कायफल (कट्फल) के 43 चमत्कारी फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव – Katphala (Box Myrtle) ke Fayde aur Nuksan

Last Updated on February 16, 2024 by admin

कायफल (कट्फल) पेड़ का स्वरूप :

       कायफल (कट्फल) का पेड़ उत्तर प्रदेश, पंजाब, आसाम और हिमालय के गर्म जगहों में बहुत पाए जाते हैं। इसके पेड़ 10 से 15 फुट ऊंचे होते हैं। कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल मटमैली भूरी होती है, पत्ते नुकीले व लम्बे होते हैं और इसके फल गोल होते हैं। कायफल (कट्फल) की 2 जातियां होती है- काली और सफेद। कायफल (कट्फल) के फूल छोटे, लाल, खुशबूदार और गुच्छों में होते हैं और फल एक इंच से भी छोटे, गोल, पकने पर खून के रंग या पीलापन लिए बादामी रंग के होते हैं। 

फल का स्वाद मीठा व खट्टा होता है। फलों के ऊपर सफेद रंग का आवरण चढ़ा रहता है जो भूरे व काले धब्बे से युक्त होते हैं। फलों में झुर्रिदार बीज होते हैं जो फालसे की तरह स्वादिष्ट होते हैं। इसकी छाल से रिस्सयां बनाई जाती हैं। औषधियों के लिए लाल कायफल (कट्फल) अधिक उपयोगी होता है। पेड़ की छाल को ही कायफल (कट्फल) कहते है और यह ही औषधियों के रूप में प्रयोग की जाती है।

कायफल (कट्फल) पेड़ का विभिन्न भाषाओं में नाम :

संस्कृत   कट्फल।
हिन्दी    कायफल (कट्फल)।
अंग्रेजी    बाक्स मिर्टल।
लैटिन    माइरिका एसक्युलन्टा।
बंगाली    कटफल, कार्यछाल।
गुजराती  कायफल (कट्फल)।
मराठी    कुम्भा कायफल (कट्फल)।
कनाड़ी    किरूशिवनी इप्पेमारा, इछालद,गड्डाद।
मलयालम पिलं, आलं।
तैलिगी   उद्दल।
फारसी    दारशीशयान।
अरबी    उदुलबर्क।
लैटिन    मिरिका सापीड़ा, मियोस्टिका मेलेबेरिका कारे, आर्बोंयां।  

कायफल (कट्फल) के औषधीय एवं आयुर्वेदिक गुण :

कायफल (कट्फल) कडुवा, चरपरा व कषैला होता है। यह वात, कफ बुखार, श्वास, प्रमेह, अर्श, खांसी, गले का रोग एवं अरुचि को दूर करता है।

आयुर्वेद के अनुसार : 

  • कायफल (कट्फल) का रस स्वाद में कडुवा, तीखा व कषैला होता है। 
  • इसकी प्रकृति गर्म होती है।
  •  इसका फल पकने के बाद कडुवा हो जाता है। 
  • कायफल (कट्फल) वात व कफ से उत्पन्न रोगों को शांत करता है और वात के कारण उत्पन्न दर्द को खत्म करता है।
  •  इसका उपयोग सिर दर्द, सर्दीजुकाम, मूर्च्छा (बेहोशी) एवं मिर्गी आदि के लिए किया जाता है।
  •  यह सांस रोग व खांसी में फायदेमंद है।
  •  यह नपुंसकता को मिटाता है।

यूनानी चिकित्सकों के अनुसार :

  • कायफल (कट्फल) गर्म व खुश्क होता है। 
  • इसके फूलों से निकाले गए तेल भी गर्म व रूखा होता है।
  • इसके तेल से लकवा की बीमारी में मालिश करने से फायदा होता है। 
  • नपुंसकता में इस तेल को लिंग पर मलने से नपुंसकता दूर होती है।
  •  यह सिर दर्द को दूर करता है और नाक में इसके तेल को टपकाने से नाक से खून आना बंद होता है।

वैज्ञनिक के अनुसार :

  •  कायफल (कट्फल) का रासायनिक तत्त्वों का विश्लेषण करने पर पता चला है कि कायफल (कट्फल) की छाल में 32 प्रतिशत टैनिन, मिरिसाइट्रिन नामक ग्लाइकोसाइड पाया जाता है। 
  • कायफल (कट्फल) उत्तेजक, संकोचक, कृमिनाशक, छाती में जमे हुए कफ को निकालने वाला, हृदय रोग में गुणकारी, अतिसार दूर करने वाला होता है।

सेवन की मात्रा : 

कायफल (कट्फल) छाल का चूर्ण 3 से 5 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है।

कायफल (कट्फल) के फायदे व उपयोग :

1. लू लगना: कायफल (कट्फल) की छाल का रस निकालकर चीनी मिलाकर लू लगे रोगी को पिलाने से लू का लगना ठीक होता है।

2. पेशाब में वीर्य आना: कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल और नारियल का रस मिलाकर 7 दिनों तक पीने से पेशाब के साथ धातु का आना बंद होता है।

3. आग से जल जाने पर: शरीर जल जाने पर कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का रस निकालकर लेप करने से जलन दूर होती है और छाले नहीं पड़ते।

4. मिर्गी: कायफल (कट्फल) को पानी के साथ घिसकर मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इससे मिर्गी का रोग ठीक होता है।

5. दांतों के रोग: कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों का दर्द ठीक होता है। इससे दांत मजबूत होते हैं।

6. सर्दी लगना: कायफल (कट्फल) का बारीक चूर्ण छाती, पेट व हाथ-पैरों पर मलने से शरीर में गर्मी बढ़कर ठंड दूर होती है।

7. जुकाम, नजला, नया जुकाम:

  • कायफल (कट्फल) को नाक से सूंघने से जुकाम ठीक होता है।
  • कायफल (कट्फल) छाल का बारीक चूर्ण रूमाल में लपेटकर बार-बार सूंघने से छींके आती है और सिर हल्का होता है।
  • कायफल (कट्फल) छाल और सोंठ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से जुकाम ठीक होता है।

8. अतिसार (दस्त):

  • बिल्वफल और कायफल (कट्फल) छाल का चूर्ण बराबर की मात्रा में लेकर एक-एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार रोगी को सेवन कराएं। इससे दस्त रोग ठीक होता है।
  • कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर दस्त रोग से पीड़ित रोगी को पिलाना चाहिए। इससे दस्त का बार-बार आना बंद होता है।

9. कान का दर्द: कायफल (कट्फल) छाल को तेल में पकाकर तेल को कान में 1 से 2 बूंद डालने से दर्द ठीक होता है।

10. कान का बहना: कायफल (कट्फल) छाल को तेल में पकाकर कुछ बूंदे दिन में 3 से 4 बार कान में डालने से कान का बहना ठीक होता है। तेल डालने से पहले कान को रुई से अच्छी तरह साफ कर लें।

11. कान की पुरानी सूजन: कायफल (कट्फल) छाल को पकाकर बनाए हुए तेल को प्रतिदिन 3 से 4 बार 2-3 बूंदे कान में डालने से सूजन दूर होती है और कान से मवाद का बहना बंद होता है।

12. दमा, श्वास रोग:

  • कायफल (कट्फल) छाल, पुष्करमूल, काकड़ासिंगी, नागरमोथा, सोंठ, कालीमिर्च, छोटी पीपल और कचूर बराबर मात्रा में लेकर कूट-छान लें। इस चूर्ण को अदरक के रस और शहद के साथ सेवन करने से कफ नष्ट होता है और दमा ठीक होता है। यह खांसी, उल्टी, अरुचि, वातरोग तथा दर्द आदि को भी ठीक करता है।
  • कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल के रस में चीनी मिलाकर रोगी को पीना चाहिए। इससे श्वास व दमा रोग नष्ट होता है।
  • श्वास रोग (दमा) से पीड़ित रोगी को सोंठ और कायफल (कट्फल) छाल के चूर्ण का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग में आराम मिलता है।
  • कायफल (कट्फल) छाल , सोंठ, पोहकर-मूल, काकड़ासिंगी, भारंगी और छोटी पीपल को बराबर मात्रा में लें और पीसकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 6 से 10 ग्राम तक की मात्रा में शहद मिलाकर खाने से श्वास तथा कफज-खांसी ठीक होती है।

13. वात-पित्त का बुखार: कायफल (कट्फल) छाल, पोहकरामूल, काकड़ासिंगी, अजवायन, कलौंजी, सोंठ, कालीमिर्च और छोटी पीपल आदि को बराबर मात्रा में लें और एक साथ कूटकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण 3-3 ग्राम की मात्रा में शहद या अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार चटाने से वात-पित्त ज्वर ठीक होता है। इससे खांसी, अरुचि (भूख का न लगना), हिचकी, वमन (उल्टी) और वात रोग भी समाप्त होता है।

14. बुखार: कायफल (कट्फल) छाल का 1 ग्राम चूर्ण रोगी को बुखार आने से पहले पानी के साथ खिलाने से बुखार नहीं आता है।

15. पायरिया: सिरके में कायफल (कट्फल) छाल घिसकर मसूढ़ों पर लगातार 5-5 मिनट तक दिन में 2 बार मलने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पायरिया ठीक होता है।

16. बच्चों का गुदापाक रोग: कायफल (कट्फल) छाल का काढ़ा बनाकर बच्चे के गुदा को धोने से और कायफल (कट्फल) छाल के चूर्ण को शुद्ध घी या तिल के तेल में मिलाकर गुदा पर लगाएं। इससे गुदा पाक ठीक होता है।

17. बांझपन दूर करना: कायफल (कट्फल) छाल को कूट-छानकर चूर्ण बना लें और फिर चूर्ण के बराबर चीनी मिलाकर रख लें। यह चूर्ण मासिकधर्म समाप्त होने के बाद लगातार 3 दिनों तक एक मुट्ठी भर सेवन करें। भोजन में केवल दूध और चावल का सेवन करें। औषधि सेवन करने के चौथे दिन संभोगकर। इससे बांझपन दूर होता है और गर्भधारण होता है।

18. गर्भधारण: कायफल (कट्फल) छाल 25 ग्राम की मात्रा में कूट-पीसकर रख लें। इसमें 25 ग्राम की मात्रा में चीनी मिला लें। इसे लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह पानी के साथ मासिकधर्म खत्म होने के बाद लगभग 5 दिनों तक प्रयोग करने से गर्भधारण होता है।

19. बवासीर (अर्श):

  • कायफल (कट्फल) छाल के महीन चूर्ण में हींग, कपूर और घी मिलाकर लेप बना लें और यह लेप बवासीर के मस्सों पर लगाएं। इससे मस्से सूखकर झड़ जाते हैं और बवासीर ठीक होता है।
  • बवासीर के मस्सों पर कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का चूर्ण घी में मिलाकर बवासीर पर लगाने से बवासीर दूर होती है।

20. सूजन: कायफल (कट्फल) छाल को सिल पर घिसकर चोट-मोच से उत्पन्न सूजन पर लगाने से सूजन मिटती है और दर्द दूर होता है।

21. घाव:

  • पुराने से पुराने घाव को कायफल (कट्फल) छाल का काढ़े से धोने और इसके चूर्ण डालकर पट्टी बांधने से घाव जल्दी ठीक होता है।
  • कायफल (कट्फल) छाल, असगंधा, कुटकी, लोध्र, कायफल (कट्फल), मुलहठी, मंजीठ और धाय के फूलों को एक बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीस लें और यह लेप फोड़े पर लगाएं। इससे फोड़ा पककर फूट जाता है और सूख जाता है।
  • कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से लाभ मिलता है।
  • कायफल (कट्फल) छाल को उबालने से प्राप्त मोम जैसे पदार्थ को घाव पर लगाने से घाव भर जाता है।

22. प्रसूता का ज्वर व खांसी: कायफल (कट्फल) छाल 10 ग्राम कूट छानकर आधा से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीने से प्रसूता का बुखार व खांसी दूर होती है।

23. मधुमेह रोग: यदि मधुमेह के रोगी की शरीर से अधिक पसीना आता हो तो उसे कायफल (कट्फल) छाल का चूर्ण शरीर पर लगाना चाहिए। इससे पसीने आना कम होता है।

24. नाक की सूजन: कायफल (कट्फल) को पकाने से जो तेल निकलता है उसे तेल की 2-3 बूंदे प्रतिदिन 3-4 बार नाक में डालें और नाक के ऊपर भी लगाएं। इससे नाक की सूजन दूर होती है।

25. नाक के रोग: कायफल (कट्फल) छाल के काढ़े से नाक की फुंसियों को धोने से नाक की फुंसियां ठीक होती है और दर्द में भी आराम मिलता है।

26. स्तनों की घुंडी का फटना:

  • कायफल (कट्फल) छाल को पीसकर गर्म करके लेप बना लें और यह लेप प्रतिदिन स्तनों की घुंडी पर लगाएं। इससे स्तनों की घुंडी का जख्म ठीक होता है।
  • कायफल (कट्फल) के शुद्ध तेल की मालिश करने से स्तनों की घुंडी पर कटने या फटने के कारण होने वाला जख्म ठीक होता है।

27. टीके से होने वाले दोष:

  • यदि टीका लगाने के बाद उस स्थान पर घाव या सूजन आ गई हो तो उस स्थान को कायफल (कट्फल) छाल के काढ़े से धोएं। इससे घाव ठीक होते हैं।
  • कायफल (कट्फल) छाल से प्राप्त तेल प्रतिदिन सेवन करने से टीके के कारण हुए रोग ठीक होते हैं।

28. गठिया रोग:

  • गठिया के रोग में कायफल (कट्फल) के तेल से हिड्डयों पर मालिश करने से गठिया का दर्द दूर होता है।
  • पैरों व उंगुलियों के दर्द में कायफल (कट्फल) के तेल से मालिश करनी चाहिए।

29. योनि की गांठ: कायफल (कट्फल) छाल , आम की गुठली, गेरू और हल्दी को बराबर मात्रा में लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण शहद में मिलाकर योनि में रखें। इससे योनि की गांठ समाप्त होती है।

30. नाखूनों का जख्म: नाखूनों के घाव व जलन में कायफल (कट्फल) से प्राप्त तेल को नाखूनों पर टपकाने से नाखून का जख्म जल्द ठीक होता है।

31. मिर्गी (अपस्मार):

  • कायफल (कट्फल) को सूंघने से मिर्गी के कारण आने वाले दौरे समाप्त होते हैं।
  • कायफल (कट्फल), नकछिकनी, कटेरी के सूखे फल लगभग 6-6 ग्राम की मात्रा और 40 ग्राम तम्बाकू को बारीक पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन मिर्गी के रोगी को सुंघाने से मिर्गी के दौरे दूर होते हैं।

32. मानसिक उन्माद (पागलपन): कायफल (कट्फल), तिल का तेल और करज्जवा को मिलाकर उन्माद के रोगी की नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।

33. एड़ियों का फटना: कायफल (कट्फल) छाल को पीसकर लेप करने से फटी हुई `बिवाई´ (फटी एड़िया) ठीक हो जाती हैं।

34. विनसेण्ट एनजाइना: कायफल (कट्फल) छाल के काढ़े से प्रतिदिन 3-4 बार गरारे करने से जल्दी आराम मिलता है।

35. सिर का दर्द: सिर दर्द से पीड़ित रोगी को कायफल (कट्फल) छाल सुंघाने से सिर का दर्द दूर होता है।

36. नाड़ी का छूटना: सौंठ का चूर्ण और कायफल (कट्फल) छाल को मिलाकर पैर व तलवों पर मालिश करने से शरीर की गर्मी बनी रहती है। इससे शरीर की नाड़ी नहीं छूटती है और पसीना का अधिक आना बंद हो जाता है।

37. गण्डमाला: गण्डमाला में सोंठ के साथ कायफल (कट्फल) छाल का बना काढ़ा रोगी को प्रतिदिन 2-3 बार पिलाने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।

38. गले के रोग: कायफल (कट्फल) छाल को पान में रखकर चबाने से गले का भारीपन दूर होता है।

39. खांसी:

  • कायफल (कट्फल), नागरमोथा, भारंगी धनिया, चिरायता, पित्तपापड़ा काकड़ासिंगी, हरड़, बच देवदारू और सोंठ को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन करने से खांसी, ज्वर, श्वास, कफ और कंठरोग में बहुत लाभ मिलता है।
  • 3-3 ग्राम कायफल (कट्फल) छाल और काकड़ासिंगी को पीसकर शहद के साथ सेवन करने से श्वास रोग दूर होता है।
  • कायफल (कट्फल) के पेड़ की छाल का रस शहद के साथ मिलाकर 7 दिनों तक पीने से खांसी नष्ट होती है।

40. हिचकी का रोग: कायफल (कट्फल) छाल, हरड़, बच, धनिया, रोहिष, भारंगी, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, पित्तपापड़ा, सोंठ व देवदारू 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर आठ गुना पानी में पकाएं और पानी एक चौथाई शेष रहने पर छानकर रोगी को पिलाएं। इसे हर प्रकार की हिचकी से राहत मिलती है।

41. दांतों का दर्द: कायफल (कट्फल) छाल को सिरके में पीसकर दांतों में लगाने से दांतों की पीड़ा (दर्द) मिटती है।

42. हैजा:

  • हाथ पांव ठंडे होने पर कायफल (कट्फल) छाल और सौंठ का चूर्ण समभाग मिलाकर हाथ-पैरों व तलुवों पर मलने से हैजा रोग में लाभ होता है।
  • सोंठ और कायफल (कट्फल) छाल दोनों को बराबर की मात्रा में चूर्ण बनाकर हैजा के रोगी के हाथ-पैरों पर मालिश करें। इससे ऐंठन दूर होकर गर्मी आ जाती है।
  • हैजा रोग में यदि शरीर ठंड पड़ गया हो तो रोगी के हाथ-पैर तथा पिंडलियों पर कायफल (कट्फल) का चूर्ण मलें। इससे शरीर में गर्मी आती है और हैजा में आराम मिलता है।

43. कण्ठमाला: कायफल (कट्फल) को बारीक पीसकर गलगण्ड (कण्डमाला) पर लगाने से गांठे ठीक होती हैं।

कायफल (कट्फल) के नुकसान:

कायफल (कट्फल) का अधिक मात्रा में प्रयोग करना यकृत (लीवर) के लिए हानिकारक होता है और उल्टी की शिकायत हो सकती है।

Read the English translation of this article here Box Myrtle (Katphala): 43 Medicinal Uses, Health Benefits, Side Effects and More

अस्वीकरण: इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए। कृपया किसी भी जड़ी बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें।

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