बिच्छू बूटी के फायदे, गुण, उपयोग और दुष्प्रभाव – Bichu Buti ke Fayde aur Nuksan

Last Updated on August 16, 2022 by admin

बिच्छू बूटी क्या है ? : What is Nettle Leaf (Bichu Buti) in Hindi

हिमालय क्षेत्र में सात हजार फुट की ऊंचाई तक इस बूटी के पौधे पाये जाते हैं। इस बूटी के पौधे तीक्ष्ण कठोर रोमों से ढके रहते हैं। ये रोम हमारे शरीर पर लग जाने से बिच्छू के ढंक मारने जैसी तीव्र पीड़ा होती है, तब ही इसे बिच्छू बूटी कहा जाता हैं।

बिच्छू बूटी का विभिन्न भाषाओं में नाम : Name of Nettle Leaf in Different Languages

Nettle Leaf (Bichu Buti)–

  • संस्कृत (Sanskrit) – वृश्चिका (वृश्चियाक)
  • हिन्दी (Hindi) – बिच्छूबूटी, बिछुआ, बिच्छूघास, बिच्छूपान, कंडाली, झिर कंडाली
  • पंजाबी (Punjabi) – भाबर
  • मराठी (Marathi) – मोतीखजती
  • मलयालम (Malayalam) – अनाचचोरयानम
  • अंग्रेजी (English) – हिमालयन नेट्टल (Himalayan nettle)
  • लैटिन (Latin) – गिरारडिनिया हेटे रोफिला (Girardinia Heterophylla, Decne) यह नाम छोटी का है। यूरटिका डाइओइका (Urtica Dioica Linn.) यह नाम बड़ी जाति की बिच्छू बूटी का है।

बिच्छू बूटी का पौधा कैसा होता है ?

इस बूटी के पौधे 4-6 फुट ऊंचे होते हैं। इसके सर्वाग पर तीक्ष्ण कठोर रोम होते हैं।
बिच्छू बूटी के पत्ते – पत्र 4-5 इंच चौड़े एवं 4-12 इंच लम्बे होते हैं। इनके अधः पृष्ठ चिकने होते हैं।
बिच्छू बूटी के फूल – पुष्प- छोटे, वृन्तरहित, पुष्प- मंजरी शहतूत जैसी 6 इंच लम्बी और सघन रोमों से आवृत होती है।

बिच्छू बूटी के प्रकार :

कविराज श्री योगेश्वर प्रसाद वैद्य वाचस्पति ने इस बूटी के बारे में लिखा है कि – यह बूटी छोटी और बड़ी भेद से दो प्रकार की होती है। दोनों प्रकार की बूटियां प्राय: वर्षा काल के पहले पैदा होती हैं।

छोटी बूटी के पौधे 2-6 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्र 8 इंच लम्बे और 4-5 इंच चौड़े होते हैं। पत्तों तथा शाखाओं पर सफेद रोम सदृश बारीक कांटे से होते हैं। सावन-भादवे में इस पर बीच-बीच की ग्रन्थि स्थानों पर शहतूत के समान पुष्पमंजरी निकलती है। बड़ी बूटी का पौधा दस फुट से भी कहीं-कहीं अधिक ऊंचा पाया जाता है। पत्र 5-10 इंच लम्बे और 3-5 इंच चौड़े होते हैं। इन रोमों के स्पर्श से बिच्छू के डंक मारने जैसी वेदना होती है।

बिच्छू बूटी के औषधीय गुण : Bichu Buti ke Gun in Hindi

  • बिच्छू बूटी उष्ण वीर्य, वातकफनाशक, पित्तवर्धक है।
  • इसके सूखे पत्तों का फाण्ट बनाकर पीने से कफजन्य ज्वर में आराम मिलता है।
  • राजनिघण्टुकार ने इसे “अन्त्रवृद्धयादिदोषनुत” कहकर अन्त्रवृद्धि ‘ आदि रोगों में उपयोगी कहा है। “जंगलनी जड़ी-बूटी” के लेखक ने इसके संयोग से उत्तम लोह भस्म, मल्ल भस्म तथा हरताल भस्म के निर्माण का विधान लिखा है।
  • बिच्छू बूटी की जाति की ही एक-दो अन्य वनौषधियां भी पायी जाती है। जिन पर भी बिच्छू के डंक जैसे वेदना कारक रोम होते हैं इन सब के गुण भी प्रायः उक्त बिच्छू बूटी के समान ही होते है।

बिच्छू बूटी के उपयोग : Uses of Bichu Buti in Hindi

यह पूर्व में भी लिख गया है कि बिच्छू बूटी को वृश्चियाशाक भी कहा जाता है। पहाड़ी लोग इसके पत्तों का शाक बनाकर बड़े चाव से खाते हैं। कविराज योगेश्वर जी ने लिखा है कि छोटी बिच्छू बूटी जब तक बीजयुक्त नहीं होती तब तक इसका शाक बनाकर खाया जाता है। यह शाक उष्ण होता है। श्वास, कास, गुल्म, सर्वागशोथ एवं अन्य उदर रोगों में उपयोगी है। इन रोगों में इसे पथ्यरूप में दिया जाता है।
इसके सेवन करने से मूत्र-मल का प्रवर्तन होता है। जिससे रोगी को आराम मिलता हैं।
इसी प्रकार बड़ी बिच्छू बूटी पर भी बीज आने से पहले उसके नूतन कोमल पत्तों का शाक बनाकर उपयोग में लाया जाता है। इस पत्तों को चिमटे या कपड़े से पकड़कर तोड़कर जल के साथ पात्र में उबालते हैं उबालने से यह बूटी निर्दोष हो जाती है। फिर नीचे उतार कर ठण्डा हो जाने पर हाथों से मसल निचोड़कर इन्हें पीसते हैं। इस पिष्टी के साथ ही उड़द या कुलथी की पिष्टी (पिट्टी) मिलाकर घृत के साथ हींग का छोंक देकर पतला शाक बनाते हैं। जिसे चावलों के साथ खाते हैं। जो सूखी सब्जी खाना पसन्द करते हैं। वे बिना पिष्टी बनाये ही, शाक बनाकर खाते हैं।

इसका शाक भी सर्वागशोथ, जलोदर, कास, श्वास, प्रतिश्याय एवं उदर-विकार आदि रोगों में पथ्य है। वातरोगों में तथा कास-श्वास में इसके 5-6 पत्रों को कुलथी की दाल के साथ पकाकर उसमें हींग जीरे का छोंक देकर सेवन किया जाता है। उत्तराखण्ड के एवं तिब्बत, नेपाल के निवासी शीतकाल में आमतौर से सब कोई इसके शाक को बड़े चाव से खाते हैं।

बिच्छू बूटी के फायदे : Benefits of Bichu Buti in Hindi

1. प्रमेह रोग ठीक करे बिच्छू बूटी का प्रयोग : लगभग आधा ग्राम बिच्छू बूटी के बीज को 6 ग्राम मिश्री के साथ पीसकर ताजे गाय के दूध के साथ प्रात: – साय सेवन करने से लाभ मिलता है। विशेष रूप से यह कफ से उत्पन्न प्रमेह में अधिक लाभदायक होता है। इससे शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है। ( और पढ़े – प्रमेह रोग का आयुर्वेदिक इलाज )

2. सरदर्द में बिच्छू बूटी का उपयोग फायदेमंद : बिच्छू बूटी के पत्तों के रस को सिर में लगाने से सरदर्द में लाभ होता है।

3. दाद मिटाए बिच्छू बूटी का उपयोग : बिच्छू बूटी के पौधे को जलाकर प्राप्त राख को दाद(ringworm) पर लगाने से रोग में लाभ होता है। ( और पढ़े – दाद रोग का इलाज )

4.आमाशय के रोग में बिच्छू बूटी के इस्तेमाल से फायदा : बिच्छू बूटी की जड़ और मण्डूकपर्णी को उबालकर काढा बनाकर सेवन कराने से आमाशय के रोग में लाभ होता है।

5. मूत्र संबंधित रोग में बिच्छू बूटी का उपयोग लाभदायक : बिच्छू बूटी के पञ्चाङ्ग का काढा बनाकर पीने से वृक्क-संक्रमण, वृक्कशूल तथा पेशाब मे जलन आदि मूत्र-विकारों में तथा विषम ज्वर में लाभ होता है।

6. पथरी में बिच्छू बूटी के इस्तेमाल से लाभ : बिच्छू बूटी के पत्तों का क्वाथ बनाकर पीने से पथरी टूट-टूट का निकल जाती है तथा सुजाक रोग का शमन होता है।

7. पौरुषग्रन्थि वृद्धि में लाभकारी है बिच्छू बूटी का प्रयोग : बिच्छू बूटी की जड़ का काढा बनाकर पिलाने से पौरुष-ग्रन्थि की वृद्धि का शमन होता है।

8. जोड़ों का दर्द दूर करे बिच्छू बूटी का प्रयोग : बिच्छू बूटी के पत्तों का काढा बनाकर पीने से जोड़ों का दर्द तथा सूजन का शमन होता है।

9. आमवात मिटाता है बिच्छू बूटी : ताजे बड़ी बिच्छू बूटी के पञ्चाङ्ग (जड़, छाल, पत्ती, फूल एवं फल) के रस को घुटनों पर रगड़ने से आमवात का दर्द दूर होता है।

10. बिच्छू बूटी के इस्तेमाल से घाव में लाभ : बिच्छू बूटी के ताजे पत्तों को पीसकर इसका रस निकालकर घावों पर लगाने से घाव में लाभ होता है ।

बिच्छू बूटी के दुष्प्रभाव : Bichu Buti ke Nuksan in Hindi

बिच्छू बूटी का शाक प्रदर, अतिसार तथा पित्त जन्य रोगों में हानिकारक है। पित्त प्रकृति के व्यक्तियों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिये।

बूटी का स्पर्श होने पर उसका उपचार – प्रकृति ने अधिकतर वनौषधियां ऐसी पैदा की है जो निरापद है किन्तु कुछ ऐसी भी हैं जो साथ में कष्ट भी उत्पन्न कर देती हैं। बिच्छू बूटी भी एक ऐसी ही वनौषधि हैं। सेवन करते समय इसकी उष्णता का तो ध्यान रखना ही है किन्तु इसके रोम शरीर पर लग जाये तो क्या उपाय करना है। यह भी ध्यान रखना चाहिये। प्रकृति ने पहले ही ऐसी वनौषधियां भी पैदा कर दी हैं। जो इस कष्ट को मेटने में सहायक होती हैं।

जहां बिच्छू बूटी पायी जाती है। प्रायः उसके समीप ही एक बूटी होती है जिसके पत्र, पुष्प, फल आदि सब वनतुलसी (अर्जक) के समान होते हैं। इसके पत्तों का रस लगा देने से बिच्छू बूटी के स्पर्श से उत्पन्न बिच्छू के दंश जैसी तीव्र वेदना शीघ्र ही शान्त हो जाती है।

अध्ययन काल में जब हम गुरुजी के साथ वनौषधि परिचय हेतु उत्तराखण्ड की यात्रा कर रहे थे तब हमारे एक साथी को इस बिच्छू बूटी का स्पर्श हो गया। वह चिल्लाने लगा- मुझे बिच्छू ने काट खाया। गुरु जी ने देखा वहां कोई बिच्छू नहीं था यह बिच्छू बूटी थी जिसके रोम लगने से उसे बिच्छू काटने जैसी तीव्र वेदना हुयी थी। तत्काल गुरुजी ने समीप में ही एक अन्य वनौषधि को देखा और उसके पत्तों का रस निचोड़कर उसके दंश स्थान पर लगा दिया जिससे उसे शीघ्र ही आराम मिल गया।

(अस्वीकरण : दवा, उपाय व नुस्खों को वैद्यकीय सलाहनुसार उपयोग करें)

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