Last Updated on September 20, 2024 by admin
कुलथी दाल क्या है ? : Kulthi Dal in Hindi
जिस प्रकार तृण धान्यों में कोहो हैं, उसी प्रकार द्विदल धान्यों में कुलथी सबसे हल्की मानी जाती है। कुलथी गरीब वर्ग का धान्य है। इसके पौधे लगभग डेढ़ से दो फुट की ऊँचाई वाले होते हैं और जमीन पर फैलते हैं। यह देखने में उड़द के पौधों के समान होते हैं और इनके पत्ते भी अंशतः उड़द के पत्तों से ही मिलते-जुलते होते हैं ।
कुलथी दाल के प्रकार :
कुलथी 3 प्रकार की होती है-1. लाल, 2. सफेद और 3. काली ।
कुलथी की काली किस्म क्वचित ही पाई जाती है, जबकि तीनों किस्मों में काली किस्म उत्तम मानी जाती है।
कुलथी दाल कहां उगाई जाती है ? :
कुलथी अपने देश में उड़ीसा और कटक में अधिक होती है। इसकी दाल अन्य दालों की अपेक्षा कुछ सस्ती होती है और यह बहुत ही स्वादिष्ट और रुचिकर लगती है।
औषधि के रूप में इसका उपयोग होता है। इसका लैटिन नाम ‘एटाइलोसिया स्केरेबिओईडिस है । कुलथी या कुलथा प्रायः पन्सारियों की दुकानों पर मिलती है।
कुलथी दाल के औषधीय गुण : Kulthi Dal ke Gun in Hindi
- कुलथी पाक में तीखी, कसैली, पित्त तथा रक्त विकार करने वाली लघु (हल्की), दाहकारक, उष्ण वीर्य और पसीना अवरोधक है।
- यह श्वास, कफ, खाँसी, वायु, हिचकी, पथरी, वीर्यदोष, आँखों का फूलना, जुकाम, मेद, ज्वर आदि में लाभप्रद है।
- कुलथी का विशेष गुण मूत्रल, स्वेदहर और अश्मरीहर है।
- कुलथी का उपयोग, धातु-उपधातु के शोधन व औषध के रूप में होता है। धातुओं के शोधन में इसका उपयोग बहुत होता है ।
- कुलथी सामान्यतः उदर रोग, अतिसार, हिक्का, श्वास, कास, अश्मरी, अनाह, दृष्टि रोग, गुल्म, ज्वर, शुक्र, मेद, कृमि तथा शोथ का नाश करती है।
- वायु रोग के कारण पेशाब रुक-रुककर आता हो अथवा मूत्र मार्ग में पथरी या रेती हो तो कुलथी की चाय बनाकर, उसमें मूत्रल औषधि मिलाकर देने से इसका शीघ्र निष्कासन होता है।
- व्यक्ति यदि ठण्डी के कारण शीतलता से ग्रस्त हो तो पसीना रोककर गर्मी लाने के लिए शरीर पर कुलथी का चूर्ण मला जाता है।
- स्त्रियों के आर्त्तवदोष, प्रसूति के समय तथा असमय के गर्भस्राव में गर्भाशय की शुद्धि के लिए 5-7 दिनों तक कुलथी का काढ़ा देने से बहुत लाभ होता है।
- यदि प्रसूता स्त्री को उचित मात्रा में रक्तस्त्राव न होता हो तो उसे कुलथी का क्वाथ दिया जाता है। विशेषतः प्रसूता को 2-4 सप्ताह तक कुलथी का क्वाथ सेवन कराना हितकारक माना जाता है। 10-पथरी की शिकायत में कुलथी बहुत ही उपयोगी है।
- आयुर्वेदाचार्य स्वेदाधिक्य वाले रोगियों के शरीर पर सेंकी हुई कुलथी का आटा मलने हेतु निर्देशित करते हैं।
- कुलथी मेद वाले व्यक्तियों के लिए कुलथी के आटे की कॉजी हितकारी है।
- हृदय की गति अनियमित हो अथवा कभी हृदय रोग का हृदय चौड़ा हो जाए तब ऐसे जीर्ण रोग में कुलथी की कॉजी लाभकारी मानी जाती है।
- कुलथी को उबालकर पानी निकालकर फिर पुनः उबालकर उसका सार निकाला जाता है। इसे ‘काठ’ कहते हैं। वायु-विकार न हो इसलिए यह सार रोगी को चावल के साथ खिलाया जाता है।
- कुलथी सामान्यतः रोगी व निरोगी सभी को निर्भयता के साथ दी जा सकती है। इसके सेवन से कोई हानि नहीं होती ।
- कुलथी घोड़ों तथा दुधारू मवेशियों को भी खिलाई जाती है ।
यूनानी मतानुसार कुलथी दाल के लाभ :
कुलथी मधुर, मूत्रल, क्षुधाबर्धक, वृक्काश्मरी-भेदक, कफघ्न, चक्षुविकार नाशक, अर्शहर, प्लीहा वृद्धि को दूर करने वाली तथा स्त्रियों के मासिक धर्म को शुद्ध करने वाली है। पित्त वृद्धि से उत्पन्न यकृत-विकारों में भी यह लाभप्रद है।
वैज्ञानिक मतानुसार कुलथी दाल के लाभ :
कुलथी में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लौह, फॉस्फोरस और विटामिन ‘ए’ तथा ‘बी’ है।
कुलथी दाल के फायदे और उपयोग : Kulthi Dal ke Fayde in Hindi
1. गुर्दे, मूत्राशय की पथरी :
- कुलथी को साफ करके 200 ग्राम कुलथी को 3 सेर पानी में रात्रि को भिगो दें तथा प्रातः काल के समय उबालें । जब 1 किलो पानी शेष रह जाए तब उसे छानकर नमक, कालीमिर्च, जीरा, हल्दी और शुद्ध घी से छौंक लें । अन्य कोई भी चीज स्वादानुसार भी डाल सकते हैं। इसे एक बार प्रतिदिन पीते रहने से गुर्दे (वृक) मूत्राशय की पथरी बिना ऑपरेशन बाहर आ जाती है । जब तक पथरी न निकले । यह प्रयोग निरन्तर जारी रखें । अधिक दिनों तक सेवन करने से कोई हानि नहीं होती ।
- कुलथी, पाषाणभेद और गोखरू का क्वाथ बनाकर पीने से भी पथरी रोग मिटता है ।
- 40 से 50 ग्राम काली कुलथी रात में 16 गुना पानी में भिगोकर रखें और सुबह के समय खूब मसलकर कपड़े से छानकर 2-4 महीनों तक निरन्तर सेवन करने से पथरी निश्चित रूप से दूर होती है।
- कुलथी का काढ़ा बनाकर उसमें शरपंख का चूर्ण व 2 माशे सैंधानमक मिलाकर पीने से भी पथरी मिटती है। ( और पढ़े – पथरी के सबसे असरकारक 34 घरेलु उपचार)
2. श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया): 100 ग्राम कुल्थी को 1 लीटर पानी में उबालें और फिर पानी थोड़ा बचने पर छानकर पीएं। इसका प्रयोग सुबह-शाम करने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है।
3. अतिसार: कुल्थी के पत्तों रस 10 मिलीलीटर और 250 ग्राम कत्था मिलाकर दिन में 3 से 4 बार सेवन करने से दस्त का बार-बार आना बंद होता है। ( और पढ़े – दस्त रोकने के 33 घरेलु उपाय)
4. दर्द: कुल्थी का काढ़ा बनाकर उसमें हींग, बीड़ लवण और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पीने से सभी प्रकार का दर्द ठीक होता है।
5. पेट का दर्द: कुल्थी को सब्जी बनाकर खाने से पेट का दर्द ठीक होता है।
6. बवासीर: कुल्थी की दाल खाने से सूखी बवासीर खत्म होती है। ( और पढ़े –बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार)
7. गांठें या गिल्टी: कुल्थी और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से गांठे व गिल्टी समाप्त होती हैं।
8. पसीना ज्यादा आना: कुल्थी को भूनकर चूर्ण बना लें और यह शरीर पर मलें। इससे पसीना अधिक आना बंद होता है।
9. मोटापा: नियमित 100 ग्राम कुल्थी की दाल को खाने से मोटापा कम होता है। ( और पढ़े – तेजी से वजन कम करने के 15 उपाय )
10. दमा या श्वास:
- कुल्थी को उबालकर पीने से सांस सम्बंधी रोग समाप्त होते हैं।
- कुल्थी की सब्जी बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से श्वास (दमा) की बीमारी नष्ट होती है। इस सब्जी का सेवन तीन महीने तक लगातार करना चाहिए।
11. गैस्ट्रिक (अल्सर): सुबह एक मिट्टी के बर्तन में 50 ग्राम कुल्थी की दाल को 250 मिलीलीटर पानी में भिगोकर रख दें और शाम को यह पानी पीएं। इस तरह लगातार 1 से 2 महीने तक कुल्थी की पानी पीने से गैस्ट्रिक (अन्सर) दूर होता है।
12. पेट में गैस बनना:
- वायु रोग से पीड़ित रोगी को कुल्थी का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए। यह पेट में बनने वाले गैस को समाप्त करता है।
- कुल्थी की दाल 10 ग्राम और गोखरू 10 ग्राम को मिलाकर कूट लें तथा 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बनाएं। एक चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर आधा ग्राम शिलाजीत के साथ मिलाकर दिन में 3 बार पीएं। इससे पेट की गैस खत्म होती है।
13. हिचकी का रोग: कुल्थी के दाल का पानी पीने से हिचकी में लाभ होता है।
14. गुर्दे के रोग: 250 ग्राम कुल्थी कंकड़ पत्थर निकालकर साफ कर लें और रात में 3 किलों पानी में भिगो दें। फिर सवेरे भीगी हुई कुल्थी सहित उसी पानी को धीमी-धीमी आग पर लगभग चार घंटे पकाएं और जब एक किलो पानी रह जाए तब नीचे उतार लें। फिर इसमें 5 ग्राम देशी घी का छौंका लगाकर सेंधानमक, कालीमिर्च, जीरा, हल्दी डालकर भोजन के बाद सेवन करें।
15. मूत्र रोग: 250 ग्राम कुल्थी को 3 लीटर पानी में रात को सोते समय भिगो दें। सुबह उस पानी को उबालें और छान कर नमक, कालीमिर्च, जीरा, हल्दी तथा शुद्ध घी का छौंककर पीएं। इस तरह काढ़ा बनाकर प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से पेशाब की जलन, पेशाब का धीरे-धीरे आना खत्म हो जाता है।
16. जलोदर (पेट में पानी भरना): कुल्थी की दाल या कुल्थी को भिगोया हुआ पानी पीने से पेट में पानी का भरना ठीक होता है।
17. पेट का दर्द: कुलथी के बने काढ़े में सोंठ, पीपल का चूर्ण और कालीमिर्च को मिलाकर पीने से `कफोदर´ यानी कफ के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
18. हृदय रोग: कुल्थी भिगोकर पानी को छानकर सुबह-शाम पीने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ मिलता है।
19. वातज्वर: 60 ग्राम कुल्थी को 1 लीटर पानी में उबालें। जब यह उबलते-उबलते थोड़ा बच जाए तो इसे छानकर थोड़ा सेंधानमक व आधा चम्मच पिसी हुई सोंठ मिलाकर वातज्वर से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इससे वातज्वर ठीक होता है।
कुलथी दाल के नुकसान : kulthi dal ke nuksan
कुलथी पित्तकारक, विदाही और तीक्ष्ण है । अतः सगर्भा स्त्रियों एवं रक्तपित्त वालों और क्षय रोगियों को इसका सेवन वर्जित है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।