अमलतास के 87 दिव्य फायदे, गुण, उपयोग और दुष्प्रभाव : Amaltas ke Fayde aur Upyog in Hindi

Last Updated on May 25, 2024 by admin

अमलतास क्या है ? : Amaltas in Hindi

अमलतास मध्यम आकार का लगभग 20 से 30 फीट ऊंचाई वाला चारों ओर फैला हुआ सुन्दर सुनहरे पुष्प वाला वृक्ष होता है। यह भारत वर्ष में सभी जगह पाया जाता है। मार्च अप्रेल यानी बसन्त ऋतु में पतझड़ के बाद नई पत्तियां और पुष्प लगभग साथ में ही निकलते हैं। पत्ते दो इंच लम्बे संयुक्त होकर एक फीट लम्बे होते हैं।

शाखाओं के आगे के भाग में पत्तों जितने लम्बे नीचे लटकते हुए दो ढाई इंच व्यास के पीले सुनहरे चमकीले पुष्प होते हैं। एक साथ फैले हुए अनेक संख्या में होने से वृक्ष दूर से ही सुन्दर दिखलाई देता है। इसकी फली 1-2 फुट लम्बी बेलनाकार कठोर आगे से नुकीली 1 इंच व्यास की होती है जो कच्ची अवस्था में हरी और पकने पर लाल-काली हो जाती है जो कि ठण्डे के मौसम में पकती है।

फली बाहर से चिकनी होती है तथा छोटे छोटे 25 से 100 तक की संख्या में चपटे गोल, पतले पीले रंग के बीजों द्वारा विभक्त रहती है। दो बीजों के बीच में काले रंग का हल्का चिपचिपा गोंद के समान लसदार फलमज्जा या गीर होती है। इस फल मज्जा का ही सर्वाधिक औषधीय प्रयोग होता है। यह मज्जा सूख कर काली हो जाती है।

अमलतास का विभिन्न भाषाओं में नाम :

  • संस्कृत – आरग्वध (रोगों को नष्ट करने वाला), राजवृक्ष (सुन्दर वृक्ष), सुवर्णक (सुन्दर रंग का), दीर्घफल (लम्बे फल वाला), शम्पाक,आखेत, स्वर्णभूषण (सूनहरे फूलों वाला) ।
  • हिन्दी – अमलतास, सियरलाठी, धनबहेड़ा, वानर ककड़ी, किरमाला ।
  • मराठी – बाहवा ।
  • बंगला – सोनालु ।
  • गुजराती – गरमाला ।
  • मलयालम – कणि कोन्ता |
  • तामिल– कौण्ड्रे इराधविरुट्टम् ।
  • कन्नड़ – फलूस कक्कमेर |
  • तेलुगु – रेल चट्ट ।
  • फ़ारसी – खियार ।
  • अरबी – खियार शम्बर ।
  • इंगलिश – पर्जिंग केसिया (PURGING CASSIA) ।
  • लैटिन – केसिया | फिस्टूला (CASSIA FISTULA)

अमलतास के औषधीय गुण :

  • अमलतास गरिष्ठ, चिकना, मृदु, मधुर, शीत गुणों से युक्त होता है।
  • यह वात और पित्त का शमन करने वाला है
  • यह दस्तावर तथा पेट के पित्त और कफ को शोधन कर त्रिदोष हितकारी होता है।
  • यह पेट के अनेक रोगों को दूर करता है ।
  • यह खून साफ करने वाला व कृमिनाशक है।
  • अमलतास चर्मरोग, ज्वर, क्षयरोग, प्रमेह, हृदयरोग, वातरक्त, गंडमाला तथा व्रण का शोधन करने में लाभदायक है।

अमलतास का रासायनिक संगठन :

इसकी फल मज्जा में एन्थ्राक्विनोन, शर्करा, पिच्छल द्रव्य, ग्लूटीन, पैक्टीन, रंजक द्रव्य, केल्शियम ऑक्सलेट, क्षार व जल होता है। तने की छाल में 10 से 20% टेनिन होता है, जड़ की छाल में फ्लोवेफिन तथा पत्र व पुष्प में ग्लाइकोसाइड पाया जाता है।
अमलतास के उपयोगी भागअमलतास के पत्तों का रस, लेप, काढ़ा तथा फलमज्जा, तने की छाल व जड़ की छाल का काढ़ा अलग-अलग रोगों में विभिन्न तरह से प्रयोग में लाये जाता हैं।

अमलतास के उपयोग एवं प्रभाव : Amaltas ke Upyog in Hindi

  • अमलतास के फल का गूदा या मज्जा दस्तावर होन से जुलाब का असर दिखाकर पेट साफ़ करने के लिए उत्तम है।
  • यह स्निग्ध शीत होने से कफ-पित्त का शमन करता है ।
  • अमलतास के पत्ते बुखार में लाभदायक होते हैं।
  • पत्ते पेट के मल और कीड़ों को बाहर निकालने वाले होते हैं जिससे मल और कीड़ों से उत्पन्न होने वाले विष का दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता और खून की शुद्धि होती है अतः चर्मरोग में भी लाभदायक है।
  • यह पेट साफ कर भूख बढ़ाता है।
  • चूंकि इसका स्वभाव मृदु होता है अतः बच्चे, स्त्री, गर्भवती स्त्री व कमज़ोर लोगों को भी पेट साफ़ करने हेतु दिया जा सकता है।
  • अमलतास से आमाशय के पित्त का शमन होता है, मल व कफ की शुद्धि होती है।
  • यह आंतों में संग्रहित कच्चे व पक्के मल को भी निकालता है।
  • पित्तशामक होने से ज्वर की अवस्था में होने वाली मांसपेशियों की उष्णता को कम कर दर्द दूर करता है। ✦इसके पत्ते ज्वर को दूर करने, घाव भरने तथा गठिया के दर्द को दूर करने में उपयोगी होते हैं।
  • रक्त और पित्त की तीक्ष्णता को नियन्त्रित कर रक्तपित्त अर्थात् मुंह और नाक से अकस्मात बहने वाले रक्तस्राव को रोकता है।
  • युनानी चिकित्सा में भी इसका औषधीय उपयोग होता है।
  • अमलतास के सेवन से पेट साफ़ होता है पर बहुत ज्यादा दस्त नहीं होने से कमज़ोरी नहीं आती।
  • यह प्रमेह, चर्मरोग, ज्वर, हृदयरोग, भगन्दर, विद्रधि, वातरोग, हाथीपांव, आमवात, उपदंश व पेट के अनेक रोगों में लाभदायक है।
  • इसकी जड़ प्रायः पौष्टिक और ज्वरनाशक औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है।

अमलतास के फायदे : Amaltas ke Fayde

अमलतास के विभिन्न अंग विभिन्न प्रकार से भिन्न-भिन्न रोगों में प्रयोग में लाकर लाभ उठाया जा सकता है। यहां हम कुछ मुख्य रोगों में इसकी उपयोगिता सम्बन्धी विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं :

1. कोष्ठ शुद्धि (कब्ज) में अमलतास के फायदे :

  • कोष्ठ शुद्धि या क़ब्ज़ रोग को दूर करने के लिए अमलतास के गूदे का अलग-अलग ढंग से प्रयोग किया जाता है।
    अमलतास की फल मज्जा की 5 से 10 ग्राम मात्रा 200 मि. लि. गाय के गरम दूध के साथ देने पर कोष्ठ शुद्धि होती है।
  • अमलतास की सूखी फली का 4 इंच का टुकड़ा कूटकर एक गिलास पानी डाल दें तथा उसमें 2 चम्मच सूखे गुलाब के फूल की पंखुड़ियों और 1 चम्मच मोटी सौंफ डालकर हल्की आंच पर उबलने रख दें। जब पानी आधा रह जाए तब छान कर हल्का गरम रहते रात को पीने से सभी प्रकार के क़ब्ज़ में लाभ होता है। पूर्ण लाभ हो जाने पर इस काढ़े का सेवन करना बन्द कर दें। यह काढ़ा कमज़ोर व्यक्ति, बच्चे,स्त्री तथा गर्भवती स्त्री को भी कुछ मात्रा कम करके दिया जा सकता है।
  • सौंफ 3 ग्राम, अमलतास का गूदा 3 ग्राम, छोटी हरड़ का मोटा चूर्ण 2 ग्राम तथा अनारदाना 5 ग्राम लेकर 2 कप पानी डालकर धीमी आंच पर उबालें। आधा शेष रहने पर उतारकर छान लें। इस काढ़े के सेवन से वर्षा ऋतु में होने वाले पेट सम्बन्धी सभी रोगों में लाभ मिलता है। ( और पढ़े – कब्ज दूर करने के 18 रामबाण देसी घरेलु उपचार)
  • गरमी के मौसम में अमलतास के फूल एकत्रित कर शक्कर मिलाकर गुलकंद विधि की तरह अमलतास के फूलों का गुलकंद बनाकर इसकी 1 चम्मच मात्रा लेने से भी क़ब्ज़ दूर होता है। अधिक मात्रा में इसका प्रयोग नहीं करें अन्यथा दस्त लगना, जी घबराना, मितली आना व पेट में मरोड़ होना आदि तकलीफें हो सकती हैं। इसकी उपयोगी मात्रा 2 से 3 ग्राम है।
  • अमलतास के गूदे को 20 ग्राम मात्रा में लेकर 150 मि.लि. पानी में रोज भिगोकर रात को सोने से पहले शक्कर या गुड़ मिलाकर लेने से सुबह क़ब्ज़ में राहत होती है।
  • अमलतास का गूदा और मुनक्का (काली द्राक्ष) दोनों 10-10 ग्राम मिलाकर खाने से शौच शुद्धि होती है।
  • अमलतास और ईमली के गूदे को पीसकर रख लें। इन दोनों की 10-10 ग्राम मात्रा सोने से पहले पानी में गलाकर लेने से सुबह पेट साफ़ होता है।

2. आमाशय शोधन में अमलतास के फायदे : कोई हानिकारक वस्तु खा लेने से होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के लिए अमलतास के 5-6 बीज को पानी में पीस कर पिलाने से तत्काल उलटी हो जाती है। हानिकारक वस्तु बाहर निकल जाती है।

3. बच्चों के पेट दर्द में अमलतास के फायदे : 25 ग्राम अमलतास का गूदा लेकर नमक और गौमूत्र मिलाकर नाभि के आसपास लेप करने से पेट दर्द कम होता है। ( और पढ़े –पेट दर्द के 41 घरेलू उपचार )

4. भूख की कमी में अमलतास के फायदे : अमलतास का गूदा और मुनक्का-दोनों 10-10 ग्राम लेकर उबालकर छानकर रात में पिएं तथा सुबह भोजन के पूर्व अमलतास के दो से तीन पत्तों को चबाकर गरम पानी लेने से लाभ होता है। ( और पढ़े – )

5. मुंह के छाले में अमलतास के फायदे : अमलतास की गिरी और धनिया 3-3 ग्राम लेकर चुटकी भर कत्था मिलाकर तैयार चूर्ण को दो तीन बार चूसने से लाभ होता है। ( और पढ़े – मुह के छाले दूर करने के 101 घरेलु उपचार)

6.मूत्रकृच्छ में अमलतास के फायदे : अमलतास के बीज की गिरी को पानी में पीसकर लेप बना लें। नाभि से नीचे इसका गाढ़ा लेप लगाने से पेशाब की रुकावट दूर होती है।

7. रक्तपित्त में अमलतास के फायदे : जब रोगी को अकस्मात नाक या मुंह से खून आने लगे तो अमलतास के 20 ग्राम गूदे में 10 ग्राम आंवला मिलाकर डेढ़ कप पानी में काढ़ा बना लें। फिर इस काढ़े को छानकर इसमें शहद 2 चम्मच व थोड़ी शक्कर मिलाकर देने से रक्तपित्त में लाभ होता है।

8. बवासीर में अमलतास के फायदे :

  • अमलतास का गूदा 10 ग्राम, हरड़ 5 ग्राम व मुनक्का 10 ग्राम को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इसका सुबह एक बार सेवन करने से बवासीर में रक्त जाना, रक्तपित्त कोष्ठ की शिकायत दूर होने के साथसाथ पेशाब की तकलीफ़ भी दूर होती है। ( और पढ़े –बवासीर के 52 सबसे असरकारक घरेलु उपचार )
  • 20 ग्राम अमलतास के गूदे का काढ़ा बनाकर इसमें 3 ग्राम सेन्धा नमक व 10 मि.लि. गाय का घी मिलाकर देने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।

9. आमवात में अमलतास के फायदे : गठिया के होने वाले दर्द के लिए अमलतास के दो तीन पत्तों को सरसों के तैल के साथ भूनकर शाम को भोजन के बाद देने से लाभ होता है।

10. बच्चों में न्यूमोनिया में अमलतास के फायदे : अमलतास की फली लेकर उसे जलाकर बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख लें। जब बच्चों में न्यूमोनिया के कारण श्वास तेज़ चलती हो तो इस राख की एक चुटकी शहद के साथ चटाएं।

11. गंडमाला में अमलतास के फायदे : गले के नीचे की ओर जब कोई गांठ जैसी दिखाई दे तो अमलतास की जड़ को बारीक पीस कर इस चूर्ण का लेप लगाने से लाभ होता है।

12. ज्वर में अमलतास के फायदे : नये ज्वर में जब मलावरोध हो तो इसके काढ़े को गुलकंद के साथ देने से लाभ होता है तथा शुष्क गांठदार मल बाहर आ जाता है। कमज़ोर प्रकृति वालों को दूध के साथ अमलतास का काढ़ा देना चाहिए।

13. कुष्ठ या चर्मरोग में अमलतास के फायदे :

  • अमलतास के पंचागं अर्थात् पत्र, पुष्प, फल, जड़ व तना को मिलाकर काढ़ा बनाकर उससे स्नान करने, हाथ-पैर धोने से चर्मरोग में लाभ होता है।
  • अमलतास के पत्तों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ व मण्डल कुष्ठ के चकत्तों में लाभ होता है।

14. पीलिया – अमलतास का गूदा, पिपलामूल, नागरमोथा, कुटकी, हरड़- सभी 5-5 ग्राम लेकर एक कप पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पन्द्रह दिनों तक लेने पर कामला या पीलिया रोग में लाभ होता है।

15. भिलावें की सूजन : अमलतास के पत्तों के रस का लेप करना चाहिए।

16. पतले दस्त : सोनामुखी, हरड़ और अमलतास के गूदे का काढ़ा बनाकर पिलायें। इससे पतले दस्त ठीक हो जाते हैं।

17. दस्त साफ होने के लिए : 10 ग्राम अमलतास की फलियों का गूदा और 5 ग्राम हर्र (रंगाई के काम में आने वाली) की छाल को 500 मिलीलीटर  पानी में अष्टमांश काढ़ा बनाकर उसमें शक्कर डालकर देना चाहिए।

18. बवासीर :

  • 10 ग्राम अमलतास की फलियों का गूदा, 6 ग्राम हरड़ और 10 ग्राम मुनक्का (काली द्राक्ष) को पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह आठवां हिस्सा शेष बचे तो उतारकर रख दें। इस काढ़े को प्रतिदिन सुबह के समय देना चाहिए। 4 दिन में ही असर दिखाई देता है। रक्त-पित्त यानी नस्कोरे फूटकर खून बहने, पेशाब साफ न होने और बुखार में भी यह काढ़ा दिया जाता है। इससे दस्त साफ होकर भूख भी लगती है।
  • अमलतास का काढ़ा बनाकर उसमें सेंधानमक और घी मिलाकर उस काढ़ा को पीने से खून का बहना बंद होता है तथा रोग ठीक होता है।
  • अमलतास का गूदा 40 ग्राम 400 मिलीलीटर  पानी के साथ मिट्टी के बर्तन में पकायें। पानी का रंग लाल होने पर उसे उतारकर छान लें और उसके पानी में सेंधानमक 6 ग्राम तथा गाय का घी 20 ग्राम मिलाकर ठण्डा करके पीयें। इसे पीने से 3 से 4 दिन में ही खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।

19. सूजन पर : अमलतास के पत्तों को सेंककर बांधने से सूजन उतरती है।

20. शरीर में सूजन : लगभग 20 ग्राम की मात्रा में अमलतास के ताजे फूल और 3 ग्राम की मात्रा में भुना हुआ सुहागा लेकर उसको हल्के गर्म पानी के साथ सुबह और शाम को देने से यकृत और प्लीहा वृद्धि के कारण पैदा होने वाली सूजन दूर हो जाती है।

21. गण्डमाला : अमलतास के जड़ के बारीक चूर्ण को चावल के धोये हुए पानी में मिलाकर उसका लेप करना चाहिए।

22. विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल बनना) :

  • अमलतास के पत्तों को पीसकर घी में मिलाकर लेप करने से विसर्प में लाभ होता है।
  • किक्किस रोग, सद्योव्रण में अमलतास के पत्तों को स्त्री के दूध या गाय के दूध में पीसकर लगाना चाहिए।

23. शिशु की फुंसियां : अमलतास के पत्तों को दूध के साथ पीसकर लेप करने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाली फुंसियां और छाले दूर हो जाते हैं।

24. श्वास : अमलतास की फली का गूदा पानी में उबालकर पीने से दस्त साफ होकर श्वास की रुकावट मिटती है। इससे कब्ज भी दूर हो जाती है।

25. अंडवृद्धि :

  • अमलतास की फली के 1 चम्मच गूदे को 1 कप पानी में उबालकर आधा शेष रहने पर उसमें 1 चम्मच घी मिलाकर खड़े-खड़े पीने से अंडवृद्धि में लाभ होता है।
  • 20 ग्राम अमलतास के गूदे को 100 मिलीलीटर पानी में उबाल लें, 50 मिलीलीटर पानी शेष रह जाने पर 25 ग्राम घी में मिलाकर पीने से अंडकोष की सूजन कम हो जाती है।

26. पेट दर्द :

  • पेट दर्द और गैस में अमलतास के गूदे को बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है।
  • अमलतास के 25 ग्राम गूदे में थोड़ा-सा नमक मिला लें, फिर इसे गाय के पेशाब में पीसकर पेट के ऊपर लेप करने से दर्द में लाभ होता है।
  • थोड़ी-सी मात्रा में अमलतास के गूदे का प्रयोग करने से आराम होता है।
  • पेट दर्द और अफारे में अमलतास की मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है।
  • अमलतास के फल के गूदे को मुनक्का के साथ पीसकर लेने से पेट साफ हो जाता है।

27. पक्षाघात : अमलतास के पत्तों के रस की पक्षाघात ग्रस्त अंग पर मालिश करने से लाभ होता है।

28. लकवा (पक्षाघात-फालिस फेसियल, परालिसिस) होने पर : लगभग 10 ग्राम से 20 ग्राम अमलतास के पत्तों का रस पीने तथा चेहरे पर अच्छी तरह से नियमित रूप से मालिश करने से मुंह के लकवे में लाभ मिलता है।

29. प्लेग की गांठ : अमलतास की पकी ताजी फली का गूदा बीजों सहित पीसकर प्लेग की गांठ पर लेप करने से आराम मिलता है। प्लेग की कब्जी और बेहोशी में फली के गूदे का काढ़ा पिलाते हैं।

30. नाक की फुंसी : अमलतास के पत्ते और छाल को पीसकर नाक की छोटी-छोटी फुन्सियों पर लगाने से लाभ होता है।

31. सुप्रसव (आसानी से बच्चे का जन्म) होना : प्रसव (प्रजनन) के समय अमलतास की फली के 2 चम्मच छिलके 2 कप पानी में उबालकर उसमें शक्कर मिलाकर छानकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से बच्चा सुख से पैदा हो जाता है।

32. प्रसव (बच्चे का जन्म आसानी से होना) : अमलतास के छिलके लगभग 20 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इस काढे़ का सेवन करने से बच्चे का जन्म आसानी से होता हैं।

33. प्रसव का दर्द : बच्चा पैदा होने में यदि बहुत अधिक कष्ट हो रहा हो तो अमलतास 10 ग्राम को पानी में गर्मकर थोड़ी सी शक्कर मिलाकर पीना चाहिए।

34. कंठमाला :

  • अमलतास की जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर सुंघाने और लेप करने से कण्ठमाला में आराम होता है।
  • अमलतास के वृक्ष की छाल के काढ़े से गरारा करने से गले की ग्रंथि (नस) की सूजन मिट जाती है।

35. अर्दित (यह एक प्रकार का वायु रोग है जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता है) :

  • अमलतास के 10-15 पत्तों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बांधने से सुन्नवात, गठिया (जोड़ों का दर्द) और अर्दित में फायदा होता है।
  • वात वाहिनियों के आघात से उत्पन्न अर्दित एवं वात रोगों में अमलतास के पत्तों का रस पिलाने से लाभ होता है।
  • अमलतास के पत्तों का रस पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है।

36. बुखार :

  • अमलतास की फल मज्जा को पीपरामूल, हरीतकी, कुटकी, मोथा के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से दर्द, कफ, वात और बुखार में लाभ होता है। यह काढ़ा पाचक भी है।
  • अमलतास की जड़ आधा से 10 ग्राम पीसकर पीने से कब्ज दूर हो जाती है।
  • अमलतास की जड़ का बारीक चूर्ण बुखार नाशक और पौष्टिक औषधि के रूप में प्रयुक्त होता है।

37. खांसी :

  • अमलतास की गिरी 5-10 ग्राम को पानी में घोटकर उसमें तिगुना बूरा डालकर गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खांसी मिटती है।
  • अमलतास का 20 ग्राम गुलकन्द खाने से सूखी खांसी गीली खांसी में बदल जाती है।
  • 10 ग्राम अमलतास के फूल तथा 20 ग्राम गुलकन्द को मिलाकर खाने से छाती (सीने) में जमा हुआ कफ निकल जाता है तथा खांसी में बहुत लाभ मिलता है।
  • अमलतास के गूदे में गुड़ को मिलाकर सुपारी के बराबर गोलियां बनाकर पानी के साथ खाने से कफ गलकर निकल जाती है और खांसी भी नष्ट हो जाती है।

39. टॉन्सिल : कफ के कारण टॉन्सिल बढ़ने पर पानी पीने में भी जब कष्ट होता है तब इसकी जड़ की 10 ग्राम छाल को थोड़े पानी में पकाकर उसका बूंद-बूंद कर मुंह में डालते रहने से आराम होता है।

40. पित्त प्रकोप :

  • अमलतास के गूदे के 40-60 मिलीलीटर काढ़े में 5-10 ग्राम इमली का गूदा मिलाकर सुबह-सुबह पिलाने से पित्त प्रकोप में लाभ होता है। यदि रोगी को कफ की अधिकता हो तो इसमें थोड़ा निशोत का चूर्ण भी मिलाना चाहिए।
  • लाल रंग के निशोत के काढे़ के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क मिलाकर अथवा बेल के काढ़े के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क, नमक एवं शहद मिलाकर पित्त की प्रधानता में 10-20 ग्राम की मात्रा में पीना चाहिए।
  • अमलतास के गुदे का 40-60 मिलीलीटर काढ़ा पित्तोदर में लाभप्रद है।

41. उदावर्त (पेट की अन्तड़ियों का सही ढंग से काम करना) : 4 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चे के पेट में यदि जलन तथा उदावर्त रोग से पीड़ित हो तो उसे अमलतास की मज्जा को 2-4 नग मुनक्का के साथ देना चाहिए।

42. उदरशुद्धि (पेट साफ) : अमलतास के 2-3 पत्तों को नमक और मिर्च मिलाकर खाने से उदर की शुद्धि होती है।

43. हारिद्रामेह : अमलतास के 10 ग्राम पत्तों को 400 मिलीलीटर पानी में पकाकर चतुर्थाश शेष काढ़े का सेवन हारिद्रामेह में लाभकारी है।

44. कोष्ठ (भोजन रखने का स्थान) शुद्धि : फली मज्जा को 5-10 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 मिलीलीटर  गर्म दूध के साथ देने से कोष्ठ शुद्ध हो जाता है।

45. कामला (पीलिया) होने पर : अमलतास का गूदा, पीपलामूल, नागरमोथा, कुटकी तथा जंगी हरड़। सबको 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर एक कप पानी में उबालें। काढ़ा जब आधा कप बचा रह जाए, तो इसका सेवन करें। लगातार 15 दिनों तक इसका सेवन करने से पीलिया के रोग में लाभ होगा।

46. विरेचन (दस्त लाने वाला) :

  • अमलतास के फल का गूदा सर्वश्रेष्ठ मृदु विरेचक है। यह बुखार की अवस्था में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है।
  • अमलतास के फल का 15-20 ग्राम गूदे को मुनक्का के रस के साथ देने से उत्तम विरेचन होता है।

47. वातरक्त : अमलतास मूल 5-10 ग्राम को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर देने से वातरक्त का नाश होता है।

48. आमवात : अमलतास के 2-3 पत्तों को सरसों के तेल में भूनकर सायं के भोजन के साथ सेवन करने से आमवात में लाभ होता है।

49. दाद, खाज-खुजली :

  • अमलतास की 10-15 ग्राम जड़ के बारीक चूर्ण को दूध में उबालकर पीसकर लेप करने से जलन और दाद में लाभ होता है।
  • अमलतास के पंचाग (पत्ती, जड़, तना, फल और फूल) को पानी के अंदर पीसकर दाद खुजली और दूसरे चर्म विकारों पर लगाने से जादुई असर होता है।
  • अमलतास के पत्तों को छाछ में पीसकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  • दाद को खुजलाकर अमलतास के पत्तों का रस लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

50. व्रण (जख्म) होने पर : अमलतास, चमेली, करंज के पत्तों को गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करें, इससे घाव, दूषित बवासीर और नाड़ी का घाव नष्ट होता है।

51. कंटकरोग (पदि्मनी) : कंटकरोग में अमलतास और नीम का 40-60 ग्राम के काढ़ा का रोजाना प्रयोग करना अच्छा होता है।

52. वात ज्वर : अमलतास का गूदा, कुटकी, हरड़, पीपलामूल और नागरमोथा को बराबर मात्रा में लेकर पिलाने से वात-कफ के बुखार से छुटकारा मिलता है।

53. दमा के लिए : अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर पीने से मल त्याग होकर दमा मिट जाता है।

54. जीभ का स्वाद ठीक करना : अमलतास का गूदा 20 ग्राम को गर्म दूध 250 मिलीलीटर में मिलाकर कुल्ला करें। इससे अफीम तथा कोकिन के सेवन से खराब जीभ का स्वाद फिर से ठीक हो जाता है।

55. उल्टी कराने वाली औषधियां : अमलतास के 5 से 7 बीज लेकर उसका चूर्ण बनाकर रोगी को खिलाने से तुरंत उल्टी हो जाती है।

56. कान का बहना :

  • 100 ग्राम अमलतास के पत्तों को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कान को अंदर तक धोने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है।
  • अमलतास का काढ़ा बनाकर कान में डालने से कान में से मवाद बहना ठीक हो जाता है।

57. अग्निमान्द्यता (अपच) :

  • अमलतास की जड़ को दूध में उबालकर पीयें।
  • अमलतास के 2 पत्तों को चबाकर गर्म पानी के साथ सेवन करें।

58. मधुमेह के रोग : अमलतास के थोड़े से गुदे को लेकर गर्म करें। फिर मटर के दाने के बराबर उसकी गोलियां बना लें। 2-2 गोली सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में आराम मिलता है।

59. जुकाम : अमलतास के गूदे को पानी में मिलाकर उसके अंदर 3 गुना शक्कर डालकर चासनी बनाकर पीने से सूखी खांसी और जुकाम ठीक हो जाता है।

60. उपदंश (सिफिलिस) :

  • अमलतास, नीम, हरड़, बहेड़ा, आंवला तथा चिरायता के काढ़े के साथ विजयसार और खैरसार मिलाकर पीने से हर तरह के उपंदश रोग मिट जाते हैं।
  • अमलतास के पेड़ की जड़ को 50 ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें और उपदंश के घाव पर मले इससे उपदंश में लाभ मिलेगा।
  • अमलतास का गुदा 3 ग्राम की मात्रा में रोज खाने से उपंदश लगभग 8-9 दिनों में ही ठीक हो जाता है।
  • अमलतास के बीजों को पानी के साथ पीसकर उपदंश के घाव पर लगाने से उपदंश के घाव जल्द खत्म हो जाते हैं।

61. गठिया रोग : अमलतास के पत्ते को सरसों के तेल में तलकर रखें। इन्हें भोजन के साथ खाने से घुटने का हल्का दर्द दूर होता है।

62. चालविभ्रम (लंगड़ाकर चलना) : लुढ़ककर चलने वाले रोगी को अमलतास के पत्तों का रस 100 से 200 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से रोग दूर होता है। इसके रस से पैरों की अच्छी तरह से मालिश भी करें। इससे रोगी का रोग ठीक होता है।

63. उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना) : अमलतास के पत्ते को बांधने से जांघ का सुन्न होना दूर हो जाता है। इससे शरीर के दूसरे अंग का सुन्न होना भी दूर हो जाता है।

64. नाखून की खुजली : अमलतास के अंकुरों के रस का लेप नाखूनों पर करने से रोगी के नाखूनों की खुजली दूर हो जाती है।

65. चेहरे के लकवे के लिए : 10 से 20 मिलीलीटर अमलतास के पत्तों का रस रोगी को सुबह और शाम पिलायें इसके साथ ही इसी रस से चेहरे की मांसपेशियों पर दिन और रात को लगातार मालिश करते रहने से जरूर लाभ होगा।

66. शरीर का सुन्न पड़ जाना : अमलतास के पत्ते सुन्न पर अंगों पर बांधने से शरीर का सुन्न होना दूर हो जाता है।

67. डब्बा रोग (बच्चों की पसलियों का चलना) : अमलतास की एक फली लेकर उसे जला लें और बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख लें। जब बच्चे की पसली चल रही हो तो उस समय 1 चुटकी चूर्ण चटा दें। जल्दी आराम मिल जायेगा।

68. चेहरे के दाग : अमलतास के मुलायम पत्तों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे के सारे काले दाग समाप्त हो जाते हैं।

69. जलने पर : अमलतास के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम आ जाता है।

70. त्वचा का सूजकर मोटा और सख्त हो जाने पर : भिलावे की वजह से त्वचा में सूजन पैदा हो जाने पर अमलतास के पत्तों का रस लगाने से त्वचा की सूजन ठीक हो जाती है।

71. कण्ठ रोहिणी के लिए : अमलतास के पेड़ की छाल या उसकी जड़ को पानी से साफ करने के बाद पानी में काफी देर तक उबालकर और छानकर बच्चे को कुल्ला कराने से बहुत आराम आता है।

72. नाड़ी का घाव : अमलतास, हल्दी और मंजीठ बराबर मात्रा में लेकर उसे अच्छी तरह से पीस लें। उस पिसी हुई पेस्ट से बत्ती बनाकर नाड़ी के घाव पर रखने से सभी कारणों से उत्पन्न नाड़ी के घाव में लाभ होता है।

73. बालरोगों पर औषधि : अमलतास की जड़ को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर गलगण्ड (घेंघा) तथा गण्डमाला (गले की गांठों) पर लेप करने से दोनों रोग ठीक हो जाते हैं।

74. कंठपेशियों का पक्षाघात : 10 से 20 मिलीलीटर अमलतास के पत्तों का रस सुबह और शाम पिलाने और उसी पत्तों के रस से कण्ठपेशियों (गले की नसों) पर मालिश करने से बहुत आराम आता है।

75. गले के रोग :

  • अमलतास की जड़ की छाल 10 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे 200 मिलीलीटर पानी में डालकर उबालें और पकाएं। पानी एक चौथाई बचा रहने पर छान लें। इसमें से 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से गले की सूजन, दर्द, टांसिल में शीघ्र आराम मिलता है।
  • अमलतास की छाल (पेड़ की छाल) के काढ़े से गरारा करने पर गले की प्रदाह (जलन), ग्रंथिशोध (गले की नली में सूजन) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

76. बिच्छू का विष : अमलतास के बीजों को पानी में घिसकर बिच्छू के दंश वाले स्थान पर लगाने से कष्ट दूर होता है।

77. बच्चों का पेट दर्द : अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में घिसकर नाभि के आस-पास लेप लगाने से पेट दर्द और गैस की तकलीफ में आराम मिलता है।

78. त्वचा से सम्बंधित रोग :

  • अमलतास के पत्तों को सिरके में पीसकर बनाए लेप को चर्म रोगों यानी दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी पर लगाने से रोग दूर होता है। यह प्रयोग कम से कम तीन हफ्ते तक अवश्य करें। अमलतास के पंचांग (पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़) को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को लगाने से त्वचा सम्बंधी उपरोक्त रोगों में लाभ मिलता है।
  • अमलतास, कनेर और मकोय के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर मट्ठे के साथ पीसकर लेप बनाकर लगाने से त्वचा के रोग में आराम होता है।

79. मुखपाक (मुंह के छाले) :

  • अमलतास की गिरी को बराबर की मात्रा में धनिए के साथ पीसकर उसमें चुटकी-भर कत्था मिलाकर तैयार चूर्ण की आधा चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार चूसने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।
  • फल मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुख में रखने से अथवा केवल गूदे को मुख में रखने से मुखपाक रोग दूर होता है।

80. वमन (उल्टी) हेतु : अमलतास के 5-6 बीज पानी में पीसकर पिलाने से हानिकारक खाई हुई चीज वमन (उल्टी) के द्वारा बाहर निकल जाती है।

81. पेशाब होना : पेशाब खुलकर होने के लिए अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में पीसकर तैयार गाढ़े लेप को नाभि के निचले भाग (यौनांग से ऊपर) पर लगाएं।

82. कुष्ठ (कोढ़) :

  • अमलतास के पत्तों को पीसकर बना लेप अथवा अमलतास के अंकुरों के रस का लेप कुष्ठ, दाद, खाज-खुजली और विचर्चिका (खुजली) के चकत्तों पर लगाने से लाभ होगा।
  • अमलतास के पत्तों को सिरके के साथ पीसकर कुष्ठ के जख्मों पर लगाने से आराम आता है।
  • अमलतास की 15-20 पत्तियों से बना लेप कुष्ठ का नाश करता है। अमलतास की जड़ का लेप कुष्ठ रोग के कारण हुई विकृत त्वचा को हटाकर जख्म वाले स्थान को ठीक कर देता है।
  • अमलतास के पत्तों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ, चकत्ते, दाद, खाज आदि चर्म रोगों में लाभ होता है तथा कब्ज भी दूर होती है।

83. त्वचा के चकत्तों : अमलतास के नर्म पत्तों को पीसकर लेप करना चाहिए।

84. खुजली दूर करने के लिए : अमलतास के पत्तों को छाछ में पीसकर लेप करना चाहिये और कुछ देर बाद स्नान करना चाहिए।

85. पीले प्रमेह : अमलतास की फलियों के अंदर के गूदे के आठवें भाग का काढ़ा करके पिलायें।

86. कफरोग : अमलतास के गूदे में गुड़ मिलाकर और सुपारी के बराबर गोलियां बनाकर गर्म पानी के साथ देना चाहिए।

87. रक्तपित्त :

  • अमलतास और आंवले का काढ़ा बनाकर उसमें शहद तथा शक्कर मिलाकर पिलायें। इससे दस्त होकर रक्तपित्त दूर हो जाता है।
  • अमलतास के फल मज्जा को अधिक मात्रा में लगभग 25 से 50 ग्राम में 20 ग्राम शहद और शर्करा के साथ सुबह-शाम देना रक्तपित्त में लाभकारी है।

अमलतास के नुकसान : Amaltas ke Nuksan in Hindi

  • वैसे तो यह बहु उपयोगी और निरापद औषधि है परन्तु लम्बे समय तक इसको नियमित सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इसके अधिक प्रयोग से मूत्र का रंग गहरा हो जाता है तथा मूत्र रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  • इसकी मज्जा में एक विशिष्ट गंध या हीक होती है जिससे इसके नियमित सेवन करने पर अरुचि उत्पन्न हो जाती है अतः इसे थोड़े गुलकन्द मिले जल के साथ उबाल छान कर पीना ठीक रहता है।
  • केवल अमलतास का गूदा देने पर उदर में पीड़ा हो तो इसमें गुड़ मिलाकर सेवन करना चाहिए।
  • अमलतास लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें ।

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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