Last Updated on August 3, 2024 by admin
गुंजा क्या है ? : gunja in hindi
गुंजा जिसे चिरमिटी या घुंघची भी कहते है इसकी लता (बेल) होती है । इसके पत्ते बारीक और कुछ लम्बे-लम्बे (इमली के पत्ते के समान) होते हैं। सैम की फलियों की भांति इसमें गुच्छे लगते हैं । प्रत्येक फली के अन्दर 3 से 6 तक बँघचियाँ (गुंजा) रहती हैं। इसके फूल छोटे और सफेद रंग के होते हैं।
गुंजा के प्रकार : gunja ke prakar
गुंजा के मुख्य दो भेद होते हैं-1. लाल, 2. सफेद। दोनों की बेल एक समान होती है । लाल रंग के गुंजा पर काला दाग होता है। और सफेद की गुंजा सम्पूर्ण सफेद होती है। आमतौर पर (दैनिक जीवन में) इनका उपयोगनुसार (स्वर्णकार) सोना तौलने में करते हैं । 1 गुंजा बराबर 1 रत्ती (2 या गेहूं के दाना) के बराबर होता है । 1 तोला = 96 गुंजा बैठती है।
गुंजा के औषधीय गुण : gunja ke aushadhi gun
- आक का दूध, थूहर का दूध, कलिहारी, कनेर, गुन्जा, अफीम और धतूरा ये सात आयुर्वेदमतानुसार उपविष की जातियाँ हैं ।
- श्वेत और लाल (दोनों प्रकार की) गुंजा केशों को हितकारी, वात-पित्त ज्वर के नाशक, मुख शोथ, भ्रम, श्वास, तृष्णा, मद, नेत्ररोग, खुजली व्रण, कृमि, इन्द्रलुप्त नामक रोग तथा कोढ़ नाशक तथा वीर्यवर्धक है ।
- इसके बीज कड़वे उष्ण, वातकारक तथा मस्तक शूल नाशक होते हैं।
- इसकी कच्ची फलियाँ और पत्ते शूल निवारक तथा विषनाशक होते हैं।
- सफेद घुंघची को तन्त्र विशेषज्ञ उपयोग में लेते हैं।
- इसके पत्ते, जड़ और बीज तीनों ही औषधि के काम में उपयोग किये जाते हैं ।
सेवन की मात्रा :
इसकी मात्रा 1 से 2 रत्ती तक सेवन करने का विधान है।
गुंजा को शुद्ध (विष रहित) करने के उपाय :
गुंजा एक प्रकार का विष है अत: इसे शुद्ध (विष रहित) करके ही उपयोग में लाना चाहिए । कांजी में डालकर तीन घंटे तक पकाने से यह शुद्ध हो जाता है । विद्वान आचार्यों के मतानुसार गुंजा में जो विषकारक सत्व है वह स्ट्रिकनीन (कुचलासत्व) की अपेक्षा सौ गुणा अधिक तेज है । एन्ड के बीजों से जो जहरीला सत्व निकाला जाता है इसके गुण-धर्म तथा गुंजा के जहरीले द्रव्य का गुण-धर्म एक समान होता है । इस प्रकार के विषों में एक विशेषता यह होती है कि इनके बीजों को उबालने से विष एकदम नष्ट हो जाता है फिर इनके व्यवहार से किसी प्रकार का अहित नहीं होता है।इसके सत्व को ‘अबिम’ कहा जाता है ।
गुंजा के फायदे और उपयोग : gunja ke fayde / labh / rogo ka ilaj
1. सर दर्द :
- इसकी जड़ मूल, जल के साथ घिसकर नस्य देने से मस्तक शूल, अर्ध मस्तक शूल, आँखों के सामने अन्धेरा आ जाना, रतौंधी इत्यादि विकार नष्ट हो जाते हैं ।
- गुंजा और कंजा के बीजों को पानी के साथ पीसकर सूंघने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
2. गला बैठना :
- स्वर भंग (Horse Ness) गले से आवाज साफ न निकलती हो तो सफेद गुंजा की पत्तियों को चबाने और धीरे-धीरे निगलते जाने से लाभ होता है।
- गुंजा के ताजे पत्तों को कबाब चीनी के साथ सेवन करने से स्वरभंग (गला बैठ जाना) दूर हो जाता है। ( और पढ़े : गला बैठना के आयुर्वेदिक अनुभूत प्रयोग )
3. साइटिका : अपबाहुक, विश्वाची (Armpalsy) गृधसी (Sciatica) इत्यादि वात रोगों में घुघची (गुंजा) अत्यन्त लाभकारी है। शरीर के जिस अंग में बात का प्रकोप हुआ हो तो वहाँ के बालों को उस्तरे से साफ करके घुघवी को जल में पीसकर लेप करें। ( और पढ़े :वात नाशक 50 सबसे असरकारक आयुर्वेदिक घरेलु उपचार )
4. बालों का झड़ना : गंज या ढाक रोग:जिसमें सिर के बाल अकाल या असमय में ही सब गिर पड़ते है या पीले अथवा सफेद हो जाते हैं और इन्द्रलुप्त रोग:जिसका प्रभाव विशेष पर मूंछों पर होता है । मूंछों के बाल गिर जाते हैं या पक जाते हैं में भी इसका प्रयोग लाभप्रद है ।
5. गंजापन: घुघची (गुंजा) की जड़ या फलों को भिलावे के रस में घिसकर लेप करना लाभकारी है । अथवा इसके फलों और जड़ों को भिलावे और कटेरी के साथ (सममात्रा में लेकर) महीन पीसकर शहद मिलाकर लेप करने से दुसाध्य खालित्य (गंज-रोग) भी नष्ट हो जाता है । ( और पढ़े : गंजापन का इलाज )
6. इन्द्रलुप्त (गंजापन) :
- गुंजा की जड़ और फल दोनों का चूर्ण करके कटेरी के पत्तों में के रस में खरल करें । तदुपरान्त इसके लेप करने से अत्यन्त दुसाध्य इन्द्रलुप्त रोग भी नष्ट हो जाता है ।
- करजनी के बीजों का मिश्रण गंजेपन वाल स्थान पर लगाने से नये बाल उगने शुरू हो जाते हैं। इसे रोजाना रात में लगाकर सिर किसी कपड़े से बांध लें और सुबह नींबू रस मिले पानी से साफ सिर को धोएं इससे लाभ मिलेगा।
- गुंजा के बीज के साफ तेल सिर में लगाने से गंजापन दूर होता है।
7. बलवर्धक : वीर्य पतला हो गया हो, मैथुन काल में शीघ्र (एकदम) स्खलित हो जाता हो तो इसकी जड़ नित्य प्रति दो मास तक सायंकाल को भोजन से प्रथम दूध में पकाकर, मिश्री डालकर सेवन करना परम लाभकारी है। ( और पढ़े : वीर्य को गाढ़ा व पुष्ट करने के आयुर्वेदिक उपाय )
8. उपदंश :
- उपदंश में लालगुंजा के पत्ते 0.48 ग्राम, जीरा 2 ग्राम और मिश्री 10 ग्राम मिलाकर सुबह शाम 6-7 दिन तक सेवन करने से लाभ मिलता है।
- लाल घुघंची के पत्तों का रस आधा माशा, जीरे का महीन चूर्ण दो माशा, मिश्री 1 तोला सभी का मिश्रण एकत्र कर नित्य सुबह-शाम (मात्र सात दिन सेवन करने से) कैसा भी उपदंश हो, अवश्य ठीक हो जाता है। ( और पढ़े : उपदंश रोग के 23 घरेलू उपचार )
9. गलगन्ड : गलगन्ड, गलग्रन्थि आदि रोगों में गुंज तैल का उपयोग अत्यधिक लाभप्रद है । घुघंची (यदि श्वेत वाली मिल जाए तो सर्वोत्तम है) की जड़ तथा फलों को जल के साथ पीसकर लुगदी बनाकर, लुगदी से चौगुना (सरसों) का तैल और तैल से चौगुना जल डालकर कड़ाही में मन्दाग्नि से पकावें । जब तैल मात्र शेष बचा रह जाए तो इस तेल की मालिश और नस्य लेने से महादारुण और कष्टकारक रोग ‘गन्डमाला” नष्ट हो जाती है ।
10. खुजली : घुघंची 1 सेर जल के साथ पीसकर कल्क बनालें । इसमें भांगरा (शृंगराज) के पत्तों का रस 16 सेर और तिल का तैल 4 सेर डालकर उपरोक्त विधिनुसार तैल सिद्ध कर लें । यह तैल दाद, खाज खुजली तथा कुष्ठ रोग में भी अत्यन्त ही लाभप्रद है।
11. त्वचा के रोग: सफेद गुंजा के पत्तों को चित्रा मूल के साथ मिलाकर लेप बना ले और इसे त्वचा के रोग ग्रस्त भाग पर लगाए इससे लाभ मिलेगा।
12. नपुंसकता: गुंजा (करजनी) की जड़ 2 ग्राम दूध में पकाकर भोजन से पहले प्रतिदिन रात में सेवन करने से लाभ मिलता है। इसके उपयोग से वीर्य सम्बन्धी सारे दोष दूर होते हैं।
13. लकवा (पक्षाघात,फालिस फेसियल, परालिसिस): गुंजा के बीजों को पीसकर लकवे प्रभावित अंग पर लगाने से लाभ मिलता है।
14. घाव: घाव या व्रण पर गुंजा (करजनी) के पत्ते का रस या पत्तें का मिश्रण तेल में मिलाकर लगाने से तुरन्त ही लाभ मिलता है।
15. दर्द व सूजन: किसी भी तरह के चोट मोच से पैदा दर्द युक्त सूजन पर सफेद गुंजा के पत्ते का रस या इसे तेल में मिलाकर लगाने से लाभ होता है।
16. वीर्य रोग: गुंजा की जड़ 2 ग्राम को दूध में पकाकर रोज रात को खाना खाने से पहले सेवन करने से वीर्य के सभी रोग खत्म हो जाते हैं।
गुंजा के नुकसान : gunja ke nuksan
- गुंजा को यदि पकाकर शुद्ध न करके इन्हें ऐसे ही उपयोग किया जाए तो दस्त और कै(उल्टी) तीव्र रूप से आरम्भ हो जाते हैं।
- यदि इनको अधिक मात्रा में सेवन किया जाए तो यह अत्यन्त तीव्र विष के रूप में अपना बुरा प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं। (हैजे के रोग के समान यह लक्षण उत्पन्न कर देते है)
नोट-गुंजा को अधिक मात्रा में सेवन करने से यदि शरीर में कोई बेचैनी मालूम हो तो–चौलाई के रस में मिश्री मिलाकर पियें और ऊपर से दुग्धपान करें। इस प्रयोग से इसका विष का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।