकायें। घी मात्र शेष रहने पर छानकर बोतल में भरकर रख लें। इस घी को 1 से 2 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 मिलीलीटर पकाये हुये दूध में मिलाकर सेवन करने से आंत्रकृमि नष्ट होकर पाचन शक्ति तथा बवासीर में भी लाभ होता है। शरीर में किसी तरह का विष का प्रभाव हो तो इससे लाभ होता है, परन्तु यह प्रयोग कोमल प्रकृति वालों को नहीं करना चाहिए।

28. जलोदर :

  • आक के पत्ते के एक किलो रस में 20 ग्राम हल्दी का चूर्ण मिलाकर हल्की आंच पर पकायें। जब गोली बनाने लायक हो जाये तो नीचे उतारकर चने जैसी गोलियां बना लें, 2-2 गोली दोनों समय सौंफ कासनी आदि रस के साथ दे, तथा पानी के स्थान पर यही रस पिलायें।           
  • आक के ताजे हरे पत्ते 250 ग्राम और हल्दी 20 ग्राम दोनों को बारीक पीसकर उड़द के आकार की गोलियां बना लें। पहले दिन ताजे पानी के साथ 4 गोली, फिर दूसरे दिन 5 और 6 गोली तक बढाकर घटाये यदि लाभ हो तो पुन: उसी प्रकार घटाते बढ़ाते जायें, अवश्य लाभ होगा। भोजन में दूध, साबूदाना व जौ का रस(जूस) दें।
  • आक के 8-10 पत्तों को सेंधानमक के साथ कूट दें। फिर मिट्टी के बरतन में बंद कर जला लें। इसकी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग राख को सुबह, दोपहर, शाम को छाछ के साथ सेवन करने से जलोदर मिटता है। तिल्ली आदि अंग जो पेट में बढ़ जाया करते हैं, सब अपने स्थान पर आ जाते हैं।

29. रक्तातिसार : छाया में सुखाकर एवं महीन पीसकर कपड़े से छनी हुई आक की जड़ की छाल, ठंडे पानी के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग ग्रहण करने से अवश्य लाभ होगा।

30. अजीर्ण : आक के निथारे हुए पत्ते के रस में समभाग घृतकुमारी का गुदा व शक्कर मिलाकर पकायें। शक्कर की चाशनी बन जाने पर ठंडा कर बोतल में भर लें तथा आवश्यकतानुसार 2 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करायें। यह 6 मास के बच्चे से 10 साल के बच्चों तक के अनेक रोगों में अचूक दवा है।

31. पांडु (कामला, पीलिया) :

  • आक के लगभग 20-25 पत्ते लेकर, 50 ग्राम मिश्री मिलाकर खरल में घोटकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर चने जैसी गोलियां बना लें। दिन में 3 बार वयस्कों को दो गोली सेवन कराने से सात दिन में पूर्ण लाभ होता है। इस प्रयोग के समय तेल, खटाई मिर्च आदि से परहेज रखें।
  • मदार की छाल डेढ़ ग्राम और कालीमिर्च 12 पीस पुनर्नवा मूल 2-3 ग्राम, पानी में घोट-छानकर दिन में 2 बार पिलाएं। गर्म और चिकनी वस्तुओं से परहेज रखें।
  • आक का पका पत्ता 1 पीस साफ पोछकर उस पर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूना लगाकर बारीक पीस लें और चने के आकार की गोलियां बनाकर 2 गोली रोगी को प्रात: काल पानी से निगलवा दें। भोजन के रूप में दही तथा चावल लेना चाहिए।
  • आक की कोपल एक पीस, सुबह निराहार पान के पत्ते में रखकर चबाकर खाने से 3 से 5 दिन में पीलिया ठीक हो जाता है।
  • मदार के नर-पौधे की सबसे ऊपर की छोटी कोंपल लेकर खोया और शक्कर मिलाकर खिला दें और ऊपर से दूध पिला दें। एक बार में ही पीलिया रोग मिट जाता है। 
  • मदार के जड़ की छाल लगभग एक ग्राम और 12 कालीमिर्च पीसकर शर्बत की तरह दिन में दो बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है।

32. भगंदर आदि नाड़ी के घाव :

  • आक का दूध 10 मिलीलीटर और दारूहल्दी का दो ग्राम बारीक चूर्ण, दोनों को एक साथ खरलकर बत्ती बना लें। इसे घाव में रखने से शीघ्र लाभ होता है।
  • आक के दूध में कपास की रूई भिगोकर छाया में सुखाकर बत्ती बनायें, इसे सरसों के तेल में भिगोकर घाव पर लगाने से लाभ होता है।

33. अंडकोष की सूजन :

  • 8-10 ग्राम आक की छाया में सुखाई छाल को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से पैर और अंडकोष की मोटी पड़ी हुई चमड़ी पतली हो जाती है।
  • आक के 2-4 पत्तों को तिल्ली के तेल के साथ पत्थर पर पीसकर मलहम सा बनाकर अंडकोष के दर्द में चुपड़कर लंगोट कस देने से शीघ्र आराम होता है।

34. हैजा : 

  • आक के बिना खिले फूल 10 ग्राम तथा भुना सुहागा, लौंग, सोंठ, पीपल और कालानमक 5.5 ग्राम इन्हें कूट-पीसकर 125 मिलीग्राम की गोलियां बना लें और थोड़ी-थोड़ी देर में 1.1 गोली सेवन करते रहें। विशेष अवस्था में 4.4 गोली एक साथ देना है।
  • आक के पेड़ की जड़ या तने की छाल 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम और कालानमक 2 चुटकी तीनों चीजों को पीसकर एक चुटकी चूर्ण को सौफ के रस के साथ रोगी को दें।
  • धरती में गिरे, पीले पड़े, आक के 5 पत्ते लेकर उन्हें जलायें, जब वे कोयला हो जाय, तब आधे लीटर पानी को किसी स्टील के बर्तन में भरकर उसमें इन कोयलों को बुझा लें फिर इस पानी को छानकर रखें। हैजा के रोगी को इसमें से थोड़ा-थोड़ा पानी देते रहने से शीघ्र लाभ होता है।
  • आक की जड़, कालीमिर्च तथा अकरकरा-इन्हें बराबर-बराबर लेकर, कूट-पीस छानकर खरल में भरे, फिर उसमें धतूरे की जड़ का रस डाल-डाल कर खूब घोंटे। घुट जाने पर चने के बराबर की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखाकर रख लें। हैजे में इन गोलियों को 1.1 या 2.2 घंटे के अन्तर से, पानी के साथ खिलाने से रोग नष्ट हो जाता है।
  • आक के फूल 10 ग्राम, भुना सुहागा 4 ग्राम, कालीमिर्च 6 ग्राम, इनको ग्वारपाठा के गूदे में खरलकर चने जैसी गोलियाँ बना लें। 1.1 गोली गुलाब के रस के साथ लेते रहना है।
  • आक के फूलों की लौंग और कालीमिर्च 10.10 ग्राम और शुद्ध हींग 6 ग्राम इन्हें अदरक के रस की 10 भावनाएं (उबालकर) देकर उड़द जैसी गोलियाँ बना लें। प्रत्येक उल्टी-दस्त के बाद 1.1 गोली अदरक पुदीना या प्याज के रस के साथ सेवन कराने से तत्काल लाभ होता है।

35. बवासीर :

  • आक के कोमल पत्तों के बराबर की मात्रा में पांचों नमक लेकर, उसमें सबके वजन से चौथाई तिल का तेल और इतना ही नींबू रस मिलाकर पात्र के मुख को कपड़ मिट्टी से बन्दकर आग पर चढ़ा दें। जब पत्ते जल जाये तो सब चीजों को निकालकर पीसकर रख लें। इसे 500 मिलीग्राम से 3 ग्राम तक आवश्यकतानुसार गर्म जल, छाछ या शराब के साथ सेवन कराने से बादी बवासीर नष्ट हो जाती है।
  • 3 बूंद आक के दूध को झांई पर डालकर और उस पर थोड़ा कूटा हुआ जवाखार बुरककर बताशे में रखकर निगलने से बवासीर बहुत जल्दी नष्ट हो जाती है।
  • हल्दी चूर्ण को आक के दूध में 7 बार भिगोकर सुखा लें, फिर आक दूध द्वारा ही उसकी लम्बी-लम्बी गोलियां बनाकर छाया में शुष्क कर रखें। प्रात:-सायं शौच कर्म के बाद थूक में या जल में घिसकर बवासीर के मस्सों पर लेप करने से कुछ ही दिनों में वह सूखकर गिर जाते हैं।
  • शौच जाने के बाद आक के दो चार ताजे पत्ते तोड़कर गुदा पर इस प्रकार रगडें कि मस्सों पर दूध न लगे, केवल सफेदी ही लगे। इससे मस्सों में लाभ होता है।

36. उपदंश (सिफलिस):

  • सफेद आक की छाया में सूखी जड़ की छाल का 1 से 2 ग्राम चूर्ण 2 चम्मच शक्कर के साथ सुबह-शाम सेवन करने से उपदंश और रक्त कुष्ठ में लाभ होता है।
  • आक के 10-12 पत्तों को आधा किलो पानी में उबालें जब यह एक चौथाई मात्रा में शेष बचे तो इससे उपदंश के घाव धोयें। या इसकी छाल को पानी में पीसकर लगाना चाहिए व 2-3 ग्राम छाल का सेवन करना चाहिए। इससे उपदंश में लाभ होता है।
  • मलमल के डेढ़ फुट लम्बे और चार अंगुल चौडे़ कपड़े को आक के दूध में 21 बार भिगोकर सुखा लें। फिर इसको मिट्टी के बरतन में रखकर (भस्म) राख बना लें। तीन चावल के बराबर राख को पान में रखकर देने से सात दिन में लाभ होता है। मिर्च मसाले से परहेज रखें और घी का अधिक सेवन करें।
  • आक के जड़ की छाल 10 ग्राम, कालीमिर्च 5 ग्राम, इन दोनों को बारीक पीसकर 100 ग्राम में गुड़ मिलाकर चने जैसी गोलियां बनाकर रख लें। रोगी को पहले जुलाब देकर 1 या 2 गोली पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करायें।
  • आक की छाल तथा आक की कोपलें या छोटी-छोटी कोमल पत्तियां 50-50 ग्राम इन दोनों को 200 मिलीलीटर आक के दूध में पीसकर गोली बनाकर मिट्टी के बर्तन में रखकर उसका मुंह बंदकरके कंडों की आंच में गर्म कर राख बना लें। अब निकाल कर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर एक-दो गोली पानी के साथ लेने से भगंदर व नासूर में लाभ होता है।
  • आक की जड़ का छाल का धुआं शरीर के अंदर लेने से गर्मी का रोग दूर हो जाता है।
  • आक के पत्तों पर अरंडी का तेल चुपड़कर तथा आग पर तपा कर बद पर बांधे इसके तुरन्त बाद धतूरे के पत्ते गर्म करके ऊपर से सेंक लें। लाभ मिलेगा।
  • आक की जड़ 20 ग्राम और 10 ग्राम कालीमिर्च को कूटकर गुड़ मिलाकर जौ के बराबर गोली बना लें। सुबह-शाम 1-1 गोली खाने से उपदंश मिट जाता है। इस दवा के साथ ही खटाई का परहेज रखें।
  • आक की जली हुई लकड़ी 20 ग्राम और मिश्री इन दोनों को मिलाकर पीस-छान कर रख लें। इस चूर्ण को 6-6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम  लेने करने से उपदंश ठीक हो जाता है।
  • आक की बिना खिली बौण्डी (कली) 10 ग्राम और गेरू 3 ग्राम मिलाकर कर झरबेरी के बराबर गोली बनाकर 1-2 गोली खाने से उपदंश और उपदंशजनित घाव, सूजन और दर्द खत्म हो  जाते हैं।
  • आक की बिना खिली कली, कालीमिर्च तथा घी मिलाकर खाने से उपदंश से होने वाले घाव खत्म होते हैं।
  • आक की जली लकड़ी का कोयला 6 ग्राम पीसकर, उसमें उतना ही शक्कर और 10 ग्राम घी मिलाकर, 7 दिन तक खायें इससे उपदंश दूर हो जाता है।
  • आक की जड़ की छाल को छाया में सुखाकर, बारीक चूर्ण बनाकर लें। 5 ग्राम चूर्ण में उतनी ही खांड मिलाकर सुबह शाम पानी के साथ खाने से उपदंश का रोग दूर हो जाता है।
  • लाल आक की जड़ की छाल 20 ग्राम तथा सत्यानाशी की जड़ की छाल और अपामार्ग मूल छाल 15 ग्राम चूर्णकर धूम्रपान विधि के अनुसार पीने से उपदंश में लाभ होता है।

37. नपुंसकता और ध्वज भंग पर :

  • छुआरों के अंदर की गुठली निकालकर उसमें आक का दूध भर दे, फिर इनके ऊपर आटा लपेट कर पकायें, ऊपर का आटा जल जाने पर छुआरों को पीसकर मटर जैसी गोलियां बना लें, रात्रि के समय 1-2 गोली खाकर तथा दूध पीने से स्तम्भन होता है।
  • आक की छाया में सुखी जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को आधा किलो दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें, इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है।
  • आक का दूध, असली शहद और गाय का घी बराबर मात्रा में लेकर लगभग 4-5 घंटे खरलकर शीशी में भरकर रख लें, इन्द्री की सीवन और सुपारी को बचाकर इसकी धीरे-धीरे मालिश करें और ऊपर से खाने का पान और एरंड का पत्ता बांध दें, इस प्रकार सात दिन तक मालिश करें। फिर 15 दिन छोड़कर पुन: मालिश करने से शिश्न के समस्त रोगों में लाभ होता है।
  • किसी कपड़े को आक के दूध में चौबीस घंटे तक भिगोकर रखा रहने दें, उसके बाद निकालकर सुखा लें। फिर उस पर घी लपेटकर दो बत्तियां बना लें और उसको लोहे की सलाई पर रखें नीचे एक कांसे की थाली रख दे और बत्तियां जला दें जो तेल नीचे थाली पर गिरेगा उसे लिंग पर (सुपारी छोड़कर) पूरे आधा घंटे तक मलते रहे उसके बाद एरंड का पत्ता लपेटकर ऊपर से कच्चा धागा बांध दें। इससे हस्तमैथुन दोष से उत्पन्न नपुंसकता दूर हो जाती है।

38. योनि रोग :

  • योनि को मजबूत करने के लिए आक की जड़ के चूर्ण को भांगरे के रस में 2-3 बार अच्छी तरह खरल करके मटर के बराबर गोलियां बना लें, फिर एक-एक गोली सुबह-शाम गर्म पानी या दूध के साथ सेवन करने से योनि सुदृढ़ होती है, इससे मासिक धर्म भी ठीक होने लगता है पर जिन्हें रक्तप्रदर हो उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • कफ दूषित योनि हो तो उड़द के 100 ग्राम आटे में थोड़ा सेंधानमक मिलाकर उसमें आक के दूध में 7 बार उबालकर छोटी-छोटी बित्तयां बना ले। इसका प्रयोग योनि-मार्ग में करें, तथा उचित मात्रा में पानी के साथ सेवन करें। इससे जरूर ही लाभ होगा।

39. बांझपन : सफेद आक की जड़ को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें, 1-2 ग्राम की मात्रा में 250 मिलीलीटर गाय के दूध के साथ सेवन करायें। शीतल पदार्थो को खाने में दें। इससे बंद ट्यूब व नाडियां खुलती हैं, मासिक धर्म तथा गर्भाशय की गांठों में भी लाभ होता है।

40. पैरों के छाले : पैदल यात्रा करने से जो छाले आदि हो जाते हैं, आक के दूध को लगाने दूर हो जाते हैं।

41. पैरों के फोड़े : एक ईंट को गर्म करके उस पर 6-7 आक के पत्ते रखकर, पैर को सेंकने से पैर के फोड़े नष्ट हो जाते हैं।

42. पसली का दर्द : आक के दूध में थोडे़ से काले तिलों को खूब खरल करें जब पतला सा लेप सा हो जाए तो उसे गर्मकर पसली के दर्द स्थान पर लेप कर दें और ऊपर से आक के पत्तों पर तिल का तेल चुपड़कर तावे पर गर्म करके उस स्थान पर पट्टी से बांधने पर शीघ्र लाभ होता है।

43. जोड़ों में दर्द होने पर :

  • आक का फूल, सोंठ, कालीमिर्च, हल्दी व नागरमोथा को बराबर मात्रा में लें। इन्हें जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियां बना लें। 2-2 गोलियां सुबह और शाम को जल के साथ सेवन करें।
  • आक के 2-4 पत्तों को कूटकर पोटली बना, घी लगाकर तावे पर गर्म कर सेंक करें। सेंकने के पश्चात आक के पत्तों पर घी चुपड़कर गर्म कर बांध दें।

44. लकवा : आक की मोटी कूटी हुई जड़ की 500 ग्राम मात्रा को लगभग 4 लीटर पानी में उबालें जब यह पानी एक लीटर की मात्रा में शेष बचे तो इसे छान लें। उसमें समभाग मिश्री तथा 6-6 ग्राम पीपल, वंशलोचन, इलायची, कालीमिर्च और मुलेठी का चूर्ण मिलाकर मंद आंच पर शरबत तैयार कर लें। मात्रा 1-2 ग्राम तक लें यह श्वांसयुक्त खांसी, कफ, वातरोग, हाथ-पैर का दर्द, उदर रोग और लकवे को भी दूर करता है।

45. वात पीड़ा :

  • आक की जड़ की छाल 10 ग्राम तथा कालीमिर्च, कुटकी और काला नमक 1-1 ग्राम सबको मिलाकर जल के साथ महीन पीसकर चने जैसी गोलियां बना लें। किसी भी अंग में वातजन्य पीड़ा हो तो सुबह-शाम 1-1 गोली गर्म पानी के साथ सेवन करें।
  • आक की 1 किलो जड़ (छाया में सुखाई हुई) को कूटकर 8 लीटर जल में पकायें जब यह 2 लीटर के लगभग शेष बचे तो इसमें 1 लीटर एरंड तेल मिलाकर पकायें। तेल मात्र शेष रहने पर छानकर शीशी में भरकर रख लें, इसकी मालिश से भी शीघ्र लाभ होता है।
  • वात रोगी को आक की रूई से भरे वस्त्र पहनने तथा इसकी रूई की रजाई व गद्दे में सोने से बहुत लाभ होता है। वात व्याधि वाले एकांग स्थान पर वायुनाशक तेल की मालिश कर ऊपर से इस रूई को बांधने से बहुत लाभ होता है।

46. वातगुल्म (पेट की गैस) : आक के पुष्पों की कलियां 20 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम इन दोनों को खूब बारीक पीस उसमें 50 ग्राम खांड मिलाकर रखें, 1-1 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ सेवन करें।

47. खाज (पामा, छाजन) :

  • आक के फूलों का गुच्छा तोड़ने पर जो दूध निकलता है उसमें नारियल का तेल मिलाकर लगाने से खुजली शीघ्र दूर होती है।
  • आक का दूध 100 मिलीलीटर, तिल या सरसों का तेल 400 मिलीलीटर, हल्दी चूर्ण 200 ग्राम और मैनसिल 15 ग्राम लें। सबसे पहले मैनसिल और हल्दी को खरल कर लें, फिर दूध मिलाकर लेप सा बना लें। अब इसमें तेल और 2 लीटर पानी मिलाकर तेल सिद्ध कर लें, इस तेल को लगाने से खाज, खुजली, पामा आदि चर्म रोग दूर होते हैं तथा बवासीर के मस्सों पर बराबर लगाने से वे सूखकर झड़ जाते हैं।
  • आक के पत्तों का रस 1 लीटर, हल्दी चूर्ण 50 ग्राम और सरसों तेल 500 मिलीलीटर धीमी अग्नि पर पकायें, तेल मात्र शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें। इसकी मालिश से खाज, खुजली आदि रोग नष्ट होते हैं। 2-4 बूंद कान में टपकाने से कान का दर्द भी मिटता है।
  • आक के ताजे पत्तों का रस 1 लीटर, गाय का दूध 2 लीटर, सफेद चंदन, लाल चंदन, हल्दी, सौंठ और सफेद जीरा 6-6 ग्राम इनका कल्क बनाकर 1 किलोग्राम घी में पकायें। घी मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें। इससे मालिश करने से खुजली-खाज आदि में लाभ होता है।
  • 10 मिलीलीटर आक के दूध को 50 मिलीलीटर सरसों के तेल में पकायें। तेल मात्र शेष रहने पर या दूध के जल जाने पर सुरक्षित रख लें। इस तेल की दिन में 2 बार मालिश करें और 3 घंटे तक स्नान न करें। कुछ दिनों में ही पूर्ण लाभ होता है।
  • आक के 21 पत्ते 125 मिलीलीटर सरसों के तेल में जलाकर फिर उसमें थोड़ा मैनसिल घोट कर रख लें। इसकी मालिश से भी उत्तम लाभ होता है।
  • इसका दूध छाया में सुखाकर व कड़वे तेल में मिलाकर जलाकर मालिश करने से खुजली आदि में लाभ होता है।

48. जख्म :

  • इसके 4 से 5 पत्तों को सुखाकर उनको कूट-छानकर खराब जख्मों पर बुरकने से दूषित मांस दूर होकर स्वस्थ मांस पैदा होता है।
  • श्वेत मदार की पांच ग्राम जड़ को 20 ग्राम नीबू के रस में लोहे की कुदाल पर घिसकर जख्म पर लेप कर देने से पुराने से पुराना जख्म भी समाप्त हो जाता है।
  • आक के जड़ों की पास की गीली मिट्टी लेकर उसकी टिकिया बना लें। इसके बाद इसे तेज दर्दयुक्त तथा कीड़े पड़े हुए जख्म पर बांध दें। इससे अंदर के कीड़े मर जाते हैं और जख्म धीरे-धीरे अच्छे हो जाते हैं।

49. चोट लगने से सूजन वाले घाव पर : आक की पत्ते रहित शाखा को कूटकर ऊपर का छिलका 40-50 ग्राम लेकर खूब रगड़ लें और टिकिया बनाकर कलछी में थोड़ा गर्मकर घाव के मुख पर बांध दें, 2-3 बार बांधने से पूर्ण लाभ होता है।

50. गलगंड, व्रणग्रंथि तथा नारू आदि पर :

  • आक के पत्तों का रस एक लीटर, कच्ची हल्दी का रस 125 मिलीलीटर और तिल का तेल 250 मिलीलीटर एकत्र मिलाकर पकावें। तेल मात्र शेष रहने पर छानकर रख लें, इसके प्रयोग से बिगड़े हुए फोड़े अच्छे हो जाते हैं। उपदंश के घाव पर यह योग उत्तम कार्य करता है।
  • आक की जड़ की छाल के 2-5 ग्राम महीन चूर्ण को घाव (जिस घाव से पीव निकलता रहता हो, अंदर सड़न होने से दुर्गन्ध आती हो) पर बुरकने से 2-4 दिन में सड़ा हुआ मांस निकलकर वह स्वस्थ हो जाता है। फिर कपूर राल, सिंदूर आदि का मलहम लगाने से वह शीघ्र भर जाता है।
  • 2 ग्राम मदार की जड़ के चूर्ण को 10 मिलीलीटर नारियल तेल या घी में मिलाकर लगाएं।
  • आक का दूध और गाय का घी बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्रण कर दिन में 2-4 बार लगाएं।

51. बंद ग्रंथि पर :

  • आक के दूध में सफेद उशारेबंद थोड़ा-थोड़ा मिलाकर दिन में 2-3 बार लेप करते रहने से 3-4 दिन में कच्ची गांठे बैठ जाती हैं।
  • आक के 2-2 पत्तों पर एरंड तेल चुपड़कर गर्म कर बांधने से बंद ग्रंथि बैठ जाती है।

52. नारू :

  • आक के 7 कोमल पत्ते और गुड़ 50 ग्राम दोनों को कूटकर जंगली बेर जैसी गोलियां बना लें। 1-1 गोली करके दिन में 3 बार पानी के साथ सेवन करायें।
  • आक के 8-10 फूलों को पीसकर उसकी पुल्टिस बांधने से या इसके दूध का लेप करने से नहरूवा निकल जाता है।

53. आग से जले हुए घाव पर :

  • आक की 3 ग्राम जलाई हुई रूई को 10 ग्राम तिल्ली के तेल में खरलकर 10 ग्राम निथरे हुए चूने के पानी में मिला दें। इसको घाव पर रखें या कपड़ा गीला कर रखें। यदि घाव में सूजन आ गई हो तो इस मिश्रण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम घोल कर पिला दें।
  • आक की जली हुई रूई बुरकने से भी लाभ होता है।

54. कुष्ठ (कोढ़):       

  • आक की सूखी हुई जड़ 2 ग्राम यवकूट कर 400 मिलीलीटर जल में पकाकर 50 मिलीलीटर शेष रहने पर सेवन करने से गलित कुष्ठ की शुरुआती अवस्था में जब हाथ-पैरों की अंगुलियां मोटी हो गई हो, कानों की बालियां बैडोल, नासिका का अग्रभाग लाल रंग, क्षत शरीर के किसी भी भाग में हो और वे ठीक न हो तब लाभकारी है। 
  • आक का दूध लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में नित्य शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें।
  • छाया में सूखी हुई आक की जड़ का बारीक चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, शुंठी चूर्ण 250 मिलीग्राम, शहद के साथ रोज 3 बार सेवन कराएं। साथ ही छाल को सिरके में पीसकर पतला-पतला लेप करते रहें, यह प्रयोग लम्बे समय तक करें।
  • छाया में सूखे आक के फूलों का बारीक चूर्ण बनाकर आधा ग्राम सुबह-शाम ताजे जल से सेवन करने से कुष्ठ में लाभ होता है। कोमल प्रकृति वालों को इसकी मात्रा कम लेनी चाहिए।
  • आक के 10-20 फलों को बिना आग में तपाये हुये मिट्टी के बर्तन में भरकर उसका मुंह बंद कर उपलों की आग में फूंक दें। ठंडा होने पर अंदर से राख को निकाल कर सरसों के तेल में मिलाकर लगायें। यह गलित कुष्ठ की प्रथम अवस्था में उपयोगी है।
  • आक के 20 मिलीलीटर दूध के साथ 5 ग्राम बावची और आधा ग्राम हरताल के चूर्ण को पीसकर लेप करें।
  • आक (मदार) की जड़ की छाल को छाया में सुखाकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसके लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग समाप्त हो जाता है।

55. कपाल कुष्ठ : आक के क्षार को ईख के रस के साथ मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

56. उदरशूल (पेट दर्द) :

  • आक के फूलों को सुखाकर, चूर्णकर आक के पत्ते के रस में 3 दिन खरलकर अजवायन, सौंफ, बराबर मात्रा में मिलाकर चने जैसी गोलियां बना लें, 2 गोली गर्म पानी के साथ निगलने से तेज से तेज पेट दर्द ठीक हो जाता है। यदि आराम न हो तो 2 गोलियां और दें।
  • आक के सूखे फूल 100 ग्राम और जड़ की छाल 50 ग्राम दोनों को खूब महीन पीसकर आक के पत्तों का रस मिलाकर और खरल कर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लें। 1 से 4 गोली सौंफ के रस या गर्म जल के साथ सेवन करने से पेट दर्द एवं वात सम्बन्धी रोग नष्ट होते हैं।
  • आक के फूल की लौंग लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग और मिश्री 25 ग्राम, दोनों को महीन पीस 1 गोली बना, गर्म जल से निगल लेने से पेट दर्द बंद हो जाता है।
  • पुराना अपचन या अजीर्ण रोग हो, दूषित डकारें आती हों, पेट में भारीपन हो, भोजन में अरुचि हो मलावरोध हो तो आक लवण का लगभग आधा ग्राम की मात्रा में सेवन लाभदायक है। आक के पत्तों में समान भाग सेंधानमक मिलाकर, दोनों को मिट्टी के बरतन में भरकर मुख बंदकर आग में फूक दें। ठंडा होने पर अंदर की औषधि को शीशी में भरकर रख लें। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सेवन कराएं।
  • आक की जड़ की ताजी छाल और अदरक 1-1 ग्राम, कालीमिर्च और सेंधानमक 5-5 ग्राम सबको महीन पीसकर मटर जैसी गोलियां बनाकर, छाया में सुखा लें। इसकी 1 या 2 गोली पुदीना के रस के साथ दें।
  • पेट में जहां तेज दर्द हो, उस स्थान पर आक के 2-4 पत्तों पर पुराना घी चुपड़कर और गर्म करके रखें, और थोड़ी देर के लिए वस्त्र से बांध दें।        

57. संवेदन शून्यता (किसी अंग का सुन्न पड़ जाना) :

  • आक के 8-10 पत्तों को 250 मिलीलीटर तेल में तलकर, तेल की मालिश करनी चाहिए लाभ होगा।
  • आक के दूध को कांच या चीनी के बर्तन में रख लें फिर उसमें माल कांगनी का तेल मिलाकर मालिश करें। इससे  अर्धांगवात (शरीर के आधेभाग पर लकवा होना), अर्दित (एक प्रकार का रोग है, जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता है) सुन्नपन आदि में विशेष लाभ होता है।

58. ज्वर (बुखार) :

  • आक की नई कोपल डेढ़ पीस, आक के फूल की बंद कली 1 पीस दोनों को गुड़ में लपेटकर गोली बना लें। इसे बुखार की तेजी के 2 घंटे पूर्व सेवन कराने से बुखार की तीव्रता खत्म हो जाती है।
  • आक की जड़ को छाया में सुखाकर उसकी छाल का महीन चूर्ण 10 ग्राम और कालीमिर्च 10 ग्राम दोनों को गाय के दूध में खरलकर चने जैसी गोलियां बनाकर रखें, ज्वर वेग से लगभग 1-2 घंटे पहले 1 या 2 गोली पानी से खिलाऐं।
  • आक का दूध 10 ग्राम और मिश्री 100 ग्राम दोनों को 12 घंटे खरलकर शीशी में भरकर रखें, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक गर्म पानी के साथ सेवन करने से लाभ होता है। यह मलेरिया ज्वर के लिए कुनैन से भी बढ़कर लाभकारी है। इससे ज्वर की बारी रुकती है तथा चढ़ा हुआ ज्वर उतरता है।
  • आक की जड़ की छाल की राख 10 ग्राम, शक्कर 60 ग्राम दोनों को भली प्रकार मिला लें। बुखार की तेजी से 2 घंटे पूर्व लगभग आधा से एक ग्राम तक ताजे जल के साथ सेवन करें।
  • आक के पीले पत्तों को कोयलों की आग पर जला भस्म करें, यह भाग लगभग आधा ग्राम शहद के साथ चटायें।
  • आक का दूध 4 बूंद, कच्चे पपीते का रस 10 बूंद और चिरायते का रस 15 बूंद मिश्रण को दिन में 3 बार गौमूत्र से सेवन करने पर 3 दिन में ही बिगड़ा हुआ मलेरिया ठीक हो जाता है।
  • आक के मूल (जड़) का काढ़ा बना लें। उस काढ़े को छानकर उसमें 3 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से बुखार समाप्त होता है।
  • आक की जड़ की छाल का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खाने से पसीना आकर बुखार उतर जाता है।

59. डब्बा रोग :मदार के पत्ते का रस 10 बूंद तक उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सेंधानमक मिलाकर पिला देने से उल्टी-दस्त होकर बालकों का डब्बा रोग शीघ्र शांत हो जाता है।

60. ततैया :

  • आक के पत्तों के पीछे जो खार की तरह सफेदी जमी होती है, उस पर मैदा या आटे की लोई घुमाकर उतार लें तथा लोई की कालीमिर्च जैसी गोलियां बना लें। खाली पेट सुबह-शाम 1-1 गोली निगलकर थोड़ा घी और शक्कर खिलाएं।
  • आक की जड़ के लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग छाल चूर्ण में, 2 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम 40 दिन तक सेवन करायें। प्रत्येक आठवें दिन जुलाब देते रहें। तेल खटाई आदि वातकारक पदार्थों से परहेज करें।

61. स्थावर विष : लगभग 2-3 ग्राम आक की जड़ को ठंडे पानी के साथ घिसकर दिन में 3-4 बार पिलाएं।

62. पारे के विष पर : आक की लकड़ी का कोयला समभाग मिश्री के साथ पीसकर 6 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से शरीर में रुका हुआ कच्चा पारा पेशाब के रास्ते निकल जाता है।

63. ब्रोंकाइटिस (श्वासनली की सूजन) : आक (मदार) की जड़ के छाल का बारीक चूर्ण 20 ग्राम, सेंधानमक 70 ग्राम मिलाकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। इस चूर्ण में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) ठीक हो जाती है।

64. दमा :

  • आक (मदार) की जड़ की छाल का चूर्ण 20 ग्राम, अफीम 10 ग्राम, सेंधानमक 70 ग्राम के मिश्रित चूर्ण में से लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम सुबह-शाम लेने से दमा में पर्याप्त लाभ मिलता है।
  • आक (मदार) के फूलों को राब में उबालकर लगभग 120 से 360 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।    
  • आक (मदार) के पत्ते और कालानमक 250 ग्राम कूट-पीसकर मिट्टी के बर्तन में रखकर फूंक दें। भस्म होने पर अदरक के रस के साथ लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खाने से खांसी और दमा मिट जाता है। 
  • 10 ग्राम आक की कोपलें, 10 ग्राम अजवाइन तथा 50 ग्राम गुड़। इन सभी को बारीक पीसकर चने के बराबर आकार की गोलियां बना लेते हैं। सुबह-शाम इसकी 1-1 गोली का सेवन करना चाहिए।
  • आक (मदार) की जड़ 10 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम, गुड़ 20 ग्राम। इन सभी का चूर्ण बराबर की मात्रा में लेकर छोटे बेर के बराबर आकार की गोलियां बना लें। प्रतिदिन सुबह-शाम 1-1 गोली का सेवन करने से श्वास रोग नष्ट हो जाता है।
  • 25 ग्राम आक की कोपलें और देशी अजवाइन, 50 ग्राम गुड़ में कूट-पीसकर गोलियां बना लेते हैं। सुबह-शाम 1-1 गोली गर्म पानी से लेना चाहिए।
  • आक का पत्ता और 5 दाने कालीमिर्च अच्छी तरह पीसकर मटर के बराबर की गोलियां बना लेते हैं। कुल 7 दिनों तक खाना चाहिए। इससे दमा नष्ट हो जाता है।     
  • 2 ग्राम गुड़ में आक की 5 बूंदें टपकाकर सुबह निगल जाएं। सर्दी व बरसात में शाम को भी इसकी एक मात्रा लेनी चाहिए। इससे 1 सप्ताह में ही आराम मिल जाता है।
  • मदार के पत्ते जो पेड़ से पीले होकर गिर पड़े हों उन्हें 300 ग्राम की मात्रा में एकत्र कर लेते हैं। इसके बाद चूना 10 ग्राम, सांभर नमक 10 ग्राम पीसकर उन पत्तों पर लगाकर सुखा लेते हैं। फिर मिट्टी के बर्तन में रखकर उपलों की आग में जलाते हैं। जब यह राख हो जाए तो तब लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में पान रखकर सेवन करें। दूध, दही, खटाई तथा लालमिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • आक के नर्म-नर्म पत्तों का रस निकालकर, उसमें जौ भिगोकर सुखा लेते हैं। उससे सत्तू बनाते हैं। शहद के साथ इस सत्तू को खाते रहना चाहिए।
  • आक की बिना खिली हुई कली 2 ग्राम, छोटी पीपल 1 ग्राम और लाहौरी नमक 1 ग्राम तीनों को पीसकर मटर के बराबर आकार की गोलियां बना लें। इसे खाने से दमा नष्ट हो जाता है।
  • आक के कोमल पत्तों का रस निकालकर उस रस में जौ को भिगोकर सुखा लेते हैं। फिर इस जौ का सत्तू बनाकर रख लेते हैं इस सत्तू की 1 छोटी चम्मच मात्रा शहद के साथ प्रतिदिन 1 बार खाते रहने से श्वास रोग मिट जाता है।
  • आक की जड़ एवं पत्तों का चूर्ण बराबर की मात्रा में मिलाकर उसमें एक चौथाई मात्रा में कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें। इस मिश्रण को एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक हफ्ते तक सेवन करने से दमें में बहुत लाभ होगा।

65. मलेरिया का बुखार :

  • आक के थोड़े-से पत्तों पर नमक लगाकर उन्हें जलाकर राख बना लें। इस बनी राख की 2 चुटकी की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।
  • आक की जड़ की छाल आधा ग्राम को सुबह और शाम पान में डालकर सेवन करने से मलेरिया के बुखार में राहत मिलती है।

66. खांसी:

  • आक के फूलों की लौंग निकालकर उसमें सेंधानमक और पीपल मिलाकर, बारीक पीसकर छोटी-छोटी गोलियां बना लेते हैं। इन गोलियों को छाया में सुखाकर शीशी में भरकर रख देते हैं। इन गोलियों को लगातार मुंह में रखकर चूसने से खांसी बंद हो जाती है।
  • आक (मदार) के फूलों के रस को उबालकर 12 से 36 मिलीलीटर की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से खांसी ठीक हो जाती है।
  • आक (मदार) की जड़ और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीसकर चने के बराबर आकार की गोलियां बना लेते हैं। इन गोलियों को मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी के रोग में लाभ होता है।
  • 15 ग्राम आक (मदार) की कोपले (मुलायम पत्तिया), 10 ग्राम देशी अजवायन को बारीक पीसकर इसमें 25 ग्राम गुड़ मिलाकर पीस लेते हैं तथा इसकी 2-2 ग्राम की गोलियां बना लेते हैं। यह 1 गोली सुबह खाली पेट खाने से सांस का रोग दूर हो जाता है।
  • 20 ग्राम आक की मुंह बंद हुई कली 10 ग्राम पीपल, 10 ग्राम कालानमक को पीसकर छोटे बेर के आकार की छोटी-छोटी गोलियां बना लेते हैं। सुबह-शाम 1-1 गोली गर्म दूध के साथ खाने से श्वास रोग दूर हो जाता है।
  • आक के पत्तों के रस में नमक डालकर देना चाहिए। छोटे बच्चों को भी एक चम्मच आक के पत्तों के रस में राई के बराबर नमक डालकर पिलाने से कफ, श्वास और पेट फूलना आदि विकार दूर होते हैं। आक की जड़ का काढ़ा भी खांसी के लिए उपयोगी है।

67. काली खांसी : आक (मदार) के फूल को हंडिया में भरकर उसका मुंह कपड़े से बांधकर उसके ऊपर मिट्टी भरकर उसे भट्टी में रखकर भस्म कर देते हैं। इस राख को शीशी में भरकर रख लेते हैं। इस राख को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शहद के साथ दिन में 3-4 बार रोगी को देने से कुछ ही दिनों में खांसी ठीक हो जाती है।

68. दांतों में कीड़े लगना : दांतों में कीड़े लग जाने से बने गड्ढ़े में आक (मदार) के दूध में रूई को भिगोकर रखें। इससे कीड़े खत्म होते हैं।

69. अफारा (गैस का बनना) : आक के पत्तों में एरंड का तेल लगाकर गर्म करके पेट पर बांधने से शौच (ट्टटी) खुलकर आने लगती है और पेट साफ हो जाता है।

70. सीने के दर्द में लाभकारी :

  • जाड़े के मौसम में मदार की कोपलें पानी में घिसकर इस तरीके से खायें कि तीन दिन तक 1 कोंपल फिर चालिस दिन आधी-आधी कोपल खाएं फिर इसे कम करते जाएं। यह सीने के दर्द में लाभकारी होता है।
  • मदार का पत्ता, कालीमिर्च दोनों को पीसकर गोली बनाकर 5 दिनों तक खाने से सीने का दर्द समाप्त हो जाता है।

71. कब्ज (कोष्ठबद्धता) :

  • आक की जड़ को छाया में सुखाकर पीस लें। फिर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग आधा ग्राम तक खुराक के रूप में खाकर, ऊपर से दूध पी लें। इसके सेवन से वायु के गोले नष्ट होते हैं।
  • आक के पत्ते को पेट पर बांधने से पेट साफ हो जाता है।

72. मुंह के छाले : आक के दूध को शहद में मिलाकर मुखपाक (छाले) में लगाने से रोग में आराम मिलता है।

73. उल्टी कराने वाली औषधियां :

  • लगभग आधा ग्राम तक आक (मदार) की जड़ की छाल का चूर्ण रोगी को देने से 1 घंटे के अंदर ही उल्टी होने लगती है। कभी-कभी उल्टी होने के साथ ही दस्त भी होने लगते हैं।
  • 20 ग्राम कण्डे (उपले) की राख को आक (मदार) के दूध में मिला लें। जब राख पूरी तरह से सूख जाये तो इस राख को छानकर नाक से सूंघने से छींके आने लगती हैं और बंद जुकाम खुल जाता है।

74. आमातिसार : आक की जड़ की छाल का चूर्ण 30 ग्राम और 30 ग्राम अफीम को बराबर मात्रा में सेवन करने से आमातिसार समाप्त हो जाता है।

75. कान का दर्द :

  • कौड़ी को आक (मदार) के दूध के साथ पीसकर राख बना लें। यह राख लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कान के अंदर डालकर उसके ऊपर से 4-5 बूंदे नींबू के रस की भी डालने से कान का बहुत तेज दर्द भी ठीक हो जाता है।
  • आक (मदार) के पत्तों के रस को गर्म करके कान में बूंद-बूंद करके डालने से भी कान का दर्द दूर हो जाता है।
  • आक (मदार) के पीले पत्तों के ऊपर घी लगाकर गर्म कर लें। इस रस को कान में डालने से कान के दर्द में लाभ होता है।
  • आक (मदार) के पत्तों का रस, मूली का रस और सरसों के तेल को एक साथ मिलाकर पकाने के लिए आग पर रख देते हैं। जब पकने के बाद बस तेल ही बाकी रह जाये तो इसे उतारकर कान में डालने से कान का दर्द और खुजली ठीक हो जाती है।

76. बहरापन :

  • आक (मदार) के पत्तों पर घी लगाकर आग में गर्म करके उसका रस निचोड़ लें। इस रस को हल्का सा गर्म करके रोजाना कान में डालने से कान का बहरापन ठीक हो जाता है।
  • 20 ग्राम आक (मदार) के सूखे पत्तों को लेकर उनके ऊपर गाय के पेशाब की छींटे मार दें। इसके बाद इन पत्तों को पीसकर चटनी बना लें। इस चटनी को थोड़े से सरसों के तेल में भून लें। फिर इस तेल को छानकर किसी साफ शीशी में भर लें। इस तेल की 2-2 बूंदे रोजाना दोनों कानों में डालने से बहरापन ठीक हो जाता है।

77. कान के बाहर की फुंसियां : आक (मदार) की जड़ की छाल को पीसकर लगाने से कान की फुंसियां ठीक हो जाती हैं।

78. कान में आवाज होना : आक (मदार) के पीले पत्ते, अजवायन, लहसुन और अपामार्ग (चिरचिटा) के पंचाग को पकाकर बने हुऐ तेल को कान में डालने से कान में अजीब सी आवाजें सुनाई देना, कान में दर्द होना और कान से बिल्कुल न सुनाई देना (बहरापन) जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

79. पक्षाघात-लकवा : सरसों के तेल में आक के पत्तों को पकायें और इस तेल से पक्षाघात-लकवा-फालिस फेसियल, परालिसिस के भाग पर मालिश करने से लकवा में आराम मिलता है।

80. घाव :

  • खून के खराब होने से, कुष्ठ या गर्मी से होने वाले घाव हो तो आक की जड़ की छाल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह-शाम लेने से घाव और उसके मूलदोष अवश्य खत्म हो जाते हैं।
  • पुराने से पुराने घाव पर आक के पत्तों का चूर्ण डालने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
  • घाव से खून के बहने पर आक की रूई बहुत लाभकारी है जो घाव या जख्म असाध्य हो, अर्थात किसी भी प्रकार से न भरता हो, उसमें इस रूई को रखकर बांध देना चाहिए तथा प्रतिदिन घाव को साफ कर रूई को बदलते रहने से थोड़े ही दिनों में वह भर जाता है। जिस जख्म या घाव से खून बह रहा हो, उस पर इस रूई को रखकर बांध देने से खून का बहना शीघ्र ही बंद जाता है। ताजी रूई अधिक लाभकारी होती है।

81. दर्द व सूजन :

  • आक के दूध में नमक मिलाकर पतला लेप बना लें। इस लेप को चोट, मोच का दर्द और सूजन पर लगाने से लाभ मिलता है। इसका मोटा लेप न करें वरना जलन होकर फोड़े भी हो सकते हैं।
  • आक के पत्तों पर एरंड का तेल गर्मकर दर्दयुक्त सूजन पर बांधने से दर्द और सूजन दोनों दूर हो जाते हैं।
  • आक के पत्तों को तेल में उबालकर चोट आदि के दर्द पर मालिश करने से आराम होता है।

82. पित्त ज्वर : आक की जड़ के चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खाने से पसीना आकर बुखार उतर जाता है।

83. गिल्टी (ट्यूमर) :                    

  • आक की जड़ की छाल लगभग 2 ग्राम रोजाना सुबह-शाम देने से गिल्टी रोग में लाभ होता है।
  • आक के पत्तों में एरंडी का तेल लगा करके गिल्टी पर बांधने से रोग ठीक होता है।

84. जुकाम : आक (मदार) के पत्तों के ऊपर सरसों का तेल लगाकर हल्का सा गर्म करके छाती के ऊपर बांधने से जुकाम और खांसी ठीक हो जाती है।

85. जनेऊ (हर्पिस) : आक (मदार) की जड़ की छाल को पीसकर दानों पर लगाने से बहुत आराम मिलता है।

86. प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :

  • आक (मदार) की जड़ की छाल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सुबह और शाम को प्रयोग में लेने से तिल्ली की वृद्धि तथा इससे होने वाले अन्य रोग भी खत्म हो जाते हैं।
  • लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग आक के दूध में बताशे डालकर रोजाना सुबह खाने से तिल्ली से उत्पन्न होने वाले सभी रोगों में लाभ प्राप्त होता है।

87. नाक के रोग :

  • चूल्हे की राख में 2 बूंद आक (मदार) का दूध मिलाकर नाक से सूंघने से छींके आने लगती हैं। अगर छींके बंद करनी हो तो एक लोटा पानी लेकर नाक और गले को अच्छी तरह से साफ कर लें। छींके आना बंद हो जायेंगी।
  • लगभग 20 ग्राम आक (मदार) की जड़ की छाल का चूर्ण, 10 ग्राम अफीम और 70 ग्राम सेंधानमक को एक साथ मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम तक लेकर सेवन करने से जुकाम का रोग ठीक हो जाता है।

88. अरुंषिका (वराही) : सिर पर आक (मदार) का दूध लगाने से अरुंषिका से पैदा होने वाली जलन और खुजली खत्म हो जाती है।

89. गठिया रोग :

  • आक के दूध में नमक डालकर पतला लेप करने से गठिया की सूजन व दर्द दूर हो जाती है। 
  • आक या एरंड के पत्तों पर तेल लगाकर हल्का-हल्का गर्म करके दर्द वाले स्थान पर सेकने से लाभ मिलता है।
  • आक के पत्तों में पेट्रोल लगाकर बांधने से जोड़ों के दर्द में लाभ मिलता है।
  • आक (मदार) के फूलों को उबालकर जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ मिलता है।

90. एक्जिमा : 10 ग्राम आक (मदार) के दूध को 50 मिलीलीटर सरसो के तेल में पकाकर रखें। इस मिश्रण को एक्जिमा पर लगाने से यह रोग समाप्त हो जाता है।

91. उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना) :

  • आक की जड़, असगंध, पोस्त के डोडे, लहसुन, कालीमिर्च, काला जीरा, सहजन की छाल, जयन्ती के पत्ते तथा सरसों- इन सब को गाय के पेशाब में पीसकर और गर्म करके जांघों पर लेप करें।
  • आक की जड़ को घिसकर लेप करें।

92. टी.बी : आक की कली पहले दिन एक निगलें, दूसरे दिन दो तथा तीसरे दिन तीन, इसके बाद 15-20 दिन तक 3-3 कली नियमित खाते रहे तो टी.बी. रोग नष्ट हो जायेगा।

93. दाद :

  • आक (मदार) के दूध को हल्दी के साथ तिल के तेल में उबालकर दाद में या एक्जिमा में लेप करने से लाभ होता है।
  • आक (मदार) के फूल और पंवाड़ के बीज को पीसकर खट्टे दही में मिलाकर लेप करने से दाद में लाभ होता है।
  • दाद को खुजलाकर उस पर आक (मदार) की जड़ की छाल को पीसकर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  • आक (मदार) पुराने दाद को ठीक करने के लिए पहले दाद को किसी कपड़े से रगड़ लें, फिर दाद पर आक (मदार) का दूध लगा दें। इसे लगाने से बहुत जलन होती है, लेकिन एक बार में ही लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  • आक के दूध में बराबर मात्रा में शहद मिलाकर लगाने से दाद शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।
  • आक की जड़ का चूर्ण दो ग्राम को दो चम्मच दही में पीसकर लगाते रहने से भी दाद में लाभ होता है।

94. खून में पीव आना (प्याएमिया) : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मदार की जड़ की छाल का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से खून शुद्ध हो जाता है।

95. सिर का दर्द :

  • आक के पत्तों को गर्म करके सिर पर बांधने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
  • आक की रूई से भरे हुए तकिये को सिर के नीचे लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है।
  • सिर का दर्द होने पर मदार की जड़ को पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  • 2 या 3 बूंद मदार के पत्तों का रस नाक के नथुनों में डालने से पुराने से पुराना सिर का दर्द ठीक हो जाता है।

96. बच्चों की आंखों की पलकों का गिरना : आक (मदार) के दूध में रूई को भिगोकर छाया में सुखा लें और चमेली के तेल में बत्ती बनाकर उसे जलाकर और उसका काजल बनाकर आंख में लगाने से पलकें नहीं गिरती हैं।सावधानी : आंख में इसका दूध नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम काफी भंयकर हो सकता है।

97. सौंदर्यप्रसाधन : आक (मदार) के दूध में हल्दी पीसकर चेहरे पर लगाने से नयी या पुरानी झांईयां समाप्त हो जाती हैं।

98. कण्ठमाला : आक (मदार) की जड़ की छाल (खाल) को पीसकर बकरी के दूध में मिलाकर गर्म-गर्म लगाने से कण्ठमाला की गांठे बैठ जाती हैं या पक जाती हैं।

99. शरीर का शक्तिशाली होना : आक के फूलों की मींगी 3 ग्राम की मात्रा में लेकर दूध के साथ लेने से शरीर शक्तिशाली बनता है।

आक का हानिकारक प्रभाव (Aak ke Dushparinam in Hindi)

आक का पौधा विषैला होता है। आक की जड़ की छाल अधिक मात्रा में प्रयोग करने से आमाशय और आंतों में जलन उत्पन्न होकर जी मिचलाहट यहां तक कि उल्टी भी होने लगती है इसका ताजा दूध अधिक मात्रा में देने से विष का कार्य करता है। अत: प्रयोग में मात्रा का विशेष ध्यान रखें।

आंख में इसका दूध नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा इसका परिणाम काफी भंयकर हो सकता है।

Read the English translation of this article hereAak, Madar (Calotropis gigantea): 99 Medicinal Uses and Health Benefits

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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